डा. राधेश्याम द्विवेदी
कृषि उपज (जैसे गेहूँ, धान आदि) का न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिससे कम मूल्य देकर किसान से सीधे वह उपज नहीं खरीदी जा सकता हो। न्यूनतम समर्थन मूल्य, भारत सरकार तय करती है। उदाहरण के लिए, यदि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2000 रूपए प्रति कुन्तल निर्धारित किया गया है तो कोई व्यापारी किसी किसान से 2100 रूपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद सकता है किन्तु 1975 रूपए प्रति कुन्तल की दर से नहीं खरीद सकता। यह तो रहा कानूनी रुप जो होना चाहिए पर होता नहीं है। किसान आन्दोलन होने के बावजूद इस बार धान खरीद में सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसानों के काम नहीं आई। अधिकतर किसानों को बहुत कम दामों पर धान बेचना पड़ा है। धान खरीद शुरू हुए करीब तीन महीने हो गए लेकिन लक्ष्य के सापेक्ष जिले में अब तक 50 फीसद भी खरीद नहीं हुई है। फिलहाल खरीद जारी है और फरवरी तक केंद्र खुले रह सकते हैं। इस बार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपये प्रति कुंतल तय किया गया था। किसानों का धान कम से कम इस दाम पर तो बिकना ही चाहिए था। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के पीछे सरकार की मंशा होती है कि किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल जाए। यह तभी होता है जब खरीद केंद्रों पर किसानों की अधिक से अधिक फसल खरीदी जाए। जब किसानों की ज्यादातर फसल सरकार के जरिए खरीदी जाएगी तो व्यापारियों को माल कम मिलेगा। ऐसे में खुले बाजार में फसल का रेट बढ़ जाएगा तो उन किसानों को भी रेट अच्छा मिल जाएगा जो खरीद केंद्र तक नहीं पहुंच पाते हैं। विपणन अधिकारी और केंद्र प्रभारियों की मनमानी, इस बार किसानों की उपज खरीद केंद्रों पर बहुत कम ली गई। विपणन अधिकारी और केंद्र प्रभारियों ने मनमानी करते हुए बिचैलियों से धान खरीदा। इसे रिकॉर्ड में किसानों का धान दिखाने के लिए दस्तावेज में हेराफेरी भी की जाती है। किसानों का धान खरीद केंद्रों को नहीं बिक पाता है और उन्हें मजबूरी में 11 से 12 सौ रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से बेचना पड़ा। ज्यादातर किसान नवंबर और दिसंबर में धान बेचते हैं। पर वह सॅल नहीं हो पाते हैं और विचैलिये मिल जुलकर किसानों का हक छीन ले जाते है। सरकार मुख्यतः धान और गेंहूं का खरीद करवाती है। इसका लाभ आम किसान नहीं ले पाते हैं। इसके क्रय केन्द्र बहुत दूर दराज तथा सीमित अवधि तक ही खुले रहते हैं। आन लाइन पंजीकरण की प्रक्रिया में साधारण किसान पिछड़ जाते हैं । उन्हें मजबूरन आढ़तियों के पास जाना पड़ता हैं । वे औने पौने दाम में धान व गेहूं खरीदते हैं। आढतियों की पहुच सरकारी क्रय केन्द्रों पर होती है। वे उन्हें कमीशन देकर सस्ते में खरीदा हुआ अनाज सरकारी क्रय केन्द्रों पर बेंच देते है। क्रय केन्द्र के अधिकारी कर्मचारी आम किसानों को इतना परेशान करते हैं कि वे इस प्रतिस्पर्धा में बाहर निकल जाते हैं। वे अपनी खेती किसानी छोड़कर इतना जी उबाउ समय दे नहीं पातें हैं। फलतः आधे पौने दामों में अपना फसल बेंचकर किसान अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कंरते हैं। सरकारी पर्यवेक्षण व्यवस्था भी इतनी लचर होती है कि क्रय केन्द्रों को मनमानी करने से रोक नहीं पाती है। धान व गेहूं का भी पड़ताल पर्ची सिस्टम लागू किया जाय जिस तरह से गन्ने का पड़ताल होता है और उसकी पर्चियां गन्ना समिति से निर्गत होता है ठीक उसी प्रकार धान व गेहूं का भी पड़ताल किया जाना चाहिए और उसकी पर्ची किसानों को निर्गत किया जाना चाहिए इससे विचैलियों के शाषण से बचा जा सकता है। जब आम किसान की विक्रय क्षमता समाप्त हो जाय तो अन्त में बड़े किसानो और विचैलिये को विक्रय की छूट दिया जाना चाहिए। एक बार यह सिस्टम में आ जाएगा तो आगे यह रुटीन में आ जाएगा और न्यूनमत सर्मथन मूल्य की सारी समस्या ही दूर हो जाएगी।