हमने हर रोज जमाने को नया रंग बदलते देखा है
उम्र के साथ जिन्दगी के ढंग को बदलते देखा है
वो जो चलते थे,तो शेर के चलने का होता था गुमान
उनको भी पैर उठाने के लिये सहारे को तरसते देखा है
जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग
उन्ही नजरों को बरसात की तरह हमने रोते देखा है
जिनके हाथो के जरा से इशारे से टूट जाते थे पत्थर
उन्ही हाथो को पत्तो की तरह थर थर कांपते देखा है
जिनकी आवाज से कभी बिजली के कडकने का होता था भरम
उनके होठो पर भी जबरन चुप्पी का ताला हमने लगा देखा है
ये जवानी,ये ताकत ये तो सब कुदरत की इनायत है
इनके रहते हुये भी इंसान को बेजान हुआ हमने देखा है
रस्तोगी कहता है,अपने आप पर इतना ना इतराना यारो
वक्त की मार से अच्छो अच्छो को हमने मजबूर देखा है
आर के रस्तोगी