नागार्जुन का शून्यवाद; कुछ भी ध्रुव सत्य नहीं होता

—विनय कुमार विनायक
नागार्जुन दक्षिण भारत के एक ब्राह्मण,
एक सौ पचास से, ढाई सौ ई. मध्य में,
माध्यमिक मतवादी बौद्ध दार्शनिक थे!

आर्य नागार्जुन ने शून्यवाद दर्शन दिया,
संसार में कुछ भी ध्रुव सत्य नहीं होता,
सतत परिवर्तन को सत्य घोषित किया!

नागार्जुन ने कहा था जिसे परम्परावादी
वास्तविक ज्ञान कहते,वस्तुत:वे वस्तु के
विषय में, निजी वक्तव्य होते किसी के!

आमतौर पर वस्तुएं जैसी होती उसे वैसी
ज्यों का त्यों जान लेना ज्ञान कहलाता,
ऐसे में पृथ्वी को पृथ्वी कहना है ज्ञान!

जबकि पृथ्वी को चांद कहना अज्ञानता,
किन्तु वास्तविकता यह कि पदार्थों का
भाषाई ज्ञान वास्तविक ज्ञान नहीं होता!

नागार्जुन के अनुसार सांसारिक वस्तुएं
लगातार परिवर्तनशील होती एवं अंततः
क्षय विनाश मृत्यु को प्राप्त हो जाती!

इस तरह से किसी वस्तु का भाषाबद्ध
बंधा-बंधाया ज्ञान उस बदलते वस्तु का
ज्ञान,अद्यतन ज्ञान कदापि नहीं होता!

पदार्थ के परमाणु के नाभिकीय स्तर पर
एक छोटे अणुकण की सही-सही स्थिति,
किसी विधि पता नहीं लगाई जा सकती!

ऐसी स्थिति में सिर्फ संभावना की जाती,
सभी वस्तुएं नाभिकीय स्तर पर निर्मित
परमाणुओं से,तो वास्तविकता खो जाती!

यह तो वही बात कि आपके बचपन की
बनाई गई कोई छवि आपके वृद्धापन की
सही-सही स्थिति की जानकारी नहीं देती!

भाषाबद्ध ज्ञान भी छायाचित्रों सा आबद्ध
भाषा के युक्तिबद्ध आकार प्रकार में बंधा
तथाकथित ज्ञान सत्य से विच्छिन्न करता!

भाषा का रुप-प्रारुप वस्तु के रूप-प्रारुप से
कहीं अधिक अपरिवर्तनीय सत्य हो जाता,
पर वस्तु विशेष हो जाती जल्द या देर से!

ये वस्तु भाषा में अभिव्यक्ति बनाए रखती,
यानि भाषा शाश्वत है, लेकिन वस्तु क्षणिक,
अस्तु संसार स्वभाव शून्य, वास्तविक नहीं!

हमारी समझ सदैव भाषा कोटी में आबद्ध
हम भाषाई ज्ञान को वस्तु स्वभाव समझते,
जबकि वस्तु जगत स्वभाव रहित है नीरव!

संसार की कोई वस्तु भाषा से आबद्ध नहीं,
वस्तुएं हमारे आग्रह पूर्वाग्रह से मुक्त होती,
पर हम वस्तु को पूर्वाग्रह से करते सीमित!

संसार क्या है इसकी पहचान का निर्धारण,
हम स्वपरिवेश उद्देश्य व संस्कार से करते,
ऐसे में स्व भाव को सांसारिक भाव कहते!

ये बंधा ज्ञान संसार को बंधक सा बताता,
ये ज्ञान संसार को संकीर्ण-संकुचित करता,
ऐसे आबद्ध ज्ञान से मुक्ति दिलाती प्रज्ञा!

वस्तुत: यह प्रकृति जगत असीम विश्रांति,
सिर्फ होना बताता, क्या है ये नहीं बताता,
संसार और प्रकृति में है लीन गहरी शांति!

एक स्थिति वैसी भी आती जब कुछ नहीं,
सब कुछ अंततः छिन्न विखंडित हो जाती
शून्यवाद दर्शन ऐसे छद्म ज्ञान से मुक्ति!

नागार्जुन महायानी शाखा के दार्शनिक थे,
उनके मतानुसार सांसारिक ज्ञान से मुक्त
होके ही कोई व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करते!

नागार्जुन भारत का आइंस्टीन माने जाते,
जो हीरा-मोती गलाने,अन्य द्रव्य से सोना
बनाने के लिए सिद्ध नागार्जुन कहलाते!
—विनय कुमार विनायक

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