आत्मराम यादव पीव
भारत की आजादी के लिये अहिंसायुक्त आन्दोलनों के पैरोकार महात्मा गाॅधी हमेशा हिंसा का बहिष्कार कर हिंसक आन्दोलनों के सॅख्त खिलाफ रहे है। भारतीय जनता को सम्मान और प्राथमिक अधिकारों के लिये संघर्ष कर भारत को आजाद कराने के काॅग्रेस के योगदान को नहीं बिसराया जा सकता है। 27 सितम्बर 1925 को डाक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार द्वारा काॅग्रेस छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन कर चुके थे और वे तत्कालीन हिन्दूओं को एकत्र कर उन्हें अनुशासन और चरित्र निर्माण के लिये गाॅव-गाॅव, गली-गली में शाखायें लगाने का काम शुरू कर चुके थे जिसकी ख्याति भारत ही नहीं अपितु अंग्रेजों तक पहुॅच गयी थी, लेकिन अंग्रेजों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य से कोई सरोकार नही था क्योंकि वे देख चुके थे कि इस संद्य द्वारा आजादी के लिये लड़ रहे लोगों व अन्य संस्थानों की तरह आजादी प्राप्त करने के लिये अंग्रेजी हुकुमत को कोई नुकसान नहीं पहुॅचाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज के मूल्यों को बनाये रखने के लिये अपने ही आदर्शो के तहत बहुसॅख्यक हिन्दू समुदाय को मजबूत करने के लिये हिन्दुत्व की विचारधारा का प्रचार करता रहा था। इधर महात्मा गाॅधी दक्षिण आफ्रिका से लौट आये थे ओर उन्होंने काॅग्रेस की कमान सॅभाल ली थी तब 1920 में असहयोग आन्दोलन शुरू किये जाने के बाद पूरे राष्ट्र में उनका स्वागत हुआ। महात्मागाॅधी के नेतृत्व में 1920 में नागपुर में काॅग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ जिसमें डाक्टर केश्वराम बलिराम हेडगेवार भी शामिल हुये और उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा जो पारित नहीं हो सका। 1921 में असहयोग आन्दोलन में डाक्टर हेड़गेवार की गिरफ्तारी हुई और उन्हें एक साल की जेल की सजा सुनाई गयी। सजा पूरी करने के बाद उनकी स्वागतसभा में पण्डित मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खाॅ ने सम्बोधित किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य के इतिहास में 25 दिसम्बर 1934 की तारीख इसलिये याद की जाती है कि तब जमनालाल बजाज के कहने से गाॅधी जी वर्धा आये और वहाॅ पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य के कार्यक्रम में सुबह 6 बजे पहुॅच गये और उन्होंने वहाॅ खानपान की व्यवस्था से लेकर सफाई, छुआछात आदि के प्रति आरएसएस के मुहिम की सराहना की। वे जब जमनालाल बजाज के साथ थे तब संघ की ओर से उपस्थित पदाधिकारियों में महादेव देसाई और अप्पाजी जोशी आदि ने उनका भरपूर स्वागत किया और उपस्थित 1500 स्वयंसेवकों को महात्मागाॅधी ने सम्बोधित किया तब संघ के संस्थापक डाक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार मौजूद नहीं थे, वे अगले दिन महात्मा गाॅधी से मुलाकात करने पहुॅचे थे। महात्मा गाॅधी शिविर के लोगों को कड़े अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुये। अगले दिन डाक्टर हेडगेवार से महात्मा गाॅधी ने कहा कि मेंरा मानना है जो संस्था सेवा और आत्मत्याग के आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत दिनोंदिन बढ़ेगी, यही कारण है कि संघ की ताकत अब देश में दिखने लगी है। उन्होंने तब कहा कि सच्चे रूप में उपयोगी होने के लिये त्यागभावना के साथ ध्येय की पवित्रता और सच्चे ज्ञान का संयोजन आवश्यक है, ऐसा त्याग जिसमें ये दोनों बाते न हो समाज के लिये अनर्थकारी साबित होता है। इस घटना का जिक्र आर.एसएस के मुखपत्र पान्चजन्य में किया जा चुका है किन्तु सम्पूर्ण गाॅधी वाडमय में इस चर्चा का जिक्र नहीं मिलता है। हाॅ यह अलग बात है कि सम्पूर्ण गाॅधी वाड्मय में 31 जनवरी 1946 में मद्रास में स्वयंसेवकों की रैली के समापन पर एवं 16 सितम्बर 1947 को नईदिल्ली में संघ की रैली में सम्बोधित किये जाने का विस्तार से जिक्र किया गया है। यहाॅ यह बात विशेषरूप से ध्यान देने योग्य है कि महात्मा गाॅधी, डाक्टर केशवराम बलिराम हेड़गेवार और डाक्टर भीमराव अम्बेड़कर के मध्य 15 वर्षो तक साथ-साथ सक्रिय रहकर काम करते रहने के बाबजूद इनके बीच अनेक बार सहमति-असहमति बनने-बिगड़ने पर संवाद और मुलाकात होती रही किन्तु गाॅधी जी और हेडगेवार में हिंसा-अहिंसा को लेकर मतभेद रहे।
गाॅधी जी 31 जनवरी 1946 को सुबह 8 बजे मद्रास में स्वयंसेवकों की रैली को सम्बोधित करने गये तब उन्होंने कहा कि मुझे यह ख्याल था कि सारा कार्यक्रम पिछली शाम ही खत्म हो गया है लेकिन रात को मुझे बताया गया कि स्वंयसेवकों की यह रैली भी होने वाली है जिसमें मुझे उपस्थित होना है। मुझे खुशी है कि मैं रैली में आ सका और आप सबसे मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई उन्होंने कहा कि मुझे पूरा यकीन है कि स्वयंसेवकों की सहायता के बिना यह महत्वपूर्ण आयोजन संभव नहीं था। मैं स्वयंसेवकों को अहिंसा के प्रति प्रतिज्ञावबद्ध मानता हॅू, और उस पुलिस तथा सेना के विपरीत जो हिंसा से बद्ध होकर लोगों पर शासन करती है। मैंने इसी विचार से प्रेरित होकर 1920 में अपील की थी कि आपको सारे देश में स्वयंसेवको का गठन करना चाहिये जिससे कि ईमानदारी और अहिंसापूर्ण भाव से की गयी सेवा से हम जल्द स्वाधीनता प्राप्त कर सके। गाॅधी जी ने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुये कहा कि आपको अमीर-गरीब, सभ्य-असभ्य का भेद किये बिना होशियारी, विनम्रता और शान्ति से लोगों की बड़ी भीड़ को नियंत्रित करने की कला सीखनी चाहिये। मैं जानता हॅू कि अभी अगर यहाॅ पुलिस का सिपाही आ जाये तो सब लोग शान्ति और व्यवस्था के साथ बैठ जायेंगे,क्योंकि सिपाही अपने को जनता का मालिक समझता है और अपनी लाठी घुमाते हुये चलता है लेकिन आजाद भारत में सिपाही का लाठी घुमाकर जनता पर शासन करने के मैं खिलाफ हॅूॅ। स्वयंसेवकों को चाहिेये कि वे जनता को आग्रहपूर्वक समझाये कि सत्य और अहिंसा द्वारा क्या करना चाहिये और यह बताना चाहिये कि कानून और व्यवस्था की ये शक्तितयाॅ लोगों की सेवा करने के लिये है, न कि जनता पर शासन करने या जुल्म करने के लिये है। गाॅधी जी ने कहा कि मैंने विदेशों में कई परेडों और रैलियों में भाग लिया है जहाॅ पुलिस जनता की सेवा करन ेकी शपथ लेती है। लन्दन में, जिसे पुलिस सेवा में बहुत प्रगतिशील माना जाता है , पुलिस के लोग यह शपथ लेते है कि वे अपने कार्य द्वारा जनता की सेवा करेंगे। यहाॅ का पुलिस कमिश्नर ऐसी कोई शपथ क्यों नहीं लेता? यदि हिन्दुस्थान के सेवक इस विशिष्ट दृष्टिकोण को समझ ले तो स्वाधीनता बड़ी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।
15 अगस्त 1947 को आजादी के एक माह बाद 16 सितम्बर 1947 को महात्मा गाॅधी तीसरी बार नईदिल्ली में सुबह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रैली को सम्बोधित करने गये तब उनके द्वारा वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य के शिविर का जिक्र करते हुये कहा कि स्वर्गीय जमनालाल बजाज मुझे वहाॅ ले गये थे तब हेडगेवार भी जीवित थे। वहाॅ मैंनें लोगों को कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखी जो मुझे अच्छी लगी। कार्यक्रम के प्रारम्भ में जो प्रार्थना गायी गयी वह भारत माता, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म की प्रशस्ति है, मैं दावा करता हॅू कि मैं पूर्ण सनातनी हिन्दू हॅू। मैं सनातन का मूल अर्थ लेता हॅू। हिन्दू धर्म ने दुनियार के सभी धर्मो की अच्छी बातें अपना ली है और इसलिये इस अर्थ में यही कोई वर्जनशील धर्म नहीं है। अतः इसका इस्लाम धर्म या उसके अनुयायियों के साथ ऐसा कोई झगडा नहीं है, जैसा कि आज दुर्भाग्यवश हो रहा है। जब से हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता का जहर फैला, तबसे इसका पतन आरम्भ हुआ है। एक चीज निश्चित है, और मैं यह बात जोर से कहता आया हॅू यानि यदि अस्पृश्यता बनी रहे तो हिन्दू धर्म मिट जायेगा। उसी तरह अगर हिन्दू यह समझे कि हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के सिवाय अन्य किसी के लिये कोई जगह नहीं है और यदि गैर-हिन्दू खासकर मुसलमान, यहाॅ रहना चाहते है तो उन्हें हिन्दुओं का गुलाम बनकर रहना होगा, तो वे हिन्दू धर्म का नाश करेंगे। और इसी तरह अगर पाकिस्तान यह माने कि वहाॅ सिर्फ मुसलमानों के ही लिये जगह है और गैर -मुसलमानों को वहाॅ गुलाम बनकर रहना होगा तो इससे हिन्दुस्थान में इस्लाम का नामोनिशान मिट जायेगां। यह दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है कि भारत के दो टुकड़े हो चुके है । अगर एक हिस्स पागल बनकर शर्मनाम कार्य करें तो क्या दूसरा भी वैसा ही करें ? बुराई का जबाव बुराई से देने में कोई लाभ नहीं है। धर्म ने हमें बुराई के बदले भलाई करना ही सिखाया है।
महात्मा गाॅधी ने आगे सम्बोधित करते हुये कहा कि कुछ दिन पहले ही आपके गुरूजी (डाक्टर हेडगेवार) से मेरी मुलाकात हुई थी और मैंने उन्हें बताया कि कलकत्ता और दिल्ली में संघ के बारे में क्या क्या शिकायतें मेरे पास आई। तब डाक्टर हेडगेवार ने मुझे आश्वासन दिया कि यद्यपि संघके प्रत्येक सदस्य के उचित आचरण की जिम्मेदारी नहीं ले सकते, फिर भी संघ की नीति हिन्दुओं और हिन्दू धर्म की सेवा करना मात्र है और वह भी किसी दूसरे को नुकसान पहुॅचाकर नहीं। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया था कि संद्य आक्रमण में विश्वास नहीं रखता बल्कि हम संद्य के माध्यम से आत्मरक्षाका का कौशल की सीख देते है और किसी को भी प्रतिशोध लेना नहीं सिखाया जाता है। महात्गा गाॅधी ने आजाद भारत के विषय में विचार रखते हुये कहा कि आज हिन्दुस्तान की नाव तूफान से होकर गुजर रही है और जवाहरलाल नेहरू के हाथ में हुकूमत की बागडौर है जिसमें सरदार पटेल जैसे बूढे व्यक्ति भी है जो भारत के श्रेष्ठतम नेता है। अगर आप लोग इनसे संतुष्ट नहीं है तो जो अच्छे व्यक्ति है उन्हें लाकर दे तब मैं इन नेताओं से सिफारिश करूॅगा कि इन्हें स्थान दे। गाॅधी जी ने इस अवसर पर माना कि भले जवाहरलाल उम्र के हिसाब से बूढे नहीं किन्तु काम के बोझ तले वे बूढ़े दिखने लगे है। वे अपनी समझ से देश की बागडौर सॅभाले हुये काम कर रहे है। यदि अधिकांश हिन्दू किसी खास दिशा में जाना चाहेें , भलेे वह दिशा गलत ही क्यों न हो तो उन्हें वैसा करने से कोई रोक नहीं सकता है। लेकिन किसी आदमी को चाहे वह अकेला ही क्यों न हो उसके खिलाफ अपनी आवाज उठाने और उन्हें चेतावनी देने का अधिकार है वहीं मैं कह रहा हॅू कि लोग मुझपर पर तोहमत लगाते है कि मैं मुसलमानों का दोस्त हॅू और हिन्दूओं और सिखांें का दुश्मन हॅू। यह सत्य है कि मैं मुसलमानों का दोस्त हॅू , जैसा कि मैं पारसियों और अन्य लोगों का मित्र हॅू पर ऐसा तो बारह वर्ष से ही हॅू। मुझे आश्चर्य होता है कि जो लोग मुझे हिन्दुओं और सिखों का दुश्मन कहते है वे मुझे पहचानते नहीं , मैं किसी का भी दुश्मन नहीं हॅू और न ही हो सकता हॅू, विशेषकर हिन्दू और सिखों का तो कतई नहीं। पाकिस्तान बुराई करता रहा है तो आखिर हिन्दुतान और पाकिस्तान में लड़ाई होनी ही है परन्तु अगर मेरा बस चले तो मैं न फौज रखू ओर न ही पुलिस। परन्तु मेरी यह बात हवाहवाई बातें है क्योंकि इससे शासन नहीं चलता है। पाकिस्तान वाले हिन्दुओं और सिखों को क्यों नहीं मनाते कि यही रहो, अपना घर न छोड़ो। वे उन्हें हर तरह की सुरक्षा क्यों नहीं देते, तो क्यों न भारतीय सुरक्षा संद्य एक एक मुसलमान की सुरक्षा सुनिश्चित करें?पाकिस्तान और भारत आजादी मिलने के बाद पागल हो गये है जिसका परिणाम बरवादी और तबाही ही हैै। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संद्य एक सुसंगठित,अनुशासित संस्था है जिसकी शक्ति भारत के हित में या उसके खिलाफ प्रयोग की जा सकती है। संद्य के खिलाफ आरोप लगाये जाते है कि उनमें कोई सचाई है या नहीं, यह मैं नहीं जानता हॅू, यह संघ का काम है कि वह अपने सुसंगत कामों से इन आरोपों को झूठा साबित करें। सभा को सम्बोधित करते समय उपस्थित स्वयंसेवकों ने उनके समक्ष अनेक प्रश्न रखे जिनका उत्तर महात्मा गाॅधी ने देकर सबको संतुष्ट किया। सभा के अन्त में महात्मा गाॅधी ने स्वयंसेवकों को आगाह किया कि आपके समक्ष उपस्थित किसी विषय को लेकर अगर आप ही फैसला करें और सजा दे तो सरदार और पण्डित नेहरू कार्यवाही के लिये विवश हो जायेंगे। स्वयंसेवक को चाहिये कि वह अपने मार्ग पर चले न कि कानून को अपने हाथ में ले, कानून को अपने हाथ में लेकर आप सरकार के प्रयासों में बाधक होते है, इस वृत्ति को त्यागर कर देश के सच्चे सेवक की तरह काम करें।