यलो स्टोन नॅशनल पार्क के, विशाल जंगल में लगी, भयंकर आग-शमन करने के उपरांत, वन-रक्षक अधिकारी, पहाडी पर, जाँच करते करते बढ रहे थे; इसी उद्देश्य से कि, हानि का कुछ अनुमान भी हो जाये।
अकस्मात ही, एक अधिकारी आगे बढते बढते, कुछ चौंक कर, रुक सा गया। उस ने देखा कि, राख में हलका सा लिपटा हुआ एक पंछी बिलकुल शांत जैसे ध्यान में हो, खडा था।
राख से ही लिपटे, और मलिन से दिखते, अश्मवत खडे, उस पंछी को, देखकर, और, सोचकर कि, शायद पंछी सोया सोया, पेड के नीचे विश्राम कर रहा है; कुछ भय मिश्रित कुतूहल से ही उसने पंछी को, डण्डे से हलका स्पर्श किया, तो वह पंछी लुढक सा गया, और सुखद आश्चर्य! तीन नन्हें नन्हें बच्चे अपनी माँ के पंखों तले से डोलते डोलते बाहर निकल आये।
आग लगने पर, माँ अपने प्राण बचाने, शिशुओं को त्यजकर, उडकर कहीं दूर जा सकती थी। पर लगता है, सोचकर कि, बच्चे उड नहीं सकते;जो अब भी उड नहीं सकते थे; माँ ने निर्णय किया होगा, और बच्चों को अपने पंख तले सुरक्षा देना ही उचित समझा होगा।
फिर आग की लपटें, फैलते फैलते आयी होंगी। और गरमी सहते सहते, माँ के छोटे से देह को, त्याग कर प्राण चले गये होंगे। अब उस छोटे निर्जीव कलेवर के पंख तले से,अबोध शिशु-पंछी जब डोलते डोलते बाहर आये तो जंगल रक्षक अधिकारी भी भावुक हुए बिना रह न सका।
यह मातृ-प्रेम जो सभी प्राणियों में प्रकट होता है, एक दृष्टि से अद्वैत का ही संचार प्रमाणित करता है। ऐसी घटनाओं से, हम-आप सभी करुणा से भर जाते हैं, क्यों कि, उस पंछी की चेतना से ही हम संवेदित होते हैं। सहानुभूति सह-अनुभूति है। जो अनुभूति उस पंछी माँ को हुयी होगी, उसी अनुभूति का कुछ अंश जब हमें भी होता है, तो उसे सहानुभूति ही कहा जायेगा। संवेदना का अर्थ भी ऐसा ही होता है। एक अलग अर्थ में यही है, ”अणोरणीयान महतो महीयान।” अणु से भी सूक्ष्म, प्रत्यक्ष ठोस वस्तु के रूप में, न दिखाई देने वाला यह मातृप्रेम समस्त ब्रह्माण्ड की अपेक्षा गुणवत्ता में बडा ही प्रमाणित होगा।
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मौसी-माँ
एक बहन विवाहोपरांत एक बच्ची को, जन्म देकर, रोगग्रस्त अवस्था में चल बसी।
तो जाते जाते, अपनी अनब्याही छोटी बहन से अपनी बच्ची को पालने का वचन लेकर ही प्राण छोड पायी। बच्ची भी अपनी मौसी को ही माँ समझती रही; माँ माँ ही पुकारती रहीं।
अब हुआ ऐसा कि, इस घटना के, कुछ छः मास उपरांत, उस छोटी बहन का भी विवाह हुआ, तो उस बच्ची की समस्या खडी हो गयी, कि, अब क्या किया जाये?
किसी और के साथ वह बच्ची घुल मिल भी तो गयी न थी। नयी नयी ब्याही बहु ने अपने साथ किसी बालिका को ससुराल ले जाने का क्या अर्थ, समाज कर सकता है, यह कहने की भी कोई आवश्यकता नहीं।
सौभाग्य से वर-पक्ष वाले भी संस्कारी ही थे। पूछने पर, वर ने हर्षपूर्वक अनुमति दे दी, और उस शिशु बालिका को लेकर छोटी बहन भी ससुराल गयी। साथ में बच्ची की बुआ भी गयीं। धीरे धीरे जब बच्ची बुआ के साथ घुल मिल गयी, तो फिर वह बुआ उस बिटीया को वापस ले आयी। अब बच्ची उस बुआ को भी माँ माँ ही पुकारती थी। पर बात यूँ थी, कि उसको दोनों के प्रति मातृवत स्नेह हो गया था।
यह भी घटी हुयी सत्य घटना है। क्यों कि छोटी बहन जिसको सौंप कर, बडी बहन चल बसी थी; वह छोटी बहन को मैं बहुत भली भाँति जानता हूँ; वह मेरी अपनी माँ है।
बहुत वर्ष तक, मैं भी यही समझता था, कि मेरी एक बडी बहन भी है। कालोपरांत पता चला कि, वह मेरी मौसेरी बहन है, पर इस से संबंधों में, कोई दुराव कभी नहीं आया । बहुत बडा होने तक, मेरी इस मौसेरी बहन को मैं अपनी सगी बहन ही समझता था। उसने भी मुझे अगाध स्नेह ही दिया। बहुत वर्षों तक, किसी ने मुझे वह मेरी मौसेरी बहन है, ऐसा बताया नहीं था। उसी प्रकार का स्नेह मुझे, मेरे मौसेरे बडे भाई के प्रति भी अनुभव हुआ करता था। गत वर्ष ही, माँ जब, मुझे मिलने, मेरे यहाँ आयी थी, तो, उसी ने, सुनाई हुयी यह भी सच्ची घटना है। गुजराती में मौसी को, मौसी-माँ (मासी-बा) ही, बुलाया करते हैं। माँ-सी = मासी ऐसे भी सोच सकते हैं।
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साक्षी-गोपाल
मेरा एक मित्र परदेश आया। कुछ वर्ष बाद उसका छोटा भाई भी आया। दोनो भाई एक ही पिता के पर दो अलग माताओं के पुत्र थे। बडे भाई जो मेरे घनिष्ठ मित्र हैं, उन्होंने ही सुनाई हुयी यह भी सत्य घटना है।
बडा भाई जानता था, कि छोटा भाई सौतेला है। पर सौतेली माँ के साथ रहने का मेरे मित्र को, विशेष अवसर मिला न था; न उन का स्वभाव जाना था।
उसके मन में भी कुछ पूर्वाग्रह सादृश्य, सर्व-सामान्य विचार, जैसे सौतेली माँ के प्रति हुआ करते हैं,शायद थे।
पर जब छोटे भाई से उसकी बातचीत होती, तो उसे कुछ अनुमान से जान पडता कि, वह छोटा भाई तो उसे सगा भाई ही समझता है।
उस के अचरज का पार न रहा, जब उसने जाना कि छोटे भाई को विमाता नें कभी सौतेले रिश्ते की बात ही नहीं की थी। इस लिए वह उसे बिलकुल सगा भाई ही समझता था। बडे भाई ने ही सुनाई हुयी, यह सौतेली माँ की सच्चाई है।
सोचा तो था, कि, Mothers Day पर इन तीनों सत्य कथाओं को, प्रकाशित करुं, पर आप मुझ से सहमत ही होंगे, कि हम सब के लिए वर्ष में ३६५ दिन भी मातृदिन से कम नहीं होते।
रामकृष्ण कहा करते थे, कि अगले जनम वे स्त्री हो कर जन्मना चाहते थे।उनका दूसरा जन्म तो हुआ ही न होगा, पर उनके कहने का अर्थ कुछ, आज समझ में आ रहा है। सुना यह भी है, कि, परमात्मा हर व्यक्ति के जीवन में प्रकट होना चाहता था, पर, जब नहीं पहुंच पाया, तो उसने प्रत्येक के जीवन में एक एक माँ को भेज दिया।
कुछ लोगों के दूरभाष पर सन्देश आये –कुछ मित्र इन्हें कहानियां समझ रहें हैं|
ऐसी समझ उन तीनों माताओं के प्रति अन्याय होगा, जिनका त्याग इन घटनाओं में, अंकित है|
तीनों घटी हुयी घटनाएँ (कथा नहीं) हैं, और सत्य है|
माताओं के प्रति अन्याय होता देख इस टिप्पणी की विवशता!
सभी मित्रों को धन्यवाद.
संसार मे एक अच्छी माँ का स्थान उसके बच्चे के विकास मे एकलौता होता है | एक तरफ माँ तराजू के पलडे मे तो दूसरी तरफ पूरा संसार दूसरे पलडे में | यह तीनो कहानिया यह दर्शाती है की जीवन के झंझावातो को सहते हुए कैसे माँ अपना सबकुछ न्योछावर करके अपने बच्चॊ के परवरिश करती है | पछी माँ और मनुष्य माँ के मातृत्व की पराकाष्ठा दिखाती है यह कहानिया | लेखक के सुंदर भाव पूर्ण लेख के लिए धन्यबाद | लेखक ह्रदय स्पर्शी , मर्म स्पर्शी है |
विपिन किशोर जी, महेन्द्र गुप्ता जी, और विनायक शर्मा जी—और अन्य सारे इ मैल से संदेश भेजनेवाले, सहृदयी पाठक। को हृदयतल से धन्यवाद।
वैसे हिंदी में, ललित लेखन मैं करता नहीं। पर यह सत्य कथाएँ, मुझे लिखने के लिए, प्रेरित करती रही।
कहते हैं, “जावे त्याच्या वंशा तेव्हां कळे” –अर्थ: (माता का) जन्म पाए बिना, उसका भाव समझ में
नहीं आ सकता।माताएँ भूखी रहकर संतानों को खिलाते जानी हैं। अपने प्राण देकर भी, बालकों को बचाते देखी हैं।शब्दों में लिखना उस त्याग का अवमान होगा।माताओं का भी अपमान होगा।
माताएं कब अपने त्याग का ढिंढोरा पीटती हैं? किस बदले की अपेक्षा से वें प्रेरित होती हैं?
पर पंछियों में भी ऐसा त्याग?
सारी सृष्टि के पीछे कोई शुभ शक्ति ही होने का, इससे बढकर प्रमाण क्या हो सकता है?
धन्यवाद।
माँ माँ ही है,अपना जीवन बलिदान कर संतान को बचा लेती है पर आज के मानव में इतनी संवेदना नहीं.बहुत कम पुत्र ऐसे होंगे जो माँ के त्याग को महसूस करेगे.तीनो ही कहानियां बहुत ही मार्मिक हृदय को स्पर्श करती मन को झिंझोड़ देती है.आपका यह सत्यकथा बहुत ही सुन्दर है.आभार
अत्यन्त हृदयस्पर्शी संसमरण आपकी लेखनी से सृजित हुआ है। पढ़कर आनन्द भी आया और आंखें भी नम हुईं।