दिवाली पर लक्ष्मी जाती है, आती नही ?

            आत्माराम यादव पीव
समुद्र मथने से लक्ष्मी समुद्र से निकली और बाहर आयी। बाहर का तात्पर्य जमीन पर नहीं क्षीरसागर में, जहॉ समुद्र में, ही विष्णु ने वरण कर लिया। क्षीरसागर से निकली लक्ष्मी जमीन पर आई, जमीन पर लक्ष्मी को ज्यादा चला नही जाता है इसलिये वह बैकुंठ में, देवलोक में, इन्द्रलोक में, सुरों और असुरों के पास पहुॅची। बाद में बड़े-बड़े सम्राटों, राजाओं, महाराजाओं, धनपतियों कुबेरपतियों के हाथों से निकलकर अत्र तत्र सर्वत्र पहुॅचने लगी। भारत में वे लोग जो लक्ष्मी को पाने के लिए कई पीढ़ी दर पीढ़ी दीवाली पर इंतजार करते चले गये, कुछ उनपर भी कृपालु हुई। पर जो लक्ष्मी की कृपा नहीं पा सके, निरा गरीब, मजदूर, फटीचर, भिखमंगे बने रहे उन्हें नहीं मिली, जिनकी औलादें अंधेंरे में आज भी लक्ष्मी के आने की संभावनाओं को तलाश रही है। पर लक्ष्मी भी गजब है वह टाटा-बिड़ला, अम्बानी, अडानी,जिंदल, दमानी, जिंदल, मित्तल कोटल जैसों के घर पर रूक गयी, वहीं जनता की सेवा को कर्तव्य समझने वाले, जनता को निज अधिकारों सहित सुविधा उपलब्ध कराने वाले समाजसेवी सियारों का चोला पहने नेताओं सहित तमाम रिश्वतखोर, घोटालेवाज, भ्रष्ट बेईमानों की तिजौरी में काली लक्ष्मी अर्थात ब्लेक मनी के रूप में कैद कर ली गयी।
उल्लू जगत का एकमात्र जीव है जो अंधरे में देख सकता है, इसलिये चकाचौध से भरी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती है। लक्ष्मी कमल पर विराजती है, कमल को भाजपा ने हाईजेक कर लिया। बात अजीब लगती है कि लक्ष्मी स्वयं प्रकाशवान होते हुऐ उल्लू पर असवार हो तो अंधेरा कैसे रहेगा? लक्ष्मी की उपस्थिति में अंधेरा क्या प्रकाशमान नहीं होगा? होता होगा, हमें क्या ? हमें आम खाने से मतलब है, गुठली गिनने से नहीं तात्पर्य जब लक्ष्मी को अपने घर पर लाने के लिये सभी में भगदड़ मची हो तो हम क्यों चूंकें। हम तो लक्ष्मी को अपने घर पर लाकर रहेंगे, चाहे वह उल्लू पर आये, हाथी पर आए, शेर पर आए, किस पर आए, हमें इसका फर्क नहीं पड़ता है, हम गरीब जो ठहरे, फूल न मिले, फूल की खुशबू में संतुष्ट होना हमें आता है। गरीब का होना आमजन का होना है, खास का नहीं। गरीब के घर तिजौरी नहीं होती है, किसी भी आले में, किचन के किसी भी दाल, चावल, अनाज के डिब्बे में, गुदड़ी मे, या रद्दी अथवा कबेलुनुमा छत-घास के छत के अंदर अथवा बाहर के किसी भी जगह वह अपनी जमा पॅूंजी रखकर उसे ही तिजौरी समझता है। उसकी लक्ष्मी उसके मैले कुचैले घर मेंं दबी रहती है।
कुछ गरीब-मध्यमवर्गीय ऐसे जीवित लोग है जिनकी जेबों, बटुए में लक्ष्मी नहीं विराजती है, ठीक उसी प्रकार जैसे आत्मा शरीर में विराजती है पर शरीर का नाता जेब से बटुए से होता है, आत्मा को जेब-बटुए से कोई सरोकार नहीं, जेब बटुए के आकार प्रकार में लक्ष्मी के होने, न होने का मतलब होता है। जैसे आत्मा शरीर में विराजती है, गरीब की जेबों में नहीं, अगर आत्मा उनकी जेबों-बटुॅए में विराजने लगे तो वह गरीब का दर्द समझ सकती है। जो खाली जेबों की, खाली बटुए की तकलीफ है वह वहीं महसूस करता है जिसक जीवन में काम-धंधे का खालीपन है वह लक्ष्मीविहीन जेबों-बटुए के खालीपन के दर्द और पीड़ा को बेहतर अनुभव कर सकते है।
अब बात दीवाली त्यौहार की ही ले लीजिये, जिसमें सदियों से आपके मन मस्तिष्क में यह विश्वास दिलाया गया है कि दीवाली की रात लक्ष्मी आपके घर आती है। मेरा अपना अनुभव है कि मैंने दीवाली की रात की तो बात छोड़िये उसके अगले और पिछलें 15 दिनों में कभी भी लक्ष्मी को अपने घर आते नहीं देखा बल्कि जो मेरे घर में है, मेरी जेब में है, मेरी बैंक में है उस लक्ष्मी को वहॉ से बाहर निकलकर सराफा बाजार मे ंसोने चांदी के व्यापारियों, दीये, मिठाई, रंगरोगन, पटाखों के व्यापारियों की तिजौरियों में पहुॅचाकर दीवाली की अगवानी के लिये अपने घर-मकान दुकान को रंगने, पोतने, साजसज्जा करने दीपों से झिलमिलाने आदि अनेक प्रकार की परम्परागत तैयारी में खर्चा करते देखा है। संभवतया आप भी मेरी ही तरह अपने घरों की जमा लक्ष्मी खर्च करके सुखसमृद्धि की आस में लक्ष्मी के स्वागत में पूर्ण समर्पण के साथ खड़े होंगे। हर गरीब, मध्यमवर्गीय और निम्न परिवारों द्वारा दीपावली पर मीठे तेल के जलाये दिये मुश्किल से आधे घन्टे, एक घन्टे बाद बुझ जाते है, मात्र लक्ष्मी और गणेश के चित्र, मूर्ति के सामने एक दीया रातभर जलाये रखकर हर गृहणी जागकर लक्ष्मी का इंतजार करती है। करोड़ों गरीबों के घरों में लक्ष्मी मैईया की अगवानी के दीये बुझे होते है मात्र एक दीया जलाकर प्रतीक्षा में रात गुजर जाती है, पर लक्ष्मी नहीं आती। हर किसी को उम्मीद थी आयेगी, जिंदगी खप गयी, लक्ष्मी का इंतजार करते, कमाल है इस साल भी लक्ष्मी नहीं आई।
हर साल बच्चें लक्ष्मी की अगवानी में पटाखे खत्म कर देते है। बच्चें जिन्हें 15 दिन पहले से अपने पिताओं से उम्मीद रहती है, हर दिन टकटकी लगाये देखते है कि पिताजी आज पटाखे लायेंगे, और जब पिताजी को मजदूरी मिलती है वे बच्चों के चहरे की खुशी के लिए अपनी सामर्थ अनुसार पटाखे लाते है, बच्चे उनके खूनपसीने की कमाई से खरीदे पटाखे लक्ष्मी की अगवानी में छोड़ते है। घरों में महिलाए पन्द्रह दिन पहले से शक्कर,तेल पूजा का सामान आदि लाने के लिये पति के पीछे पड़ी होती है ताकि गैस चूल्हें पर कढ़ाई चढ़े, कुछ मीठा-तीखा, नमकीन बन जाये, लक्ष्मी को घर का शुद्व भोग लगाये, दीये जलाए जाएॅ, पटाखें छूटे,दीवाली के दिन मोहल्लेवालों के सामने इज्जत न गिरे, पत्नी को बनारसी, कांजीवरम की साड़ी, कमर में कीमती कमरबंध, झुमका, गले का हार मिले, और वे खुद को लक्ष्मीस्वरूपा बनाकर सजधजकर लक्ष्मी के इंतजार में खड़ी हो, पर लक्ष्मीपूजा के बाद लक्ष्मी उन लोगों का भी ध्यान नहीं रखती जो हॉड़ मॉस को गला देने वाली मेहनत मजदूरी करनेवाले गरीब मजदूर अपने आसपड़ौस के समस्तरीय घरों के सामने अपनी मान-प्रतिष्ठा कम न हो, नीचा न देखना पड़े बच्चे, पत्नी हीन भावना से ग्रसित न हो, इसी उधेड़बुन में पूरी ताकत और सामर्थ लगाकर उसकी अगवानी के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाकर दीये जलाने, फटाखे फोड़ने घरेलू साजसज्जा में कोई कमी नहीं रखता है।
मुझे अपने बचपन की दीवाली याद आती है जब हर घरों में गायों-बछड़ों बैलों को दीवाली पर स्नान कराकर शाम को पूजाघर में गूजरी पूजने से पहले एक सूपे में मीठे चावल, लाई, बताशे, पूड़ी, पकवान,फल आदि सजाकर एक दीपक लेजाकर गौशाला में गाय का श्रृंगार कर पूजा के बाद भोग लगाकर दीपक लगाकर गूजरी और घुडसवार को पूजने के बाद घर के हर अंधेरे कौने में दीये रखते थे, फिर गजकुंडी में पुटाश भरकर धमाके करते थे तब ये पटाखें अमीरों के बच्चे फोड़ते थे, तब हम बहुत गरीब थे और अपने आसपास पैसोंवालों के ऑगन में, गली सड़कोंपर उनके द्वारा जलाये गये अनार, अधूरे जले या अनजले पटाखे बटारने को निकलते और उसमें से थोड़ी सी बारूद इकटठा कर उस बारूद में माचिस या दिया दिखाकर खुश होते। आज भी दीवाली पर यह दृश्य देखने निकलों तो निगाहें कम पड़ जायेगी पर जले पटाखों से बारूद एकत्र करते नन्हें हाथों को गिन पाना मुश्किल होगा।
आज भी सब कुछ हर साल की तरह होता है लक्ष्मी आती नहीं जाती है। हर रोज  हर चीज पर मॅहगाई बढ़ती जाती है सभी तरह के नये- टेक्स आते है, मजदूरी नहीं मिलती, जो मिलती है वह टेक्स भरने में, मॅहगाई के मुंह में समा जाती है। हमारी सरकार के पास कोई चारा नहीं जो मॅहगाई कम कर सके, हर घर के पढ़े लिखे युवाओं के हाथ को काम दे सके, युवा नौकरी की तलाश में मानसिक अवसाद में जीने को विवश हैं। धर्म-कर्म चरम पर है चंदा खूब बटोरा जा रहा है, नौकरी पैसा मॉगने पर सभी आत्मोन्नति की सलाह देने तैयार है, सरकारें कर्ज में डूबी है, हर एक नागरिक के सिर पर एक लाख से ज्यादा कर्जा है, उसे पता नहीं कि भारत में जन्म लेने के बाद वह कर्जदार पैदा हो रहा है, जिसके पैदा होने से पहले और बाद में देश की सरकार दूसरे देशों से कर्ज ले चुकी है। अब लक्ष्मी उधार की आयेगी, ब्याज के रूप में जायेगी।
पूरे देश में चीनी माल बिकेगा, चीन की दीवाली होगी, देशवासियों का दीवाला निकलेगा लक्ष्मी आपके घर से निकलकर चीन जायेगी और आप चीनी रोशनी में दिवाली पर लक्ष्मी का इंतजार करते रह जायेगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here