—विनय कुमार विनायक
अगर जीना है
तो सबको खुश रखने के बजाए
सबके साथ खुश रहना होगा
माना जीवन एक नाटक है
स्वाभाविक है जीवन में नाटक हो जाना
मगर बुरा तब होता
जब जैसा तब तैसा खुद को नहीं दिखने देना
जिसके साथ रिश्ते में बंध गए
उसके साथ चाहिए हमेशा सामंजस्य बिठाना
कलह की वजह सिर्फ वो नहीं तुम भी हो
दूसरों को बदल पाना आसान नहीं
मगर आसान है खुद में बदलाव कर लेना
कुछ लोग खुद को धोखा देने में माहिर होते
दरवाजा लगाकर घरवालों से कलह करते
घर से बाहर निकलते ही
लोगों के बीच नाटकीय मुस्कान बिखेरते
ऐसे लोग बड़े शातिर होते
अपनी बुराई को छिपाने में बड़े माहिर होते
कुछ लोग ऐसे होते
जो बगैर किसी रिश्ते के अच्छे लगते
बहुत अच्छा लगता ऐसे लोगों से खुलकर बतियाना
ऐसे लोग भले होते किसी रिश्ते में बंधे नहीं भी होते
फिर भी हर रिश्ते से बड़े होते मुश्किल से मिलते
ऐसे लोगों को खोना नहीं भरसक बचाए रखना
ऐसे लोग हर मर्ज की दवा होते
मगर दूसरे के लिए मर्ज कभी नहीं होते
कुछ लोग ऐसे होते
जिनसे नजदीकी रिश्ते के बावजूद
उनकी उपस्थिति तनिक अच्छी नहीं लगती
अच्छा नहीं लगता उनके पास बैठना बतियाना
ऐसे रिश्ते बहुत नजदीकी होते
फिर भी मुश्किल होता ऐसे रिश्ते को निभाना
कुछ लोग ऐसे होते जो नहीं जानते झुकना
मगर चाहते सबको झुकाना
ऐसे लोग किसी काम के नहीं होते
किसी का सम्मान नहीं करते
हमेशा चाहते अपना काम बनाना
ऐसे लोगों से मुश्किल है सम्बन्ध निभाना
फिर भी सामंजस्य बिठाना
अगर सामंजस्य नहीं बिठा पाए
तो उसकी नहीं तुम्हारी भी होगी आलोचना!
—विनय कुमार विनायक