मोदी और बीजेपी

-सतीश शर्मा-

Narendra_Modi

पिछले कुछ दिनों से ये सोच रहा था कि 2014 लोकसभा चुनावों से पहले और चुनावों के बाद से बीजेपी में क्या परिवर्तन आया है, क्या नरेंद्र दामोदर दास मोदी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में क्या कुछ फर्क है। फर्क बीजेपी में तो आया है, और 100 प्रतिशत आया है, क्योंकि चुनावों से पहले बीजेपी विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी थी, और चुनावी नतीजों के बाद वो देश की सबसे बड़ी पार्टी है।

समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं, जो विपक्ष में था आज वो सत्ता में है जो कभी सत्ता में थे वो विपक्ष में हैं। मोदी को लेकर भी एक सवाल अक्सर दिमाग में कुलबुलाहट मचाता रहता है कि क्या मोदी और उनके मोदीत्व में कुछ फर्क आया है, तो मैं सोचता हूं कि फर्क तो आया है, पहले वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और चुनावों के दौरान ‘गुजरात मॉडल’ और ‘मेरे गुजरात में’ की बात करते थे, और अब वो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व कर रहे हैं, देश के प्रधानमंत्री हैं। इसके अलावा नरेंद्र मोदी की शख्सियत में कोई बड़ा फर्क आया है, ऐसा मालूम नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के कंधों पर जिम्मेदारी बहुत ज्यादा आ गई है अब केवल एक प्रदेश नहीं बल्कि पूरे 29 प्रदेश उन्हें देखने हैं। अब उन्हें समान विकास-सबका विकास वाली बात सभी राज्यों में लागू करनी है। प्रधानमंत्री के सामने कई चुनौतियां हैं। अगर मौटे तौर पर कहा जाए तो मोदी के सामने दो चुनौतियां हैं पहली चुनौती देश के अंदर की और दूसरी देश को बाहर से मिलने वाली चुनौती, भ्रष्टाचार, महंगाई, विदेश नीति और आतंकवाद को मुद्दा बनाकर मोदी सत्ता में आए हैं, जनता ने जो विश्वास मोदी पर दिखाया है, और जो करिश्मा मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने किया है, ऐसा चमत्कार हमारे लोकतंत्र में शायद पहले कभी नहीं हुआ, ‘हां अगर देश के आपातकाल की बात करें तो उस वक्त भी देश एक बड़े बदलाव से गुजरा था, और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी’, लेकिन उस दौर और आज के दौर की परिस्थितियां अलग है। उस वक्त जो सरकार बनी थी वो गठबंधन की सरकार थी और वो ज्यादा दिन तक देश का नेतृत्व भी नहीं कर पाई। लेकिन इस बार बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला है, भले ही देश में एनडीए की सरकार है, लेकिन बीजेपी पूरे 5 साल तक देश पर राज करेगी इस बात पर रती भर का भी शक नहीं है। और इन पांच सालों में क्या मोदी देश को वो दिशा दे पाएंगे जिनका दावा वो कर रहे थे।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी दो बार जम्मू-कश्मीर का दौरा कर चुके हैं। और अगर वहां पर दिए गए मोदी के भाषण पर गौर करें तो उनके भाषणों में कुछ ज्यादा फर्क नहीं आया है। अलबत्ता अब उनके भाषणों में ‘गुजरात मॉडल’ और ‘मेरे गुजरात’ जैसे शब्द नहीं सुनाई दिए। मोदी आज भी विकास की बात कर रहे हैं कश्मीर के नौजवानों के विकास की बात कर रहे हैं। वहां पर दशकों से विस्थापितों की तरह रह रहे लोगों के पुनर्वास की बात कर रहे हैं। मोदी कश्मीर का दौरा कर रहे हैं, लेह जा रहे हैं, ‘जहां शायद पूर्व की कांग्रेस नेताओं या फिर पूर्व प्रधानमंत्री ने जाने की कोई जहमत नहीं उठाई थी’, वहां जाकर पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दे रहे हैं। ये बातें कुछ उम्मीद जगाती हैं। लेकिन प्रधानमंत्री बन चुके मोदी को अब इस बात को समझना होगा कि अब केवल कहने से ही काम नहीं होगा, उन्हें कुछ कदम भी उठाने होंगे जिससे जनता को ये विश्वास हो कि मोदी बदले नहीं हैं, ये वहीं मोदी हैं जो खुद को ‘चाय वाला’  बताते रहे हैं, और लोगों को भी ये ‘चाय वाला’ कुछ अपना सा लगाऔर बदले  में देश की जनता ने उन्हें सत्ता की चाबी दी, अब इस चाबी का इस्तेमाल कैसे करना है, ये मोदी को समझना होगा। मोदी के शपथ लेने के बाद ऐसा नहीं है कि देश में सब कुछ सही हो गया महंगाई अभी भी आम आदमी को परेशान कर रही है, पेट्रोल के दाम अभी भी बढ़ रहे हैं, रिश्वतखोरी अभी भी जारी है, पाकिस्तान अभी भी सीमा पर गोलीबारी कर रहा है। इन तमाम चुनौतियों के बीच मोदी को खुद को साबित करना है, जनता का विश्वास कायम रखना है, और देश को वापस सोने की चिड़िया बनाने के दावे को पूरा भी करना है। लेकिन ये तभी मुमकिन हो सकता है, जब मोदी चुनावों से पहले वाले जज्बे को पूरे 5 साल तक कायम रखें, क्योकि सत्ता का नशा कब हावी हो जाए पता ही नहीं चलता। पर देश की जनता मोदी को देख रही है। जनता ही नहीं विपक्ष भी मोदी पर नजरें गड़ाए हैं, देश को बदलाव चाहिए। और संसद में बनी नई सरकार से लोग इस बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। और कह रहे हैं चायवाले हमने तुझे सत्ता तो दे दी, लेकिन अब बिना बदले। इस देश का विकास करो, जो भ्रष्टाचार और तमाम बुराईयों के चलते रुका हुआ है।

2 COMMENTS

  1. निर्णायक बन लेखक प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी को आदेश देते कह रहा है, “… चायवाले हमने तुझे सत्ता तो दे दी, लेकिन अब बिना बदले इस देश का विकास करो, जो भ्रष्टाचार और तमाम बुराईयों के चलते रुका हुआ है।” मोदी जी न हुए कोई टेलीविज़न हो गया मस्ती में बैठे लेखक जिसका बटन दबाए और चैनल पर मनचाहा चलचित्र शुरू हो जाए|

    पत्रकारिता में व्यक्तिगत मानसिक प्रवृति और सामान्य योग्यता के साथ विचारों की परिपक्वता अत्यंत आवश्यक है| यदि ऐसा निबंध पाँचवीं कक्षा में लिखा होता तो अवश्य ही अध्यापक जी लेखक को मुर्गा बनने को कहते| सतीश शर्मा को मेरा सुझाव है लिखना-विखना बंद करो, स्वतंत्र भारत में कुछ काम करने की आदत डालो, चाय की दुकान ही खोल लो|

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