जीवन यात्रा

मैं एक दर्शक

जीवन

सपनों का सौपान ।

कहने को सच में

जुटाया सारा सामान ॥

तिनकों से जोड़ा है

कडवे झूठों को ओढ़ा है

देते है सब

सच होने का प्रमाण ।

टूटा है मेरा

एक पल में सपना

मैं भी रहा नही

कभी खुद मैं अपना ॥

सागर में हरदम

लहरे लेती हिलोरे

साँसों को मेरी

सारी देह ही बटोरे

लहरों से हरपल

सिंधु रहता न खाली

अमावस की रातें

तम को है प्यारी

छलके है हरदम

मेरे देह की गगरिया

कामनास्त्रोत उफनता पीव

बनकर रसिक सावरिया ॥

आत्‍माराम यादव पीव

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