भ्रष्टाचार पर सख्ती की जरुरत

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-अरविंद जयतिलक
भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि एशिया में सबसे ज्यादा रिश्वत की दर भारत में है। ‘ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर (जीटीबी) एशिया के मुताबिक रिश्वत देने वालों में से तकरीबन 39 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि रिश्वत नहीं देने पर उन्हें सेवाएं प्राप्त नहीं होती। रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में हर पांच में से एक व्यक्ति ने रिश्वत दी है। रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ है कि अन्य सरकारी विभागों की तुलना में पुलिस विभाग सबसे ज्यादा घूसखोर है। तकरीबन 46 प्रतिशत लोगों ने स्वीकारा है कि वे कभी न कभी पुलिस को रिश्वत दी है। रिपोर्ट के मुताबिक 42 प्रतिशत लोगों ने सांसदों को भ्रष्ट बताया है। इसी तरह 41 प्रतिशत लोगों ने स्वीकारा है कि सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट हैं। वहीं न्यायालय में बैठे 20 प्रतिशत न्यायाधीशों को भी भ्रष्ट बताया है। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के सबसे ईमानदार देशों में मालदीव और जापान पहले नंबर पर हैं। इसके बाद दक्षिण कोरिया, हांगकांग और आस्टेªलिया का नंबर आता है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट उस सर्वेक्षण पर आधारित है जो इस वर्ष जून से सितंबर के बीच किया गया। इसमें 17 देशों के लगभग बीस हजार लोगों से सवाल पूछे गए। सर्वे में 6 तरह की सरकारी सेवाएं शामिल की गयी। चार में से तीन लोगों ने माना है कि उनके यहां सरकारी भ्रष्टाचार बड़ी समस्या है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के इस खुलासे से स्पष्ट है कि भारत में भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौती सघन हुई है। भ्रष्टाचार के इतिहास में जाएं तो आजादी से पूर्व अंग्रेज सुविधाएं प्राप्त करने के लिए राजे-रजवाड़ों को धन दिया करते थे। आज अंतर सिर्फ इतना है कि अंग्रेजों की जगह भारतीय नागरिकों को अपना वाजिब हक पाने के लिए अधिकारियों-कर्मचारियों को घूस देना पड़ रहा है। इसी का नतीजा है कि जहां एक ओर भारतीय समाज सुविधाभोगी बनता गया वहीं भ्रष्टाचार को फलने-फूलने का मौका मिला। पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था। लेकिन जब से देश में वैश्वीकरण, उदारीकरण, बाजारीकरण व विनियमन की नीतियां बनी हैं तब से भ्रष्टाचार की मानों आंधी चल पड़ी है। सच कहें तो आज की तारीख में भ्रष्टाचार जीवन व व्यवस्था का एक अंग बन चुका है। भ्रष्टाचार की वजह से ही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंच रहा है। याद होगा गत वर्ष पहले प्रोफेसर विवेक देबराॅय और लावीश भंडारी ने अपनी पुस्तक ‘करप्शन इन इंडिया’ में उद्घाटित किया था कि हर साल भारत में सरकारी अधिकारियों द्वारा 921 अरब रुपए का हेरफेर किया जाता है। यह देश की जीडीपी का तकरीबन 1.26 प्रतिशत है। इस पुस्तक में यह भी दावा किया गया था कि सर्वाधिक घूस या रिश्वत यातायात विभाग, रीयल इस्टेट, और सरकार द्वारा मुहैया करायी जाने वाली सेवाओं में दिया जाता है। गत वर्ष पहले ‘अन्स्र्ट एंड यंग’ के एक अध्ययन से उजागर हुआ कि भ्रष्टाचार को लेकर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर, रीयल इस्टेट, मेटल एंड माइनिंग, एयरोस्पेस एंड डिफेंस, पावर व यूटिलिटी शामिल हैं। इन क्षेत्रों में कई ऐसे अंग हैं जो भ्रष्टाचार को बढ़ाने में सहायक साबित हुए हैं। मसलन बिचैलियों का व्यापक इस्तेमाल, बड़ी मात्रा के ठेके और दलाली इत्यादि। केपीएमजी की एक स्टडी बताती है कि देश का रीयल इस्टेट, टेलीकाॅम और सरकार संचालित सामाजिक विकास योजनाएं सहित तीन सर्वाधिक भ्रष्ट क्षेत्र हैं। भ्रष्टाचार के कारण ही गरीबी, भूखमरी और बेरोजगारी बढ़ी है। भ्रष्टाचार से उपजी बेरोजगारी के मामले में हमारी स्थिति शर्मनाक है। देश की वर्तमान बेरोजगारी दर 10‐7 प्रतिशत से उपर पहुंच चुकी है। अगर भ्रष्टाचार का मुंह इसी तरह पसरा रहा तो 2022 तक बेरोजगारी दर 30 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर जाएगा। कभी सेना, मीडिया न्यायपालिका और खुफिया जैसे संस्थान बेहद बेदाग समझे जाते थे। लेकिन आज ये क्षेत्र भी भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। दरअसल भ्रष्टाचार पर अंकुश न लगने के कई कारण हैं। इनमें भ्रष्टाचार विरोधी कानून का ईमानदारी से पालन न होना, भ्रष्टाचार से संबंधित मुकदमों की सुनवाई में देरी और भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा न मिलना एक महत्वपूर्ण कारण है। उचित होगा कि सजा का निर्धारण भ्रष्टाचार से बनायी गयी संपत्ति के मूल्य के हिसाब से हो। टैक्सचोरों पर सिर्फ जुर्माना ही नहीं बल्कि उन्हें जेल भेजने का भी प्रावधान होना चाहिए। इसके अलावा जनता के कार्यों को पूरा करने एवं शिकायतों पर कार्यवाही के लिए समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए। इससे लोकसेवकों की जवाबदेही-जिम्मेदारी तय होगी और वे कार्यों में हीलाहवाली नहीं करेंगे। सभी लोकसेवक अपनी संपत्ति की हर वर्ष घोषणा करें इसके लिए भी सरकार को कानून बनाना चाहिए। साथ ही भ्रष्टाचार की एकांगी और अधकचरी व्याख्या भी इसके लिए जिम्मेदार है। देश का इतिहास बताता है कि भ्रष्टाचार राजनीतिक तुफान खड़ा करने का एक अहम जरिया तो बना लेकिन उसकी परिणति भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिगुल फूंकने वालों को सत्ता तक पहुंचाने तक ही सीमित रही। भ्रष्टाचार को कभी भी जीवन के व्यापक संदर्भो से जोड़कर नहीं देखा गया और न ही उसपर सार्थक बहस चलाने की जरुरत महसूस की गयी। उल्टे भ्रष्टाचार की परिभाषा को एक सीमित दायरे में बांध दिया गया। नतीजा भ्रष्टाचार को खूब फलने-फूलने का मौका मिला। आमतौर पर देश में यह धारणा बन चुकी है कि घूस लेना, कमीशन खाना, और अवैध तरीके से धन इकठ्ठा करना ही एकमात्र भ्रष्टाचार है। लेकिन यह धारणा संकुचित है। सामाजिक, आर्थिक, राष्ट्रीय और नैतिक उत्तरदायित्वों के प्रति उदासीनता और उसका उलंघन भी भ्रष्टाचार ही है। अच्छी बात यह है कि आज की तारीख में भारत सरकार के साथ-साथ देश का सर्वोच्च न्यायालय भी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। उसने अपने अधीनस्थ उच्च न्यायालयों को सुझाव दिया है कि भ्रष्टाचार के मामलों का त्वरित निस्तारण करें और दोषियों को कड़ी सजा दें। गौर करें तो उसका प्रभावी असर दिख भी रहा है। देश के कई बड़े राजनेता जो घपले-घोटाले में संलिप्त हैं वे अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। उचित होगा कि सरकार भ्रष्टाचार करने वालों लोगों पर कड़ी कार्रवाई कर उनकी काली कमाई जब्त कर ले। अगर सरकार ऐसा करती है तो भ्रष्टाचारी डरेंगे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। अच्छी बात यह है कि केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में अग्रसर है। 2014 में सत्ता संभालते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ ठोस कार्रवाई से तनिक भी नहीं हिचकेगी। इसी उद्देश्य से उसने मई, 2015 में भ्रष्टाचार पर नकेल कसते हुए भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक, 2013 में कुछ जरुरी बदलाव किए। इस बदलाव के तहत भ्रष्टाचार को गंभीर अपराध माना गया और दोषियों को सात साल की सजा मुकर्रर की गयी। इससे पहले 1988 में तैयार भ्रष्टाचार निरोधक कानून के मुताबिक वित्तीय घोटाले को संगीन अपराध नहीं माना जाता था और दोषियों को सिर्फ पांच साल तक की ही सजा का प्रावधान था। काले धन के खिलाफ सरकार की पहल का ही नतीजा रहा कि वह लाखों मुखौटा कंपनियों को चिंह्नित करने में सफल हुई जो नोटबंदी के दौरान अपने बैंक खातों का इस्तेमाल काले धन को सफेद करने के लिए किया था। बेहतर होगा कि सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि सरकारी तंत्र यानी जांच एजेंसियां अपना काम स्वतंत्र व निष्पक्ष रुप से करें। उनके काम में किसी तरह का हस्तक्षेप भ्रष्ट लोगों को बच निकलने का मौका देता है। हालांकि अब सरकार द्वारा बेनामी संपदा हस्तांतरण रोकने के लिए बनाया गया कानून भ्रष्टाचार रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उचित होगा कि सरकार राजनीतिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए चुनाव सुधार पर जोर दे। जन प्रतिनिधित्व कानून में यह प्रावधान जोड़े कि अगर किसी अपराधी के विरुद्ध चार्जशीट तैयार हो जाती है तो उसे न तो चुनाव लड़ने का हक हो और न ही उसे सरकार में कोई पद दिया जाए। भष्टाचार और काले धन के विरुद्ध एक स्वायत्त संस्था का गठन भी किया जाना आवश्यक है जो कि सरकार से पूर्णतया स्वतंत्र हो।

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