मी टू की आवाज को सुनें

1
222
ललित गर्ग
इनदिनों देश में नारी शक्ति की प्रतीक समझी जाने वाली देवी मां दुर्गा की उपासना हो रही है और इसी समय नारी का एक तबका यौन शोषण के मामले पर एकजुट हो रहा है। इन्हीं यौन शोषण के मामलों को उजागर करने के लिए अमेरिका में मी टू नाम से शुरू हुआ अभियान दुनिया के अन्य देशों में होता हुआ भारत में भी हलचल पैदा कर रहा है। एक फिल्म अभिनेत्री के बयान से शुरू हुआ यह किस्सा भारत में इनदिनों सुर्खियां बना हुआ। विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी स्त्रियां अपने साथ हुए यौन अत्याचार के ब्योरे दे रही हैं और कुछेक मामलों में दोषी को समाज से बहिष्कृत करने या उसे सजा देने की मांग भी कर रही हैं। इस तरह फिल्म, टीवी, मॉडलिंग, पत्रकारिता और साहित्य से लेकर राजनीति, समाजसेवा, व्यवसाय तक से जुड़े कई नामी-गिरामी चेहरों से पर्दा हट रहा है। स्त्रियों के हृदयविदारक किस्से समाज के असंवेदनशील एवं असभ्य होने को दर्शा रहे हैं। 
जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया… इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब भी कानों में इस गाने के बोल पड़ते हंै, गर्व से सीना चैड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली औरतों के साथ इंडिया के संभ्रांत एवं नामी-गिरामी चेहरें क्या करते हैं, उसे सुनकर सिर शर्म से झुकता है। पिछले कुछ दिनों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए जब अहसास हुआ कि फिल्मी दुनिया के साथ ही अन्य क्षेत्रों में यौन शोषण कितना पसरा हुआ है। ये बेहद चर्चित या फिर एक दायरे तक सीमित मामले सामने आए हैं वे तो महज बानगी भर हैं। यह सहज ही समझा जा सकता है कि यौन प्रताड़ना का शिकार हुई तमाम महिलाएं ऐसी होंगी जो अपनी आपबीती बयान करने का साहस नहीं जुटा पा रही होंगी। निःसंदेह यह मी टू अभियान के प्रति भारतीय समाज के रुख-रवैये पर निर्भर करेगा कि यौन प्रताड़ना से दो-चार हुई महिलाएं भविष्य में अपनी आपबीती बयान करने के लिए आगे आती हैं या नहीं?
जो भी हो, यौन शोषण के हाल के जो मामले सामने आए हैं वे यही प्रकट कर रहे हैं कि अब महिलाएं चुप बैठने वाली नहीं हैं। बहशी एवं दरिन्दे लोग ही नारी को नहीं नोचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और प्रतिष्ठित भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे है, स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी यौनशोषण की त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। मी टू अभियान नारी के साथ नाइंसाफी एवं यौन शोषण की स्थितियों पर आत्म-मंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें पुरुष-समाज श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है।
 भारत में इस अभियान का असर दिखना इसलिए अच्छा है, क्योंकि यह एक सच्चाई है कि अपने यहां भी महिलाओं का यौन शोषण किया जाता रहा है। यह शोषण सदियों से होता चला आ रहा है। समर्थ-सक्षम लोग अपने पद या प्रभाव का बेजा इस्तेमाल कर महिलाओं को अपनी यौन लिप्सा का शिकार बनाते हैं। हाल में यदि समाज को यह संदेश सही तरह जाता है कि महिलाओं की किसी मजबूरी का लाभ उठाकर उनका दैहिक शोषण करने वाले देर-सबेर बेनकाब होने के साथ ही शर्मसार हो सकते हैं तो फिर ऐसे तत्वों पर लगाम लग सकती है। यह लगाम लगनी ही चाहिए, लेकिन यह काम केवल यौन शोषण रोधी सक्षम कानूनों और अदालतों की सक्रियता एवं संवेदनशीलता से ही नहीं होने वाला। मी टू जैसी जागरूकता से पुरुष की सोच में बदलाव आ सकता है।
प्रश्न है कि नारी का यौन शोषण कब तक होता रहेगा? भारत जैसे आध्यात्मिक देश में जहां ‘यत्र पुज्यते नारी, तत्र रमन्ते देवता’ कहा जाता है एवं ‘मातृदेवो भवः’ का सूक्त जहां की संस्कृति का परिचय-पत्र है।  वैदिक परंपरा दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में, बौद्ध अनुयायी चिरंतन शक्ति प्रज्ञा के रूप में और जैन धर्म में श्रुतदेवी और शासनदेवी के रूप में नारी की आराधना होती है। लोक मान्यता के अनुसार मातृ वंदना से व्यक्ति को आयु, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुण्य, बल, लक्ष्मी पशुधन, सुख, धनधान्य आदि प्राप्त होता है, फिर क्यों नारी की अवमानना होती है? क्यों नारी का यौन शोषण होता है? क्यों नारी के जिस्म को नौंचा जाता है?
किसी भी तरह से प्रभावपूर्ण स्थिति में पहुंच गए कुछेक प्रभावशाली पुरुष यह मानकर चलते दिख रहे हैं कि उनके मातहत काम करने वाली कोई भी स्त्री उनकी यौन पिपासा की पूर्ति के लिए स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है। अगर महिला आसानी से इसके लिए राजी नहीं होती तो वह लालच देकर या ताकत का इस्तेमाल करके अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता है। वैसे यह बीमारी भारत जैसे सामंती मूल्यों वाले समाज में ही नहीं, विकसित और आधुनिक समझे जाने वाले अमेरिकी समाज में भी है। पिछले साल अमेरिका और यूरोप में चले मीटू आन्दोलन ने हॉलीवुड समेत कई नामी-गिरामी दायरों को हिलाकर रख दिया था। अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने प्रख्यात फिल्म निर्माता हार्वी वाइंस्टाइन पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। इसके बाद तो कई अभिनेत्रियों ने अपनी पीड़ा बयान की। इसी क्रम में यह हकीकत भी सामने आई कि स्त्री-पुरुष संबंधों के मामले में पुरुषों के दिमागी विसंगतियांे एवं विकृतियों को दूर करने का काम आज भी पूरी दुनिया में बचा हुआ है। यह बड़ा काम है, जिसकी आवश्यकता भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में है।
नारी का दुनिया में सर्वाधिक गौरवपूर्ण सम्मानजनक स्थान है। नारी धरती की धुरा है। स्नेह का स्रोत है। मांगल्य का महामंदिर है। परिवार की पी़िढ़का है। पवित्रता का पैगाम है। उसके स्नेहिल साए में जिस सुरक्षा, शाीतलता और शांति की अनुभूति होती है वह हिमालय की हिमशिलाओं पर भी नहीं होती। सुप्रसिद्ध कवयित्रि महादेवी वर्मा ने ठीक कहा था-‘नारी सत्यं, शिवं और सुंदर का प्रतीक है। उसमें नारी का रूप ही सत्य, वात्सल्य ही शिव और ममता ही सुंदर है। इन विलक्षणताओं और आदर्श गुणों को धारण करने वाली नारी फिर क्यों बार-बार छली जाती है, लूटी जाती है, यौन-शोषण की शिकार होती है। यह कहना कठिन है कि भारत में सहसा शुरू हुए मी टू अभियान का अंजाम क्या होगा, लेकिन महिलाओं को यौन शोषण से बचाए रखने वाले माहौल का निर्माण हर किसी की प्राथमिकता में होना चाहिए।
भारत में महिलाओं के यौन-शोषण का सिलसिला बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है। इससे मुक्ति के लिये महिलाओं को बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है। यह सही है कि मीटू में सामने आए सभी दोषियों को सजा दिलाना बहुत कठिन है, लेकिन इससे प्रशासन और समाज में एक संदेश जरूर गया है। इस आंदोलन की एक सीमा यह भी है कि अभी यह उन्हीं महिलाओं तक सीमित है जो पढ़ी-लिखी और सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। देश में न जाने कितनी अशिक्षित, गरीब महिलाएं रोज प्रताड़ना झेल रही हैं। उनकी आवाज न जाने कब सामने आएगी। सरकार को महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ज्यादा संवेदनशील एवं जागरूक होना चाहिए।
यौन-शोषण का आरोप लगाने से पहले महिलाओं को भी गंभीर होना होगा, क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में बदला लेने या अपने मन-माफिक न होने, या आर्थिक लाभ या अन्य लाभ के लिये झूठे आरोप भी लगाकर चर्चा में रहने की अनेक महिलाओं की मानसिकता होती है, ऐसी महिलाओं से इन आन्दोलन को नुकसान पहुंच सकता है। यह सावधानी एवं सतर्कता ही इस आन्दोलन को सार्थक एवं सफल बना सकती है। अब इसके लिये क्या किया जाना चाहिए, इस पर भी चिन्तन होना जरूरी है। कुछ मामलों में अपवाद भी हो सकता है जो स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों के बीच अविश्वास पैदा करेगा। ऐसा होना भी एक बड़े असन्तुलन एवं इंसानी रिश्तों के बीच दूरियां पैदाकर देगा, जो अधिक घातक हो सकता है। स्त्री-पुरुष दोनों की रजामंदी से हुआ यौन संबंध को अपने स्वार्थ के लिये 10-20 वर्ष बाद यौन-शोषण का नाम देना भी इस आन्दोलन की पवित्रता को धूमिल कर सकता है। ये ऐसे प्रश्न है जिन पर भी विचार किया जाना चाहिए।
अभी तक फिल्म जगत से लेकर राजनीतिक व संगीत क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं ने अपने उन पुराने सहयोगियों पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं जो अपने क्षेत्र के शीर्ष व्यक्तित्व है, हस्ति है। परन्तु इस प्रकार की घटनाओं को उजागर करने को हम यदि कोई महिला आंदोलन समझने की भूल करते हैं तो यह प्रतिभाशाली महिलाओं के लिया ही अंततः नुक्सानदायक हो सकता है और समूचे कार्य क्षेत्रों में महिला कर्मियों के लिए अनावश्यक रूप से सन्देह पैदा कर सकता है। महिलाओं को लेकर ऐसा सन्देह, भय या दूरी का माहौल न बने, बल्कि उनकी अस्मिता अक्षुण्ण रहे, यह सोचना है। नारी का पवित्र आँचल सबके लिए स्नेह, सुरक्षा, सुविधा, स्वतंत्रता, सुख और शांति का आश्रय स्थल बने, ताकि इस सृष्टि में बलात्कार, गैंगरेप, नारी उत्पीड़न, यौन-शोषण जैसे शब्दों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए.

1 COMMENT

  1. जी ! पर सच्चाई अलग है ( एक गीत याद आ रहा है – “ हसीनों से अहले वफा मांगते हो, बड़े नासमझ हो ये क्या मांगते हो !” और सबको अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने की आजादी होनी चाहिए पर — उनका अंतिम लक्ष्य ” सर्वे भवन्तु सुखिन: ” भी होना चाहिए — जिस तरह पुरुष अपनी क्षमता-शक्ति का सदुपयोग पूरे परिवार-समाज की भलाई के लिए करता है ( कुछ अपवादों को छोड़कर ) उसी तरह महिलाओं को भी समाज-परिवार का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि बहुत हद तक मुस्लिम महिलाएं करती हैं ( तराइन के युद्ध में गोरी की पत्नी अपने पिता से कहकर पूरी ईरानी फौज गोरी की मदद में ले आई थी पर संयोगिता ने ऐसा नहीं किया जबकि सामूहिक बलात्कार उन्हें ही झेलना पड़ा —- )— बाबा लोगों को छोड़ भी दिया जाए ( जबकि बाबाओं के यहां सबसे पहले महिलाओं की ही भीड़ बढ़ती है )आज भी अभिनेत्रियां सीमा पर जूझ रहे सैनिकों पर इल्ज़ाम लगा रही हैं , एक मेजर की पत्नी की शिकायतों पर १९ जेसीओ रैंक के अधिकारी बर्खास्त कर दिये गये हैं, आईएएस मुकेश कुमार व कानपुर के आईपीएस मिस्टर दास को आत्महत्या करनी पड़ी है, एक डीआईजी की बेटी के कारण क्वांटम थ्योरी पर रिसर्च करने वाले भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह एम्स अस्पताल दिल्ली में पड़े हुए हैं — उनकी पत्नी न मदद में आ रही हैं- न तलाक दे रही हैं ( जो महिलाएं और समितियां सोशल मीडिया पर बड़ी- बड़ी बातें करती हैं ये उनकी नैतिक-सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि भारत के महान वैज्ञानिक को बचा लें ) अन्य तात्कालिक उदाहरण गोंडा उत्तर प्रदेश से है , 82 साल के एक बुजुर्ग शिक्षक का रास्ता उनके बगल में रहने वाली पुलिस की एक विधवा ने बंद कर रखा है ( ये रास्ता चकबंदी अधिकारी द्वारा प्रदत्त है – जब तक उस महिला के पति थे सब ठीक ठाक था ) आसपास के सभी दबंग और अविवाहित उस विधवा के साथ हैं क्यों मत पूछिएगा , दूसरी पुलिस की विधवा ने बाहर से आए हुए जमाल नामक व्यक्ति की सहायता से एसडीएम के स्टेऑर्डर के बावजूद उस बुजुर्ग दंपति के खेत में मकान बनवा लिया है और सभी अधिकारियों को मिलाकर ( कैसे नहीं कह सकता क्योंकि कुछ तथाकथित एडवांस जन को अभद्रता की बू आने लगेगी ) CM portal से आई इंक्वायरी जो स्थानीय लेखपाल के खिलाफ थी- डीएम साहब ने उस विधवा सुंदरता में पड़कर उसी लेखपाल को बर्खास्त करने के बजाय इंक्वायरी अफसर बना दिया- निश्चित ही है रिपोर्ट गलत आनी थी – गलत रिपोर्टिंग की चिंता के कारण कचहरी में ही बुजुर्ग शिक्षक को ब्रेन हैमरेज हो गया है पर अभी तक उस पुलिस की विधवा का दिल नहीं पसीजा है– अस्पताल ले जाने के लिए भी उसने रास्ता नहीं खोला है – गड्ढे से होकर जाते समय ऑटो पलटने से बुजुर्ग को भी चोट लगी – उनकी 80 साल की वृद्ध पत्नी का पैर कट गया है – बहू के हाथ में चोट आई है पर उस पुलिस की विधवा ने निर्दयता की हदें पार कर दी हैं और अभी भी रास्ता नहीं खोला है गांव में तनाव है — द्रौपदी की तरह ये दोनों खूबसूरत विधवाएं कभी भी आज का महाभारत करवा सकती हैं , जिन्हें इस समाचार पर संदेह लगे वो बुजुर्ग की पत्नी से ( 9451838619, 6388221888) पर खुद बात कर सकते हैं — ये खूबसूरत विधवाओं के वर्तमान के कारनामे हैं —– मुझे पूरा यकीन है फोन पर बात करने के बाद आप यही कहोगे :———– “ शैतान के दरवाजे पर जिंदगी की भीख नहीं मांगी जाती —– “

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here