मम्मी ने आकर…

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-बीनू भटनागर-

poem

मम्मी ने आकर, बेटे को जगाया,

‘नींद से जागो, राहुल बाबा!

कुछ (प्रधानमंत्री) बनना है तुमको जो,

थोड़ी तो महनत करनी ही पड़ेगी।‘

‘’क्या करना होगा मम्मी?

पहले भी बहुत महनत की थी फिर भी…’

‘’जो हो गया सो हो गया,

अब आगे की सोचो…

संसद मे ऐसा कुछ करके दिखाओ,

समाचारों का हिस्सा बनके दिखाओ।‘’

‘’मम्मी! मुझे कोई बोलने ही नहीं देता।’’

‘’तो इसबात पर ही शोर मचाओ!’’

फिर संसद में कुआं, कुएं में राहुल,

ख़ूब चीख़े चिल्लाये राहुल,

और शाम को…

मीडिया में छाये रहे बस राहुल!

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

1 COMMENT

  1. वीनू भटनागर जी की कविता – “मम्मी ने आकर ..”अच्छी लगी |

  2. शाबाश , मकसद पूरा हो गया , बस आगे भी यही करते रहना है ,सदन को चलने नहीं देना है क्योंकि मोदी हटने वाले नहीं , तो इन्हें काम भो करने दो नहीं हर बात का विरोध करो , चाहे वाजिब हो या गैर वाजिब हो

    • संसद तो भाजपा भी नहीं चलने देती थी, जब विपक्ष मे थी, पाले बदले हैं और कुछ नहीं। सही कहा, मोदी पाँच साल तक तो नहीं हटेंगे, चाहें कुछ करें या न करें।

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