संघ, जनसंघ और भाजपा का मिश्रण आम आदमी पार्टी की कार्यप्रणाली

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राजधानी दिल्ली सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा है। इस चुनाव में जितने भी दल हैं, सभी अपने-अपने हिसाब से चुनाव प्रचार में लगे हैं। कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार का अपना एक अलग तौर-तरीका है। भाजपा एवं कांग्रेस के अलावा इन पांचों राज्यों (दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं मिजोरम) में जितने भी छोटे-मोटे दल हैं, सभी अपनी क्षमता के मुताबिक चुनाव प्रचार में लगे हैं। दिल्ली को छोड़कर जितने भी राज्य हैं, उनमें मुख्यतः वही पुराने दल मुख्य भूमिका में हैं, जो इससे पिछले चुनाव में थे। यदि कुछ स्थानीय एवं छोटे-मोटे दल हैं भी तो उनका असर राज्य स्तरीय भी नहीं है।
चूंकि, दिल्ली देश की राजधानी है। यहां जो कुछ भी होता है उसकी गूंज पूरे देश में जाती है। इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा एवं कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ का अस्तित्व भले ही न स्वीकार किया जाये किंतु चुनाव पूर्ण सर्वेक्षणों में जो कुछ देखने को मिल रहा है, उससे यह जाहिर होता है कि ‘आप’ के वजूद को एकदम से नकारा नहीं जा सकता है।
चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में जो बात सामने आ रही है उसके मुताबिक ‘आप’ को मिलने वाली विधानसभा सीटों की संख्या 8 से लेकर 31 तक बताई जा रही है। टुडे चाणक्य के मुताबिक दिल्ली में आप को 6, एवीपी नेल्सन के मुताबिक 18 और टाइम्स नाऊ-सी वोटर के मुताबिक 16 सीटें मिलने का अनुमान है। हालांकि, ये अभी अनुमान हैं, इनमें कितनी सच्चाई है, ये तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा किंतु इन अनुमानों एवं रुझानों को एकदम से नकारा भी नहीं जा सकता है।
वैसे तो राजधानी दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस दोनों दल ‘आप’ को मात्रा वोटकटवा दल की भूमिका में देख रहे हैं। कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि ‘आप’ की बदौलत दिल्ली में कांग्रेस की नैया पार हो जायेगी किंतु सर्वेक्षणों से जो बात सामने आ रही है उसके मुताबिक यही साबित हो रहा है कि ‘आप’ कांग्रेस के लिए ‘भस्मासुर’ की भूमिका निभाने जा रही है।
रही बात भारतीय जनता पार्टी की तो हो सकता है कि ‘आप’ के कारण वह बहुमत से कुछ दूर रह जाये क्योंकि कांग्रेस विरोधी मतों के विभाजन के आसार हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा एवं कांग्रेस की भूमिका कुछ इस प्रकार की दिख रही हैं कि जो वोट इन दलों को मिलने वाला नहीं है, उन वोटों को ये दल ‘आप’ को देने की सलाह दे रहे हैं। चूंकि, भाजपा एवं कांग्रेस दोनों की नजर में ‘आप’ मात्रा वोटकटवा की भूमिका में है। अब सवाल यह उठता है कि जो पार्टी मात्रा एक साल पहले अस्तित्व में आई हो, उसका वजूद दिल्ली में इस हद तक कैसे बढ़ा कि आज उसकी कार्यप्रणाली की चर्चा पूरी दिल्ली में होने लगी है।
आखिर ‘आप’ की कार्यप्रणाली कैसी है? इस बारे में कुछ जानने का प्रयास करते हैं। ‘आप’ के बारे में आज कहा जा रहा है कि यह पार्टी घर-घर जाकर लोगों से संपर्क कर रही है। इस पार्टी के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि आम आदमी से आर्थिक सहयोग लेकर चलाई जा रही है। इसके कार्यकर्ताओं के बारे में कहा जा रहा है कि उनके अंदर कार्यकर्ता का भाव है, नेता का भाव अभी नहीं पैदा हुआ है।
यह भी कहा जा रहा है कि ‘आप’ के कार्यकर्ता टीम के रूप में कार्य कर रहे हैं। ‘आप’ के बारे में एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। अभी वहां न तो कोई लाबी है और न ही कोई गुट। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि पूरी पार्टी अभी एक टीम के रूप में काम कर रही है।
आज अगर मूल्यांकन किया जाये तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वर्तमान में ‘आप’ की कार्यप्रणाली ‘संघ’, ‘जनसंघ’ और ‘भाजपा’ की कार्यप्रणाली का मिश्रण है। यह बात बहुत गर्व के साथ कही जा सकती है कि आज हिन्दुस्तान में जितने भी राजनैतिक दल हैं, उनके अंदर यह तीब्र इच्छा रहती है कि ’संघ’ की कार्यप्रणाली से कुछ सीखा जाये।
राजनैतिक दल के रूप में अन्य दल ‘भाजपा’ एवं उसके पूर्व ‘जनसंघ’ से संगठन के बारे में बहुत कुछ सीखने की तमन्ना रखते हैं। किसी भी संगठन में जो कुछ भी हो रहा है। यदि मूल्यांकन किया जाये तो स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि जो कुछ भी आज अन्य दल कर रहे हैं, ‘संघ’, ‘जनसंघ’ और ‘भाजपा’ वह सब आज कर रहे हैं या कर चुके हैं। यह बात हो सकती है कि भारतीय जनता पार्टी में वक्त के मुताबिक कार्यप्रणाली में कुछ कमियां आई हों, किंतु ‘आप’ की कार्यप्रणाली में आज भी ऐसा कुछ नहीं है जिसे किसी रूप में अलग कहा जा सके।
दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में ‘जन लोकपाल’ के लिए जब प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था तो ‘राष्ट्रीय स्वयं संघ’ ने भी परदे के पीछे से उस आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया था। ‘आप’ की जो वर्तमान टीम है वह उसी अन्ना आंदोलन की उपज है। जाहिर-सी बात है कि ‘आप’ से जो स्वयं सेवक जुड़े उसे इन स्वंय सेवकों से काफी लाभ मिला। कहने का आशय यही है कि आज जिस प्रकार एक पार्टी के रूप में ‘आप’ कार्य कर रही है उसे आगे बढ़ाने में ‘संघ’ के स्वयं सेवकों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारतीय जनता पार्टी की कार्यप्रणाली की बात की जाये तो इस पार्टी को अभी भी ‘कैडर बेस पार्टी’ माना जाता है। व्यावहारिक रूप में इसमें थोड़ी-बहुत कमी भले ही आई हो किंतु इस पार्टी को अभी भी कैडर बेस पार्टी कहा जाता है। आर्थिक रूप से इस पार्टी का संचालन कैसे होता है इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के संविधान में प्राथमिक सदस्यता, सक्रिय सदस्यता, आजीवन सहयोग निधि एवं विशेष सहयोग विधि से जो राशि एकत्रित करने की व्यवस्था की गई है। जो राशि एकत्रित होती है उसका बंटवारा एक निश्चित अनुपात में ऊपर से लेकर नीचे तक होता है। व्यावहारिक दृष्टि से पार्टी का संचालन इसी पैसे से होता है।
कहने का आशय यही है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सदस्यों के सहयोग से ही संचालित होती है। ‘आप’ भी उसी रास्ते पर चलते हुए दस-बीस रुपये के माध्यम से अपनी गतिविधियों को चलाने की बात कह रही है। ‘आप’ आज जो कुछ भी कह रही है, भारतीय जनता पार्टी उस रास्ते पर बहुत पहले से ही चलती आ रही है। ‘आप’ पार्टी को आज भले ही यह कहा जाये कि उसके कार्यकर्ता एक मिशन को लेकर चल रहे हैं तो इस संबंध में यह कहा जा सकता है कि भाजपा में इस प्रकार की संस्कृति बहुत पहले से है।
भारतीय जनता पार्टी में आज भी एक कहावत कही जाती है कि इस पार्टी के कार्यकर्ता ‘चना-गुड़’ खाकर बिना किसी स्वार्थ के कार्य करते थे। हो सकता है कि समय के साथ इस मामले में कुछ कमी आई हो। ईमानदारी एवं निष्ठा पार्टी के कार्यकर्ताओं की एक विशिष्ट पहचान है। अपनी इसी विशिष्टता के कारण भारतीय जनता पार्टी आज भी अपने को अन्य दलों से अलग समझती है।
जहां तक ‘जनसंघ’ की बात है तो भारतीय जनता पार्टी का पुराना नाम ‘जनसंघ’ ही है। भारतीय जनता पार्टी में जो कुछ आया है वह ‘जनसंघ’ से ही आया है यानी कि कार्यप्रणाली की दृष्टि से ‘जनसंघ’ से भारतीय जनता पार्टी तक आते-आते तमाम परिवर्तन निश्चित रूप से आये होंगे किंतु उसकी मूल भावना में कोई विशेष अंतर नहीं आया है।
आज हमारी कार्यप्रणाली में किन्हीं कारणों से कुछ कमियां बेशक आ गई हैं परंतु हिन्दुस्तान में आज जितने भी दल एवं सामाजिक संगठन हैं, वे अपनी कार्यप्रणाली में भाजपा एवं संघ परिवार की संस्कृति को निश्चित रूप से शामिल करना चाहते हैं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की यदि बात की जाये तो भगवा ध्वज को ही अपना गुरु माना जाता है। इसके पीछे मकसद यह है कि भविष्य में यदि किसी व्यक्ति में कोई खोट या कमी आ जाये तो भी उसके संस्कारों में कोई परिवर्तन न आये। ‘संघ’ आज भी यदि कोई कार्यक्रम करता है तो अपने ही स्वयं-सेवकों में शुल्क लगाकर उस काम को पूरा कर लेता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वारा आयोजित होने वाले बड़े से बड़े कार्यक्रम स्वयं-सेवकों के आपसी सहयोग के द्वारा संपन्न कर लिये जाते हैं। किसी बड़े धन्ना सेठ के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह तो बहुत ही स्पष्ट है कि कोई भी संगठन या दल यदि जनता के पैसे या अपने ही कार्यकर्ताओं के सहयोग से चलाये जायेंगे तो नीतियां भी उन्हीं के लिए बनेंगी किंतु जब ये संगठन धन्ना सेठों के पैसों से चलाये जायेंगे तो नीतियां भी उन्हीं के लिए या उन्हीं के मुताबिक बनेंगी।
कहने का आशय यही है कि ‘आम आदमी पार्टी’ आज यदि यह कह रही है कि उसका संचालन तो जनता के ही पैसों से होगा तो इसमें कोई नई बात सामने नहीं आ रही है। ‘संघ’, ‘जनसंघ’ एवं ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना के समय से ही कार्यप्रणाली इसी प्रकार की रही है। संघ एवं भारतीय जनता पार्टी में शुरू से ही सत्ता को सेवा का माध्यम माना गया है। उसके द्वारा किसी प्रकार के लाभ की बात तो कभी सोची ही नहीं गई।
आम आदमी पार्टी आज कह रही है कि उसके यहां किसी के अंदर नेता का बोध नहीं है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि ‘आप’ में कुछ ही गिने-चुने ऐसे चेहरे हैं, जो घूम-फिर कर सामने आते रहते हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी का शुरू से ही यह मानना रहा है कि व्यक्ति की बजाय संगठन का महत्व है, यानी कि संगठन के आगे व्यक्ति का कोई विशेष महत्व नहीं है। इसी कारण आज भी किसी स्तर के चुनाव में हार-जीत प्रत्याशी की नहीं बल्कि पार्टी की ही मानी जाती है।
भाजपा में प्रत्याशी को चुनाव संगठन ही लड़वाता है। भारतीय जनता पार्टी या संघ का यदि निष्पक्ष रूप से मूल्यांकन किया जाये तो बहुत ही गर्व के साथ कहा जा सकता है कि अन्य संगठनों ने संघ एवं भाजपा का अनुशरण ज्यादा किया है। हालांकि, किसी भी दल या संगठन से अच्छी बातों को सीखना या ग्रहण करना अच्छी बात है किंतु जहां तक ‘आप’ एवं उसकी कार्यप्रणाली की बात है तो उसने ‘संघ’, ‘जनसंघ’ एवं ‘भाजपा’ से बहुत कुछ सीखा है। और इन संगठनों के लिए यह बहुत गर्व की बात है। भविष्य में ‘भाजपा’ को कांग्रेस की बजाय ‘आप’ से अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। ‘भाजपा’ में यदा-कदा जहां भी कोई कमी दिखाई दे उसे दूर करने की आवश्यकता है। ऐसा करना समय की मांग है।

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