डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहमान खान ने अब मुस्लिम लीग का पुराना राग फिर अलापा है। उनका कहना है कि स्थानीय निकायों में मुसलमानों के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि वे चाहते हैं कि मुसलमानों को संसद और विधानसभा में भी आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन फिलहाल वे इसकी मांग नहीं कर रहे हैं। मतलब वे देश पर बड़ी मेहरबानी कर रहे हैं!पता नहीं रहमान ने यह बयान देने के पहले अपनी पार्टी के नेताओं से कुछ सलाह की या नहीं? न भी की हो तो भी यह उम्मीद उनसे जरुर की जाती है कि हमारे संविधान के बारे में कुछ मोटी-मोटी जानकारियां उन्हें होंगी। क्या वे नहीं जानते कि धार्मिक आधार पर संविधान आरक्षण की अनुमति नहीं देता? इस धार्मिक आधार ने ही भारत का बंटवारा करवाया था। क्या हम भारत को दुबारा तोड़ने की अनचाही साजिश का शिकार नहीं बन जाएंगे? क्या मजहबी निर्वाचन-क्षेत्र आगे जाकर एक विराट पृथक राष्ट्र में परिणित नहीं हो जाएगा? इसका अर्थ यह नहीं कि मुसलमानों की दुर्दशा पर देश आंखें मूंदे रहे। इसमें शक नहीं कि ज्यादातर मुसलमान वंचित और दलित हैं लेकिन उन्हें आरक्षण की रेवड़ियां इसलिए नहीं बांटी जातीं कि वे मुसलमान हैं। याने मुसलमान होना अपने आप में घाटे का सौदा हो गया है। अब सवाल यह है कि इस घाटे के सौदे को फायदे के सौदे में कैसे बदला जाए? रहमान भाई भी पिटे-पिटाए रास्ते पर चल पड़े। जैसे जात के आधार पर आरक्षण वैसे ही मज़हब के आधार पर भी आरक्षण। ये दोनों आधार बिल्कुल अवैज्ञानिक और गलत है। इन दोनों आधारों पर आरक्षण क्यों दिया जाता है? इसीलिए न कि वे वंचित हैं तो फिर आप जात और मजहब की ओट क्यों लेते हैं? सीधे ही वंचितों को आरक्षण क्यों नहीं दे देते? ऐसा करने से उन सारे अनुसूचित और मुस्लिमों को तो आरक्षण मिलेगा ही जो सचमुच वंचित हैं और जरुरतमंद हैं। इसके साथ-साथ दो फायदें और होंगे। एक तो इन्हीं जातियों और मज़हबों के मलाईदार वर्गों के लोग आरक्षित सीटों और नौकरियों पर हाथ साफ़ नहीं कर सकेंगे और दूसरा, सभी जातियों और मज़हबों में जो भी सचमुच विपन्न और वंचित होगा, उसको भी सहारा लग जाएगा।
सिर्फ मुसलमानों के लिए आरक्षण मांगना तो उन्हें भिखारी बनाना है, दया का पात्र बनाना है, इस्लाम का अपमान करना है और उनको अलगाव की खाई में धकेलना है। दुनिया के दूसरे मुसलमान उनके बारे में क्या सोचेंगे? बेहतरीन रास्ता तो यह है कि न तो चुनावों में कोई आरक्षण हो और न ही नौकरियों में। आरक्षण सिर्फ शिक्षा में हो और सारे देश में शिक्षा का एक समान हो। वंचितों के बच्चों का शत-प्रतिशत आरक्षण हो और उन्हें शिक्षा के साथ-साथ भोजन, निवास, वस्त्र आदि भी मुफ्त मिलें तो देखिए सिर्फ दस वर्ष में ही भारत का रुपांतरण होता है या नहीं? भारत में समतावादी समाज उठ खड़ा होता है या नहीं?