सत्र और क्षेत्र से नदारद सांसद!

देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका हर किसी को मुनासिब नहीं होता है वे नसीब वाले होते है जिन्हें ये अवसर मिलता है। वह भी देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक प्रतिनिधि संस्था संसद का, अभिभूत  सौभाग्य तो सिर्फ और सिर्फ 130 करोड के देश में 545 लोकसभा सांसदों को जन-गण ने दिया है। यह सोच कर कि क्षेत्र और संसद तक हमारी आवाज गूंजे, समस्याओं का निपटारा हो, तरक्की की राह आगे बढे और विकास का रथ सरपट दौडे। उल्लेखित कई सांसदों ने बेशक! सफलता के झंडे गाडने में कोई कसर नहीं छोडी, परिणीति में देश शान से खडा है लेकिन इस पर ग्रहण की काली छाया मंडराने लगी। प्रतिभूत जनता व सांसद और संसद के बीच दिनोंदिन खाई बढती जा रही है, वजह सांसद सत्र और क्षेत्र से नदारद रहने लगे है। बकौल संसदीय संस्था पीआरएस लेगिस्लेटिव की ओर से हालहि में जारी आंकडों के मुताबिक 133 यानी 25 प्रतिशत सासंदों की उपस्थिति सत्रों में 90 फीसदी रही। कुल मिलाकर राज्यसभा और लोकसभा दोनों में सासंदों की हाजरी का राष्ट्रीय औसत 80 फीसद रहा।

बहरहाल, लोकसभा के केवल 5 प्रतिशत सांसद ऐसे है जिनकी उपस्थिति 100 फीसदी रही। जिनमें भाजपा के रमेश चंदर, कौशिश गोपाल, कीर्ति सोलंकी, भैरो प्रसाद मिश्रा और कुलमणि सामल बीजद ने 1468 बहस तथा चर्चा में हिस्सा लेकर सौ फीसदी अटेंडेंस का बेजोड रिकाॅर्ड बनाया। दिलचस्प! इस मामले में सोनिया गांधी का रिकाॅर्ड राहुल गांधी से बेहतर है। तबीयत खराब होने के बावजूद सोनिया गांधी की मौजूदगी 59 प्रतिशत व युवा राहुल गांधी की 54 प्रतिशत ही रही। गत तीन सालों में सोनिया गांधी ने 5 और राहुल गांधी ने 11 डिबेट में हिस्सा लिया। वहीं, लोकसभा में कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोहली 91 प्रतिशत, मल्लिकार्जुन खडगे 92, ज्योतिरादित्व सिंधिया 80 और राजीव सातव की भागीदारी 81 प्रतिशत रही। स्तब्धकारी, बहु डिंपल यादव के मामुली 35 अंश के मुकाबले ससुर मुलायम सिंह यादव ने 79 फीसदी वक्त संसद में बिताया। अख्तियारी 50 फीसदी से कम हाजरी वालों में पीएमपीके अंबुमणि रामदौस 45 फीसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबु सोरेन 31 फीसद के अलावा अन्य महानुभाव भी फेहरिस्त में है।

आह्लादित, चैकाने वाले आंकडे संसद के बहुयामी सत्र से नदारद सांसद का रवैया बयां करते है कि वह प्रजा, तंत्र व वतन के वास्ते कितने सजग, संजीदे और जवाबदेह है। यही हाल क्षेत्र से नदारद सांसदों का है, ढूंढे से भी दर्शन दुर्लभ है, कईयों ने तो इनका चेहरा भी नहीं देखा है। अवचेतन, फिर यह रहते कहां है जो दिखाई नहीं पडते? लगता है, सांसद एक खोज अभियान चलाने की जरूरत आन पडी है। खैरख्याह! आमजन तो छोडिए! अपने दल के खास कार्यकर्ताओं को पहचानना भी इनके लिए नामुनकिन है। बेपरवाह, उदासिनता का चोला ओडे माननीय जन सरोकार, समस्याओं और विकास के मुद्दों से कोसों दूर है। बानगी सांसद क्षेत्रिय विकास निधि की राशि आज भी बटवारे की बाट जो-रही है। गर वितरित हो भी गई तो राजनैतिक और दीगर मामलों में वशीभूत होकर।

अलबत्ता, देश के सबसे बडे सीधे चुनाव में जीतने वाला जन-जन का संसदीय नुमांईदा जिम्मेदारी से मुंह फेर ले यह तो लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को नेस्तनाबूत करने का कुचक्र है और कुछ नहीं। बेहतरतीब, ऐसे नदारदी सांसदों से तौबा-तौबा कर लेना ही वक्त की नजाकत है क्योंकि जिस सांसद ने सत्र और क्षेत्र की कदर ना जानी उसे काबिज रखना साफ-साफ नाफरमानी है। बनिस्बत, अब जन-जमीन-सदन को जार-जार होने से बचाने की पहल हमें ही करनी होगी अन्यथा वह दिन दूर नहीं होगा जब संसद बोझिल सांसदों के भार में निरीह लगेगी। मद्देनजर! सावधानी पूर्वक सृजनशील, जनाभिमुख तथा स्वच्छंद लोकतंत्र के पैरोपकार को ही आगे संसद में आमद दें।

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