क्या मुरारी बापू द्वारा हिन्दू विवाह संस्कार के  विरुद्ध किया गया कृत्य निंदनीय हैं ??

प्रिय मित्रों/पाठों/विद्वान बंधुओं, पता नहीं क्यों, किन्तु सत्य हें की पूज्य मुरारी बापू ने बनारस के शमशान में फेरे करवा कर शादी करवाए | कल को तो मृत शरीर को भी श्मशान मे क्यो घर पर ही वेदी मे ही मुखाग्नि दे देगे | जब चिता अग्नि मे विवाह संस्कार हो सकता है तो घर पर विवाह वेदि मे अंतिम संस्कार मे क्या बुराई है ??

 

अब्राह्मण एवं वैदिक धर्म – संस्कृति से अनभिज्ञ लोग ही शायद ऐसी अशास्त्रीय बात कह सकते है जिनको धर्म शास्त्रों की परम्पराओ का ज्ञान न हो । शायद इसीलिए हमारे धर्म – शास्त्रों में केवल ब्राह्मण को ही व्यासपीठ पर बैठने व कथा करने का अधिकार दिया है । संस्कारो की पृष्ठभूमि शास्त्रों और ब्राह्मण गर्न्थो की ही नही बल्कि हमारे पूर्वजों के ज्ञान का सार है ऐसे में धर्म सिन्धु निर्णय सिन्धु जैसे गर्न्थो को ताक पर रखकर केवल सस्ती लोकप्रियता के नाम पर ऐसे कथन केवल ब्राह्मणों से द्वेष रखना और नई लकीर खीचने के नाम पर परम्पराओं का सरासर निरादर करना है ।। ऐसे लोगो का ऐसे विचारो की घोर निंदा होनी चाहिए

 

फिर ये शास्त्र ओर जितनी भी मर्यादा है वो सभी ढोग है  फिर ये आध्यातमिक संत समाज हमे किस दिशा मे ले जा रहे है |
प्रवचन कुछ करते कुछ  |वेदो मे चाहे देव हो या फिर मनुष्य या फिर सन्यासी सभी के लिये एक मर्यादा तय कि गई ओर उसमें रहना सभी का नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है | जब प्रवचन कर्ता ही नियम भंग कर तो क्या ??

 

कहने को मुरारी बापू पैसों को हाथ नहीं लगाते लेकिन इनकी कथा 3 करोड से कम में नहीं पड़ती है। अपनी कथाओं में पाकिजा फिल्म के गीत गाते नजर आते हैं। अभी ताजा-ताजा गिरनार में केस दर्ज हुआ हैं, लगता है दशा गडबड आ गई है, एक फिर केस दर्ज होने का अंदेशा हैं। अरे भाई कभी दूसरे धर्म के बारे में भी बोल कर दिखाओं मेरा मुरारी को खुला चैलेंज हैं, क्यों हिन्दू धर्म की मान्यताओं के पीछे पडा है। दूसरे धर्म की बात करते ही कथा- पांडाल उड जायेगे।

 

बेहद शर्मनाक सनातनी परंपरा को सूफ़ियत की ओर ले जाने का घ्रणित प्रयास जो अग्नि ही शुद्ध नही उसका क्या साक्षी भाव |
शुभ कार्य कि अग्नि और शमशान कि अग्नि में क्या अंतर है ? श्मशान अंतिम संस्कार हेतु है मुरारी बापू जी, वहां यन्त संस्कार, कपालफोड़ और फूल चुगने हेतु ही रहने दीजिए कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ।शिव स्वयं श्मशान वासी थे, लेकिन उनका विवाह भी एक यज्ञकुंड की अग्नि की परिक्रमा से हुए न कि शव चिता की परिक्रमा से……
यह बात तो स्पष्ट है कि दावत-पार्टियों के आदि हिन्दू समाज ने उस श्मशान घाट से वापिस आकर स्नान तो किया नही होगा… खैर मुझे अपेक्षा मुरारी बापू से भी नहीं है। निस्संदेह मुरारी बापू ने भी स्नान नही किया होगा।जैसा खाओ अन्न वैसा बनेगा मन । मन मे जो हो वो कह दो ,यही व्यास पीठो पर आसीन समानित स्वयं को देव वक्ता समझने की भूल करते है ।।
परिवर्तन ही विनाश करती है ,जहां शुभ लक्षणों की दुहाई हो वहां श्मशान विवाह ,पैशाच लोग कर भी सकते है।।

 

विवाह कि अग्नि देवताओं के होने की साक्षी है और शमशान कि अग्नि या चिंता की अग्नि प्रेततत्व कि साक्षी है | इस बात से अनभिज्ञ यह जोडा अज्ञानता वश प्रेतात्मा कि परिक्रमा कर जीवन में दुखों को आमंत्रित किया है | हमारे धर्म में हर सामाजिक कार्य के लिए एक सही स्थान का चयन किया गया है, अगर संत या गुरूजन इस तरह गलत बातें बताने लगे तो वह दिन दुर नही जब मंदिर, विधालय,शमशान आदि सभी जगह असतितव हीन हो जाएंगे

 

मैं मोरारी बापू इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं हूं ।हिंदू विवाह की जो परंपराएं वर्षों से चली आ रही है उस परंपरा के अनुसार विवाह शास्त्रोचित है। यह धर्माचार्य धर्म ग्रंथों से खींच खींच के अपने और अपने परिवार की रोटियां सेक रहे हैं । और आलोचना के लिए भी इन्हें हिंदू धर्म शास्त्र ही नजर आते हैं, हिंदू परंपराए नजर आती है। मोरारी बापू ने अपने एक ताजा व्यक्तव्य में यह कहा कि चिता की अग्नि से फेरे खा कर विवाह करने में कोई दोष नही है, कोई गलत नहीं है और उनके किसी सिरफिरे शिष्य ने इस बात को अंध भक्तों की तरह स्वीकार करते हुए चिता की अग्नि से फिर भी खा भी लिए। फिर आवश्यकता क्या है निर्णय सिंधु और धर्म सिंधु जैसे ग्रंथों की। मुरारी बापू को अपने प्रवचन में यह भी कहना चाहिए कि धर्म ग्रंथों को आग लगा दो मुझे समझ में नहीं आता कि मोरारी बापू किस नई परंपरा को जन्म देना चाह रहे हैं कबीर दास जी ने हिंदू धर्म परंपरा और ब्राह्मणों पर सदैव कुठाराघात किया कई जगहों पर तो उन्होंने बकायदा पंडित शब्द का उल्लेख कर कर ब्राह्मणों की तरफ संकेत किया। कबीर दास जी के एक शिष्य संत रामपाल जेल में है और मुझे लगता है कि दूसरे शिष्य की मति भ्रष्ट हो गई है। भगवान करे उनके अंध-” भक्त ” का वैवाहिक जीवन सुखद और शांतिपूर्ण हो ,लेकिन एक और सवाल ,क्या इस तरह की विवाह प्रक्रिया और स्थान के बाद अशुभ प्रभाव भी हो सकते हैं ??

 

मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई ,एक क्षण के लिए पूज्य बापू के फार्मूले पर विचार कर भी लिया जाए तो उस वक़्त क्या होगा जब एक ही शमशान घाट में इधर सामूहिक विवाह की खुशियां मंगल गान, ढोल ,नृत्य हो रहे हों और लोग नाच गा रहे हों उसी वक़्त कोई जवान मौत या किसी प्रियजन की मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार के लिए लोग आ जाएं, ऐसे में किस तरह संतुलन ,मैनेजमेंट बनाएंगे आदरणीय बापु

 

कथा-वाचकों का कार्य होता है कथा का वाचन करना, उसमे निहित भावों का अर्थ स्पष्ट करना एवम् तथ्यों को परिभाषित करना एवम् उसकी व्याख्या करना..
*विडम्बना यह है कि कथावाचकों को संत समझ लिया जाता है*।
इनकी वाणी से श्रोता मुग्ध होते हैं, भोले भाले श्रोता इनका अनुगमन करते हैं, और इनके अनुयायी बन जाते हैं, बड़ी संख्या में अनुयायियों को देख वह कथा वाचक भी स्वयं को संत मान बैठते हैं, दम्भ इनके मुंह पर स्पष्ट दिखाई देता है और ये अपने मूलकार्य कथावाचन के उद्देश्य से भटक कर धार्मिक समाज के ठेकेदार बन जाते हैं।
वेद एवम् उपनिषद के ज्ञान से दूर तप से तपे हुए ऋषि मुनियों की तपस्या से दूर ये कथावाचक स्वयं को संत बताते हैं एवम् शास्त्रोक्त ज्ञान पर भी टिप्पणियाँ करते हैं।

 

यही कारण है कि आज महाऋषि गौतम,कणाद, दधिचि,कपिल, शुक्र के इस संत परंपरा वाले राष्ट्र में आशाराम, राम रहीम रामपाल और अब ये वाले कथावाचक इस राष्ट्र की संत परंपरा को बदनाम कर रहे हैं।

 

 

4 COMMENTS

  1. इन मोरारी बापू तथा कलियुग में विदेशयात्रा करनेवाले पतित कथाकारो को कथाकारमण्डली ही कथाकारसम्मेलनो में सन्मानविभूषित कर समाज के सामने खडे करती हैं अतः दोष तो इन भारतीय कथाकारमण्डलीयो के मान्यपंडित आदि ही हैं।

  2. भारतीय संस्कृति में यह भावाभिब्यक्ति है कि “सबै भूमि गोपाल की” फिर यह शास्त्रीय गपोल क्यों?जिस भूमि में भगवान शिव और भगवती महाकाली बिराजती हों तथा जहां से सृष्टि के आरम्भ और अंत का निरन्तर क्रम चल रहा हो यही नहीं जहां जल कर सब कुछ समाप्त हो जाता हो ऐसी पावन पबित्र भूमि पर शास्त्रीय मत अर्थहीन हो जाते हैं।लौकिक मतमतान्तर होना अलग बात है किंतु सत्य का अनुसरण करने का साहस बिरले लोग ही कर पाते हैं।आदरणीय मुरारी बापू ने उन लोगों को आइना दिखाया है जो लोग लोक भय से शास्त्रों और परम्पराओं की दुहाई देकर सत्य का त्याग करते है।यह कार्य केवल मुरारी बापू जैसे सिद्ध और अभेद दृष्टि के संत ही कर सकते हैं क्यों कि वह सच्चे शिव भक्त हैं।लोगों को बापू जी के प्रति नकारात्मक भाव छोंड़ देना चाहिए और उनसे क्षमा मांगनी चाहिए।

  3. I am surprised, why thousand people of which 70% ladies, come to these discources while only a fistful come to knowledge seminars? Instead of blaming any Sant, I blame individual doing so. Can’t are not forcing people to come to their Pravachan.

  4. मुरारी बापू एक भ्रमित कथावाचक हैं . कुछ वर्ष पहले मेरठ में अपनी राम कथा में उन्होंने फ़रमाया कि राम यदि ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ हैं तो रावण भी ‘मंगल भवन’ तो है ही ! मेरठ में उन्होंने रावण की प्रशंसा के पुल बाँध दिए . उन्हें शायद किसी ने बहका दिया था कि ये नगर रावण की ससुराल था . उन्होंने अनुमान लगाया होगा कि मेरठ-वासी रावण-प्रेमी होंगे . अतः रावण की तारीफ में लगे कसीदे काढने . फिर एक बार वे इस फ़िल्मी गाने को गाने लगे –‘डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा, बिन पिए मै तो गिरा, मै तो गिरा, मै तो गिरा, हाय अल्ला, सूरत आपकी सुभानअल्लाह’ ! वे इसे प्रभु भक्ति का भजन बताने लगे . आत्म-मुग्ध इस कथित संत की लीला ये खुद ही जानें .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here