मणिपुर ए छीजन

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नारी का विशेष स्थान
यदि ऐसा नहीं तो नही उत्थान
युगों – युगांतर से हम सब ने यह जाना
नारी ही वीरता की मूरत माना
नारी अबला नहीं सबला
अबला अक्स का ध्वंस कर बनी वीर बाला
सबला की गाथा , सुने ये इहलोक वाला
ऐसी उत्कृष्टता, ऐसी वीरता लागे मधुबनशाला
उस रात कहां तुम सोये थे
जिस रात्रि मैं रोई थी
कोई नही बचाने वाला
जब उन दरिंदों ने मेरी इज़्जत पर हाथ डाला
कहा गईं तुम्हारी मर्दानी , क्या सो गये थे
बोझ समझकर उन चीखों को ढो गये थे
कब तक सहन करेगी , ये लेकर कलंक काला
इन दरिंदो ने तो , बाला पर भी हाथ डाला
निर्वस्त कर हमारे वजूद का कत्ल कर डाला
वीरान हो गया हमारा शहर , एक पल में बिखर गए सब ख़्वाब हमारें
ऐसा छाया हर तरफ अंधेरा , हमारा इस्मत खत्म कर डाला
ये सरकार की अंधी आंखे, सिर्फ हमारे आबरू को झांके
सब ख़्वाब कुरेद डाला
मणिपुर ए अस्तित्व छीजन कर डाला
सुनो नारी इतना भी कमजोर नहीं
जब – जब धारण की काली, लक्ष्मीबाई की काया
लटका दी गले में कंकालों की साया
सुनो ए स्वार्थ के कीड़े !
इतना भी अधिकार कम नही
जो कली तक नहीं बन पायी
ओ आजादी कैसी जब मधुबन भी न बन पायी
छीन लो इस व्यर्थ आजादी को
जो अधिकार , सम्मान न दिला सके
ऐसी त्याग , परित्याग का क्या आशय
जो अपने उन्मुक्तों से ना मिला सके

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