शिलान्यास पत्थर पर नाम चाहिये

                            आत्‍माराम यादव

मिस्टर प्रश्‍न कुमार दिखने में साफ-सुथरे है पर विडम्बनाओं और विकृत मानसिकता के मुखौटे बाजी में वे सबके बाप है। अल्पविराम, अर्द्धविराम, कामा, प्रश्नवाचक, प्रश्नचिन्ह, चन्द्रबिन्दु आदि आधे-अधूरे मित्रों से घिरे रहने वाले प्रश्नकुमार सदैव घटिया मानसिकता की बाॅहों में झूला झूलते रहते है। इनके मित्र सदैव इन्हें सिर आंखों में बिठाये इनके कच्चे कानों में अपने षड़यंत्रों को उड़ेलते रहते है। गटरों की संडास से कहीं भी हालात बिगाड़ने में गटर के कीड़ों को फुरसत नहीं मिलती है, इन बदबूदार कीड़ों से प्रश्न करने की हिमाकत किसी में नहीं होती है पर इंसान संभावनाओं में जीता है और प्रश्नकुमार हर जगह संभावनाओं को ताड़ लेता है। उसकी पहली संभावना आदमी न होकर वह खुद को आदमी समझता हैं और हर आदमी में संभावनाए टटोल कर जैसे तैसे उनसे जुड़ जाता है। अपनी मित्रमण्डली के मंसूबों को पूरा करना उसका सपना होता है, इसलिये आपके प्रति आत्मीयता या दर्द का रिश्ता वह कायम नहीं करता। उसका मकसद आपको स्वर्गवासी बनाकर खुद आपकी जगह लेना होता है पर वह जमाने के सामने बगुला भगत बना रहता है।
प्रश्नकुमार को श्रीमान कहना श्रीमान का अपमान है। श्रीमान वह जिसका आत्मसम्मान हो, पर प्रश्नकुमार की तो आत्मा ही नहीं है, जब आत्मा ही नहीं तो आत्मसम्मान कहाॅ से लाओंगे? बैलबुद्धि प्रश्नकुमार जी ने एक आयोजन के शिलान्यास पत्थर को देखा, तपाक से लाल पीले हो गये, अरे नाशमिटों तुमने पत्थर पर अपना नाम कब, कैसे, लिखवा लिया, हमें बतायें बिना धोखा दिया है, इसमें मेरा सम्मान कहा हॅ, पत्थर पर मेरा नाम नहीं है, अगर मेरा नाम नहीं तो यह शिलान्यास पत्थर बदल डालो, शिलान्यास करने वाले अतिथियों से लेकर सारे जिम्मेदारों, ठेकेदारों सहित उन जिम्मेदारों को कोसने लगे कि तुम्हारा नाम पत्थर पर कैसे, क्यों आया, पत्थर बदल दो। मेरा अपमान हुआ हॅू मैं सम्मान के लिये जीता हॅू, अगर गड़बड़ करोगों तो सोसाइट कर सोसाइट नोट में सबको जिम्मेदार ठहरा जेल भिजवा दूॅूगा। प्रश्नकुमार मर न जाये इसलिये तुरन्त आश्वासन जैसे अर्थपूर्ण शब्द की बैतरनी का सहारा लेते हुये आश्वासन दिया गया, जिसे पाने वाला प्रसन्न और देने वाला प्रसन्न। किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं, अध्यक्ष ने आश्वासन दिया, प्रश्नकुमार ने आश्वासन लिया। अब शिलान्यास के पत्थर को अतिथियों के हस्तक्षेप के बाद हाल फिलहाल प्रश्नकुमार के प्रश्नों की चिंताओं से कुछ राहत मिली है, मुक्ति नहीं।
कुल लोग सालों अच्छे कर्म करते है, तो कुछ की उम्र खप जाती है समाजसेवा में, तब कहीं जाकर उनका संघर्ष, उनकी तपस्या उनका सिद्धान्त उन्हें आदरणीय बनाकर किसी लेख-शिलालेख पर दर्ज हो पाता है। प्रश्न कुमार जिस प्रकार शिलालेख पर खुद का नाम दर्ज कराने के लिये अपने पैसे से शिलालेख बदलने की बात कर आदरणीय बनना चाहता है, उसे देख उसकी बुद्धि पर तरस आता है। सभी जानते है प्रश्नकुमार का जीवन इस समाज को, इस राष्ट्र को समर्पित है, इसका अर्थ यह कदापि न लगाएं कि प्रश्न कुमार देशभक्त, समाजसेवी है? अरे भई, प्रश्न कुमार के पास स्वयं की कोई जिम्मेदारी नहीं है और न ही वह कुछ कमाता-धमाता है, न ही श्रम-परिश्रम करता है, वह तो समाज से उगाहकर, अधिकारियों पर अपनी पैतरेबाजी दिखाकर खाता-पीता है।
प्रश्न कुमार किसी एक गुट में नहीं, हर गुट में है और हर गुट में वह अपनी साजिशों के पैर पसार कर मुस्कुराता है, पर वह अपनी ताकत कमजोरों पर आजमा कर अपने को तुर्रम खां पहलवान समझता है। प्रश्न कुमार की पहचान उस व्यक्ति की तरह है जिसे कल तक कोई अपने पास नहीं बिठाता था, उससे दुआ-सलाम की बात दूर, उसे चाय-पानी तक के लिये नहीं पूछता था। वह वे सारे काम करता था जो कानून अवैध एवं समाज विरोधी थे, पर आज वह आदरणीयों के साथ उठने बैठने लगा है। वर्ना पूरा शहर जानता था कि प्रश्न कुमार को अपने घर में ही आदरणीय नहीं माना, फिर दूसरों से कैसी उम्मीद की जा सकती है। हां उसने पैसा कमा के पैसा वालो के कदमों पर चलना सीख लिया, जैसे गली वाली पैसा कमाने में माहिर होकर खूब पैसे वाली होकर कभी खुद का सम्मान नहीं करा सकती, ठीक ऐसा ही प्रश्न कुमार के साथ है।
प्रश्न कुमार आज भी सभी के लिये प्रश्नचिन्ह है। प्रश्नचिन्हों को लेकर हम जी रहे है, आप जी रहे हो,  हर घर-परिवार, हर कर्मचारी- अधिकारी, हर विभाग, हर सरकार प्रश्नचिन्हों के बिना अधूरी है। हमारे विधायक जी, पंच सरपंच, पार्षद, नपाध्‍यक्ष आदि सभी के अलावा  नगर पालिका के अधिकारी, हमारे संगठन के अध्यक्ष सबके चेहरों पर प्रश्नचिन्ह है। दिशा तय नहीं है, रास्ता पता नहीं है, तर्क-वितर्क लिये प्रश्नचिन्ह पीछा कर रहे है, बुद्धिमान की तरह प्रश्न कुमार खुद सबके लिये प्रश्नचिन्ह है। प्रश्न कुमार की हालत ठीक वैसी हो गयी जैसे नगर पालिका अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्ति से एक-दो माह पूर्व वह फायर बिग्रेड खरीदे, तो उसे यह कैसे गवारा लगेगा कि आग कोई दूसरा बुझाये, भई अगर हमने फायर बिग्रेड खरीदी है तो हमारे कार्यकाल में आग लगनी चाहिए, और हम ही उसे बुझाये और बुझाने के लिये फायर बिग्रेड का उद्घाटन भी हम करेंगे, जब तक विधिवत उद्घाटन नहीं होगा शिलान्यास पत्थर पर नाम नहीं लिखा जायेगा, तब तक आग कैसे बुझेगी?  

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