—विनय कुमार विनायक
आओ फिर से एक नया मानवीय धर्म बनाएँ,
सब मानव मात्र में मानवता का अलख जगाएँ!
जिसमें हो भक्ति माँ पिता और गुरु के प्रति,
जिसमें नहीं हो धर्म मजहब की फिरकापरस्ती!
जिसमें हो अपना अंबर अपनी मातृभूमि धरती,
जिसमें हो अपना आदर्श अपनी हो वतनपरस्ती!
जिसमें हर जीव जंतुओं के लिए भावना न्यारी,
जिसमें संतान को सुयोग्य बनाने की जिम्मेदारी!
जिसमें कुछ नहीं हो विदेशी,सबकुछ हो स्वदेशी,
स्वदेशी सभ्यता संस्कृति धर्म पंथ मत समावेशी!
जिसमें ना कोई काबा हो और ना कोई बाबा हो,
जिसमें नहीं कोई करे अपने बड़प्पन के दावा को!
जिसमें नहीं किसी ईश्वर रब खुदा का खौफ हो,
जिसमें ना किसी देवपुत्र व देवदूत का दहशत हो!
हर तरह खुशियाँ ही खुशियाँ,खेतों में हो हरियाली,
देश के लिए जो शहीद हो गए उनकी शान निराली!
मानव मानव में कोई भेद नहीं, जातिवादी खेद न हो,
जो जीवरक्षा न कर पाए,वैसा बाइबिल कुरान वेद न हो!
धर्म वही जितना धारण हो, मिथ्या अभिमान न हो,
विद्या बुद्धि पहचान हो, जाहिल के हाथ कमान न हो!
मंदिर मस्जिद गिरजा एक हो,सबके ऊपर सरकार हो,
पंडित मुल्ला पादरी का पाखंड मिटे हर कोई सेवादार हो!
धर्म के नाम कोहराम ना हो, पूजा घर बदनाम न हो,
बंद करो चढ़ावा चादर सिर्फ आदर,पर कोई हथियार न हो!
धर्म मजहब की आड़ में न कोई गोरखधंधा न तकरीर हो,
ईश्वर अल्लाह रब का घर, किसी आदमी का जागीर न हो!
—विनय कुमार विनायक