थोड़ी सी ख़ुशियां बांट लूं,
ग़म सिमट जायेंगे,
ओढ़लूँ उदासी तो,
क्या ग़म लौट जायेंगे।
सागर है तो उसमे,
तूफ़ान आयेंगे जायेंगे,
तूफ़ान से डर कर,
मछुवारे क्या घर बैठ जायेंगे।
फूलों से लदे पेड़ तो,
ख़ुश नज़र आयेंगे,
पतझड़ मे भी लेकिन,
वो मुसकुरायेंगे।
पूर्णिमा की रात हो तो,
चाँद खिलखिलाताहै,
अमावस की रात मे भी,
तारे टिमटिमायेगे।
अकेला ही सच की राह पर,
चल दिया अगर कोई,
राह सही और सच्ची हो तो,
काफ़िले बनते जायेगें