दक्षिण पूर्वी एशिया में दूध का विवरण बकरी और भेंड़ के दूध से मिलता है | इसका समय ईसा से 7 से 8 हज़ार वर्ष पूर्व का है | यूरोप में दूध का विवरण ईसा से 4 से 5 हज़ार वर्ष पूर्व से मिलता है | दूध ऊर्जा युक्त आहार है | दूध शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है | दूध में एमिनो एसिड एवं फैटी एसिड मौजूद होते हैं | दूध संपूर्ण आहार है | दूध के बिना जीवन अधूरा है | दूध एक अपारदर्शी सफेद द्रव है जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनाया जाता है। नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है। दूध में मौजूद संघटक हैं – पानी, ठोस पदार्थ, वसा, लैक्टोज, प्रोटीन, खनिज वसा विहिन ठोस। अगर हम दूध में मौजूद पानी की बात करें तो सबसे ज्यादा पानी गधी के दूध में 91.5% होता है, घोड़ी में 90.1%, मनुष्य में 87.4%, गाय में 87.2%, ऊंटनी में 86.5%, बकरी में 86.9% होता है। दूध में कैल्शियम ,मैग्नीशियम ,ज़िंक,फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन ए,विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12 ,प्रोटीन आदि मौजूद होते हैं |गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। गाय का दूध पतला होता है | जो शरीर मे आसानी से पच जाता है |
सुकुमार डे के अनुसार : दूध की परिभाषा “दूध एक संपूर्ण, स्वच्छ, लैक्टियल स्राव है जो स्वस्थ दुधारू पशुओं की पूरी तरह से दूध पिलाने से प्राप्त होता है, ठीक से खिलाया और रखा जाता है, जो कि 15 दिनों के भीतर प्राप्त करने के बाद और शांत होने के 5 दिन बाद प्राप्त होता है। पोषण के दृष्टिकोण से दूध हमारे लिए सबसे साफ सुथरा भोजन है। खाद्य आपूर्ति में शरीर को तीस से अधिक विशिष्ट सामग्रियों की आवश्यकता होती है। एक भी खाद्य पदार्थ सभी की आपूर्ति नहीं करता है, लेकिन दूध लगभग सभी की आपूर्ति करता है।”
आयुर्वेद के अनुसार गाय के ताजा दूध को ही उत्तम माना जाता है। पुराणों में दूध की तुलना अमृत से की गई हैं, जो शरीर को स्वस्थ मजबूत बनाने के साथ-साथ कई सारी बीमारियों से बचाता है। अथर्व वेद में लिखा है कि दूध एक सम्पूर्ण भोज्य पदार्थ है. इसमें मनुष्य शरीर के लिए आवश्यक वे सभी तत्व हैं जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है| ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 71 वें सूक्त के छटवें मन्त्र में कहा है : गोषु प्रियम् अमृतं रक्षमाणा ( ऋगवेद 1/71/6 ) इसका अर्थ है गोदुग्ध अमृत है यह बीमारियों (रोगों) से हमारी रक्षा करता है |चरक शास्त्र संसार के प्राचीनतम चिकित्सा शास्त्रों में गिना जाता है | चरक सूत्र स्थान 27/224 (1.सूत्रस्थानम् ,27. अन्नपानविध्यध्याय (सेक्शन/अनुभाग/मंडल -1, चैप्टर/अध्याय/सूक्त 27, ऋचाएं / वर्स 217-224) में दूध के गुणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है – स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम् | गुरु मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पयः || 217 || चरक 27/217 , अर्थात गाय का दूध मीठा, ठंडा, शीतल, नर्म, चिपचिपा, चिकना, पतला, भारी, सुस्त और स्पष्ट – इन दस गुणों से युक्त है | इस प्रकार यह समानता के कारण समान गुणों वाले ओजस को बढ़ाता है। इसलिए गाय के दूध को शक्तिवर्धक और रसना के रूप में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। गाय की तुलना में भैंस का दूध भारी और ठंडा होता है।अतएव गाय के दूध को पचाना आसान होता है | ऊंट का दूध खुरदरा, गर्म, थोड़ा खारा, हल्का होता है और वात कफ के लिए निर्धारित किया जाता है | एक-खुर वाले जानवरों (जैसे घोड़ी, गधी आदि) का दूध ताकत, स्थिरता को बढ़ावा देता है| यह गर्म, थोड़ा खट्टा, खारा, खुरदरा, हल्का होता है और चरम में वात को कम करता है। बकरी का दूध कसैला-मीठा, ठंडा, कसैला, हल्का होता है | यह आंतरिक रक्तस्राव, दस्त, अपव्यय, खांसी और बुखार को दूर करता है। भेड़ों का दूध हिचकी और अपच पैदा करता है | यह गर्म होता है और पित्त और कफ को बढ़ाता है। हाथियों(मादा) का दूध ताकत को बढ़ावा देता है | यह भारी और अच्छा स्टेबलाइजर है। गाय का दूध बदन की ख़ूबसूरती और तंदुरुस्ती बढाने का बड़ा जरिया हैं | गाय का दूध और घी सेहत के लिए बहुत जरूरी हैं | गाय का दूध मनुष्य को बीमारियों से दूर रखता हैं |
भैंस के दूध में प्रति ग्राम 0.65 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। भैंस के दूध में गाय के दूध की तुलना में 92 प्रतिशत कैल्शियम, 37 प्रतिशत लौह और 118 प्रतिशत अधिक फॉस्फोरस होता है। इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के अनुसार गाय के दूध से बेहतर भैंस का दूध होता है। उसमें कम कोलेस्ट्रॉल होता है और मिनरल अधिक होते हैं। भैंस का दूध वजन और मांसपेशी मजबूत करता है। आयुर्वेद के अनुसार जो लोग अखाड़े/जिम मे जाते हैं उनके लिए सबसे बेस्ट है। बाजार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है।पैक्ड दूध- मदर डेयरी, अमूल, पराग, नमस्ते इंडिया, श्याम डेरी, जैसी कंपनियां सप्लाई करती हैं। इसमें विटामिन ए, लौह और कैल्शियम ऊपर से भी मिलाया जाता है। इसमें भी कई तरह के जैसे फुल क्रीम, टोंड, डबल टोंड और फ्लेवर्ड मिल्क मिलते हैं। फुल क्रीम में पूर्ण मलाई होती है, अतः वसा सबसे अधिक होता है। इन सभी की अपनी उपयोगिता है,पर चिकित्सकों की राय अनुसार बच्चों के लिए फुल क्रीम दूध बेहतर है तो बड़ों के लिए कम फैट वाला दूध। गाय के दूध का प्रचलन मनुष्य ने तब शुरू किया जब वह कबीलों का जीवन छोड़कर एक स्थान पर रह कर कृषि करने लगा | दूध में चीनी एक लैक्टोज़ के नाम से होती है | बच्चों में लैक्टेज एंजाइम द्वारा लैक्टोज़ को हज़म करने की शक्ति होती है | लैक्टोज़ को हज़म करने की शक्ति वयस्कों में नहीं होती थी | आगे चलकर बाद में वयस्कों में भी लैक्टोज़ को तोड़ने की शक्ति विकसित हो गई | वयस्क भी दूध का उपयोग करने लगे | दक्षिण – पूर्वी देशों में लैक्टोज़ को तोड़ने के लिए लैक्टेज़ एंजाइम नहीं होता है | अर्थात ऐसे लोगों में दूध को हज़म करने की शक्ति नहीं होती है | जब की उत्तर भारत के लोगों , यूरोपियन ,अमेरिकन, रसियन आदि लोगों में वयस्क मनुष्यों द्वारा दूध को पचाने की शक्ति होती है | दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए लुई पास्चर के पाश्चराइजेशन सिद्धांत का उपयोग किया गया | पाश्चराइजेशन, गर्मी-उपचार प्रक्रिया जो कुछ खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में रोगजनक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है। दूध का पाश्चुरीकरण, व्यापक रूप से कई देशों में किया जाता है| दूध को पाश्चराइज करने के लिए अधिक समय और कम तापमान की आवश्यकता होती है जिसमे लगभग 63 डिग्री सेंटीग्रेड (145 डिग्री फारेनहाइट) तापमान और 30 मिनट तक का समय होता है | या वैकल्पिक रूप से, कम समय और उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, जिसमे 72 डिग्री सेंटीग्रेड (162 डिग्री फारेनहाइट ) तापमान और 15 सेकंड तक का समय होता है | दूध में पाए जाने वाले मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस और गैर-बीजाणु बनाने वाले अन्य रोग-रोधी सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए समय और तापमान आवश्यक है। पाश्चराइजेशन प्रक्रिया से दूध में स्थित हानिकारक जीवाणुओं को ख़त्म करने में आसानी होती है | दूध के व्यवसाय में 19 वीं सदी के अंत तथा 20 वीं सदी के शुरू में उद्योगिकीकरण ने बहुत तेजी से प्रगति की है | दूध को प्लांट में जाने पर उसको सबसे पहले होमोजेनाइज़ करते हैं जिससे दूध के वसायुक्त कण एकसमान साइज के हो जाएं | इस प्रक्रिया को होमोजेनाइज़ेशन (समांगीकरण) कहते हैं | दूध के प्रकार- (क) सम्पूर्ण दूध- स्वस्थ पशु से प्राप्त किया गया दूध जिसके संघटन में ठोस परिवर्त्तन न किया गया हो, पूर्ण दूध कहलाता है। इस प्रकार के दूध को गाय, बकरी, भैंस की दूध कहलाती है। पूर्ण दूध में वसा तथा वसाविहीन ठोस की न्यूनतम मात्रा गाय में 3.5% तथा 8.5% और भैंस में 6% तथा 9%, क्रमशः रखी गई है।(ख) स्टेण्डर्ड दूध- यह दूध जिसमें वसा तथा वसाविहीन ठोस की मात्रा दूध से क्रीम निकल कर दूध में न्यूनतम वसा 4.5% तथा वसाविहीन ठोस 8.5% रखी जाती है।(ग) टोण्ड दूध- पूर्ण दूध में पानी तथा सप्रेश दूध पाऊडर को मिलाकर टोण्ड दूध प्राप्त किया जाता है जिसकी वसा 3% तथा वसाविहीन ठोस की मात्रा 8.5% निर्धारित की गयी है।(घ) डबल टोण्ड दूध- इस दूध में वसा 1.5% तथा वसाविहीन ठोस 9% निर्धारित रहती है।(ड.) रिक्न्सटिट्यूटेड दूध- जब दूध के पाऊडर को पानी में घोल कर दूध तैयार किया जाता है जिसमें 1 भाग दूध पाऊडर तथा 7 से 8 भाग पानी मिलाते हैं तो उसमें रिकन्सटिट्यूटेड दूध कहते हैं।(च) रिकम्बाइण्ड दूध- यह दूध जो बटर आयल, सप्रेस दूध पाऊडर तथा पानी की निश्चित मात्राओं को मिलाकर तैयार किया जाता है उसे रिकम्बाइण्ड दूध कहते हैं। जिसमें वसा की मात्रा 3% तथा वसाविहीन ठोस की मात्रा 8.5% निर्धारित की गई है।(छ) फिल्ड दूध- जब पूर्ण दूध में से दुग्ध वसा को निकाल कर उसके स्थान पर वनस्पति वसा को मिलाया जाता है उसे फिल्ड दूध कहते हैं | दूध से निम्न खाद्य पदार्थ बनते हैं खोआ,श्रीखंड,मलाई,मक्खन,घी,दही,योगहर्ट,पनीर,चीज़,रबड़ी,आइस्क्रीम आदि | दुग्ध उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर स्थित है। विश्व दुग्ध दिवस 2001 से प्रत्येक वर्ष 1 जून को मनाया जाता है। इस बार विश्व दुग्ध दिवस की 20 वीं वर्षगांठ है | यह दिन डेयरी सेक्टर से जुड़े गतिविधियों पर ध्यान देने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन लोगों का दूध पर ध्यान केंद्रित करने और दूध व डेयरी उद्योग से जुड़ी गतिविधियों को प्रचारित करने का अवसर प्रदान करता है। दूध की महत्वता के माध्यम से विश्व दुग्ध दिवस इस उत्सव के द्वारा बड़ी जनसंख्या पर असर डालता है। जंहा पूरा विश्व कोरोना (कोविड-19) महामारी से जूझ रहा है | अभी तक न तो कोई सटीक दवा बन पाई है और न ही कोई वैक्सीन | इस महामारी में जंहा कोई आस नहीं दिख रही वंहा हल्दी वाले दूध ने लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाया है | इस महामारी में लोगों ने दूध और हल्दी का प्रयोग कर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ाया है | जैसा कहा जा रहा है की इस महामारी से लड़ने में बचाव/सावधानियां और रोग प्रतिरोधक क्षमता अहम् भूमिका निभाता है |भारत में दूध का उत्पादन 14 करोड़ लीटर लेकिन खपत 64 करोड़ लीटर है |इससे साबित होता है की दूध में मिलावट बड़े पैमाने पर हो रही है | दक्षिणी राज्यों के मुकाबले उत्तरी राज्यों में दूध में मिलावट के ज्यादा मामले सामने आए हैं। दूध में मिलावट को लेकर कुछ साल पहले देश में एक सर्वे हुआ था। इसमें पाया गया कि दूध को पैक करते वक्त सफाई और स्वच्छता दोनों से खिलवाड़ किया जाता है। दूध में डिटर्जेंट की सीधे तौर पर मिलावट पाई गई । यह मिलावट सीधे तौर पर लोगों की सेहत के लिए खतरा साबित हुई । इसके चलते उपभोक्ताओं के शारीरिक अंग काम करना बंद कर सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दूध में मिलावट के खिलाफ भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी की थी और कहा था की अगर दूध और दूध से बने प्रोडक्ट में मिलावट पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश की करीब 87 फीसदी आबादी 2025 तक कैंसर जैसी खतरनाक और जानलेवा बीमारी का शिकार हो सकती है। हमे यह नहीं भूलना चाहिए की “राष्ट्र के समुदाय का स्वास्थ्य ही उसकी संपत्ति है |”अतएव विश्व दुग्ध दिवस पर भारत को दूध में होने वाले मिलावट के बारे में सोचना होगा और इससे उबरने के लिए भारत सरकार ठोस रणनीति बनाने की जरुरत है | जिससे भारत के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो सके और शुद्ध दूध लोगों तक पंहुच सके | यदि दूध मिलावट रहित है तो यह कहने में आश्चर्य नहीं होगा की दूध वैश्विक भोजन का आधार है | दूध पर निर्भरता वैश्विक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करती है | अतएव दूध पर निर्भरता वैश्विक स्वास्थ्य का द्योतक है |
लेखक
डॉ शंकर सुवन सिंह