राजनीतिक समुद्र मंथन में शिव की भूमिका के रूप में श्री संजय जोशी

जब अमृत और देवी लक्ष्मी की खोज में समुद्र मंथन किया था वही ऐसा अवसर था जब असुर और देवता एक साथ आए थे l जो असुर और देवता आपस में हमेशा झगड़ते रहते थे l वह आज अमृत प्राप्ति के लिए एक साथ आए थे l मंदराचल पर्वत को समुद्र में रखा और मरने की तैयारी शुरू हुई तब भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल को अपनी पीठ पर धारण किया और समुद्र मंथन शुरू हुआ l सबसे पहले विश निकला और सब लोग भागने लगे तब शिव ने विष को अपने कंठ में धारण किया इस प्रकार समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले जो अलग-अलग देवताओं ने अपने अपने ले लिए l
अमृत प्राप्ति के लिए दानवों ने देवताओं का वेश धारण करना शुरू कर दिया और देवताओं की कतार में आकर बैठ गए इस प्रकार से 2 दानवों ने तो अमृत पान भी कर लिया था l जो आज तक चंद्रमा और सूर्य का ग्रहण करते रहते हैं l उसी प्रकार से आज मंदराचल के रूप में लखनऊ है और विष्णु के कश्यप अवतार के रूप में आज संघ अपने कंधों पर मंथन करवा रहा है l लेकिन जिस प्रकार से पहले विष निकला था उसी प्रकार से आज जो अन्य दलों से भाजपाई बनके आए थे वह आज भाग रहे हैं और इसी प्रकार हर एक दल में खलबली मच गई है l अब इस विश को कंठ में धारण करने वाला सिर्फ एक व्यक्ति है वह है संजय जोशी जो अपने कार्यकर्ताओं को अपने बगल में दबाए हुए हैं, इधर-उधर के दलों में अपने कार्यकर्ताओं को भागने नहीं दे रहे हैं और उन्हें समझा-बुझाकर भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने का प्रयास रहे हैं l जिस प्रकार से शिव को अमृत का लोभ नहीं था उसी प्रकार संजय जोशी को भी सत्ता का लालच, पद का लालच नहीं है l निस्वार्थ भाव से भारतीय जनता पार्टी का कार्य कर भी रहे हैं और जो कार्यकर्ता नाराज हो रहे हैं उन्हें मनाने का काम भी संजय जोशी ही कर रहे हैं l इसीलिए हमारा कहने का तात्पर्य है की हर बार राजनीतिक मंथन कर दूसरे दलों के लोगों को बुलाकर सत्ता प्राप्ति करने से अच्छा है जो अपने पुराने कार्यकर्ता हैं, जो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का झंडा उठाए खड़े हैं उन्हीं को साथ में लेकर चुनाव लड़ा जाए तो जो विष आज निकल रहा है वह आगे नहीं निकलेगा l क्योंकि अपना व्यक्ति कभी भी भागकर दूसरे दल में नहीं जाता जो बाहर से आते हैं वही भाग कर जाते हैं

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