मोदी सरकार के पहले बजट की एक मुख्य बात सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश की है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकारी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारियों को बेच कर 634.25 अरब रुपए और निजी कंपनियों में हिस्सेदारियों को बेच कर 150 अरब रुपए जुटाने का लक्ष्य है। विनिवेश के इन प्रस्तावों पर संसद में विचार-विमर्श होना चाहिए। बजट में अगले तीन-चार वर्ष में विकास दर 7-8 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद व्यक्त की गयी है। ध्यान रहे, पिछली सरकार भी अपने बजट में निवेश से लेकर खर्च और नयी परियोजनाओं के संबंध में बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती थी। हाल के वर्षों में उनकी असफलताएं सामने हैं। जाहिर है, जेटली की घोषणाएं तभी कामयाब होंगी, जब इन्हें समयसीमा तय कर गंभीरता से लागू किया जाए। वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण के शुरू में ही अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति का उल्लेख करते हुए ठोस व सुविचारित फैसले लेने और लोकलुभावन निर्णयों व निरर्थक खर्चों से बचने की बात कही। वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पादन का 4.1 फीसदी तक रखने के लक्ष्य के साथ उन्होंने कई ऐसे प्रस्ताव दिए जिनसे लोगों को राहत मिलेगी। हर क्षेत्र व वर्ग के विकास के लिए बजटीय प्रावधान किए गए हैं। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण है कि वित्तमंत्री ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों के विकास व विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए उपायों पर जोर दिया है। पिछले कुछ वर्षों से अर्थव्यवस्था में गिरावट और निर्णय लेने में अनावश्यक विलंब से विदेशी निवेश में कमी आ रही थी और नए क्षेत्रों में निवेश की राह अवरुद्ध थी। वित्तमंत्री ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को मौजूदा 26 फीसदी से बढ़ा कर 49 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है। बीमा क्षेत्र में भी निवेश की सीमा 49 फीसदी होगी। आवास क्षेत्र में निवेश बढ़ाने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वर्तमान कर-व्यवस्था में आवश्यक सुधार का वादा भी किया गया है। उद्योगों के लिए बड़ी राहत की बात है कि सरकार एक स्थायी कर ढांचे को बरकरार रखेगी। हालांकि जेटली ने रेट्रोस्पेक्टिव करों से संबंधित नियमों को रद्द करने की स्पष्ट घोषणा नहीं की है। वस्तु व सेवा कर को इस वर्ष के आखिर तक लाने के वादे सहित कॉरपोरेट सेक्टर को अनेक रियायतें दी गयी हैं। आयात-निर्यात के क्षेत्र में भी सकारात्मक पहल हुई हैं। देशहित में विपक्ष को भी सत्तापक्ष का सकारात्मक विरोध करना चाहिए। सत्ता पक्ष के कार्यों की आलोचना करना विपक्ष का धर्म है। पर देश के हित में उसकी भूमिका सकारात्मक होनी चाहिए। सत्ता पक्ष अगर कोई ऐसी भूल करता है जिससे देश का हित प्रभावित हो तो उसका पुरजोर विरोध होना चाहिए। इसके विपरीत अगर सत्ता पक्ष कुछ ऐसा करता है, जिसमें देश का हित सन्निहित है तो विपक्ष को उसका आदर भी करना चाहिए। वर्तमान में देश में महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी और खराब मानसून सबसे बड़ी चिंता है। ऐसे में इन चुनौतियों के निपटने और जूझने की सबकी सामहिक रुप से नैतिक जिम्मेदारी है।