चलो, दिवाली आज मनाएं 

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हर  आँगन में उजियारा हो

तिमिर मिटे संसार का।

चलो, दिवाली आज मनाएं

दीया जलाकर प्यार का।

 

सपने हो मन में  अनंत के

हो अनंत की अभिलाषा।

मन अनंत का ही भूखा हो

मन अनंत का हो प्यासा।

कोई भी उपयोग नहीं

सूने वीणा के तार का ।

चलो, दिवाली आज मनाएं

दीया जलाकर प्यार का।

 

इन दीयों से  दूर न होगा

अन्तर्मन का अंधियारा।

इनसे  प्रकट न हो पायेगी

मन में ज्योतिर्मय धारा।

प्रादुर्भूत न हो पायेगा

शाश्वत स्वर ओमकार का।

चलो, दिवाली आज मनाएं

दीया जलाकर प्यार का।

 

अपने लिए जीयें लेकिन

औरों का भी कुछ ध्यान धरें।

दीन-हीन, असहाय, उपेक्षित

लोगों की कुछ मदद करें।

यदि मन से मन मिला  नहीं

फिर क्या मतलब त्योहार का ?

चलो, दिवाली आज मनाएं

दीया जलाकर प्यार का।

 

 

आचार्य बलवन्त

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