सहकारिता को समर्पित युगपुरुष लीलाधर पंडित

मध्यप्रदेश अपेक्स बैंक के रिटायर्ड केडर आफिसर ओर सहकारिता विशेषज्ञ लीलाधर पंडित जो एल डी पंडित के नाम से पहचाने जाते है से विगत 30 वर्षों से संपर्क में हूँ। सहकारी साख एवं बैंकिंग के क्षेत्र में उन्होंने काम करते 60 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत किया है ओर उनकी पूरी सेवाकाल एक निष्ठावान ओर सहकारी बैंक ओर सहकारी संस्थाओं के हित में समर्पित अधिकारी होने पर मध्यप्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके अनुभव का लाभ लेने के लिए अपेक्स बैंक का सलाहकार नियुक्त कर उनके सलाह को अपेक्स तक सीमित न रखकर सरकार ने सहकारिता विभाग के अनेक मामलों में उनकी सलाह से काम किया। मैं सहकारिता के कई मसलों पर एल डी पंडित जी से संपर्क कर उनके अनुभव का लाभ लेता रहा हूँ। 28 नवंबर 2021 को विदेश प्रवास के रहते बैंक का कार्य प्रभावित होने से राज्य सरकार ने उन्हे अपेक्स बैंक के विषय विशेषज्ञ, सलाहकार के पद से हटा दिया था जबकि वे जबकि वे इसके पर्व 2 कार्यकाल तक इस पद पर रह चुके थे। मेरी काफी समय से उनसे भेंट नहीं हुई, किन्तु मोबाइल से चर्चा होती रहती है। पिछली भेंट अगस्त 2024 में हुई तब मैंने उनके निजी जीवन पर प्रश्न कर जवाब चाहा, उनसे हुई चर्चा में उन्होने बताया कि –वे विगत 65 वर्ष से अधिक समय से सहकारिता विभाग के कार्यानुभव रखते है ओर उन्होंने इस दरम्यान अपेक्स बैंक ओर सरकार के द्वारा लिए कई अच्छे- बुरे निर्णयों में आंतरिक एवं बाह्य कारणों से आए कई भूचाल ओर उतार- चढ़ाव देखे है ओर उन्होंने स्वीकार किया कि- मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे अति ईमानदार, सहकारिता के समर्पित पदाधिकारियों के साथ काम करने का सुअवसर मिला, परिणामस्वरूप मैंने उनके गुणों को अपने सेवाकाल में अपनाने के प्रयास किया ओर सफल भी रहा हूँ।

अपनी स्मृतियों को ताजा करते हुए श्री पंडित ने बताया कि इंदौर प्रीमियर कॉ’आपरेटिव बैंक अपना गौरवशाली शताब्दी  वर्ष मना चुका  है, यह बहुत हर्ष का विषय है। इंदौर बैंक वाकई प्रदेश की सहकारी बैंकिंग प्रणाली के लिये भी गौरव है।  जिस बैंक की स्थापना होलकर स्टेट के महाराजा ने की  हो और जिसके अध्यक्ष सर  सेठ हुकुमचंद, राय बहादुर सरदार, माधवराव किबे, श्रीनिवास द्रविड़, बापू सिंह मंडलोई, आनंदराव जोशी, राधेश्याम शर्मा एवं कैलाश पाटीदार जैसे दिग्गज रहे हों, उस संस्थान के यशस्वी होने में कोई संदेह नहीं किया जा सकता है। हम सब उसके जैसे ही हो, इसके लिये ईश्वर से प्रार्थना है। बात करते हुए उनके माथे पर चिंता की लकीरे दिखी ओर वे कहने लगे कि-   प्रदेश में सहकारी संरचना बदलते समय के साथ अनेक समस्याओं से ग्रस्त  है, किन्तुर सुधार के लिये हमारे पास कोई ठोस रोडमैप नहीं है। प्रदेश स्तर पर ऐसा कोई असरकारक फोरम तैयार नहीं हो सका है। कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि प्रतिस्पर्धा के इस युग में सहकारिता की प्रासंगिकता है भी कि नहीं। यह भी बिलकुल स्पष्ट है कि किसी भी संस्था, समाज या देश में यदि नेतृत्व  अच्छा हो तो आंतरिक एवं बाह्य त्वक हानि नहीं पहुंचा सकते ।

अपने पुराने दिनों को याद करते हुये वे कहते है कि कितने अच्छे थे वे लोग जो पूरी निष्ठा से बैंक के प्रति समर्पित हो एक रुपए का खर्च भी बैंक से न कर अपने वेतन से खर्च करते थे’। यादों को ताजा करते उन्होंने कहा कि -शाजापुर जिला सहकारी बैंक में मेरी नियुक्ति सहायक प्रबंधक पद पर जून 1965 में हुई। मैं सितम्बर, 1968 तक इस पद पर रहा। इस दौरान मध्य भारत के पूर्व प्रधानमंत्री  सर्व श्री लीलाधर जोशी, शिवाजीराव देशमुख, बापूराव देशमुख बैंक के अध्यक्ष रहे। प्रत्येक संचालक मण्डल की बैठक में संचालक गण बारी-बारी से चाय का खर्च वहन करते थे, ताकि बैंक को व्यय  न करना पड़े। बैंक के वाहन का उपयोग न कर वे अपने-अपने साधनों से यात्रा करते थे। बैंक के उपाध्यक्ष ग्राम दुपाड़ा निवासी नारायण सिंह पटेल प्रवास के दौरान न केवल अपना भोजन, किन्तु  कर्मचारियों का नाश्ता साथ लेकर आते थे। पैनी नजर रखकर आदर्श प्रस्तुत करने वाले लोगों कि कमी नहीं थी इसका एक उदाहरण पंडित जी ने देते हुये कहा कि –   वर्ष 1968-70 की बात होगी, जब खरगोन जिला बैंक के सचिव थे रमाकांत खोड़े जी। उन्हें खबर मिली की बैंक के प्रबंधक के सेंधवा शाखा के प्रवास के समय शाखा प्रबंधक ने  बैंक  खर्च से उनकी आवभगत की। फौरन शाखा प्रबंधक को प्रधान कार्यालय बुलाया गया। शाखा प्रबंधक ने उन्हें  पूर्ण आश्वस्त  किया कि आवभगत उन्होंने अपने पैसों से की थी, तब कहीं जाकर वे संतुष्ट हुये।
अनुकरणीय व्येक्तित्वक के धनी लोगों कि प्रशंसा करते हुये एलडी पंडित ने बताया कि-      मध्यअप्रदेश राज्यक सहकारी बैंक में मेरी नियुक्ति संवर्ग अधिकारी के रूप में सऩ 1968 मे हुई। पहली पदस्थीु धार जिला बैंक थी। सौभाग्य  से बैंक अध्यवक्ष थे पत्रकार श्रीकृष्णर शर्मा। वे एक अत्यन्तै ईमानदार एवं सहकारिता के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। उनके इन गुणों के कारण तत्कालीन कलेक्टर श्री रविन्द्र शर्मा उनका बहुत आदर करते थे। उनके साले श्री शिवनारायण शर्मा बैंक के अध्यक्ष बनने के पूर्व से ही समिति प्रबंधक थे। उन्होंने रुपये 230 रुपये की वित्तीय अनियमितता की। श्री कृष्ण लाल ने ब्याज सहित पूरी राशि की वसूली की और उनका त्यागपत्र ले लिया। एक बार मैं अपने साथ-अधिकारियों के साथ बैंक में चाय पी रहा था। उन्हों ने मेरे कक्ष में प्रवेश किया। उन्हें भी चाय पेश की गयी। उन्होंने यह कहकर चाय लेने से इंकार कर दिया कि अधिकारियों की तरह प्रतिमाह रूपये 10 का अंशदान उनसे नहीं लिया गया है। आखिर वे भी प्रतिमाह रूपये 10 का अंशदान जमा कर ही चाय पीते थे।
देश सेवा को अपना धर्म मानने वाले लोग अगर झूठे ही किसी से सहकारिता की आलोचना सुन ले तो यह उन्हे बरदाश्त। नहीं होता था उन्होंने आगे अपनी बात जारी रख बताया कि-      धार में सन 1971 में बैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में तत्कालीन मंत्री श्री अमोलकचंद छाजेड पधारे। उन्होंने मंच से सहकारिता की आलोचना की। श्री कृष्ण लाल जी उखड़ गये। छाजेड जी को अपने शब्दों क्षमा याचना सहित वापस लेने पड़े।
अपेक्स बैंक भोपाल में वर्ष 1968 में श्री काशी प्रसाद पाण्डेय, अध्यक्ष एवं श्री लक्ष्मण प्रसाद भार्गव उपाध्यक्ष थे। धार से मेरा तबादला सन 1973 में अपेक्स बैंक के जबलपुर मुख्यालय हो गया। 3 विभागों का प्रमुख होने के नाते मेरा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष से अक्सर मिलना होता था। श्री काशी प्रसाद जी को सिकी मूंगफली खाने का शौक था। वे भृत्य बाबूलाल को मूंगफली खरीदने हेतु जेब से 1 रूपया निकालकर देते थे। उपाध्यक्ष एवं बाद में अध्यक्ष बने श्री लक्ष्मण प्रसाद भार्गव एक विद्धान वकील होकर ऑल इंडिया बार कौंसिल के अध्यक्ष रहे । जब भी भोपाल आये अपने भोजन का व्यय स्वयं वहन किया। एक बार गुना बैंक के प्रवास के दौरान उन्हें सिर दर्द हो रहा था, उन्होंने तत्कालीन प्रबंधक श्री तारण सिंह पाण्डेय से सेरिडोन की एक गोली मंगाने के लिये अपनी जेब से 20 पैसे निकालकर दिये। उनके उपाध्यनक्ष, बाद में अध्यक्ष रहते अपेक्स  बैंक का शानदार भवन, शाखा गेस्ट हाउस, कर्मचारी आवासों का निर्माण हुआ। ठेकेदार थे सादिक एण्डक कम्पबनी  के सज्जाशद भाई। जब महामहिम राष्ट्रधपति श्री फखरूददीन अली अहमद ने अक्टूरम्बएर 1975 में भवन का उदघाटन किया, ठेकेदार श्री सज्जारदअली ने मंच से कहा- मैंने कई बडे-बड़े प्रोजेक्टट देश में किये है, किन्तुा अपैक्सि बैंक जैसी ईमानदारी कहीं नहीं देखी।
ईमानदार व्यक्ति को प्रताड़ित किया जाता है , अपनी बात जारी रखते हुये एलडी पंडित ने ईमानदारी की सजा का जिक्र करते हुये कहा कि -कानून के दायरे में ईमानदारी से कार्य सम्पाकदन करने के कारण वर्ष 1981 से 2003 तक मेरे 10 से अधिक स्थारनान्त रण हुये। इसी दौरान मेरी पदस्थी जगदलपुर से भिण्डी कर दी गयी। तत्का लीन प्रबन्धेक ने सोचा होगा कि भिंड में ये निपट जायेंगे, किन्तु वहाँ बैंक के अध्यक्ष थे, मशहूर वकील श्री बटेश्वर दयाल मिश्र, उनसे मेरी जोड़ी बहुत अच्छी रही। अपनी संपत्ति की तरह वे बैंक के धन की सुरक्षा करते थे। बैंक के पीछे भवन का विस्तार हो रहा था। यदि दीवारों की तराई करने वाला न पहुंचे  तो वे साइकिल रिक्शा से बैंक आकर सुबह’-सुबह स्व यं तराई करते थे। इस अवसर पर मुझे नरसिंहपुर जिला बैंक के पूर्व अध्यक्ष श्री आनंद नारायण मुशरान की याद आ रही है। सन 1976 से 1979 तक उनके साथ काम करने का अवसर मिला। अपनी स्वयं की कार से बैंक का कार्य सम्पादन करना एवं छोटी अनियमितता को भी बर्दाश्त नहीं करना, उनकी आदत में था। नरसिंहपुर बैंक उनके नाम से जानी जाती थी। ऐसे थे हमारे पूर्व पदाधिकारी, जिन पर हमको गर्व होना चाहिये।
      सहकारिता के भविष्य को लेकर चिंतित श्री एलडी पंडित से के लोगों को संदेश देने के लिए आग्रह किए जाने पर उनका कहना था- आज के पदाधिकारियों द्वारा मात्र अपने कर्तव्यों का अनुसरण करने से सहकारिता संगठन की स्थिति  बदल सकती है। गंगोत्री  मैली न हो, बस उसको हम रखे ध्या न। संस्था मूक होती है, उनका संरक्षण करना पदाधिकारियों का नैतिक दायित्व है। गरीब तबके को समृद्ध बनाने के लिए गंभीर चिंता, निष्पादन एवं अनुश्रवण आज की मॉग है। यक्ष प्रश्न –-आज के पदाधिकारीगण यदि कुछ प्रश्न  अपने आपसे पूछे तो निश्चित ही संस्थागत लाभ की स्थिति बनेगी और हमारी छवि आमजन की नजर में उज्जवल होगी ओर सहकारिता अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी । सहकारिता में आने वाले सारे पदाधिकारियों ने निर्वाचित होने के साथ ही बैंक चलाने के गुर सीख लिये है, इसकी अनिवार्यता आवश्यक होने से संस्था तरक्की कर सकेंगी। निर्वाचित पदाधिकारियों ने क्या  जानबूझकर लाभ प्राप्ति हेतु ऐसा कोई काम तो नहीं किया है, जिससे बैंक की छवि धूमिल हुई हो़।क्या  बैंक के बाहर भी उनके बारे में आम लोगों की धारणा अच्छी है क्या  वे बैंक के रोजमर्रा के काम में दखल देते है। जैसे तमाम प्रश्नों के उत्तर कार्यान्वित ओर क्रियान्वित होते दिखने से ही सहकारिता सफलता प्राप्त कर सकेगी। श्री एलडी पंडित सहकारिता के युगपुरुष के रूप में मध्यप्रदेश में अपनी पृथक पहचान बनाए हुए है जिनके आचरण का अनुसरण करना सहकारिता में ईमानदार ओर कर्तव्यनिष्ठ होना है , जिसकी आज आवश्यकता है।

आत्माराम यादव पीव

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