-विनोद कुमार सर्वोदय-
क्या कारण है कि प्रायः सभी राजनैतिक दल चुनावों में एक-दूसरे को मुस्लिम विरोधी व स्वयं को उनका सबसे बडा हितैषी कहते नहीं थकते? वे मुस्लिम वोट पाने के लिये संविधान की मूल भावनाओं का अनादर करते हुये मुसलमानों को विशेष अधिकार देते जा रहे है। इस मानसिकता को समझते हुये मुस्लिम समाज भी (अपने लक्ष्य दारुल-हरब से दारुल-इस्लाम की ओर बढ़ते हुये) धर्म गुरुओं व नेताओं के कहे अनुसार नित्य नई-नई मागें मनवाने के लिये अपने वोट बैंक का दवाब राजनैतिक दलों पर बनाये रखता है। यद्यपि देश में बहुमत हिन्दुओं का है फिर भी केवल अल्पमत मुसलमानों के हितों के लिये अधिक कार्य करे तो चुनावों में जीतना सरल होगा, ऐसी सोच राजनेताओं की बन गयी है, जिसके परिणामस्वरूप धर्मनिरपेक्षता को नकारते हुये मजहबी कट्टरता से मुस्लिम साम्प्रदायिकता का भरपूर पोषण किया जा रहा है।
क्या बहुसंख्यक हिन्दू इस देश का नागरिक नहीं, क्या उसके वोट का कोई महत्व नहीं, क्या उसकी सहिष्णुता व उदारता का कोई सम्मान नहीं? फिर क्यों उनके (हिन्दुओं) द्वारा दिये गये करों से भरे सरकारी कोष से विभिन्न मुस्लिम सहायतार्थ योजनाओं को चलाया जाता है?
जरा सोचिये:-
क्या कारण है कि मदरसों, मस्जिदों, हज हाउसों व कब्रिस्तानों आदि के विकास की बात करने वाले गुरुकुल, मन्दिरों, तीर्थस्थलों, गऊशालाओ, धर्मशालाओं व श्मशानघाट आदि के विकास की बात नहीं करते?
क्या कारण है कि उर्दू, फारसी, अरबी भाषा के विकास की बात करने वाले संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, तमिल, मराठी, तेलगू आदि भारतीय भाषाओं के विकास की नहीं सोचते?
क्या कारण है कि सीमाओं पर कटते व मरने वाले जवानों व बम विस्फोटों से लहुलूहान हुये समाज की कोई नहीं सोचता, जबकि संदेह के आधार पर जेलों में बन्द मुस्लिम आतंकवादियों को छोडने की योजनाएं बनायी जाती है?
क्या कारण है कि ‘टाडा’ और ‘पोटा’ जैसे आतंकवाद विरोधी कानूनों को हटाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला गया?
क्या कारण है कि पाकिस्तान का निरन्तर युद्ध विराम उल्लंघन व बंगलादेश की घुसपैठ को सहज स्वीकार किया जा रहा है? क्यों पडोसी देशों के अत्याचारों को सहन किया जाता है?
क्या कारण है आतंकवाद का मुख्य स्त्रोत पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित नकली करेन्सी, अवैध हथियारों व नशीले पदार्थों की आपूर्ति बेधड़क चल रही है फिर भी हम शत्रु देश पाकिस्तान से यातायात को सरल किये जा रहे हैं, क्यों?
क्या कारण है कि मुस्लिम साम्प्रदायिकता का घिनौना दंश झेल रहे लगभग 4 लाख कश्मीरी हिन्दुओं के नारकीय जीवन पर सब चुप है? जबकि कश्मीर से पाकिस्तान जाकर जेहाद के लिये आतंकवादी बने कश्मीरी मुसलमान युवकों को पुनर्वास योजना के द्वारा वापस कश्मीर में बसाया जा रहा है।
उपरोक्त सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि राष्ट्र रक्षा व विकास ‘वोट बैंक’ की राजनीति का शिकार होता जा रहा है।
तात्पर्य है कि स्वतन्त्रता के बाद राजनैतिक स्वतन्त्रता तो मिली परन्तु वोटों की राजनीति ने कही न कहीं स्वतन्त्रता की मूल भावनाओं को ओझल कर दिया। तभी तो प्रायः किसी भी राजनीतिक दल ने राष्ट्र की एकता, अखंडता व सम्प्रभुता की रक्षार्थ अपना-अपना ‘घोषणा-पत्र’ तैयार नहीं करा, तो फिर कैसे होगा ‘राष्ट्र-आराधन’?