लखनऊ बैंच का फैसला और संघ परिवार का पैराडाइम शिफ्ट

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने जब फैसला सुनाया तो उसके पहले उसने सभी पक्षों के वकीलों को यह आदेश दिया था कि वे मीडिया के सामने तब तक कुछ न बोलें जब तक अदालत के द्वारा फैसले की कॉपी मीडिया वालों को वितरित न हो जाए। लेकिन अदालत के प्रति सामान्य सम्मान तक बनाए रखने में हिन्दू संगठनों के वकील असफल रहे।

अदालत के बाहर एक मीडिया मंच बना दिया गया था जहां से वकीलों को सम्बोधित करना था, तय यह हुआ था कि पहले मीडिया को फैसले की कॉपी अदालत देगा और उसके बाद वकील लोग अपनी राय बताएंगे। इस सामान्य से फैसले का हिन्दू संगठनों के वकील सम्मान नहीं कर पाए और उन्होंने फैसला आते ही दौड़कर मीडिया को सम्बोधित करना आरंभ कर दिया।

फैसला सुनाए जाने के बाद सबसे पहले भाजपा के नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील रविशंकर प्रसाद ने इस नियम को भंग किया उसके बाद हिन्दूमहासभा और बाद में शंकराचार्य के वकील ने भी नियमभंग में सक्रिय भूमिका अदा की। रामलला के वकील और भाजपा के वकील साहब तो फैसला बताते हुए इतने उन्मत्त हो गए कि उन्होंने वकील और संघ के स्वयंसेवक की पहचान में से वकील की पहचान को त्याग दिया और संघ के प्रवक्ता की तरह मुसलमानों के नाम अपील जारी कर दी। कहने के लिए यह सामान्य नियमभंग की घटना है लेकिन हिन्दुत्ववादियों में राम मंदिर को लेकर किस तरह की बेचैनी है यह उसका नमूना मात्र है।

वकील का स्वयंसेवक बन जाना वैसे ही है जैसे रथयात्रा के समय कुछ पत्रकार संवाददाता का काम छोड़कर रामसेवक बन गए थे। इसबार हिन्दुओं के वकील इस फैसले पर हिन्दुत्व की जीत के उन्माद में भरे थे। उनका मीडिया को इस तरह सम्बोधित करना अदालत के आदेश का उल्लंघन था। इसके विपरीत मुस्लिम संगठनों के वकीलों ने संयम से काम लिया और मीडिया को तब ही अपनी राय दी जब अदालत की कॉपी मीडिया को मिल गयी।

लखनऊ बैंच के फैसले पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक-दूसरे के पूरक बयान दिए हैं। इन दोनों बयानों में क्या कहा गया है इसे बाद में विश्लेषित करेंगे, पहले यह देखें कि लखनऊ बैंच के फैसले से संघ परिवार के रवैय्ये में मूलतः क्या बदलाव आया है।

एक बड़ा बदलाव आया है संघ परिवार ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान संघ परिवार का स्टैंण्ड था कि हम अदालत का फैसला नहीं मानेंगे, राम हमारे लिए आस्था की चीज है। विगत 20 सालों से उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का फैसला आने के पहले संघ परिवार ने जनता और मीडिया में जिस तरह का राजनीतिक अलगाव झेला है उसने संघ परिवार को मजबूर किया है कि वह अदालत का फैसला माने। यह मीडिया और जनता के दबाब की जीत है। हम उम्मीद करते हैं संघ परिवार के संगठन और उसके नेतागण सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी ऐसे ही स्वागत करेंगे चाहे फैसला उनके खिलाफ आए।

उल्लेखनीय है सिद्धांततः अदालत का फैसला मानने में संघ परिवार को पांच दशक से ज्यादा का समय लगा है और अभी वे एक गलतफहमी के शिकार हैं कि विवादित जमीन पर राममंदिर बनाकर रहेंगे।

बाबरी मसजिद विध्वंस की आपराधिक गतिविधि के लिए संघ परिवार के कई दर्जन नेताओं पर अभी मुकदमा चल रहा है और उस अपराध से बचना इनके लिए संभव नहीं है। श्रीकृष्ण कमीशन में बाबरी मसजिद विध्वंस के लिए संघ परिवार के अनेक नेताओं को कमीशन ने दोषी पाया है और बाबरी मसजिद विध्वंस का मामला जब तक चल रहा है विवादित जमीन पर कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो सकता। वैसे भी यदि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी जाती है तो मामला लंबा चलेगा और वैसी स्थिति में संघ का भविष्य में क्या स्टैंण्ड होगा इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता।

लखनऊ बैंच का फैसला आते ही संघ परिवार के नेताओं ने तत्काल ही अदालत की राय के बाहर जाकर मुसलमानों को मिलने वाली एक-तिहाई जमीन को राममंदिर के लिए छोड़ देने की तत्काल मांग ही कर ड़ाली और आडवाणी जी ने रामजी के भव्यमंदिर के निर्माण के साथ नए किस्म के सामाजिक एकीकरण की संभावना को व्यक्त किया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपील की है कि अतीत को भूल जाएं। हम मांग करते हैं कि बाबरी मसजिद विध्वंस को लेकर संघ परिवार सारे देश से माफी मांगे। बाबरी मसजिद गिराने का महाअपराध करने के बाबजूद अतीत को कैसे भूला जा सकता है।

लखनऊ फैसले का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है बाबरी मसजिद-राम मंदिर विवाद के राजनीतिक समाधान की असफलता। अदालत ने जनवरी-सितम्बर 2010 के बीच में सुनवाई करके जिस रिकॉर्ड समय में फैसला किया है वह इस बात का संकेत है कि अदालतें आज भी संसद से ज्यादा विश्वसनीय हैं।

निश्चित रूप से केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की धर्मनिरपेक्ष दृढ़ता और प्रशासनिक मशीनरी की कुशलता ही है जिसने इस फैसले को एक सामान्य फैसले में बदल दिया। अदालतों में संपत्ति के प्रतिदिन फैसले होते रहते हैं और यह एक रूटिन कार्य-व्यापार है। यह संदेश देने में अदालत और केन्द्र सरकार सफल रही है।

दूसरी ओर संघ परिवार के लिए यह फैसला गले की हड्डी है। इस फैसले ने राममंदिर के विवादित क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांटकर और उसमें मुसलमानों का एक-तिहाई पर स्वामित्व मानकर मुसलमानों को अयोध्या से बहिष्कृत कर देने की संभावनाओं को खत्म कर दिया है। आगे अदालत का कोई भी फैसला आए उसमें हिन्दू-मुसलमानों की विवादित जमीन पर साझेदारी रहेगी।

इस संदर्भ में ही लालकृष्ण आडवाणी के बयान में कहा गया है कि इस फैसले से ‘न्यू इंटर कम्युनिटी एरा’ की शुरूआत हुई है। यह बयान और अदालत का फैसला अनेक खामियों के बाबजूद जिस बड़ी चीज पर ध्यान खींचता है वह है ‘न्यू इंटर कम्युनिटी एरा’, यह संघ परिवार की समूची विचारधारा के ताबूत में कील ठोंकने वाली चीज है। नया अंतर-सामुदायिक युग, ‘अन्यों’ को खासकर मुसलमानों को बराबर मानता है।

यह अदालत के जरिए संघ परिवार की हिन्दुत्ववादी विचारधारा की विदाई का संकेत भी है। अब वे चाहें तो मंदिर ले सकते हैं लेकिन मुसलमानों के साथ मिलकर बाबरी मसजिद की विवादित जमीन पर मसजिद के साथ बराबरी के आधार पर रहना होगा। इससे अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के भेद को दीर्घकालिक प्रक्रिया में समाप्त करने में मदद मिलेगी।

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत का यह कहना कि हमें अतीत को भूलकर आगे देखना चाहिए। इस बयान में भी संघ परिवार के संभावित परिवर्तनों की ध्वनियां छिपी हुई हैं। संभवतः संघ परिवार अपने हिन्दुत्ववादी एजेण्डे की बजाय अब विकास की बातें करे जिससे वह युवाओं का दिल जीत सके। क्योंकि राममंदिर आंदोलन ने भारत के युवाओं को संघ परिवार और राममंदिर आंदोलन से एकदम दूर कर दिया है। यही वजह है राम मंदिर आंदोलन के अतीत को मोहन भागवत भूल जाने की अपील कर रहे हैं। वे जानते हैं राम मंदिर का मसला संघ परिवार को मिट्टी में मिला सकता है यही वजह है कि विगत 10 सालों से किसी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में रामंदिर चुनाव का मसला नहीं उठाया गया।

संघ परिवार धीरे-धीरे मंदिर विवाद से लखनऊ बैंच के फैसले का स्वागत करते हुए अपने को अलग कर रहा है। देखना है संघ परिवार किस दिशा में जाता है। क्योंकि बाबरी मसजिद विवाद का असली सच तो सुप्रीम कोर्ट ही बताएगा।

29 COMMENTS

  1. निर्णय जबसे है सुना, नहीं होश में वाम
    मानो छत से हों गिरे, टूटे दांत तमाम।
    टूटे दांत तमाम, नहीं आधार बचा अब
    था मंदिर प्राचीन, कोर्ट में सिद्ध हुआ जब।
    कह ‘प्रशांत’ फिर भी थूके को चाट रहे हैं
    कैसे समय बिताएं, लिख-लिख काट रहे हैं।।

  2. जगदीश्‍वर चतुर्वेदी जी बहुत अच्छा लेख लिखा आपने
    बधाई हो
    इस लेख में ऐसा कुछ भी नहीं है जो गलत या झूट हो
    फिर भी न जाने क्यू कुछ लोग सच्चाई बर्दास्त नहीं कर पाते
    और श्री राम तिवारी जी हमेशा संतुलित टिप्परी करते हैं

  3. इस फैसले से लोगो को यह समझ मैं आ गया है की संघ और बीजेपी ने जन्मभूमि के लिए जो प्रयास किये वो राष्ट्रहित मैं और इस देश की बहुसंख्यक आबादी के सम्मान को बनाय रखने की लिए किया गया एक समर्पित प्रयास था| और जो लोग इस प्रयास को साम्प्रदायिकता बताते थे उनके पास बगलें झाँकने के अलावा कोई चारा नहीं. उन लोगो को समझना चाहिए राम के आदर्शों पर चलकर ही इस विश्व का कल्याण हो सकता है| हमें गर्व करना चाहिए की राम ने इस भारत भूमि पर जन्म लिया| और हमारे पास मौका है की पूरी दुनिया मैं राम के आदर्शों को स्थापित करें और विश्व मैं रामराज्य की स्थापना हो|

    • जल्दी से रामराज्य बनाओ,हम तंग आ गए हैं। इंटरनेट से,पढ़ने लिखने से तंग आ गए हैं। रामराज्य आ जाय तो बस बैठकर भजन करेंगे और मालपुआ खाएंगे।

  4. जदिश्वर और श्रीराम तिवारी जैसे लोग ही इस देश के नाम पर धब्बा हैं, आप लोगों को यह भी तमीज नहीं की कंहा प्रतिक्रिया करें अपनी| जन्हा सारा देश इस फैसले का स्वागत कर रहा है वंहा आप अपना राग अलाप रहे हैं. किसी भी वकील ने कुछ गलत काम नहीं किया, वो तो मीडिया वाले ही जबरदस्ती बयान लेने पहुँच जाते हैं. वैसे जिलानी बयान देनेवालों मैं सबसे आगे थे| आप जैसे लोगो का बहुत बुरा होगा, क्योंकि हिन्दू सहिष्णु है तो आप उसका फायदा उठा रहे हो किसी मुस्लमान की विरोध मैं लिखो अभी स्वर्गवासी हो जाओगे.

  5. My sympathy is with Shri Jagdishwar Chaturvedi. His leftist business is about to close its last shop in Bharat. Jagdishwar Ji – Please find a suitable alternative platform from where you can continue your anti Hindu agenda. Here are a few suggestions: Mulayam Singh’s shop is a good match for you, You also have a good chance with Paswan.
    People at large recognize your agenda very well. You can not fool anyone any more.

  6. बेचारे कम्युनिश्टो को तो कोयी पुछ ही नही रहा है,क्या करे उनके दुष्प्रचार का भाडा जो फ़ुट ग्या है,क्या आज तक मनदिर के खिलफ़ दुष्प्रचार के लिये प्रोफ़ेसर सहाब माफ़ी मांगेगे???जैसे एक वकिल हिन्दु बन गया वैसे ही एक हिन्दु,एक प्रोफ़ेसर,एक कम्युनिष्ट बन गया,वकिल तो पहले भी हिन्दु ही था पर ये हिन्दु पहले कम्युनिस्ट नहि था,क्यों अब भी संघ को गालिया बकते हो???ये बात लिख लिजिये,मण्दिर तो वही बनेगा जहा अभी है,और ये जगह अब विवादित नही रही है,जब तक कोयी सुप्रिम कोर्ट मे नही जाता और एस फ़ेसेले पर स्टे नही मिलता तब तक वो मन्दिर हि कहा जाना चाहिये,ना कि विवादित यही कोर्ट का आदेश है,जो पहले पढिये आप,फ़िर कोयी टिप्पणि करिये,१ इन्च भी जमिन के हक्दार नही है मुसलामान,जब न्यायालय ने सर्व सहमती से ये मान लिया है कि वहा पहले कोयी हिन्दु धर्म स्थल जैसा कोयी भवन था तब वहा मुसलमानि नाम का ढाचा क्या कर रहा था???बहुमत से मान लिया राम जन्म स्थान पुजनिय है फ़िर मुसलमानो को जमीन क्यो दि??न्यायालय ने ये अच्छा किया कि पुरा का पुरा निर्ण्या साऎट पर दे दिया,जितना भग मेने पढा है तिनो जजो सहाबो का उससे एक बात स्पष्ट होती है कि वहा मन्दिर था,जिसे सबो ने आगे भी रहने दिया है पर कुछ भाग बहुमत से मुसलमानो को दिया है पर कितना है वो भाग मुश्किल से ४५*२० वर्ग फ़ीट,और वहा तक जाने का रास्ता कौन देगा???अभि तक मेने नही पढा,अगर हो तो मुझे भी बताना,सभी भुमी पर हिन्दु स्वामितव को,चारो ओर हिन्दु धर्म स्थालो को स्विकार करने के बाद मुसल्मानो के लिये वहा जाने का कोन रास्ता बचता है???फ़िर ये हमेशा का झगडा रहेगा,फ़िर हर बात मे मुस्लिम पक्ष को देने देने कि निति क्यो अपनायी जाति है???मुसलमानो ने कोन आज तक न्यायालय का सम्मान्न किया है???अब अपने दुष्प्रचार को बन्द कर दिजिये,इस फ़ैसले ने हिन्दुओ जब्रद्स्त जाग्रित किया है,आज तक जो हिन्दु तटय्स्थ भुमिका मे राम जि के भक्त थे वो भी अब खुल कर बोलने लगे है कि हमारी भुमि मुसलमानो को क्यो??ओर ये अतिश्योक्ति नही है या अखबार बाजि नही बल्कि सत्य बात है,जिसे कम्युनिष्ट जितना जल्दी स्विकारेंगे उतना जल्दी देश का हित है…………………

    • A little correction is needed in the last sentence. Communists have no interest in Desh ka hit. In fact they will do everything to the contrary.

    • भईया थोड़ा पढ़ लो,चाहो तो दोबारा सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिला ले लो। इतना सुंदर लिखोगे तो संघ वाले भी सिर धुन लेंगे। थोड़ा और कम सुंदर लिखो ज्यादा विचारवान लगोगे।

  7. आदरणीय चतुर्वेदी जी
    आपके एक एक शब्द में सच्चाई है ,आप में सच्चाई प्रकट करने का माद्दा है ,आपको अपने विचार प्रकट करने का हक है .मैं व्यक्तगत तौर से आपके प्रत्येक शब्द की सकारात्मकता भी सिद्ध कर सकता हूँ ,किन्तु अभी वक्त फील गुड का है .किसी के यहाँ शुभ कार्य हो तो उसके यहं मर्सिया नहीं पढ़ा करते और किसी के यहाँ मैय्यत उठ रही हो तो मंगल गीत नहीं गया करते .
    यद्द्य्पी शुद्हम लोक विरुद्हम न कथनीयम न कथनीयम ..
    आप सौ फीसदी सच्चे ब्राह्मनहैं जब प्रोफेसर इरफ़ान हबीब जैसे वामपंथी इतिहासकार भी asi की प्रमाणिकता पर अंगुली उठाते हैं तो आपको और हमको क्या पड़ी जो सच्चाई और evidence का गठा लेकर गली गली अरण्यरोदन करते फिरें .जब देश के मुस्लिम भाई अपनी स्वेच्छा से सारी जमीन ही रामलला को देने जा रहे हैं तब इस तरह की वैज्ञनिक एतिहासिक सच्चाई के क्या मायने .सारा देश फील गुड में है आप भी आनंद पूर्वक दूसरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी महसूस कीजिये .
    काल्पनिक विजूका ही सही .अफीम ही सही उसका जो मजा ले रहे उन्हें लेते रहने दीजिये .

  8. जगदीश्वर जी को पहले तो अपना नाम बदल लेना चाहिए . यह नाम उन्हें एक हिन्दू जैसा रूप देता है, फिर उन्हें यह देश भी छोड़ देना चाहिए क्योंकि यहाँ के अधिकतर लोग उनके हिसाब से सांप्रदायिक हैं .

    इनका बस चले तो यह अफगानिस्तान जाकर आपसी लड़ाई में सर्वनाश की ट्रेनिंग भी ले कर आयेंगे . बधाई हो आपकी बुद्धि और दर्शन पर . आप महान हैं .

    जगदीश्वर जी, मुस्लिम जनता को अपना वोट बैंक मान कर आप जैसे लोग हमें बहुत लड़ा चुके . हमें आपका विदेशी दर्शन नहीं चाहिए आपस में मिल बैठ कर बात करने और आगे बढ़ने के लिए .

  9. चतुर्वेदीजी कृपया अपनी जाती और अपनी माँ के चरित्र को कलंकित न करें तो बेहतर होगा , ऐसी लेखनी का क्या मतलब जो आपकी विरासत कोही प्रश्नवाचक चिन्ह लगाये .

    • आप महान हैं।आपके विचार भी और गाली भी महान है। सुंदर भाषा सीखी है किसी कुभक्त से।

  10. आरएसएस के पास बहुत सारे काम है वो किसी मुद्दे का मोहताज नहीं चिंता तो आपको है कि अब मेरी रोजी-रोटी का क्या होगा । आरएसएस ये देख रहीं है कि अब आम मुसलमान मुल्ला-मौलवियों और आप जैसे सांप्रदायिक पत्रकारों कि पकड़ से बाहर निकल चुका है बस उसे राष्ट्रीय मुख्यधारा से जोड़ना है जिसके लिए मुसलमान ललायित है, इसलिए आप ये न सोचे कि आरएसएस कि सोच बदल रहीं है बल्कि आम मुसलमानों कि सोच बदल रही है और आरएसएस यहीं तो चाहता था देश को अब महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता आप जैसो कि तो औकात ही क्या है

    • औकात की भाषा संघ परिवार में नहीं सिखायी जाती। थोड़ा संघ के भले स्वयंसेवकों से भाषा सीखो।

        • औकात सही शब्द है बल्कि इससे भी तीखा प्रहार करनेवाला शब्द होता तो वो भी सही होता.

          • आपको गाली लिखने की आजादी है। शायद आपके लिए गाली ही विचार है। भईया शाखा बगैरह जाया करो। कम से कम मीठा बोलना तो सीख जाओगे।

  11. संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन के खिलाफ हौवा खडा करके ही तो जगदीश्वर जी जैसे वामपंथियों और सेकुलर लेखको (?) की दूकान चलती है. अब गलती हो गई की संघ ने चतुर्वेदी साहब से नहीं पूछा कि क्या करे और क्या नहीं!!
    धन्य हो आप जैसे तथाकथित बुद्धीजीवी जो भारत की आत्मा को नहीं पहचानते और सिर्फ लिखने के लिए लिखते हैं. भाई अपने देश और कौम की छोड़ो, ज़रा अपनी कलम के साथ तो ईमानदारी बरतो.

  12. हा हा हा… महोदय चतुर्वेदी जी कुछ और नहीं बहा तो इन टुच्ची मुच्ची खबरों का ही सहारा लेना शुरू कर दिया, और कोई तरीका आता हो हिन्दू मुस्लिम भाइयों को लड़वाने का तो वह भी अपना लीजिये…कोई काम शान्ति से हो जाए यह तो आप जैसे वामपंथियों को कभी मंज़ूर ही नहीं है, जब तक निर्दोषों का लहू न बहे वामपंथियों की दाल में तडका नहीं लगता…बड़े चटोरे हैं ये वामपंथी…न्यायालय के सम्मान की बात तो ऐसे कर रहे हैं जैसे रोज़ सुबह न्यायालय के चरण धोकर पीते हैं…अब क्या कमी रह गयी की ये बचकानी हरकतें शुरू कर दी चतुर्वेदी जी…
    आपने झट से कह दिया की हिन्दू वकील ने न्यायालय का सम्मान नहीं किया, चतुर्वेदी जी न्यायालय के निर्णय के बाद सबसे पहले आपके मुस्लिम वकील ने ही अलाप मारा था की हम उच्चतम न्यायालय जाएंगे…और न्यायालय के सम्मान की चर्चा आप तो न ही करें क्यों की अपने लेख में आपने पता नहीं कितनी ही बार न्यायालय को अपमानित किया है…चतुर्वेदी जी मुस्लिम हमारे भाई हैं. कृपया हमें हमारे भाइयों से ना लड्वाएं…जब खुद मुस्लिमों द्वारा इस निर्णय को स्वीकार कर लिया गया है तो आप क्यों गला फाड़ रहे हैं… और जिस संघ की आलोचना में आपने अपने key board के बटन घिस दिए हैं न ये वही संघी हैं जिन्होंने कश्मीर में मर रहे पंडितों को सहार दिया था, आपके पूज्य मोहम्मद नेहरु खान ने तो सेनाओं को पीछे खींच लिया था, उस समय उन पंडितों की रक्षा इन संघियों ने की थी, और चीन के आक्रमण के समय तो आप जैसे वामपंथी या तो चीनी ज़िन्दाबाद के नारे लगा रहे थे या पता नहीं कहाँ चादर में मूंह छिपाए बैठे थे…
    चतुर्वेदी जी धर्मनिरपेक्ष होना अच्छी बात है यह तो हमारे हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का प्रतीक है, किन्तु याद रखिये धर्निर्पेक्ष्ता में सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है, किन्तु आपकी वाणी से हिन्दुओं के लिए तो केवल कटु शब्द ही निकलते हैं.
    आदरणीय चतुर्वेदी जी पिछली बार मैंने आपके लेख पर टिपण्णी करते हुए कहा था की आपने मुझे क्रोधित किया है, किन्तु इस बार आपसे धन्यवाद kahna चाहता हूँ कि आपका लेख पढ़ कर मेरी तो हंसी ही नहीं रुक रही, क्या शानदार COMEDY karte ho aap,wah wah…

    • बंधुवर, आलोचना अपनों की होती है परायों की नहीं ।हिन्दू अपने हैं और वे यदि भूल करेंगे तो उनकी मित्रतापूर्ण आलोचना करना प्रत्येक हिन्दू का धर्म है। हिन्दू आलोचना के नाम पर कभी गाली नहीं देते, असहिष्णुता नहीं दिखाते, अपशब्द नहीं बोलते। आप लोग बेव पर हैं और आपके इस तरह के गैर हिन्दू व्यवहार को सारी दुनिया देख रही है।
      आप जैसे लोगों ने ही संघ परिवार की रही सही छवि खराब की है। आप लोग हनुमान बनने की बजाय मनुष्य बनने की कोशिश करें। सभ्य हिन्दू बनने की कोशिश करें। शालीन ढ़ंग से बहस करें। इससे संघ का मान बढ़ेगा। आप लोगों को काफी कुछ सीखने का मौका मिलेगा। लेकिन सीखने के लिए वानर से नर की अवस्था में आना होगा। यह बात बहुत पहले एंगेल्स ने कही थी। आशा है बगैर नाराज हुए मेरी बातों पर ठंड़े दिमाग से सोचेंगे। सोचने के मामले में आप सभी को अटलबिहारी बाजपेयी का अनुसरण करना चाहिए उमा भारतीय या प्रवीण तोगड़िया का नहीं। आप कम से कम अपने शालीन हिन्दू नेताओं से कुछ सीख लें, देश का,पड़ोस का और अपना भला करेंगे।

      • जगदीश्वर चतुर्वेदी says:
        “आप लोग हनुमान बनने की बजाय मनुष्य बनने की कोशिश करें। ”
        ——————————————————————————-
        महोदय आप तो चोट भी पहुंचाते हैं और शिकायत करने से भी मना करते हैं . हनुमान का चरित्र पढ़ लीजियेगा. किस मनुष्य से कम थे हनुमान ? पर उपदेश कुशल बहुतेरे… ठीक है हम चुप रहेंगे . भाईयों, चुप रहिये नहीं तो अगली बार न जाने किसके बारे में क्या कह दें . पर हम आपसे असहमत हैं साहब .

          • प्यार तो हमें भी आपसे कम नहीं है साहब . ये तो आप ही हैं की हम सबको बुरा समझने लगे हैं !

            न जाने कब मौसम बदलेगा और आप राम और खुदा के मानने वालों को एक सामान प्यार देंगें ?

            हमारी गलती क्या है ? यही न कि हम दुनिया के मालिक को राम के रूप में पूजते हैं . हम ने जब उस एक परमात्मा को अपने अन्दर महसूस किया तब उसे खुदा कहने वाले पैदा नहीं हुए थे . और जो उस परमात्मा को अब खुदा कहते हैं उनसे हमारी कोई लड़ाई भी नहीं है .

            हमारी सभ्यता और संस्कृति की सदियाँ बहती गयीं और वक्त गुजरता रहा . हमसे गलतियाँ भी हुईं पर हम लगे रहे और अपनी गलतियाँ सुधारने में हमने कोई शर्म नहीं मानी .

            पर न जाने क्यों आप हमें हर बार अपनी विद्वता और अपनी मुखरता के द्वारा डांटते ही रहते हैं . एक बार प्यार से बात कर के तो देखिये . हम आपको सिर आँखों पर रखेगें . हमेशा डांटना अच्छा नहीं . प्यार में ज्यादा ताकत होती है ऐसा कई महापुरुषों ने कहा है . आप तो विद्वान् हैं, शिक्षक भी हैं हमसे ज्यादा जानते होंगे . कोई धृष्टता हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ .

  13. महोदय, लगता है कि आप माननीय उच्चन्यायालय के फ़ैसले से तिलमिला गये है। आपकी केन्द्र सरकार ने पहले हौव्वा खडा किया फ़िर अपनी पीठ थपथपा ली। आपने सान्सद राशीद अल्वी जी का सटीक लेख नही पढा क्या, वो तो संघी नही।
    एक बात और संघ क्या सोचता और करता है उसे आप जैसे लोग कभी सोच और समझ नही सकते। जब तक आप जैसे लोग बात को समझते हैं तब तक संघ का कार्य हो चुकता है। राष्ट्रवदियो का सामना करना सबके बस की बात नही। असंभव को संभव बनाना रामभक्त हनुमान को आता था। आप सोचिये कि हनुमत शक्ति जागरन कर संघ परिवार ने क्या कर दिखाया। जय श्री राम।

    • जय हनुमान कम से कम यहां पर 108 बार हनुमान चालीसा को लिखो। हमें सुंदर लगेगा।

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