जन-जागरण महत्वपूर्ण लेख

पिछडे देशों से क्या सीखें।

tanzaniaडॉ. मधुसूदन

प्रवेश:
***संसार के सबसे पिछडे देश कौनसे ?
***उनके पिछडे रहने का, क्या कारण?
***ऐसे देशों को जानने से हमें क्या लाभ?
*** कितने देश है, ऐसे?

(एक )
अपनी भाषा, है एक मृदु मुलायम कपडा:
श्रोडिंजर कहते हैं, “परदेशी भाषा की कठिनाइयाँ उपेक्षणीय नहीं होती। अपनी भाषा एक मृदु-मुलायम और ठीक ठीक नाप के, कपडों जैसी होती है। जो पहनने पर आप बिलकुल स्वस्थ अनुभव करते हैं।” — कुछ ऐसा ही कहते हैं, अर्विन श्रोडिंजर–भौतिकी में नोबेल विजेता (१९३३)।

“The difficulties of language are not negligible. One’s native speech is a closely fitting garment, and one never feels quite at ease when it is not immediately available and has to be replaced by another.” –Erwin Schrodinger—Nobel Prize Winner for Physics in 1933
आप ने भी अनुभव किया होगा; कि दूसरों के कपडे, कितने भी बढिया हो, पर पहनने पर, उन कपडों में जकडा-जकडा, बंधा-बंधा अनुभव होता है। भाषा का भी कुछ ऐसा ही है।

(दो)
टान्ज़ानिया, अफ्रिका की शालामें शोध:
एक शोध पत्र पढा। उसके अनुसार, टान्ज़ानिया, (अफ्रिका) की शाला में भाषा माध्यम के विषय में, एक सच्चाई सामने आयी है। उस शाला के, छात्र काफी होनहार थे, पर परदेशी माध्यम द्वारा, वें अपने आप को व्यक्त कर नहीं पा रहे थे। एक ही परीक्षा के प्रश्नों को, किस्वाहिली में, और परदेशी (माध्यम )भाषा में, पूछा गया।

छात्र प्रश्नों के उत्तर, अपनी किस्वाहीलि भाषा में देकर, लगभग दोगुने गुणांक प्राप्त करते पाए गए। यह शोधपत्र ७ वी कक्षा के छात्रों के विषय में था। इसके अनुसार किस्वाहिली वहाँ की जन भाषा परदेशी माध्यम की अपेक्षा दूगुनी प्रभावी प्रमाणित हुयी।

इसी संदर्भ में अगला परिच्छेद भी संसार के पिछडे देशों के पिछडेपन के कारणों को, सुनिश्चित करता है।

(तीन)
संसार के सब से पिछडे देश:
संसार के सबसे पिछडे देश कौनसे और कितने ? और उनके पिछडे रहने का, कारण क्या ?उत्तर है;
ऐसे देश एक नहीं, दो नहीं, कुल अफ्रिका के ४६ देश, संसार में सबसे पिछडे हैं। एक ध्यान देने योग्य और मेरी दृष्टिमें, अवश्य विचारोत्तेजक तथ्य है; जो, भारत के हित-चिंतकों को अवश्य प्रभावित करेगा। वह तथ्य यह है, कि, ये अफ्रिका के ४६ देश ऐसे हैं; जो, सारे परदेशी माध्यमों में सीखते है।
(क) २१ देश फ्रांसीसी में सीखते हैं;
(ख)१८ देश अंग्रेज़ी में सीखते हैं;
(ग) ५ देश पुर्तगाली में,सीखते हैं; और,
(घ)२ देश स्पेनी में सीखते हैं।
ऐसे कुल ४६ देश हुए।
ये देश,अंग्रेज़ी,फ्रांसीसी,पुर्तगाली और स्पेनी में सीखते हैं; पर उनके लिए, ये सारे परदेशी माध्यम ही हैं।

(चार)
भारत को दिशा निर्देश:
मैं, इन अफ्रिका के देशों को भारत से अलग वर्ग में मानता हूँ।
पर फिर भी उनका अनुभव भारत को कुछ दिशा निर्देश लेने में काम अवश्य आएगा।
क्यों कि हमारी सांस्कृतिक परम्परा विशेष है। ऐसी विशेषताएँ भारत को, जाने-अनजाने परम्परा से-प्राप्त है। पर फिर भी भारत उनके अनुभव से, उनके तथ्यों से, लाभ उठाकर अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार पर विचार तो अवश्य कर ही सकता है।

(पाँच)
तथ्यात्मक सच्चाइयाँ:
पर इस आलेख में, कुछ ऐसी तथ्यात्मक सच्चाइयाँ सामने आ रही है; जो हमारे भाषा-चिंतकों, भाषा-वैज्ञानिकों को और विशेष शिक्षा से जुडे मंत्रालयों को, सोचने के लिए बाध्य करेंगी। नहीं, मैं सोचना अनिवार्य मानता हूँ।
जो विद्वान सोच से ऊपर हैं, पहले ही निर्णय कर चुके हैं, कि, “अंग्रेज़ी ही गाँव से लेकर महानगर तक समग्र भारत के लिए,शत प्रतिशत उद्धारक है;” उनके लिए इस आलेख का विशेष अर्थ नहीं है। बाकी पाठकों के लिए, कहना उचित है; कि, आज किसी निर्णय पर भले ना पहुंचा जाए; पर इन तथ्यांकों (डेटा)को निर्णय लेते समय ध्यान में रखना उचित होगा। ऐसी सतर्कता से इस विषय को आगे बढाना चाहता हूँ। एक ऑस्ट्रेलियाई विद्वान का उत्तर भी इसी सच्चाई को उजागर करता है।

(छः )
ऑस्ट्रेलियाई विद्वान का उत्तर:
जब, एक ऑस्ट्रेलियाई विद्वान से किसीने पूछा, कि अफ्रिका क्यों पिछडा है? उसका उत्तर था, जब वहाँ का शासन, न्याय व्यवस्था, शिक्षा इत्यादि सब परदेशी भाषाओं में संचालित होता है; तो वहाँ की प्रजा उस से कटी हुयी है। जब तक ऐसा होता रहेगा, तब तक उनकी उन्नति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
दूसरी ओर, मैं ने, ऐसे भी, उदाहरण देखे हैं, कि, जहाँ एक ही परिवार में अंग्रेज़ी पढे सदस्य, अन्य अंग्रेज़ी ना पढें सद्स्यों से कटे रहते है।तो, प्रजाजनों में भी ऐसा कटाव देश में अलगाव पैदा करता है, दो अलग वर्ग बन जाते हैं। देश की एकता के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।

(सात)
निष्कर्श:
हमें इस विषय पर विचार करना चाहिए। एक सच्चाई सुनिश्चित है।
*****” अंग्रेज़ी हमारा सर्वांगीण, समग्र उत्थान नहीं कर पाएगी।”
****” कुछ लोगों का आगे बढना सभी का आगे बढना नहीं माना जा सकता।”
****”समग्र, सर्वांगीण, और सर्वस्पर्शी उन्नति ही उद्देश्य होना चाहिए।”

इतना निष्कर्श अवश्य निकल सकता है। और, आज तक का अनुभव भी यही कहता है।
पर, मेरे विचार में, इस से अधिक निर्णय अभी निलम्बित रखा जाए।
पर, इस आलेख की जानकारी, भारत के हित में, आगे का निर्णायक पैंतरा लेने में अवश्य काम आएगी। हमें भारत के सर्वांगीण और समग्र सर्वस्पर्शी विकास की दृष्टि से ही सोचना है।
नए शासन से भी काफी कुछ अपेक्षाएँ हैं।
आप, प्रवक्ता के प्रबुद्ध पाठक क्या सोचते हैं?