डॉ. नीरज भारद्वाज
21वीं सदी के सभी माध्यमों ने देश-दुनिया की दूरियों को कम कर दिया है और विश्वग्राम (ग्लोबल विलेज) की परिकल्पना को सार्थक सिद्ध कर दिया है। इस अत्याधुनिक दौर में चलत-फि़रते, सोते-जागते, यहाँ-वहाँ, देश-दुनिया का व्यक्ति आपस में जुड़ा हुआ है। वह देश-दुनिया की घटनाओं को जानने, समझने, सुनने और देखने में सक्षम भी दिखाई दे रहा है। मोबाइल और इंटरनेट से इस नई प्रौद्योगिकी को नया कलेवर और नया रूप मिला है। आधुनिक युग में भाषा की दीवार बहुत दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती, फि़ल्मों व धारावाहिकों की डबिंग, इंटरनेट पर अनुवाद और ब्लॉक में लिपियांतण आदि सभी कुछ सरल और सुबोध हो गया है। अनभिज्ञता किसी भी वस्तु या स्थान की नहीं रही। शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, खान-पान मनोरंजन आदि सभी राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय हो गए हैं।
वैश्वीकरण में सम्प्रेषण स्थापित करना ही सबसे शक्तिशाली तत्व है और इसके लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता पड़ती है जिसमें लोग समझ सके। दूसरा इसमें प्रचार-प्रसार के माध्यम से अपनी बातों को लोगों तक पहुँचाने का वैशिष्ट्य हो। अपनी बातों को लोगों तक पहुँचाने में जनसंचार माध्यम अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं। जनसंचार के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया माध्यमों में सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली भाषा के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सूचना, सन्देश और जानकारी पहुँचाई जाती है। किसी भी विकसित प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक लोगों द्वारा लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि वह ऐसी भाषा के माध्यम से उपलब्ध कराए जो सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली हो। जनसंचार में आम आदमी तक पहुँच बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि वह जनप्रिय भाषा के रूप में उपलब्ध हो।
आज राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। भारतीय बाजार व अन्तरराष्ट्रीय बाजार में अपने को स्थापित करने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिन्दी भाषा को विभिन्न जनसंचार माध्यमों में प्रयोग कर प्रचार-प्रसार का मार्ग अपनाती हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आईपीएल के समय कितने ही विदेशी खिलाड़ी प्रोडक्टों का हिन्दी में विज्ञापन करते नजर आते हैं। महाकुंभ में कितने ही विदेशी यात्री हिन्दी में बोलते नजर आ रहे थे। खुले बाजार के इस युग में चाहे मीडिया हो या व्यापार सभी अपनी बातों व उत्पाद को जनमानस तक पहुचानें तथा अपनी पकड़ मजबूत करने में हिन्दी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। आज मीडिया माध्यमों के चलते हिन्दी विश्व के कोने-कोने को देख आई और विश्व में सम्प्रेषण स्थापित करने व अपनी पहचान बनाने में सक्षम भी हो रही है। वैश्वीकरण में अंग्रेजी के बाद हिन्दी ही विश्व को हर स्थिति में जोड़ने व सम्प्रेषण स्थापित करने में सफल व सार्थक सिद्ध हो रही है। वैश्वीकरण में हिन्दी का वर्चस्व बढ़ रहा है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
जहाँ तक विश्व में हिन्दी की बात है, आज वह एक अरब से अधिक लोगों के बीच बोली और समझी जा रही है साथ ही विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा का दर्जा भी हासिल किए हुए है लेकिन इस बात को कुछ बुद्धि जीवी पचा नहीं पा रहे हैं। हिन्दी की लोकप्रियता और व्यापक स्तर पर लोगों के बीच उसे पहुँचाने में प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों के माध्यमों का सहयोग रहा है। साधन मजबूत हो और उसके कार्यक्रमों में जान न हो तो साधन क्या करंगे? इसलिए साधनों के साथ-साथ हिन्दी भाषा और उसके कार्यक्रमों में पकड़ व सार्थकता अधिक है, जिसके चलते हिन्दी विश्व मानचित्र पर विश्व की दूसरी बड़ी भाषा के रूप में अपना नाम अंकित कर चुकी है।
इस प्रकार समझने और विचार करने से यही कहा जा सकता है कि जनसंचार के प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यमों व उसके कार्यक्रमों के साथ हिन्दी अपनी अहम् भूमिका निभा रही है। जनसंचार में हिन्दी ‘भाषा बहता नीर’ कथन पर सार्थक सिद्ध हो रही है। छोटी-मोटी त्रुटियों से हर काल में हर भाषा को लड़ाई लड़नी पड़ी है। जहाँ तक हिन्दी की लोकप्रियता की बात है, वह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इसी गति के चलते विश्व में प्रथम भाषा का दर्जा भी जल्द की हासिल कर लेगी।