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खिचड़ी भाषा अंग्रेज़ी – डॉ. मधुसूदन

प्रवेश: मैंने अंग्रेज़ी को खिचड़ी भाषा कहा, पर मैं बता दूँ, कि, जॉन मॅक्व्हर्टर जो भाषा विज्ञान का प्रॉफेसर रह चुका है, वह तो उसे Magnificient Bastard Tongue कहता है।

उसने अंग्रेज़ी भाषा को ही विषय बनाकर, एक पुस्तक लिखी है, और उसका नाम है “Our Magnificient Bastard Tongue.”

अमरिका की युनिवर्सीटी ऑफ़ कॅलिफोर्निया में वह भाषा विज्ञान का प्रोफेसर रहा है।

तो मेरा अंग्रेज़ी को, “खिचडी भाषा अंग्रेज़ी” कहना बडी उदारता का द्योतक है।

 

(१) अंग्रेज़ी भाषा का आदर्श?

दूसरी ओर अंग्रेज़ी को आदर्श मान कर, हिन्दी को अंग्रेज़ी की भांति, विशेष रूप से अंग्रेज़ी से ही शब्द ग्रहण करते हुए समृद्ध करने के लिए उतावले हिन्दी-हितैषियों का एक बहुत बडा वर्ग भी है। वे सोचते हैं कि जैसे अंग्रेज़ी संसार के सारे शब्दों को लेकर समृद्ध (?) हुयी है, वैसे हिन्दी भी समृद्ध हो सकती है।

 

(२)अंधाधुंध अंग्रेज़ी

आजकल जहाँ वहाँ, अंधाधुंध अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हिन्दी वार्तालाप में किया जाता है।

और ऐसा करनेवाले अपने आप को प्रगत मानते हैं। ऐसे उदाहरण आजकल बहुत सामान्य हो चुके हैं। प्रश्न हिन्दी में पूछा गया हो, पर उत्तर तो निर्लज्जता की सारी सीमाएं लांघकर अंग्रेज़ी शब्दों का उपयोग कर हिंग्लिश में ही दिया जाता है; वह भी अपने आप को बडा शिष्ट मानकर ।

(३) निराशाजनक स्थिति

रोज सबेरे यहां हिन्दी समाचारों का प्रारंभ, अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के नहीं, पर, “इंटर्नॅशनल व्युअर्स” के स्वागत से होता है। पडौसी देश के समाचार नहीं, पर “नेबरिंग कन्ट्रीज़ के न्यूज़” भी होते हैं। उन्निस सौ बासठ को-“नाईन्टीन सिक्स्टी टु” कहा जाता है। फिर “वर्ल्ड न्यूज़” भी होते हैं।

मेरी कठिनाई कुछ ऐसी भी है, कि शुद्ध हिन्दी को सुनकर हिन्दी सिखने वाले छात्रों के लिए किस समाचार का उल्लेख करें? यहां जो छात्र शब्दों का उच्चारण सुनकर मानक या शुद्ध हिन्दी सिखना चाहता है, उसे क्या बताएं? एक भी तो स्रोत नहीं है। बहुत निराशाजनक अवस्था है यह। भारत से भी कोई विशेष अपेक्षा नहीं रखता मैं, पर दैनंदिन समाचारों से कोई आशाजनक परिस्थिति भी तो दिखाई नहीं देती।

(४) पर्याप्त भारतीय शब्द उपलब्ध

अंग्रेज़ी के अनेक पुरस्कर्ताओं को शायद पता नहीं है, कि कभी कभी, हम जिन अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग स्वीकारते हैं, उनके लिए पर्याप्त भारतीय शब्द उपलब्ध होते हैं। कभी कभी तो, भारतीय शब्द का अंग्रेज़ीकरण किए गए शब्द को वापस हिन्दी में अंग्रेज़ी मानकर लिया जाता है।

दो उदाहरणों से यह बिन्दु विशद करना चाहता हूँ।

(क)

एक अंग्रेज़ी शब्द है, ट्रॅजेडी—इस शब्दका हिन्दीकरण किया गया त्रासदी।

वैसे ट्रॅजेडी का अर्थ है कोई दुःखद अंतवाला नाटक। अब करुणा, शोक, दुःख ऐसे शब्द हमारी भाषा परम्परा में उपलब्ध है। इनके आधार पर करूणांतिका, दुःखांतिका, शोकान्तिका ऐसे तीन तीन शब्द सरलता से रचे जा सकते हैं। ये शब्द गुजराती और मराठी में चलते हैं। और भी हो सकते हैं। ऐसा होते हुए जैसे कि हमारे पास शब्दों की कमी हो, ऐसा मानकर हम त्रासदी शब्द अपनाए हुए हैं।

वास्तव में करूणांतिका, दुःखांतिका, शोकान्तिका —तीनो शब्द गुणवाचक, अर्थवाचक, अर्थबोधक इत्यादि है। एक के बदले तीन तीन शब्द सरलता से प्रस्तुत हो गए।

ऐसे अनेक शब्द हैं, जो गुजराती मराठी बंगला तेलुगु कन्नडा इत्यादि में चलते हैं।

अपनी भाषाओं से ही शब्द स्वीकारने पर हम उन प्रदेशों को भी सन्तुष्ट कर सकते हैं, यह एक विशेष लाभ है।

(ख)

उसी प्रकार से दूसरा शब्द है, मी‍डिया। अब देखिए माध्यम शब्द हमारी परम्परा का है।

इसका अंग्रेज़ी (medium) मीडियम बना। इस मीडियम का बहुवचन मीडिया बना।

और अब हमने क्या किया? इस मीडिया शब्द को अपना लिया।

अर्थात्, हमारा ही माध्यम शब्द त्याग कर, मानकर कि हमारे पास शब्द नहीं है, ऐसी भ्रांत धारणा से मीडिया शब्द अपनाया गया है।”संचार माध्यम” भी हो सकता था।

(५) उधारी की भाषा अंग्रेज़ी

अंग्रेज़ी ने अनेक भाषाओं से उधार ले ले कर खिचड़ी भाषा बना डाली है। इसे कोई आदर्श ना समझें।

१५ वी शती में पर्याप्त मात्रा में. युनानि, लातिनी, और फ्रान्सीसी मूल के शब्द अलग अलग स्रोतों से, उधार लिए गए थे। युनानी शब्द युनानी स्रोतों से, और लातिनी की मध्यस्थी से भी लिए गए। लातीनी शब्द फ्रान्सीसी स्रोतों से, और सीधे लातीनी से भी लिए गए।

फिर स्पॅनिश, हिब्रु, नॉर्वेजियन, फिनीश, रूसी, हन्गेरिय, झेक, पुर्तगाली, तुर्की, हिन्दी, फारसी, तमिल, चीनी, जपानी, मलय, पॉलिनिशियन, अफ़्रिकन, करिबियन ऐसी अनेक भाषाओं से शब्द स्वीकारे गए। तो बिना नियम की उद्दंड भाषा बन गयी। अर्थ लगाना, उसे नियमों में बांधना कठिन हो गया। निम्न नियम हीनता दर्शाने वाली एक मनोरंजक रचना देखिए।

Caroline Hoon की यह शोध-रचना है।

We’ll begin with a box, and the plural is boxes;

but the plural of ox became oxen not oxes.

 

One fowl is a goose, but two are called geese,

yet the plural of moose should never be meese.

 

You may find a lone mouse or a nest full of mice,

yet the plural of house is houses, not hice.

 

If the plural of man is always called men,

why shouldn’t the plural of pan be called pen?

 

If I spoke of my foot and show you my feet,

and I give you a boot, would a pair be called beet?

 

If one is a tooth and a whole set are teeth,

why shouldn’t the plural of booth be called beeth?

 

We speak of a brother and also of brethren,

but though we say mother, we never say methren.

 

Then the masculine pronouns are he, his and him,

but imagine the feminine, she, shis and shim

(६) उच्चारण और व्याकरण की समस्या

इसके फलस्वरूप सबसे बडी समस्या खड़ी हुयी, उनके उच्चारण की। क्योंकि अन्यान्य भाषाओं में उनका जो उच्चारण होता था, वह और जैसा उच्चारण अंग्रेज़ी में होने लगा, उसमें कठिनाई खडी हो गयी।

इसका मूल कारण अंग्रेज़ी लिपि शुद्ध रूपसे उच्चारानुसारी नहीं है। वह स्पेलिंग के अनुसार लिखी जाती है। फिर कोई शब्द यदि फ्रान्सीसी मूल का रहा, तो फ्रान्सीसी जैसा मृदू उच्चारण स्वीकारा गया। जर्मन शब्दों का जर्मन उच्चारण स्वीकारा गया। युनानी और लातिनी के भी अलग उच्चारण स्वीकारे गए।

एक और उदाहरण देखिए।निम्न पुरानी अंग्रेज़ी का अर्थ आज कोई अंग्रेज़ी का प्रध्यापक भी (बिना सहायता) नहीं लगा सकता। देख कर बताइए, कि क्या ऐसी भाषा का अनुसरण किया जाए?

The Lord’s Prayer in Old English

Matthew 6:9-13

Fæder ure þu þe eart on heofonum

Si þin nama gehalgod

to becume þin rice

gewurþe ðin willa

on eorðan swa swa on heofonum.

urne gedæghwamlican hlaf syle us todæg

and forgyf us ure gyltas

swa swa we forgyfað urum gyltendum

and ne gelæd þu us on costnunge

ac alys us of yfele soþlice

 

वैसे संस्कृत के धातु ही लातिनी में, और ग्रीक में पाए जाते हैं। और संस्कृत ग्रीक और लातिनी दोनों की अपेक्षा बहुत पुरानी है।

हिन्दी-संस्कृत के और कुछ अन्य हिन्दी तमिल उच्चारण तो जमे नहीं। क्यों कि हमारे ३६ व्यंजन और अंग्रेज़ी के २१। हमारे १२ स्वर और अंग्रेज़ीके ६। इसलिए हमारे जगन्नाथ का जगरनाट, मुम्बई का बॉम्बे, गंगा का गॅन्जिस, सिन्धु का इन्डस। दख्खन का डेक्कन ऐसे उच्चारण बदल गए।

तो इस सारे झमेले में उचारण कैसे किया जाए? उच्चारण की कठिनाई कभी कभी बडी हास्यात्मक रूप ले लेती है।

मुझे एक दूर भाष (फोन) सन्देश आया, तो मेरी सहायिका ने सन्देशक का नाम बताया। बोली पोर्ट-ऑथोरिटी का सन्देश था। मैंने जब वापस नम्बर जोडा तो पता चला कि वह मेरे मित्र “पार्थसारथी” का सन्देश था। अभी पार्थसारथी का पोर्ट-ऑथोरिटी हो गया। मुझे भी “मधुसूदन” के बदले मढुसूडन बुलाया करते हैं। यह सीमा उनके उच्चारण की मर्यादा के कारण है।

जब फ्रान्सीसी शब्दों का उच्चार फ्रान्सीसी रूढि के अनुसार। जर्मन शब्द का उच्चार जर्मन की भांति। लातिनी का लातिनी के भांति। युनानी का युनानी के भांति। ऐसे बहुत उदाहरण है।

१६६० में विज्ञान और अभियान्त्रिकी के पारिभाषिक शब्दों में सुधार करने के लिए,एक २२ विद्वानों की समिति रची गयी। इस समिति का उद्देश्य था, अंग्रेज़ी शब्दों के उच्चारण का सुधार कर उन्हें व्यवस्थित किया जाए। पर उस से कुछ लाभ हुआ नहीं। क्यों कि, बहुत सारे भिन्न भिन्न सभ्यताओं से और भिन्न भिन्न भाषिक स्रोतोंसे आए हुए शब्दों को किन नियमों से व्यवस्थित करें? तो फिर उस समिति से कुछ सुधार हो नहीं पाया।

(७) भाषा विकास

भाषा के विकास में एकसूत्रता होनी चाहिए, जिस के आधारपर भाषा का विकास किया जा सकता है।भाषा को भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों से भी जोडना है। हम पूरखें जो कह गए, उसे भी पढना चाहते हैं। और हम जो कहेंगे वह हमारी बाद की पीढीयां भी पढ सके, यह भी चाहते हैं।

परम्परा शब्द में, दो बार पर आया है। एक हम से परे जैसे पर-दादा पर-नाना और दूसरी ओर हमारे प्रपौत्र (परपौत्र)। दोनों के बीच की कड़ी हम हैं।

हम दोनो “परे” काल के लोगों के साथ संवाद कर पाएं, यह आवश्यक है।

इस लिए एकसूत्रता चाहिए।

खिचडी अंग्रेज़ी का अनुकरण कर हम अपनी भाषा को बिगाडे क्यों?

आज मॅथ्यु या शेक्स्पियर आ गया तो वह आज किसी भी अंग्रेज से वार्तालाप नहीं कर पाएगा। उन्हें समझ भी नहीं पाएगा।

पर आज कालिदास यदि आते हैं तो वे आज भी संस्कृत पण्डितों से वार्तालाप कर पाएंगे। भाषाका विकास संस्कृत की एक सूत्रता से हो। उधारी लेकर नहीं।

इतनी बडी जिम्मेदारी हम पर है, और हम, ऐसा ऐतिहासिक महत्वका काम, यदि ठीक नहीं कर पाएं, तो हमारी पश्चात पीढी हमें दोष देंगी।

अथर्व वेद का उद्धरण हैं।

॥वाणी प्रदूषण॥

यो मे अन्नं यो मे रसं

वाचं श्रेष्ठां जिघांसति ।

इन्द्रश्च तस्मा अग्निश्च

अस्त्रं हिंकारमस्यताम् ॥–अथर्व वेद–

हिन्दी अर्थ==>

जो अन्न दूषित करें, मेरा , और जल दूषित करें।

दूषित करे मेरी श्रेष्ठ वाणी।

हे इन्द्र, हे देव अग्नि

उन पर चलाइए अस्त्र , करिए प्रहार।

आंधी तूफान घन गर्जाइए, छोडि़ए अस्त्र

कीजिए घोर प्रहार।