आवारा मवेशियों की समस्या का हल ज़रूरी है

0
132

देवेन्द्रराज सुथार

जालोरराजस्थान

देशभर में आवारा मवेशियों की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है. जहां एक ओर आवारा मवेशी सड़क हादसों का सबब बन रहे हैं, तो दूसरी ओर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. आज शहर हो या गांव, आवारा मवेशियों के आतंक से कोई अछूता नहीं हैं. इनके यत्र-अत्र-सर्वत्र घूमने से आमजन का अपने घर से बाहर निकलना दूभर हो रहा है. कई बार इनकी चपेट में आकर नागरिकों की मौत भी हो चुकी है. राजस्थान के जालोर जिले में सांढ़ों की लड़ाई में एक वृद्ध की मौत हो गई थी. जिले की नजदीकी बागरा गांव में भी सांड़ द्वारा पीछे से हमले के कारण एक वृद्ध की जान चुकी है. 

आंकड़े बताते हैं कि भारत में सड़क हादसों में होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण आवारा मवेशी भी हैं, जो यातायात व्यवस्था को तो बाधित करते ही हैं, साथ ही उनके अचानक बीच सड़क पर आ धमकने से सड़क हादसे भी अंजाम लेते हैं. सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुरेश सुथार इन दिनों गांव आए हुए थे और अपनी गाड़ी से ससुराल जा रहे थे, लेकिन अचानक सड़क के बीच लंगूर आ जाने से उनकी गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया और वह सामने एक बड़े पत्थर से जा टकरायी. गनीमत रही कि उन्हें इस हादसे में अधिक चोट नहीं आयी, लेकिन गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गयी. गांव के कृषक गोपाल बताते हैं कि पिछले साल उनकी अधिकांश फसल आवारा मवेशी चट कर गये. वह बताते हैं कि गर्मी और बारिश में तो जैसे-तैसे करके किसान रात में खेत की निगरानी कर आवारा मवेशियों से अपनी फसलों को बचाते आये हैं, लेकिन कड़ाके की ठंड में रात के समय खेतों की रखवाली मुश्किल हो जाता है और न आर्थिक रूप से सक्षम है कि इतने बड़े खेत के चहुंओर तारबंदी कर आवारा मवेशियों से अपने खेत की सुरक्षा कर सके.


दरअसल, बात सिर्फ फसलों के नष्ट होने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इन आवारा मवेशियों के आतंक से देश के पर्यटन उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा है. भारत घूमने आये कई विदेशी पर्यटक इन आवारा मवेशियों की चपेट में आकर घायल हो चुके हैं. कुछ साल पहले जयपुर में अर्जेंटीना के एक विदेशी पर्यटक को आवारा सांड़ ने इतनी बुरी तरह से मार दिया था कि उसकी तुरंत मौत हो गयी. निश्चित ही इससे देश में घूमने आने वाले विदेशी सैलानियों में भय का माहौल पैदा हो रहा हैं और उनकी भारत आने में रुचि भी कम हो रही हैं. वहीं ये आवारा मवेशी दूसरों की जान लेने व नुकसान पहुंचाने के साथ ही गलियों और सड़कों के किनारे पड़े कूड़ा करकट व पॉलिथीन की थैलियों को निगल कर अपनी जान से भी हाथ धो रहे हैं. असमय कई काल कवलित होने वाले ये आवारा मवेशी मरने के बाद भी आमजन को परेशान करते हैं. कई दिनों तक इनकी लाश सड़ती रहती है. स्थानीय प्रशासन इस पर ध्यान नहीं देता.


सवाल है कि आखिर कैसे घूम रहे हैं आवारा मवेशी और कौन है इनका असली मालिक? साथ ही इनसे होने वाले नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? पशुपालन और डेयरी विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 20वीं पशुधन गणना से ज्ञात होता है कि देश में 50.21 लाख आवारा मवेशी सड़कों पर विचरण कर रहे हैं. इनमें सबसे ज्यादा 12.72 लाख राजस्थान में एवं 11.84 लाख आवारा मवेशी उत्तर प्रदेश में हैं. देशभर में आवारा पशुओं को पालने की वार्षिक लागत 11000 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है. वास्तव में आवारा मवेशियों के बढ़ने का कारण उनका परित्याग है, जिसके कारण उनमें अनियंत्रित प्रजनन होता है, परिणामस्वरूप उनकी कई पीढ़ियां बन जाती हैं जिससे उनकी संख्या में निरंतर वृद्धि होती है.


दूसरा कारण, लोग आक्रामकता, चिकित्सा समस्याओं, पालतू जानवरों के स्वामित्व की लागत, प्रजनन में जटिलताओं, जीवनशैली में परिवर्तन से स्वास्थ्य जैसी कठिनाइयों के कारण आवारा मवेशियों को पालने में संकोच करते हैं. मालिकों के लिए वित्तीय मुद्दे, आवास की समस्याएं, पंजीकरण के लिए कानूनी कार्यवाही भी लोगों को जानवरों को अपनाने में बाधक बनती है. बड़ी संख्या में आवारा मवेशियों में गायों और सांड़ों को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं. इनमें से अधिकांश गायों को अवैध या अपंजीकृत डेयरियों और पशुशालाओं के मालिकों द्वारा छोड़ दिया जाता है. प्रजनन क्षमता में कमी, बुढ़ापा, दुग्ध उत्पादन बंद होने के कारण मवेशियों को मालिकों द्वारा छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा दूध न देने वाले मवेशियों को मालिक खुला छोड़ देते हैं, ताकि वे बाहर खुले में चर सके और घर का चारा बच सके. ये हाल तब है जब देश में रजिस्टर्ड गोशाला की संख्या 1800 है और दुनिया की सबसे बड़ी गोशाला गोधाम पथमेड़ा जालोर जिले में स्थित है.


आवारा मवेशियों के गलियों में घूमने के पीछे के कारणों के बारे में बुजुर्ग मोहन लाल का कहना है कि गाय, बैल, कुत्ते आदि गलियों में इसलिए घूमते हैं कि लोग उन्हें कुछ खाने को देते हैं. अगर लोग उन्हें अपने घरों का बचा हुआ खाना नहीं दें, तो हो सकता है कि वे गलियों में घूमना बंद कर दें. दूसरी बात, आवारा मवेशियों में गाय, कुत्ते ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है. हां, गुस्सैल सांड़ों की लड़ाई कभी-कभार ग्रामीणों को चपेट में लेकर उन्हें नुकसान पहुंचा देती है. इसलिए सांड़ों को खुला छोड़ना ‘आ बैल मुझे मार’ की कहावत को चरितार्थ करना है. लिहाजा, ग्राम स्तर पर पंचायत को इसके लिए कदम उठाने चाहिए. इस संबंध में गांव के उप सरपंच जितेंद्र कुमार घांची का कहना है कि आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए हमें सरकार से कोई अनुदान नहीं मिल रहा है. गांव में गोशाला है, फिर भी उचित प्रबंधन के अभाव में आवारा मवेशी सड़कों व गलियों में विचरण कर रहे हैं. गलियों में आवारा मवेशियों से सुरक्षा के लिए कार्मिकों को तैनात करने के लिए धन की जरूरत होती है, जो हमें नहीं मिल रहा है.


क्या केवल गौशाला बनाने से आवारा मवेशियों की समस्या हल की जा सकती है? इस सवाल के जवाब में गोरक्षक व गोसेवक दिनेश भाटी बताते हैं कि गोमाता जब हर घर में पलेगी और गोमाता को वर्तमान में धार्मिक की बजाय उससे मिलने वाले अमूल्य गो उत्पाद उपहारों के मार्केटिंग और गोवंश के शारीरिक श्रम के उपयोगिता बढ़ेगी, तब समस्या का सही समाधान हो सकेगा. इस सवाल के जवाब में पशु चिकित्सालय सियाना में कंपाउंडर लक्ष्मण गहलोत कहते हैं कि डेयरियों में गायों के प्रजनन को रोकने के लिए कड़े नियम बनाने की जरूरत है. डेयरी उद्योग के कारण ही किसान बैलों और बछड़ों को सड़कों पर खुला छोड़ रहे हैं. डेयरी फार्मिंग पर प्रतिबंध लगाकर इस तरह के कृत्य को रोका जा सकता है. लेकिन अब ऐसा कर पाना लगभग नामुमकिन हो गया है, क्योंकि डेयरी उद्योग अब अनियंत्रित मात्रा में विकसित हो चुका है. यूरिया, डीएपी, पोटाश आदि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से भूमि अपनी उर्वरता खो रही है. अगर सरकार डीएपी-यूरिया के तरह वर्मीकम्पोस्ट पर सब्सिडी देना शुरू कर दें, तो किसान पशुओं को छोड़ना बंद कर सकते हैं और उन्हें अपनी आय का जरिया बना सकते हैं.


आवारा मवेशियों के लिए नई योजना की बात करें, तो केंद्र सरकार द्वारा ‘पशु कल्याण योजना’ को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दी जा चुकी है, साथ ही व्यय विभाग से अलग से सैद्धांतिक मंजूरी ली जा रही है. जानकारी के अनुसार, इस योजना की कुल प्रस्तावित लागत 494 करोड़ रुपये है, जिसे 2022-23 से 2025-26 तक पांच वर्षों में विभाजित किया गया है. इसमें गोशालाओं, पशुधन पर्यटन पार्कों, गाय उत्पादों आदि के लिए धन की व्यवस्था करना शामिल होगा. इस योजना में प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से अपशिष्ट को धन में परिवर्तित करने की भी परिकल्पना की जाएगी. इसलिए, यह आवारा पशुओं और मनुष्यों के बीच संघर्ष को कम करने में मदद करेगा और किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करेगा. इसी तरह, शिंदे-फडणवीस सरकार के नवीनतम बजट में वित्त मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि महाराष्ट्र में देसी गोवंश की सुरक्षा और रखरखाव के लिए महाराष्ट्र गोसेवा आयोग की स्थापना की जाएगी. इसके लिए विशेष प्रावधान किया गया है. बहरहाल, नई योजनाएं कितनी कारगर होगी और इनसे आवारा मवेशियों की समस्या का समाधान होगा या नहीं? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. (चरखा फीचर)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,020 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress