पूरे नौ दिन चलेंगे नवरात्र
भगवत कौशिक।भिवानी -वैसे तो नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है। जिसमे चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों का विशेष महत्व है।हिन्दू धर्म में चैत्र महीने का विशेष महत्व है। क्योंकि, इसी दिन से हिंदू नववर्ष की भी शुरुआत होती है। इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है। इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है। इसमें मां की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है।
इस साल इस बार चैत्र नवरात्रि बुधवार 22 मार्च 2023 से प्रारंभ हो रहे हैं, जिसका समापन 30 मार्च होगा।चैत्र नवरात्रि में अबकी बार पूरे नौ दिनों की नवरात्रि होगी। इस बार नवरात्रों में अष्टमी को ग्रहों का महासंयोग बन रहा है जो 700 साल में पहली बार होगा। अष्टमी को 7 ग्रह 4 राशियों में विराजमान रहेंगे,इस स्थिति में केदार योग बन बनता है। संयोग की बात करें तो शुक्र मेष राशि में जाएंगे जहां पहले से ही राहू बैठा है।इसके बाद गुरु मीन राशि में है और शनि अपनी कुंभ राशि में है।मेष राशि में बुध है और सूर्य भी मीन राशि में है।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्र की खास बात यह है कि नवरात्र से एक दिन पहले पंचक लगेगा। पंचमी तिथि तक पंचम काल में देवी आराधना की जाएगी। पंचक काल को पूजा-अर्चना के लिए शुभ माना जाता है। मंदिरों में सुबह 6.23 से 7.32 बजे तक और घर-घर में अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11.05 से 12.35 बजे के मध्य घट स्थापना की जाएगी।
इस बारे में जानकारी देते हुए देवसर धाम मंदिर के पुजारी विक्रम महाराज ने बताया कि इस साल मां दुर्गा का आगमन नौका पर होगा। शास्त्रों में मां के इस रूप को भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण करने वाला माना जाता है। खास बात ये है कि चैत्र नवरात्र के पहले दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। इस समय में घटस्थापना आपके लिए बहुत ही लाभदायक और उन्नतिकारक सिद्ध हो सकता है।
चैत्र नवरात्रि पर बन रहा है शुभ संयोग
इस बार चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हो रहे हैं और इनकी शुरुआत बेहद ही शुभ संयोग में हो रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार 5 ग्रह एक साथ मीन राशि में संयोग बनाकर गोचर कर रहे हैं।जो कि बहुत ही शुभ माना जाता है।इस शुभ संयोग में पूजा करना बेहद ही फलदायी होगा। चैत्र नवरात्रि के दिन गजकेसरी योग, बुधादित्य योग, हंस योग, शश योग और राज लक्षण योग बन रहे हैं।
देवसर धाम,भिवानी
छोटी काशी में नवरात्रों के दिनों में हर देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा देखने को मिलता है। भिवानी का देवसर धाम ऐसा धाम है, जहां भारतवर्ष से भक्तगण अपनी मन्नतें मांगने देवसर धाम में आते है और इस मन्दिर में आकर भक्तों की सारी मन्नते पूरी होती है। यह मंदिर आठ सौ साल पूर्व स्थापित किया गया था। भिवानी से महज 6 किलोमीटर दूर स्थित है देवसर धाम जहां माता का मंदिर है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि वे माता से जो भी मन्नत मांगते हैं, वह अवश्य ही पूरी होती है। भक्त यहां पेट के बल लेटकर आते हैं तथा उनका विश्वास है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है। मंदिर का इतिहास भी बरसों पुराना है। मंदिर के संचालकों की मानें तो करीब 8 सौ साल पहले पहाड़ी के पास से एक बंजारा जब अपनी गऊएं लेकर जा रहा था तो उसकी गऊएं कहीं खो गई। रात को सपने में उसे देवी मां ने दर्शन दिए तथा कहा कि पहाड़ी पर दबी मूर्ति को स्थापित करवाया जाए तो उसकी गाएं मिल जाएंगी। बंजारे ने ऐसा ही किया तथा उसकी गाएं भी मिल गई। तब से माता की वह मूर्ति मंदिर में ही है।मंदिर मे पुजा का कार्य औछता परिवार के दवारा किया जा रहा है।
देश विदेश से माता के दर्शन करने व मन्नत मांगने आते है श्रद्धालु
देवसर धाम स्थित मां भवानी के मंदिर मे वैसे तो साल भर श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने आते रहते है लेकिन चैत्र शुक्ल पक्ष और अश्विन शुक्ल पक्ष मे नवरात्रों मे देश ही नहीं विदेशों से श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने पहुंचते है।अमेरिका, कनाडा,इंग्लैंड, जापान ,दुबई तथा आस्ट्रेलिया समेत दुनिया के अन्य देशों से माता रानी के भक्त अपनी मनोकामनाओं को लेकर माता के धाम पहुंचते है।
श्रद्धालुओं के ठहरने व भोजन की है निशुल्क व्यवस्था
देवसर धाम परिसर के आसपास श्रद्धालुओं के रूकने के लिए अनेक धर्मशालाएं भगवती धर्मशाला, यात्री निवास, सेठ पीरूमल धर्मशाला, पेटवाडिया धर्मशाला व जिंदल धर्मशाला बनी हुई है ।जहा श्रद्धालुओं के ठहरने के साथ साथ भोजन की भी निशुल्क व्यवस्था की गई है।
चैत्र नवरात्रि मे होती है माता के नौ रूपों की पूजा,महिषासुर का वध करने के लिए माता ने अपने अंश से प्रकट किए थे नौ अंश
देवसर धाम मंदिर के पुजारी विक्रम महाराज ने बताया कि चैत्र का महीना देवी पूजन के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। हिन्दू मान्यतानुसार देवी के 108 रुप होते हैं। यह 108 रुप देवी पार्वती के आग में जलने के पश्चात उनके अंगों के जितने टुकड़े हुए वो सभी देवी का स्वरुप बन गए। इन्हीं देवियों में प्रमुख देवी है मां दुर्गा। जिनके नौ रुप काफी ज्यादा पूजनीय माने जाते है। चैत्र नवरात्रि देवी के इन्हीं नौं रुपों की पूजा के स्वरुप मनाई जाती है।उन्होंने बताया कि जब धरती पर महिषासुर का आतंक काफी बढ़ गया और देवता भी उसे हरा पाने में असमर्थ हो गए, क्योंकि महिषासुर का वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसे में देवताओं ने माता पार्वती को प्रसन्न कर उनसे रक्षा का अनुरोध किया।इसके बाद मातारानी ने अपने अंश से नौ रूप प्रकट किए, जिन्हें देवताओं ने अपने शस्त्र देकर शक्ति संपन्न किया। ये क्रम चैत्र के महीने में प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर 9 दिनों तक चला, तब से इन नौ दिनों को चैत्र नवरात्रि के तौर पर मनाया जाने लगा।
माता के नौ रूपो का महत्व और उनका स्वरूप
शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। क्योंकि माँ दुर्गा पर्वतों के राजा, हिमालय के यहाँ पैदा हुई थीं, इसी वजह से उन्हे पर्वत की पुत्री यानि “शैलपुत्री” कहा जाता है।
ब्रह्मचारिणी- इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होता है। इसका तात्पर्य है कि तप का पालन करने वाली या फिर तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली। नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी पूजा कू जाती हा। माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है।
कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है। कुष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। कुष्मांठा से तात्पर्य है ‘कू’ का अर्थ होता है- छोटा। ‘इश’ का अर्थ- ऊर्जा एवं ‘अंडा’ का अर्थ- गोलाकार। इन्हें अगर मिलाया जाए तो इनका यही अर्थ है, कि संसार की छोटी से छोटी चीज़ में विशाल रूप लेने की क्षमता होती है। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है।
स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता। स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवे दिन की जाती है। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द भी है। अतः भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कन्दमाता के नाम से भी लोग जानते हैं। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है।
कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि। कात्यायनी माता की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। एक कथा के अनुसार महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उनके वरदान स्वरूप माँ दुर्गा उनके यहाँ पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। चूंकि महर्षि कात्यायन ने ही सबसे पहले माँ दुर्गा के इस रूप की पूजा की थी, अतः महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण माँ दुर्गा कात्यायनी के नाम से भी जानी जाती हैं। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है।
कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली। मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सांतवे दिन की जाती है। मां दुर्गा के इस रूप को अत्यंत भयानक माना जाता है, यह सर्वदा शुभ फल ही देता है, जिस वजह से इन्हें शुभकारी भी कहते हैं। माँ का यह रूप प्रकृति के प्रकोप के कारण ही उपजा है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां। मां महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माँ दुर्गा का यह आठवां रूप उनके सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर है। इनका यह रूप बहुत ही कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देता हुआ रूप है, जो हर एक इच्छा पूरी करता है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली। मां सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के अंतिम दिन यानि नवमी को की जाती है। माँ दुर्गा का यह नौंवा और आखिरी रूप मनुष्य को समस्त सिद्धियों से परिपूर्ण करता है। इनकी उपासना करने से उनके भक्तों की कोई भी इच्छा पूर्ण हो सकती है। माँ का यह रूप आपके जीवन में कोई भी विचार आने से पूर्व ही आपके सारे काम को पूरा कर सकता है।