सुरेश हिन्दुस्थानी
दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में हुए घटनाक्रम के मामले में देश के कई प्रमुख राजनेताओं के विरोध में राजद्रोह का मामला बन चुका है। बनना भी चाहिए, क्योंकि देश के विरोध में की गई नारेबाजी कभी भी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मानी जा सकती। वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ऐसा मतलब निकालकर हमारे देश में जो परिपाटी चल रही है, वह आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या बनकर ही उभरेगी। इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी के आशय को फिर से सारे देश को बताने की आवश्यकता है। नहीं तो देश में पहले से ही भ्रम की स्थिति है, इस बारे में और भ्रम बनता चला जाएगा।
राजद्रोह का प्रकरण कायम होने के बाद एक बार फिर ऐसी आवाजें मुखरित होंगी कि केन्द्र की सरकार राजनीतिक बदले की कार्यवाही से काम कर रही है। कानून के अंतर्गत की गई कार्यवाही को भी कांगे्रस और वामपंथी दल राजनीतिक कार्यवाही का ही नाम देंगे, जैसा कि देश में हमेशा से ही होता आया है। हम जानते हैं कि हमारे देश में कभी कभी ऐसा भी दिखाई देता है जैसे कि देश में कानून नाम की कोई चीज है ही नहीं। कई अवसरों पर राजनीतिक दलों ने कानून को अपने हाथ में लिया है।
अब आतंकवाद को ही ले लीजिए। आतंकवाद के बारे में प्राय: यह कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन देश में जिस प्रकार से तुष्टीकरण की नीति के चलते आतंकवादियों को समर्थन हासिल होता रहा है, उससे तो ऐसा ही लगता है कि आतंकवाद केवल एक धर्म का ही परिचायक है। हमारे देश में याकूब मेनन और अफजल को मिले समर्थन से क्या यह प्रदर्शित नहीं हो रहा कि हम अपने ही देश की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं और जो भी लोग इसके विरोध में आवाज उठाते हैं, उन्हें राजनीतिक दृष्टि से अपराधी की भूमिका में रखे जाने की कवायद भी होने लगती है। दिल्ली विश्वविद्यालय की घटना के बाद जो राजनीति की जा रही है, उसका कांगे्रस, वामपंथी दल और केजरीवाल के एकाधिकार वाली आम आदमी पार्टी ने खुलकर समर्थन किया है।
वर्तमान में कांगे्रस और वामपंथी दल केवल अपने राजनीतिक उत्थान के लिए राजनीतिक सुर्खियों में बने रहने के लिए इस प्रकार के देश विरोधी कारनामों का समर्थन करती दिखाई दे रहीं हैं। वह इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे देश में बदनाम होने में नाम होने का भी प्रचलन है। अभी हाल ही में दिल्ली की पुलिस ने कई नेताओं पर राजद्रोह का प्रकरण कायम किया है। यह एक प्रकार से देशविरोधी के रूप में इनकी बदनामी ही है, लेकिन ये देशद्रोही राजनेता इस बदनामी को भी अपनी प्रचार प्रसिद्धि का माध्यम मानकर चल रहे हैं। राजनेताओं की इस प्रकार की मानसिकता देश के लिए बहुत बड़ी समस्या का पर्याय बनती जा रही है। कांगे्रस में अपने राजनीतिक उत्थान के लिए छटपटा रहे राहुल गांधी को संभवत: यह भी नहीं पता कि देश को राजनीतिक आजादी प्राप्त कराने के लिए देश भक्तों ने क्या संघर्ष किया है। उनको केवल अपने परिवार के लोग ही दिखाई देते हैं। कांगे्रस के नेता हमेशा ही इस बात का बखान करते दिखाई देते हैं कि भारत के लिए केवल गांधी और नेहरु परिवार ही सब कुछ है, इसके अलावा कुछ नहीं। उनको शायद यह नहीं पता कि इस देश को आजाद कराने के लिए चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे महानायकों का भी योगदान है। राहुल गांधी इनके बारे में कितना जानते होंगे, इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। राहुल ने कुछ दिन पूर्व कहा कि उनके खून में देशभक्ति है, इस बात यह कहना भी न्याय संगत ही होगा कि राहुल के खून में कुछ अंश सोनिया गांधी का भी है। ऐसे में राहुल किस देश के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करते हैं, यह जवाब वह ही दे सकते हैं। ऐसे में उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है। इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक शर्मनाक बयान तो राहुल गांधी के आ रहे हैं और वे भी आतंकियों व कश्मीरी आजादी के समर्थन में खड़े दिखलायी पड़ रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राहुल गांधी को अपनी पुरानी विरासत का अच्छा इतिहास भी नहीं पढ़ाया गया है। जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की राष्ट्रद्रोह की घटना को समर्थन देकर कांगे्रस और वामपंथी राजनेता देशद्रोही गतिविधियों में शामिल होकर अपनी राजनीति को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास करने लग गये हैं।
जेएनयू में जिस प्रकार से कुछ छात्रों ने अफजल गुरू और मकबूल बटट को फांसी देने के विरोध में कार्यक्रम का आयोजन किया और उसमें पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये गये और कश्मीर की आजादी लेकर रहेंगे के नारे लगे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद घटनाक्रम घटित हुआ है। इस घटना के बाद इस विश्वविद्यालय की शैक्षणिक प्रतिष्ठा को भी आघात लगा है। हम यह अच्छी प्रकार से जानते हैं कि इस विश्वविद्यालय में वमपंथियों का एकाधिकार रहा है, वामपंथी प्रारंभ से ही हिन्दू धर्म के विरोधी ही रहे हैं। इस कारण उन्हें हमेशा से ही ऐसे ही कार्यक्रम अच्छे लगते हैं। आज देश के लिये एक बेहद गौरव की बात है कि एक देशभक्त व राष्ट्रवादी विचारधारा का व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री पद पर विराजमान है। इस समय ऐसी नीच हरकते करने वाले लोगों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। यह बात प्रारम्भिक कार्यवाही से ही पता चल गयी है। इस पूरे प्रकरण में सरकार व प्रशासन को किसी भी तरह से दबाव में नहीं आना चाहिये।
आपने लिखा है,” दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए घटना क्रम के मामले में देश के कई प्रमुख राजनेताओं के विरोध में राज द्रोह का मामला बन चूका है.” शायद यह राजद्रोह देश द्रोह से अलग कोई चीजे है.आपने आगे लिखाहै,”बनना भी चाहिए,क्योंकि देश के विरोध में की गयी नारेबाजी कभी भी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं मानी जा सकती.” हो सकता है,मैंने नहीं पढ़ा हो,क्या आप बता सकते हैं कि जिन राजनेताओं के विरुद्ध मुकदमा दायर हुआ है उनमे किस राजनेता ने या किन राजनेताओं ने देश के विरुद्ध नारे लगाये थे?