महावीर ने कहा आत्मा समय स्थान की जीवंत स्थिति

—विनय कुमार विनायक
वर्धमान महावीर ने कहा था
आत्मा समय स्थान की जीवंत स्थिति
आत्मा समयबद्ध सम्यक
स्थानीय टाइम स्पेस की सक्रिय अवस्था
आत्मा की किसी समय में
खाली स्थान में होती सशरीर उपस्थिति
आज यहां कल वहां
आत्मा की अवस्थिति बदलती रहती
समय के साथ आत्मा की स्थिति जहां नहीं होती
वहां आत्मवान जीव जन्तु नहीं
निष्प्राण और शरीरी वस्तु जड़वत मृतप्राय होती
भगवान महावीर का आत्म दर्शन
वैदिकों का आत्म दर्शन नहीं है
वे कर्ता धर्ता संहर्ता रुप में ईश्वर को नहीं मानते थे
सच में आत्म चेतना संपन्न शरीर भौतिक तत्वों से बना
प्राकृतिक स्थिति जिसका क्षय प्राकृतिक विधि
या सजीवों के प्रकृति विरुद्ध आचरण से होती
महावीर का कहना था
विश्व है विश्व था विश्व बराबर रहेगा
अकसर लोग बुद्ध महावीर को
अनात्मवादी दार्शनिक कहा करते
बुद्ध के अनात्मवाद को नास्तिकी कही जाती
मगर महावीर बुद्ध से अधिक आत्मवादी थे
महावीर की आत्मा परमात्मावादियों से अलग थी
महावीर की आत्मा समय आकाश:
टाइम स्पेस की सापेक्षित होती
आत्मा का प्रकटीकरण है
समय स्थान सापेक्ष स्थिति
कोई जीव जन्तु तबतक जड़ पदार्थ बना रहता
जबतक किसी स्थान में
लंबे समय तक अचेतन पड़ा रहता
ईंट पत्थर पहाड़ फर्नीचर में आत्मा नहीं होती
क्योंकि वे स्थान छेकते पर
काल को प्रभावित नहीं करते
इस अर्थ में महावीर की आत्मा समय है
कोई आत्मा सचेतन तबतक होती
जबतक समय के साथ आकाश के अवकाश में
अपनी स्थिति को बनाए और बदलते रखने की
शक्ति को धारण करती
पेड़ पौधे नहीं है टेबुल कुर्सी की तरह जड़ पदार्थ
सिर्फ हाड़ मांस के लोथड़े नहीं हैं जीव जन्तु
पेड़ पौधे जीव जन्तु काल विशेष में बदलते रहते
अपनी स्थिति उपस्थिति
समय के साथ दर्ज कराते रहते
कोई वृक्ष अपने समय में अपने स्थान को
सिर्फ घेरता नहीं बल्कि
घेरे स्थान में अपनी उपस्थिति दिखाते
जड़ों को जमीन के अवकाश में डालकर
टहनी डालियों को आकाश में फैलाकर
जीव जन्तुओं के हाथ पांव की तरह
यहां तक कि सूक्ष्म जीव जन्तु वायुमंडल में होते
जिसको सांस लेने के कारण नाश होने से
बचाने के लिए महावीर अनुयायी मास्क पहनते
सजीवों को अस्वाभाविक मौत से बचाने के लिए
जैन मुनि खुद को तपाते जल स्नान तक त्यागते
परम त्यागी और अहिंसक होते जैन धर्मावलंबी
महावीर कर्मफल सिद्धांत और जीवात्मा के
आवागमन पर विश्वास करते थे
महावीर कहा करते थे जीवात्मा के आवागमन को
कर्मफल क्षय द्वारा रोका जा सकता
इच्छाओं के निग्रह से कर्म का अंत होता
इच्छाओं का निग्रह
व्रत अभ्यास नियंत्रण से संभव है
महावीर ने कहा त्याग, त्याग, त्याग
देह वस्त्र तक को त्याग दिगंबर हो जा
कुछ नहीं अपना आत्मा के सिवा
आत्मा को मुक्ति दिला
जीवन मरण से मुक्त हो जा
महावीर का कहना सम्यक श्रद्धा
सम्यक ज्ञान सम्यक आचरण से
आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो जाता!
—-विनय कुमार विनायक

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