डा. अरविन्द कुमार सिंह
आज बहुत दिनों के बाद कुछ लिखने के लियेफ् कलम उठाया तो चिन्तन के दौर से गुजर गया। क्या लिख्ूा ? जो लोगों से सुना, जो किताबों में पढा – वो अपने लेखन का विषय बनाऊ ? या फिर जो अनुभव से प्राप्त किया, उसे लेखन का विषय बनाऊ?
अनुभव से प्राप्त जो कुछ मेरे पास है, उसे अपना कहने की हिम्मत मैं जुटा सकता हूॅ – ध्यान की अनुभूतियाॅ उस चेतन सत्ता द्वारा प्राप्त वो संकेत है, जिसकी तरफ मैं सिर्फ इशारा कर सकता हॅू। पूर्ण रूपेण बताने के लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं है।
जब आपकी सारी माॅग गिर जाती है तो वह उपरवाला आपकी झोलियों को न्यामतों से भर देता है। माॅगने वाले को कभी कुछ नही मिलता। बात यहाॅ से शुरू करूॅगा – बहुत दिया देने वाले ने तुझको, तेरे आॅचल में ही न समाय, तो क्या कहिये। उस उपर वाले ने मुझे बहुत कुछ दिया। यह लेख उसका शुक्रिया है।
वो मेरी शरीके हयात थी। वो एक ऐसा शबनमी कतरा थी, जिसके एक कतरे से समंदर की प्यास बुझती थी। जिस पर सैकडों ताजमहल न्योक्षावर थे। उसका आगमन मेरी जिन्दगी में 22 अप्रैल 1984 को हुआ। मेरी जिन्दगी से उसकी भौतिक रवानगी 01 मई 2015 को हुयी । बीच का वक्त ध्यान , प्यार और अनुभव का दौर रहा।
मुझे बहुत अच्छी तरह याद है। 29 अप्रैल 2015 को मैं विद्यालय से दोपहर बारह बजे घर पहुॅचा। दरवाजा उसी ने खोला था, क्रीम कलर का शूट उस पर खूब फब रहा था, बहुत सुन्दर लग रही थी। मैंने उससे कहा – ‘‘ चलो खाना लगाओं साथ खायेेगें।’’ उसने बडे अनमने भाव से कहा – ‘‘ मेरा सर दर्द हो रहा है, आप खाना निकालकर खा ले, प्लीज।’’
खाना खा कर जब मैं कमरे में आया, तो वह बिस्तरे पर लेटी थी। मैने उससे पूछा – सुबह तुमने दवा ली थी या नहीं? उसने कहा – शायद लगता है, मैने दो बार दवा ले ली है, क्या? मैने ड्रार खेालकर देखा उसने कौन सी दवा दो बार ले ली थी। यहाॅ मैं बताता चलू, 2012 में मैने उसके हृदय का वाल्व रिप्लेसमेन्ट कराया था लखनऊ से। दवा उसी की चलती थी।
वह जीवन को पूर्णता में जीती थी। प्यार का दरिया थी वह, करूणा का सागर थी। उससे मेरा रिश्ता शारीरिक से बढकर आत्मिक ज्यादा था। मैने तत्काल अपने विद्यालय के डाक्टर तथा अपने मित्र विद्याधर से उस दवा के साईड ईफेक्ट के बारे में पूछा। विद्याधर ने कहा – ‘‘ सर, थोडा सा सर दर्द होगा और चक्कर जैसा आयेगा। चैबीस घंटे में यह स्थिति समाप्त हो जायेगी। ‘‘ मैं थोडा आश्वस्त हुआ।
वह मेरे कमर में हाथ डालकर, मुझे पकडकर सो गयी। मैं बिस्तर पर बैठा हुआ किताब पढता रहा।
करीब चार बजें मैने उसे उठाया। पूछा चाय पियोगी? अप्रैल का महिना था, उसने तरबूज खाने की इच्छा जाहिर की। मैं किचन में गया और एक प्लेट में तरबूज काटकर लाया। यकायक वह मेरे गले में बाहे डालकर झूल गयी , भावुक आवाज में बोली ‘‘ मैं आपको बहुत प्यार करती हूॅ।’’, उसके शरीर में एक हल्की थरथराहट थी, आॅखो के कोर नम थे। मैंने शरारत पूर्ण आवाज में उससे कहा – ‘‘ क्या बात है मोहतरमा, आज बहुत प्यार आ रहा है, इरादे तो नेक है?‘‘ वह शरमाकर मेरे बाहों में सिमट गयी। मैने कहा – तरबूज नहीं खाना? उसने कहा – आज मैं आपके हाथ से खाऊगी। यह उसके आखिर शब्द थे। जो उसने मुझसे कहा था।
मैने मात्र दो पीस ही तरबूज उसे खिलाया था कि उसने उलटी कर दी। मुझे ऐसा लगा उसकी तबीयत कुछ ज्यादा खराब है। मैंने अपने एक मित्र को फोनकर आने को कहा – तथा बाहर जाकर गैराज से कार निकाली, उसे अस्पताल ले जाने के लिये। मेरे मित्र आ गये थे, वह नीद में जा रही थी। मैंने उसे अपनी बाहों मे उठाया, उसका पूरा वजन मेरे हाथों मे आ गया। वो अपने पैरांे पर चलकर जाने की स्थिति में नहीं थी।
घर से थोडी दूर स्थित अस्पताल में मैं पहुॅचा और उसे इमरजेन्सी वार्ड में भर्ती कराया। डाक्टर को उसकी पूरी केस हिस्ट्री बताया। तत्काल उसका पूरा मेडिकल चेकप हुआ और सबकुछ नार्मल पाया गया। डाक्टर ने कहा – आप दो घंटे बाद इन्हे घर ले जा सकते है। मैने कहा – सर, मेरा घर नजदीक है, मैं सुबह घर जाऊगा। उसको डीप्प चढाया जा रहा था। वह गहरी नीद में थी।
एक घंटे के बाद डाक्टर ने उसे इमरजेन्सी वार्ड से कमरा नम्बर बाईस में सिफ्ट कर दिया। मैने अपने मित्र को घर जाने को कहा। अब मैं कमरे में उसके साथ अकेला था। मेरी आॅखो से नीद बहुत दूर जा चुकी थी। मैं उसका हाथ पकडकर बैठा था कभी कभी उठकर उसको प्यार कर लेता था।
घडी पर निगाह गयी, सुबह के तीन बज रहे थे। वो अभी तक होश में नही आयी थी। यह मेरे लिये चिंता की बात थी। मैने महसूस किया उसका दाहिना हाथ और पैर हरकत नही कर रहा था। करीब पाॅच बजे डाक्टर आये। मैने अपनी आशंका उन्हे बतलाई। उनके चेहरे पर गम्भीरता के लक्षण दिखायी दिये। उन्होने मुझे सीटी स्कैन कराने की सलाह दी तथा फिल्म तुरंत दिखाने को कहा।
अस्पताल के बगल में ही सडक के उस पार सीटी स्कैन लैब था। तुरंत अस्पताल के एम्बुलेन्स से हम वहाॅ गये तथा उसका सीटी स्कैन कराया। अस्पताल वापस आने के बाद मै फिल्म लेने लैब वापस गया।
फिल्म देखकर मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गयी। मेडिकल साइंस का मैं एबीसीडी नहीं जानता था पर फिल्म देखकर यह समझते देर नहीं लगी कि उसका सीवियर बे्रन हम्ब्रेज हो चुका था। आख्ॅाो के आगे अन्धेरा छाॅ गया।
मैं भारी कदमो से अस्पताल वापस आया। डाक्टर आ गये थे। फिल्म देखने के बाद वो मुझे कमरे से लेकर बाहर आये तथा भारी आवाज में बोले – ‘‘ मैं झूठ नहीं बोलूॅगा और ना हीं आपको झूठी तसल्ली दूॅगा। आपका पेशेन्ट अधिक से अधिक एक हफता सरवाइभ करेगा। आप चाहे तो अपने रिश्तेदारों को बुला ले। हम शहर के न्यूरो सर्जन राजीव वर्माा से सम्र्पक करने जा रहे है। उनके आने पर फाईनल डिसीजन लिया जायेगा। तबतक हम इन्हे आईसीयू में भर्ती कर रहे है।’’
शाम करीब सात बजे राजीव वर्मा आये। मुझे आईसीयू में बुलाया गया। उन्होने मेरे कन्धे पर हाथ रखा और कहा – ‘‘ डा. साहब दिल और दिमाग मजबूत करे, यह तो आप समझ ही गये होगे, आपके पेशेन्ट का बे्रन हैम्ब्रेज हुआ है। अधिक से अधिक ये चैबीस घंटा और सरवाईभ करेगीं। यह एक रेयर केस है, जहाॅ एक हार्ट का पेशेन्ट, न्यूरो का पेशेन्ट बनकर खुद ही आमने सामने खडा हो गया है। न्यूरो की दवा प्रारम्भ करने के लिये, हार्ट की दवा हमे बन्द करनी होगी और हार्ट की दवा का असर खत्म होने में तीन दिन का वक्त लगेगा, जो समय हमारे पास नही है। ब्रेन की हड्डियों में ब्लड चला गया है। सर्जरी सम्भव नहीं है। फिर भी हम प्रयास करेगे।’’ उनके ‘‘ फिर भी ’’ शब्द ने मुझे मेडिकल साइंस की अंतिम हद का एहसास करा दिया। जिस रेखा के आगे ‘‘ उसकी ’’ हुकूमत चलती है। जिसकी हुकूमत में किसी का दखल नहीं है। फिर भी उसकी इतनी बडी ईनायत तो थी, कि मुझ गरीब को उसने चैबीस घंटे अता फरमाया। उठाने को तो वो दुनिया से लोगों को वह यू भी उठाता है कि बगल वाले को खबर नही होती । यह क्या कम था कि वह मुझे पल पल की जानकारी दे रहा था।
डाक्टर ने मुझे इशारे में कहा था – देखे और इंतजार करे। मैं रिशेप्संस पर आकर बैठ गया। ध्यान की अवस्था में था। पुरानी यादे आॅखों के कोर को भीगा जाती थी। वो अक्सर कहा करती थी – ‘‘ देखिये आपसे पहले मैं जाऊगी, जितना प्यार करना है कर लिजिए, फिर तो यादों के सहारे ही जीना होगा। बेटी का ख्याल रखियेगा, वो हम लोगों के प्यार की निशानी है, वैसे भी वो आपसे ही ज्यादा जुडी है।‘‘ अक्सर मैं उसकी बातो से उसका ध्यान भटकाता था। फिर वो शरारत से कहती थी, हुजूर लिखीये ना कही, दिल से उठी इस आवाज को, होगा वही, जो मैं कह रही हूॅ। यह देखकर कि मेरे आॅखों के कोर नम हो गये है, वो मेरे गले में बाॅहे डालकर झूल जाती थी , और कहती थी – ‘‘ नाराज हो गये क्या? सच मानिये मैं आपको बहुत प्यार करती हूॅ।’’
एक मई पन्द्रह का वह वक्त आज भी मेरे जेहन से नही उतरता, जब रिशेप्संस पर मेरा नाम पुकारा गया। रात्री के सात बज रहे थे। मुझे कहा गया आपको आईसीयू में बुलाया गया है। आईसीयू में प्रवेश करते हुए मैं पूर्णतः उस चेतन सत्ता द्वारा नियन्त्रित हो चुका था, जो पूरे कायनात को संचालित करता है। मेरा हर लफज, हर बात उसके द्वारा नियन्त्रित थी। अब तो वही था, मैं नही था।
‘‘ मैं अपनी पत्नी के बेड के पास उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बैठ गया। अपनी ही आॅखों से मैं वेंटलेटर पर उसके नीचे गिरते हुए पल्स रेट को देख रहा था। हाथ पकडे होने के बाद केाई कैसे हाथ छुडाकर इस दुनिया से दूसरी दुनिया में चला जाता है, यह अनुभव शायद मैं कभी शब्दो में बयान न कर सकूॅ, पर ये भी तो नहीं कह सकता कि मैं इस अनुभव से नहीं गुजरा। उसकी असीम कृपा इस साक्षात्कार के लिये उसने मुझे चुना। ऐसा अवसर वो सभी को प्रदान नहीं करता।
पल्स रेट जब बीस से तीस के बीच पहुॅची तो अचानक उस चेतन सत्ता से उस चेतन सत्ता के लिये आवाज उठी – ‘‘ हे ईश्वर उसे अपने पास बुला ले ।’’ तभी दूसरी आवाज ने उसका साथ दिया – ‘‘ मनु तुम अब जाओ, तुम्हारे जाने का वक्त हो गया है‘‘ । मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूॅ, अब बाकी जिन्दगी तुम्हारी यादों के सहारे जिऊगा। तेरे दिल से उठी आवाज सही थी क्यों कि यह बात उस चेतन सत्ता ने कही थी, जो सबके अन्दर निवास करता है।
अचानक मेरी आॅख खुली तो उसकी पल्स रेट जीरो पर जा चुकी थी। लगता था जैसे चेतन सत्ता चेतन सत्ता का इंतजार कर रही थी। आज वो मेरी जिन्दगी में नहीं है, पर हर तरफ मौजूद है। उसके शरीर और साॅसो की गरमी आज भी महसूस करता हूॅ।
बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा और लिखा भी तो तुझे ही लिखा। कल दुनिया में रहूॅ ना रहूॅ , सिर्फ इतना ही कहूॅगा –
तुझे प्यार करता हूॅ और करता रहूॅगा
कि दिल बनकर, सबके दिल में धडकता रहूॅगा।
पूरी कायनात को संचालित करने वाले और प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर निवास करने वाले उस चेतन सत्ता को प्रणाम ।।।
दिल को छू गयी यह घटना, ईश्वर आपको शक्ति प्रदान करे।
बहुत ही मासूम निश्छल और मर्मस्पर्शी है आपकी सच्ची भावनायें व अनुभव जिन्हे हम गहराईयों से समझते हैं क्योंकि हम इसे जानते है.