-आलोक कुमार-
कल जब दिल्ली के ‘मुख्य-संतरी’ और ‘आम आदमी नौटंकी पार्टी’ के संचालक अरविंद केजरीवाल को ‘जनता का रिपोर्टर’ कार्यक्रम (प्री-रिकोर्डेड) में टीवी पर बोलते सुना तो मुझे पक्का विश्वास हो गया कि अब कलयुग खत्म हो चुका है और ‘भट्ठ-युग’ अपने परवान पर है l मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो कर सार्वजनिक – मंच से मवालियों वाली भाषा में मीडिया को केजरीवाल जब लताड़ रहे थे ऐसा लगा रहा था जैसे कोई ‘सड़क-छाप लफ़्फुआ’ अपनी भड़ास निकाल रहा हो !! ‘भट्ठ-युग’ के बारे में सुधी – जन ठीक ही कहते हैं कि “इस युग में जनने वाले (जन्म देने वाले ) को भी गालियाँ ही सुनने को मिलेंगी और यही केजरीवाल ने किया , जिस मीडिया ने केजरीवाल और उनके कुनबे को जना उसे ही केजरीवाल ने जम कर कोसा और लताड़ा l”
केजरीवाल ने जब ये कहा कि “आज मीडिया ने उनकी पार्टी को खत्म करने की सुपारी ले रखी है और वो मीडिया को उसकी औकात बता देंगे तो इससे आम आदमी पार्टी और उसकी रोड-छाप संस्कृति का चित्रण सहजता से एक बार फिर हो गया l” केजरीवाल ने मीडिया के पब्लिक – ट्रायल की बातें की ,जो साफ तौर पर केजरीवाल की ‘तालिबानी मानसिकता’ को दर्शाता है l अगर मीडिया भी केजरीवाल के पब्लिक-ट्रायल की बातें करने लगे तो क्या केजरीवाल को मंजूर होगा ?
आज जब मीडिया की स्क्रूटनी में केजरीवाल और उनकी पार्टी है, नित्य उनकी, उनकी पार्टी और उनके तथाकथित सदाचारी नेताओं की कलई खुल रही है और उनकी हाँ में हाँ मिलाने से मीडिया किनारा कर रही है तो मीडिया केजरीवाल को बैरी नजर आने लगी ? पूर्व में यही केजरीवाल इसी मीडिया के तलवे चाटा करते थे l ऐसा नहीं है कि कोई राजनीतिक दल या राजनीतिक शख्सियत पहली बार मीडिया की स्क्रूटनी में है , गुजरात के मुख्यमंत्रित्वकाल से लेकर आज तक नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के रडार पर रहें हैं, लेकिन मोदी ने भी कभी ऐसी छिछली और अमर्यादित प्रतिक्रिया नहीं दी, राहुल गांधी के बारे में मीडिया ने क्या कुछ नहीं कहा – सुना लेकिन कभी भी राहुल गाँधी ने मीडिया को केजरीवाल सरीखी भाषा में कोसा नहीं l केजरीवाल को शायद इसका आभास नहीं है कि जनता ये बखूबी जानती – समझती है कि “ अमर्यादित व अभद्र भाषा का प्रयोग एक कमजोर एवं झुँझलाया हुआ व्यक्ति ही करता है l”
मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि “आज मीडिया का दामन भी दागदार है (ऐसा मैं एक अर्से से कहता आया हूँ), लेकिन इसके बावजूद मीडिया के दाग केजरीवाल और उनके कुनबे से कम ही काले हैं l” आज सड़सठ सीटों का अहंकार केजरीवाल व उनके भोंपूओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है, लेकिन शायद केजरीवाल और उनके भोंपू ये भूल रहे हैं कि जिस मीडिया ने उन्हें व उनके कुनबे को जना और फिर‘हीरो’ बना दिया उसी मीडिया को उन्हें और उनके बदमिजाज कुनबे को ‘जीरो’ बनाते भी देर नहीं लगेगी , लाख विसंगतियों के बावजूद इतनी ताकत तो मीडिया में अब भी बची है l
केजरीवाल के ऐसे आचरण व आख्यान से ये फिर से साबित होता दिखता है कि आम आदमी पार्टी एक दिशाहीन कुनबा है , जिस के पास जनता से मिले अपार समर्थन का जोश तो है, उससे उपजा हुआ अहंकार तो है मगर विरोध का सामना करने हेतू कोई मर्यादित राजनीतिक सोच एवं रणनीति नहीं है l शायद इस सच से केजरीवाल और उनके नजदीक के लोग भली -भाँति वाकिफ हैं और इसी को ध्यान में रखकर ऐसे वक्तव्यों की आड़ में सरकार के रूप में अपनी जिम्मेवारी से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश में लिप्त हैंl
जनता से ऐसा समर्थन मिलेगा इसकी उम्मीद शायद केजरीवाल एंड टीम को भी नहीं थी और आज जब मीडिया केजरीवाल को जन-आकांक्षाओं के तराजू पर तौल रही है तो उन्हें और उनके कुनबे को मीडिया का ये रवैया नागवार गुजर रहा हैl केजरीवाल व उनके कुनबे को ये नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति का इतिहास बताता है कि “मीडिया अर्श से फर्श तक भी पहुँचाती है और चुनावों में जीत के खुमार का भी ईलाज बखूबी करती है l “चुनाव जीतना और शासन करना दो भिन्न मुद्दे हैं , केजरीवाल एंड टीम में अनुभवहीन व अनुशासनहीन लोगों की भीड़ ही ज्यादा है l देश और प्रदेश चलाने का दायरा बहुत ही व्यापक है l यहाँ ये नहीं भुलाया जा सकता कि ये उन लोगों का ही जमावड़ा है जिन्होनें अन्ना के जन- आन्दोलन को बिखेर कर रख दिया था , अन्ना के आंदोलन को हाइजैक कर मीडिया को ये कहने को मजबूर किया था कि “ ना खुदा मिला ना बिसाले सनमl”
ये द्रष्टव्य है कि केवल चुनावों में बेहतर प्रदर्शन से व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आज के दौर का तकाजा है कि मीडिया के माध्यम से जनता के साथ संवाद स्थापित कर जनहित की नीतियों को अमली -जामा पहनना होगा , नहीं तो ” आप की छाप “ का निशान मिट जाएगा l वैसे भी भारत में “टिकाऊ झाड़ू ” नहीं मिलता l क्या केजरीवाल के पास इतनी भी समझ नहीं है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के बारे में ऐसी बयानबाजी से अप्रिय स्थिति पैदा हो सकती है ?
क्या केजरीवाल को इसका तनिक भी भान नहीं है कि मीडिया कर्मियों का भी अपना एक बौद्धिक और सामाजिक स्तर होता है और सार्वजनिक पद पर रहने वाला कोई भी व्यक्ति मीडिया को न तो बाहर कर सकता है और न ही उसकी अनदेखी कर सकता है ? ऐसा नहीं है कि दिल्ली की सत्ता की रजिस्ट्री सदैव के लिए केजरीवाल और उनकी पार्टी के नाम हो गई है, पाँच साल बाद फिर चुनाव होंगे और यकीन मानिए उस समय यही केजरीवाल फिर से इसी मीडिया के तलवे चाटते नजर आएंगे l
अरविंदकेजरीवाल या आआप मीडिया की उपज नहीं है.मीडिया ने केवल अपना टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए उनका साथ दिया है.आज भी आआप का न्यूज वैल्यू कम नहीं है,क्योंकि आआप की सरकार दिल्ली में जो भी कर रही है,वह कम नहीं है,पर अरविन्द केजरीवाल ने जब से अम्बानी के विरुद्ध मोर्चा संभाला है,तब से मीडिया उनके पीछे पड़ गयी है और तब मीडिया को आआप के बारे में ऐसे समाचार को भी चटकारे बना कर पेश करना पड़ रहा है,जिसका साधारणतः कोई न्यूज वैल्यू नहीं है,पर एक बात मीडिया ही नहीं सेल्फ स्टाइल्ड बुद्धजीविओं को भी याद रखना होगा कि आआप उनलोगों के बल पर नहीं खड़ी है.उसका वास्तविक गढ़ वहां हैं,जहाँ सताए हुए लोग हैं.जहां वे लोग हैं जिनको तथाकथित सभ्य समाज ने हमेशा अपने से नीचे समझा है. मेरी पहली टिप्पणी इसी की तरफ इशारा करती है और जब तक अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार उस समूह के उत्थान के लिए कम करती रहेगी,हम और आप चाहें तो भी आआप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते और न उसको आगे बढ़ने से रोक सकते हैं.
मेरे कुछ प्रश्न हैं,जिनका उत्तर अपेक्षित है:
१.क्या एक नई पार्टी का बहुमत वे लोग पचा नहीं पा रहे हैं,जिन्होंने केजरीवाल के २०१४ के इस्तीफे के बाद आआप का मर्सिया लिख दिया था?
२.क्या यह सत्य नहीं है कि भाजपा यानि नमो की पार्टी दिल्ली में पराजय के अपमान को पचा नहीं पा रही है?
३.क्या यह सत्य नहीं है कि २०१३ में जबसे अरविन्द केजरीवाल ने मुकेश अम्बानी केविदेशी खातों का खुलासा किया,तब से मीडिया उनके खिलाफ हो गयीऔर अब तक यह सिलसिला बंद नहीं हुआ?
४.क्या यह सत्य नहीं है कि आआप या अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध लिखने या वक्तव्य देने वाले अधिकतर लोग नमो भक्त हैं?
५.आआप की सरकार दिल्ली में क्या कुछ भी अच्छा काम नहीं कर रही है?
६.क्या किसी ने यह जानने की चेष्टा की है कि इतने कम समय में हीं आआप की सरकार ने सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा बदलने के सिलसिले में क्या काम किया है?
७.क्याकिसी ने यह जानना चाहा है कि आआप की सरकार आने के बाद सरकारी अस्पतालों के काम काज में कुछ सुधार हुआ है या नहीं?क्या सरकारी अस्पतालों में पहले की तरह आज भी दलाल दीखते हैं?
८.क्या ट्रांसपोर्ट विभाग में जहाँ लाइसेंस दिलाने के लिए दलालों की भीड़ लगी रहती थी,आज कोई दलाल दीखता है?
९.ऐसेअन्य बहुत से प्रश्न हैं, पह्ले आपलोग दिल्ली की जमीनी हकीकत देखिये औरदेखिए कि अपार अड़चनों के बावजूद आआप की सरकार किस तरह दिल्ली की हालत सुधारने में लगी हुई और पिछली सरकारों या अन्य राज्य से उसकी निष्पक्षता से तुलना कीजिए.
बिना वजह गाल बजाने और हवा में तीर छोड़ने से कोई लाभ नहीं.
नमो के समर्थकों को तो आआप की सरकार और अरविन्द केजरीवाल का एहसान मंद होना चाहिए कि उनलोगों ने तीन सीट जीतने वाली पार्टी को विधिवत विपक्ष का दर्ज दे दिया.क्या पहले कभी ऐसा हुआ था?
मैं आपसे सहमत नहीं हूँ :–“बिकी मीडिया ( 18 चैनल्स को खरीदकर रिलायंस ने पत्रकारिता की अंतिमक्रिया कर दी है ) के पक्ष में तर्क हमें कुतर्क की ओर ले जाते हैं ” : —– यदि हमारी तकदीर अच्छी होगी तो आई ए एस कैडर के केजरीवाल भारत को प्रधानमंत्री के रूप में मिलेंगे – भारत के पहले आईएएस नेताजी को तो भ्रष्टाचारियों ने खत्म ही करवा दिया है अब केजरीवाल के पीछे पड़े हैं —
रिलायंस जाम्नगर गुजरात में नवागाँव की महिला सरपंच झाला ज्योत्सना बा (9824236692) को 23-2-15 को अपने पूरे परिवार के साथ रिलायंस कम्पनी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या का प्रयास करना पड़ता है, गुजरात पुलिस ने अभी तक रिपोर्ट नहीं लिखा है ,सरपंच का दोष ये है कि उन्होने अपने गायों के चराने का चरागाह रिलायंस को नहीं दिया है, आत्महत्या से पहले उन्होंने स्थानीय थाने से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र भी लिखा था पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है ————–ये है मॉडल राज्य गुजरात के किसानों की और महिला कल्याण की सच्चाई ——— 18 चैनल्सको खरीदकर रिलायंस ने पत्रकारिता की अंतिम क्रिया कर दी है ———
किसान बंदूक उठाये तो नक्सली, आत्महत्या करे तो कायर !
सत्तातंत्र का फायर – किसान बंदूक उठाये तो नक्सली, आत्महत्या करे तो कायर गजेन्द्र की ख़ुदकुशी के बहाने ही सही मगर किसानों की मौत पर सवा…
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केजरीवाल वह कलियुगी संतान बन गए हैं जो अपने पांवों पर कड़ी हो कर अपने माता पिता को कोसती है , वह भूल गए हैं कि वे किसकी उपज हैं अब इसका इलाज तो अब कानून ने भी कर दिया है जो माता पिता को उनका हक़ दिल देता है , फिर यह तो मीडिया है खुद ही सक्षम है जैसे यह सिर पर बैठाता है वैसे ही गिराता भी है और अब यही होना है , दरअसल मीडिया का काम भी यही ही है