हिंदी सिनेमा के मशहूर खलनायक प्राण को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड
बॉलीवुड के फिल्मी सफर में अपनी बेहतरीन अदायगी की छाप छोड़ने वाले मशहूर सिने अभिनेता प्राण को भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से प्राण को तीन मई 2013 को विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में नवाजा जाएगा। अपने छह दशक के कैरियर में 400 से अधिक फिल्में कर चुके प्राण ने 1998 में उन्होंने उम्र संबंधी बीमारियों के कारण फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था।
यू तो पिछले कई साल से प्राण के नाम की चर्चा फाल्के पुरस्कार के लिए होती रही, लेकिन उन्हें यह सम्मान नहीं मिला। पिछले साल भी प्राण को यह पुरस्कार दिए जाने की अटकलें थीं, लेकिन केंद्र पर बंगाल की राजनीति हावी होने के कारण मशहूर बांग्ला ऐक्टर सौमित्र चटर्जी को चुना गया। खलनायकी को नए आयाम देने वाले प्राण ने कई किरदारों को इस शिद्दत से जिया कि सिनेमा के इतिहास में वह अमर हो गए। ’’जंजीर’’ का शेरखान हो या ’’कसमें वादे प्यार वफा’’ गाता फिल्म ’’उपकार’’ का मलंग। उन्होंने दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर बड़े कलाकार के साथ काम किया और अपनी उपस्थिति बराबरी से दर्ज कराई। पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान में 12 फरवरी 1920 को जन्मे प्राण ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1942 में दलसुख पंचोली की फिल्म ’’खानदान’’ से की। उन्होंने 40 के दशक में यमला जट, खजांची, कैसे कहूं और खामोश निगाहें जैसी फिल्मों में काम किया। उन्होंने 1945 और 46 में लाहौर में करीब 22 फिल्मों में काम किया, लेकिन 1947 में विभाजन के कारण उनका करियर ठहर गया। इसके बाद उन्होंने 1948 में देव आनंद और कामिनी कौशल की ’’जिद्दी’’ के साथ बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की।
प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आम तौर पर सड़क और पुल का निर्माण करते थे। देहरादून के पास कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है। अपने काम के सिलसिले में इधर-उधर रहने वाले लाला केवल कृष्ण सिकंद के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई। बतौर फोटोग्राफर लाहौर में अपना करियर शुरु करने वाले प्राण को 1940 में ‘यमला जट’ नामक फिल्म में पहली बार काम करने का अवसर मिला। उसके बाद तो प्राण ने फिर पलट कर नहीं देखा। उन्होंने लगभग 400 फिल्मों में काम किया। दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर की 50 और 60 के दशक की फिल्मों में प्राण खलनायक के रूप में नजर आने लगे। दिलीप कुमार की आजाद, मधुमति, देवदास, दिल दिया दर्द लिया या देव आनंद की जिद्दी, मुनीम जी और जब प्यार किया से होता है और राज कपूर की आह, जिस देश में गंगा बहती है और दिल ही तो है में उनके अभिनय को काफी सराहा गया। एक तरफ उनके नाम ‘राम और श्याम’ के खलनायक की ऐसी तस्वीर रही है, जिससे लोगों ने परदे के बाहर भी घृणा शुरु कर दी थी, वहीं उनके नाम ‘उपकार’ के मंगल चाचा की भूमिका भी है, जिसे दर्शकों का बेइंतहा प्यार और सम्मान मिला। 1968 में उपकार, 1970 आँसू बन गये फूल और 1973 में प्राण को बेईमान फिल्म में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिये फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया. इसके बाद मिले सम्मान और अवार्ड की संख्या सैकड़ों में है।
साठ के दशक में मनोज कुमार की फिल्मों का भी प्राण अभिन्न हिस्सा रहे के उपकार (1967) में मलंग के किरदार को कौन भूल सकता है, जिस पर कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या, गीत फिल्माया गया था। शहीद, पूरब और पश्चिम, बेईमान, सन्यासी और पत्थर के सनम जैसी मनोज कुमार की कई सुपरहिट फिल्मों में प्राण ने काम किया। एक दौर ऐसा भी था जब प्राण को फिल्म के हीरो से अधिक पैसा मिलने लगा था। सत्तर के दशक में प्राण ने खलनायक की बजाय अधिक चरित्र भूमिकाएं कीं। उन्हें 2000 में स्टारडस्ट ने विलेन ऑफ द मिलेनियम चुना। उन्हें 2001 में भारत सरकार ने पद्मभूषण सम्मान से नवाजा। साल 1940 से 1990 के बीच प्राण ने करीब 350 फिल्मों में अभिनय किया है। हालांकि, प्राण का कहना है कि उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार देने में काफी देर कर दी गई।
प्राण भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद बेटे अरविंद, सुनील और एक बेटी पिंकी के साथ मुंबई आ गये। आज की तारीख में उनके परिवार में 5 पोते-पोतियां और 2 पड़पोते भी शामिल हैं। खेलों के प्रति प्राण का प्रेम भी जगजाहिर है। 50 के दशक में उनकी अपनी फुटबॉल टीम ‘डायनॉमोस फुटबाल क्लब’ बहुचर्चित रहा है। प्राण ने सैकड़ों फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाई हैं। 70 के दशक के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने ज़ंजीर, डॉन, अमर अकबर एंथनी और शराबी जैसी यादगार फिल्में दीं। सभी सिनेमा प्रेमियो की ओर से प्राण साहब को दादा साहब फाल्के अवार्ड की बहुत बहुत मुबारकबाद और उन की लम्बी उम्र के लिये भगवान से हमस ब प्रार्थना करते है।
शादाब जफर ‘‘शादाब’’