चुनाव आए नजदीक तो नेता पहुंचने लगे बुंदेलखंड

अजय कुमार

वर्षों से सूखे और भुखमरी की मार झेलने वाले बुंदेलखंड में एक बार फिर चुनावी दस्तक सुनाई देने लगी है। चुनाव का समय आते ही सभी दलों के नेताओं को बुंदेलखंड लुभाने लगा हैं। उस चेहरे को तलाशाने का नाटक किया जा रहा है जो बुंदेलखंड की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। कांग्रेस को यह चेहरा मायावती का लगता है तो मायावती को कांग्रेस का। कांग्रेस पैसे के बल पर बुंदेलों का दिल जीतना चाहती हैं तो मायावती की नजर में बुंदेलखंड की दुर्दशा के लिए केन्द्र और उत्तर प्रदेश की पूववर्ती सरकार जिम्मेदार हैं। आरोपों-प्रत्यारोपों का न रुकने वाला दौर जारी है।

30 अप्रैल को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बांदा पहुंचकर माया सरकार से बुंदेलखंड के लिए दिए गए पैकेज का हिसाब मांगा तो कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखंड में गरीबी, भुखमरी, सूखा, आत्महत्याओं आदि समस्याओं के लिए राज्य सरकार को दोषी करार देने के साथ ही 2012 के विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा दिया। इस मौके पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी आदि कई नेता भी मंच पर विराजमान थे। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के दौरे के बाद कई अन्य दलों के नेता भी यहां अपनी ताकत और नब्ज टटोलने आ सकते हैं। भाजपा और सपा कतई यह नहीं चाहती हैं कि बुंदेलखंड में उनकी ताकत कम दिखे। बसपा के लिए फायदे की बात यह है कि यह (बुंदेलखंड) उसके दो दिग्गज मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा का इलाका है और राजनैतिक रूप से यहां बसपा अन्य दलों के मुकाबले काफी सशक्त है।

विभिन्न राजनैतिक दल बुंदेलों का विश्वास जीतने की कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन लगता नहीं है कि उनकी यह कोशिश रंग लाएगी। प्राकृतिक सम्पदा सम्पन्न और सुविधाओं के लिहाज से बेहद पिछड़े बुंदेलखण्ड का अभी तक विकास नहीं हो पाया है तो इसके लिए यहां की जनता केन्द्र और प्रदेश सरकार दोनों को ही दोषी मानती है। विडम्बना के शिकार इस भू-भाग को वाजिब हक देने के पैरोकार लोगों की नजर में यह गहमागहमी सिर्फ चुनावी हलचल भर है और अलग राज्य के रूप में गठन ही इसके विकास का एकमात्र रास्ता है। बुंदेलखण्ड की लड़ाई के लिये उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समर में कूदने जा रहे बुंदेलखण्ड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष राजा बुंदेला नेताओं के दिखावे से काफी दुःखी हैं। उनका तो साफ-साफ कहना है कि चुनावी सुगबुगाहट के चलते राजनीतिक पार्टियों को एक बार फिर बुंदेलखण्ड की याद आ गई है। कांग्रेस ने रैली कर इसकी शुरुआत कर दी है और अब इस होड़ में अन्य पार्टियां भी जुट जाएंगी। एक बार फिर नए-नए वादे किये जाएंगे और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलेगा। वोट लिये जाएंगे और इससे उठने वाले गुबार के खत्म होने के बाद बुंदेलखण्ड फिर उसी मुफलिसी की हालत में दिखाई देगा, जिसमें वह अर्से से सिसक रहा है। इस क्षेत्र का विकास तभी होगा जब बुंदेलखण्ड को अलग राज्य का दर्जा मिलेगा।

बहरहाल, 30 अप्रैल को बांदा में कांग्रेस की रैली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखण्ड क्षेत्र के लिये दिये गए विशेष पैकेज का जिक्र करते इस क्षेत्र के विकास की गति धीमी होने के लिये गैर-कांग्रेसी सरकार और उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार को जिम्मेदार ठहराया तो बुंदेलखण्ड की संस्कृति, इतिहास और कला पर अनेक किताबें लिख चुके साहित्यकार अयोध्या प्रसाद चुप नहीं रह पाए। उन्होंने बुंदेलों की धरती पर खुशहाली के लिये सरकारी योजनाओं के ईमानदारी से क्रियान्वयन पर जोर देतु हुए कहा कि किसी भी सरकार की ओर से दिये गए पैकेज का अगर यहां सही इस्तेमाल किया जाए तो स्थिति जल्द ठीक हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज जो राहुल गांधी कह रहे हैं वही बात उनके पिता राजीव गांधी भी कहा करते थे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकारी धन के एक रुपए में से सिर्फ 10 पैसे ही पात्र लोगों तक पहुंचने का सच स्वीकार कर चुके हैं। बात पैसे की ही नहीं है। यही हाल नेताओं का भी है। वह आते हैं बुंदेलखंडवासियों की समस्याओं को सुनते और बड़े-बड़े वायदे करते हैं। जनता बेचारी भ्रमित हो जाती है। वह यह भूल जाती है कि राजनीति के खेल का यही दस्तूर होता है। जनता बेवकूफ बनने और नेता बनाने के लिए होता है।

बात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौर की ही कि जाए तो यह साफ लगता है कि अपने सम्बोधन के दौरान प्रधानमंत्री विकास के मुद्दे पर कोई सियासत नहीं करने की बात कह जरूर रहे थे लेकिन बुंदेलखंड पैकेज की स्क्रिप्ट सियासत की स्याही से ही लिखी गई थी। कांग्रेसियों के भाषणों से तो ऐसा ही लग रहा था कि बुंदेलखंड पैकेज राहुल गांधी की कोशिशों से ही मिल पाया है। मंच पर मौजूद सभी नेता इस पैकेज का श्रेय राहुल गांधी को देने की होड़ में लगे थे। वहीं राहुल एंड कम्पनी बुंदेलखंड की दुर्दशा का ठीकरा माया सरकार पर फोड़ती रही। मानों गैर-कांग्रेसी सरकारों से पहले बुंदेलखंड पूरी तरह से खुशहाल था। एक तरफ प्रधानमंत्री और कांग्रेसी पैकेज के नाम पर अपनी पीठ थपथपाने में लगे थे तो दूसरी तरफ विपक्ष सवाल खड़े कर रहा था कि चुनाव के समय ही क्यों पैकेज की याद आई।

एक तरफ नेतागण बुंदेलों को सपने दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ बुंदेलखंड की समस्याओं को करीब से जानने वालों का साफ-साफ कहना था कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुल 24 जिलों में फैले बुंदेलखण्ड के विकास के लिये इन दोनों सूबों की जनता को साथ लेकर एक समन्वय समिति बना कर ही बुंदेलखंड की समस्या का कुछ हल निकाला जा सकता है। बुंदेलखण्ड में मौजूदा राजनीतिक हलचल से क्षेत्र के लोगों को हमेशा की तरह निराशा ही हाथ लगेगी। बुंदेलखण्ड के लिये योजनाएं बनाने वालों में से ज्यादातर लोग यहां की भौगोलिक परिस्थितियों से नावाकिफ हैं, जिससे क्षेत्र के लिये सटीक योजनाएं नहीं बन पातीं। क्षेत्र के विकास के लिये योजनाओं का सोशल ऑडिट होना चाहिये; ताकि सच्चाई सामने आ सके। बुंदेलखण्ड में शिक्षा के प्रसार की दिशा में प्रयास कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रवीन्द्र कुरेले का कहना है कि जब उत्तराखंड, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ का अलग राज्य के रूप में गठन किया जा सकता है तो बुंदेलखण्ड को पृथक सूबे का दर्जा देने में किसी को क्या तकलीफ है। कुरेले ने कहा कि सरकारों की ओर से एक-दूसरे पर दोषारोपण से बुंदेलखण्ड में विकास की उम्मीदें और कमजोर होंगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इस भू-भाग की ऐसी हालत के लिये केन्द्र, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश की सरकारें जिम्मेदार हैं और वे नहीं चाहतीं कि अलग बुंदेलखण्ड राज्य का गठन हो। उन्होंने कहा कि बुंदेलखण्ड के लोगों को पैकेज नहीं बल्कि अपना राज्य चाहिये।

उधर, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व प्रदेश चुनाव अभियान समिति के प्रमुख कलराज मिश्र ने केन्द्र की मनमोहन सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि पैकेज देकर केन्द्र ने कोई एहसान नहीं किया है। विकास के लिए राज्यों को पैकेज देना केन्द्र का दायित्व बनता है। कांग्रेस का एजेंडा विकास नहीं वोट है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांदा दौरे तथा उनके 200 करोड़ के पैकेज की घोषणा को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला करार देते हुए कहा कि बसपा और कांग्रेस दोनों ही बुंदेलखंड के लोगों का हमदर्द बनने का झूठा दिखावा कर रहे हैं, जनता इनकी सच्चाई जानती है, जो पैसा केन्द्र से आयेगा उसे बुन्देलखंड पर ही खर्च किया जायेगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। बसपा सरकार को तो पार्कों-मूर्तियों के निर्माण से ही छुट्टी नहीं मिल रही है। प्रदेश अध्यक्ष ने दोनों ही सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि केन्द्र व राज्य सरकार की संवेदनहीनता के कारण ही बुन्देलखंड के किसान परेशान हैं। इस पैकेज से उसे कोई लाभ मिलने वाला नहीं।

* लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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