मथुरा कांड : सपा सरकार की कमी फिर उजागर

ramvriksh

सुरेश हिंदुस्थानी
मथुरा के जवाहर बाग में हुई घटना को लेकर यह बात तो सामने आ चुकी है कि उत्तरप्रदेश में सरकारी भूमि पर कब्जा करने का खेल राजनीतिक संरक्षण में चल रहा है। राजनीतिक दल भले ही इस नाकामी को आसानी से स्वीकार करने का सामथ्र्य नहीं रखते हों, परंतु यह राजनीतिक दलों की बहुत बड़ी कमजोरी ही है कि उसे अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए जमीन मिल जाती है। इस प्रकार की राजनीति देश के भविश्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। वास्तव में इस प्रकार के संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक दलों को राष्टभाव को ध्यान में रखकर ही बयानबाजी करना चाहिए।
मथुरा में अतिक्रमणकारियों से जमीन को मुक्त कराने के लिए प्रशासन ने जो आधा अधूरा रास्ता अपनाया, उसके कारण कई निर्दोष लोग मारे गए। इसे प्रदेश सरकार की सबसे बड़ी विफलता का पर्याय माना जा सकता है। क्योंकि प्रदेश सरकार के नेतृत्व में संचालित होने वाला प्रशासन तंत्र इस बात को अच्छी प्रकार से जानता है कि प्रदेश में भूमाफिया पूरी तरह से हावी हैं। मथुरा का हिंसा तांडव भी जमीन पर अवैध कब्जा हटाने को लेकर ही था। प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्वीकार किया है कि मथुरा में कार्रवाई के दौरान प्रदेश की पुलिस और खुफिया तंत्र की बड़ी ‘चूकÓ हुई है। कार्रवाई से पहले पुलिस की तैयारी दुरुस्त नहीं थी। मथुरा हिंसा कांड में पुलिस की लापरवाही सामने आना सपा सरकार के लिए नई बात नहीं है। इससे पहले भी मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान, बरेली हिंसा के दौरान पुलिस की कमजोरी सामने आ चुकी है। कहा जाता है कि इन दंगों में दंगाइयों ने सरकार के इशारे पर ही पूरा घटना को अंजाम दिया था।
इसमें सबसे बड़ी खामी यह मानी जा सकती है कि वर्तमान में प्रदेश में जिस प्रकार से सरकार का संचालन किया जा रहा है, उसमें यह पता ही नहीं चलता कि कौन सरकार का मुखिया है और किसके हाथ में कानून का राज है। प्राय: देखा जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव का पूरा परिवार ही सरकार का संचालन करता दिखाई देता है। सपा विधायकों और मंत्रियों के द्वारा भी कानून हाथ में लेने की खबरें आती रहती हैं। उत्तरप्रदेश की सपा सरकार पर असामाजिक तत्वों पर नकेल नहीं कसने के आरोप लगे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यह धारणा बन गई है कि जब-जब सपा की सरकार सत्ता में आती है, गुंडागर्दी बढ़ जाती है। पिछली बार जब सपा सत्ता में आई थी, तो पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बेदाग और पढ़े-लिखे छवि वाले अखिलेश यादव को प्रदेश की कमान सौंपी थी। उस समय उम्मीद जताई गई थी कि अखिलेश युवा हैं, नई सोच वाले हैं, तो एक अच्छी सरकार देंगे और इससे सपा की छवि भी सुधरेगी। लेकिन उनके करीब चार साल के शासन में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। प्रदेश की कानून व्यवस्था नहीं सुधरी, उल्टे बद से बदतर होती गई। अखिलेश भी परंपरागत सपाई ही साबित हुए हैं। वे कई मौके पर विफल साबित हुए। उनके शासन को देखकर लगता है कि सत्ता की असली कमान किसी और के पास है। मुलायम ने दिखाने के लिए कई बार अपने बेटे अखिलेश की सरकार की आलोचना की है। लेकिन यह उनकी राजनीति का हिस्सा थी।
जहां तक भगवान कृष्ण की भूमि मथुरा में जवाहर बाग की सरकारी भूमि पर कब्जे की बात है तो यह प्रमाणित हो चुका है कि इस जमीन पर रामवृक्ष यादव ने सन 2014 में अतिक्रमण किया था। इस समय प्रदेश में सपा सरकार का ही शासन था। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सपा के कार्यकाल में कार्यवाही के लिए दो वर्ष का लम्बा इंतजार क्यों किया गया। मथुरा के प्रशासन को भी यह भली भांति पता था कि रामवृक्ष यादव समानांतर सत्ता जैसी कार्यवाही का संचालन करता रहा है। तब शासन की कौन सी नीतियों के तहत उसे छूट प्रदान की गई। गाजीपुर के रहने वाले रामवृक्ष यादव ने अपने करीब तीन हजार सहयोगियों के साथ जवाहरबाग पर कब्जा किया था। वे जयगुरुदेव के चेला बताए जाते हैं। बाद में वे उनसे अलग हो गए थे। वे खुद को सुभाष चंदबोस के आजाद हिंद फौज के विचारों से प्रभावित बताते हैं और सत्याग्रही कहते हैं। उनकी मांगे भी अजीब है। पेट्रोल और डीजल एक रुपये प्रति लीटर की जाए। देश में सोने का सिक्का चले। आजाद हिंद बैंक करेंसी से लेन-देन हो। जवाहरबाग की 270 एकड़ जमीन सत्याग्रहियों को सौंप दी जाए। अंग्रेजों के समय के कानून खत्म किए जाएं। पूरे देश में मांसाहार पर बैन हो। रामवृक्ष के अवैध कब्जे से मथुरा प्रशासन तंग था, कई बार सरकार जमीन को मुक्त कराने की कोशिश की गई थी। लेकिन शासन की नाकामी की वजह से हर बार अभियान टांय-टांय फिस हो जाता था।
घटना के बाद भले ही प्रदेश सरकार के मुखिया उच्च स्तरीय जांच कराने की बात कह रहे हो। घटना के दोषियों को कड़ी सजा दिलाने का दावा कर रहे हो। लेकिन ऐसी घटनाओं के परिणाम क्या होते है। यह पूर्व में कई बार सामने आ चुका है। समय के साथ इन घटना को दबा दिया जाता है। पीडि़त परिवार चीखते चिल्लाते रहते हंै। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों के आंख कान बंद हो जाते हैं। घटना का दोषी रामवृक्ष यादव हालंाकि मारा जा चुका है। लेकिन वह मरने के पीछे तमाम ऐसे सवाल छोड़ गया है। जिनके जवाब प्रदेश सरकार को देने ही होंगे।
अगर मथुरा के पूरे घटनाक्रम पर नजर डाली जाये तो यह साफ पता चलता है कि यह घटना एक साजिश के तहत घटित की गयी है। समाचार चैनलों पर इस घटना से जुड़े समाचार आ रहे है। वह भी कहीं न कहीं प्रदेश सरकार के संदिग्ध क्रियाकलापों की ओर इशारा कर रहे हैं। दो वर्ष पूर्व जवाहर बाग को रामवृक्ष यादव द्वारा सत्याग्रह हेतु केवल दो दिनों के लिये लिया गया था। लेकिन उसके बाद उसने यहां कब्जा कर लिया। वाकायदा पक्के आवास बनवा लिये। बिजली, पानी कनेक्शन, राशन कार्ड आदि सारे काम होते रहे। जब भी यहां पसरे अतिक्रमणकारियों को हटाने के प्रयास हुये। लखनऊ से आने वाले फोन कॉल्स ने ऐसे प्रयासों पर पानी फेर दिया। जो जानकारियां आ रही है। उनसे पता चल रहा है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा कई बार जगह खाली करवाने के लिये यहंा की बिजली कटवायी गयी। लेकिन लखनऊ से बने दवाब के कारण पुन: बिजली आपूर्ति चालू कर दी जाती थी। यहंा के वांशिदे भी बताते हैं कि यहां होने वाली देश विरोधी गतिविधियों के बारे में वह समय-समय पर स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ शासन को भी सूचना देते रहे। लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। मथुरा के बीचों बीच देश विरोधी गतिविधियों का संचालन होता रहा। बड़ी संख्या में असलहों का जखीरा एकत्र किया जाता रहा। प्रशासन मूक दर्शक बना रहा। तो निश्चित तौर पर इसमें कहीं न कहीं सत्ताधारी दल की भूमिका संदिग्ध प्रतीत हो रही है। इस घटना ने पूरे प्रदेश को हिला दिया है। प्रदेश सरकार भले ही जांच करने की बात कर रही हो। लेकिन जांच में ईमानदारी बरती जायेगी। ऐसी उम्मीद करना बेकार है। लिहजा मथुरा के मामले की जांच केन्द्र सरकार को उच्च स्तरीय केन्द्रीय एजेंटों द्वारा करवानी चाहिये ताकि सारी स्थिति स्पष्ट हो सके। घटना में जो भी दोषी हो उसके किये की सजा मिल सके। इस मामले को प्रदेश सरकार के हवाले छोडऩा खतरनाक साबित हो सकता है।
उत्तरप्रदेश में सपा नेताओं और रामवृक्ष यादव की नजदीकियों के तार मिलने लगे हैं। मुलायम सिंह यादव के भाई व वरिष्ठ नेता रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव ने 2014 में फिरोजबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा। इस दौरान रामवृक्ष यादव ने करीब तीन हजार समर्थकों की टीम के साथ गांव-गांव, घर-घर जाकर जबर्दस्त चुनाव प्रचार किया। ये वे समर्थक थे जो कि जयगुरुदेव के समय से रामवृक्ष से जुड़े थे। अक्षय की जीत में रामवृक्ष ने अहम योगदान दिया। इस पर रामगोपाल भी रामवृक्ष के मुरीद हो गए। रामवृक्ष ने इस चुनाव प्रचार के कारण सपा नेता रामगोपाल से अपने मन मुताबिक काम करवाए।
मथुरा के कंश साबित हुए रामवृक्ष यादव ने केवल धरने के लिए जमीन की मांग की थी, लेकिन लगता ऐसा था कि वह जमीन धरने के लिए नहीं, बल्कि कब्जा करने के लिए ली थी। इसके लिए सपा सरकार के प्रभावी नेताओं से रामवृक्ष यादव ने अपने हिसाब से काम भी करवाए। रामवृक्ष को डर सताता था कि कभी कोई तेजतर्रार डीएम-एसएसपी आया तो उसके कब्जे की जमीन हाथ से निकल सकती है। इस पर रामवृक्ष की मांग पर रामगोपाल ने अपने करीबी डीएम और एसएसपी राकेश कुमार की तैनाती करा दी। ताकि कब्जा खाली कराने को लेकर कभी प्रशासन एक्शन न ले। यही वजह रही कि पिछले ढाई साल से रामवृक्ष व उसके गुर्गों ने धरने की आड़ में तीन सौ एकड़ जमीन पर कब्जा किए रखा। कभी प्रशासन की हिम्मत नहीं पड़ी की उस कब्जे को खाली करा ले।
अब प्रदेश शासन और सपा के नेता कितनी भी सफाई दें, लेकिन यह सच है कि रामवृक्ष यादव को सपा का संरक्षण मिलता रहा था। आज भी प्रदेश के किसी भी सपा नेता ने यह नहीं किया कि रामवृक्ष यादव सपा के नजदीक नहीं था। रामवृक्ष यादव को लेकर अब सपा के नेताओं में भी बयानबाजी होने लगी है। मुलायम सिंह के दोनों भाई रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव आमने सामने हैं। हो सकता है कि यह महज राजनीति हो, लेकिन मुलायम सिंह अब क्या जवाब देंगे।
सुरेश हिंदुस्थानी

1 COMMENT

  1. क्या आप मानते हैं कि इस पूरे प्रकरण में उत्तर प्रदेश की राजशाही का कोई लेना देना नहीं ? क्या वे सब निर्दोष हैं अथवा अनजान हैं – कया यही है हमारी निष्ठां और आस्था – किस के प्रति –

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