सूबे का मुखिया है मेरा साला ?

          पत्रकार होने के नाते घटनाओं, चरित्रों और संकेतों के द्वारा व्यक्ति, समाज, व्यवस्था और राजनीति में विसंगतियों, विडम्बनाओं के बीच कुकुरमुत्तों की तरह उग आई मुखौटे बाजी की विकृत मानसिकता के मैं रोज ही दर्शन करता हॅू। राजनीति में चौकाने वाले नये प्रयोगों का युग चल रहा है । राजनीतिज्ञ कब जनता के मन के भावों को कुरेदकर आत्मा को लहूलुहान कर गहरे जख्म देकर खुद मलहम लगाने लगे तो उसकी नीयत पर शक नहीं होता है। विपक्षी मलहम को प्रलोभन का नाम देकर मानवीय मूल्यों और जनवेदना को सरकार का षडयंत्र होने का आरोप लगायेंगे। बात घुमाकर नहीं अब सीधी बता रहा हॅू कि सूबे के मुखिया ने हमारी घरवाली को बहिन मानकर घरखर्च के एक हजार रूपया देना शुरू कर दिये है इस नाते हम उनके साले हो गये है, फिर दुनिया मैं कौन शूरवीर होगा जो साले से पंगा ले। अगर साला राजनीति चलाने के लिये कूटनीति,षडयंत्र का खेला खेले तो  हमें क्या लेना देना, हमें साले के पचड़े में पड़ना ही नहीं है।

       मैं शादीशुदा हॅू, जाहिर है मेरी भी ससुराल है। ससुराल जिसमें चार सगे 9 बेगाने साले है। ऊपरवाले ने मुझपर बड़ा सितम किया है, जो मुझे साली नहीं दी, मेरी घरवाली खुद सबसे छोटी रहीं है। मैंने अपनी घरवाली के साथ 30 साल यानि 10950 दिन रात बिता दिये किन्तु मजाल है कि इतने लम्बे समय में मेरे ससुराल के नौ ठउया सालों ने दस-बीस रूपटटी की कभी मदद करने आये हो ? साले, अपने काम से काम, राम से राम के सिवा कभी कोई मतलब नहीं रखते थे, कि बहिन कैसे जी रही है, जीजा का कामधाम चल रहा है या नहीं, भान्जे-भांजियों की पढ़ाई लिखाई में कोई दिक्कत तो नही ? ससुराल और सालों के लिये सैकड़ों सवाल है जो अपनी बहिन बहनोई और उनके बच्चों को लेकर कुम्भकरणी नींद में सोते रहे। नर्मदामईया की कृपा से एक नया साला मिल गया जो हजार रूपया भेज रहा है। बहिने हजार रूपया मिलने पर पति, बच्चों को भूल जाती है, पर  जीजाओं के पास कोई मन्थरा नहीं जो उसे भेजकर साले का दिमाग डायवर्ड कराकर उसकी जेबे खाली करा सके। ये साला जीजाओं को घास नहीं डालता, पढ़े लिखे डिग्रीधारी भान्जों को उद्योगों-सरकारी नौकरियों की व्यवस्था नहीं करता, पता नहीं इनका भविष्य क्या होगा, ईश्वर जानता है।  किन्तु अपना भविष्य तो तय है, जब से साले ने बहनों पर कृपा की बहनोई घर गृहस्थी के कामों में जुट गया, उसका घर से निकलना तब होता है जब उसे पिसाई के लिये भेजा जाता है।

                जिस शताब्दी में मैंने जन्म लिया है उसमें लोग बार-बार झूठ बोलकर झूठ को सच साबित करने में दक्ष है। इसलिये मैं सच झूठ के पचडे में नहीं पड़ता हॅू। सच बोलकर मैंने छोटी या बड़ी कोई जागीर नहीं बनायी और न किसी झूठे-बेईमान को फाॅसी पर लटकते देखा है। ओर तो ओर मैंने कभी भी झूठे को झूठा कहकर नाराज नहीं किया बल्कि उसके झूठ को बटोरकर आप सभी तक पहुॅचाया है और सच को अपने पास सहेज कर रखा है। सूबे के मुखिया कई दिनों से मेरी बहनो, मेरी बहनो चिल्लाते पर मैंने उनकी चिल्लापौं को मजाक में लिया,पर जैसे ही बिना मांगे मेरी धर्मपत्नी के खाते में हजार रुपये आये, तब मुझे उनके सच के साक्षात दर्शन हुए, वर्ना अब तक मैं उन्हें मोटी चमडी का समझकर उनका उपहास करता रहा हॅू। अब जीजा साले को मोटी-काली चमडी का ताना दे तो इसके लिये साला आखिर साला है, वह जीजा का क्या कर सकता है। जीजा साले में नौक-झौक न हो तो साले का वही हाल होता है जैसे जुआरी जुआ में हार-जीत कर अपनी बेचैनी दूर नहीं करता।

                एक अविवाहित जलकूकडा जो साले द्वारा दिये जाने वाले हजार रुपये से वंचित होने पर मुझे लांछित कर ताना देने लगा, कि तुमने दहेज मांगा होगा? दहेज, न बाबा न! मैंने कभी ससुराल से दहेज नहीं माँगा, वो तो साला ही दानवीर कर्ण का अवतार है जो अपनी बहन की खुशामद कर पैसा देने लगा। एक विपक्षी नेता ने प्रश्न दागा क्या, कहा! खुशामद? अरे भाई साले को खुशामद की जरूरत क्यों पढ़ गयी।                         देश, प्रदेश, धन-संपत्ति हीन है और पूरे के पूरे कर्ज में डूबे है पर सरकार चलाने वाले तंत्र विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका की बागडोर संभाले जिम्मेदार नेता-अधिकारी गण बेशुमार, अथाह सम्पत्ति वाले है, जिनकी नगदी गिनने में एक जिले की पूरी आबादी लगा दी जाये तो भी महीनों तक गिनती नहीं हो पायेगी। जिलों की सरकारें कानून कायदों के हिसाब से चलती है, जबकि ससुराल में जम्हाई का ही कानून चलता है। भगवान ने भली करी, जो अपनी ससुराल में राज चलाने वाले दामाद है उन्हें नये साले के रूप में सरकार का मुखिया जो मिल गया। दुनिया के किसी भी जम्हाईराजा की हिम्मत नहीं की वह सरकार के मुखिया को साला कहे, पर क्या कीजिये हम बड़े भाग्यशाली है जहाॅ सरकार का प्रमुख खुद हमें जम्हाईराजा का दर्जा देकर पत्नी से बहिन का रिश्ता बना लिया। हमने सरकार को कोई पीले चावल थोडे दिये थे कि हमें जीजा बनाओ, वे खुद ही खुशामद कर साले बने है, इसलिये किसी की जान जलती हो तो जले, आखिर हम सूबे के मुखिया के जीजा है, ओर वो मेरा साला जो ठहरा।

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