आगरा को सुधारने की जरुरत

डा.राधेश्याम द्विवेदी
एतिहासिक इमारतें रोजी रोटी के साधन:- आगरा को मुगलों ने अपनी पहली राजधानी बनाया था। यहां तीन विश्व विरासतें – ताजमहल का रोजा ,आगरा किला तथा फतेहपुर सीकरी का मुगल शहर स्थित हैं। यहां अनेक राष्ट्रीय स्तर की इमारतें भी हैं। इस कारण यहां आने वाले पर्यठकों की संख्या भी ज्यादा ही रहती है। एतिहासिक इमारतें यहां के रोजी रोटी के साधन हैं। गाइड, फोटोग्राफर ,टैक्सी, होटल ,टैम्पू तथा यहां तक कि बाजार वाले भी इन्हीं पर आश्रित है। जब से प्रदूषण का शोर ज्यादा हुआ, यहां के उद्योग आदि धीरे-धीरे सिमटते गये और दूसरे शहरों की ओर बढ़ गये। यहां पैसे या संसाधन की कमी तो कभी भी नहीं रही है। यदि कोई कमी है तो वह है इच्छा शक्ति तथा ईमानदारी से काम करने की जज्बे की। इस शहर को वह स्थान नहीं मिल सका जिसका यह वाकई हकदार था। अंग्रजो से लेकर स्वतंत्र भारत के लगभग 70 वर्षो तक यह एक उपेक्षित शहर के रूप में ही जाना जाता रहा। सत्तर के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन युवराज स्व. श्री संजय गांधी ने इसके विकास के लिए कुछ शुरूवात किया था। यहां उसी समय यहां पथकर लगाया गया था। उसके बाद उनका सपना अधूरा ही रह गया। हां पथकर में कई गुना बृद्धि होती निरन्तर देखी जा रही है।
आगरा की महत्वपूर्ण समस्याये
1. भीड़और जाम की समस्या :- वर्तमान समय में इस शहर की सर्वधिक बड़ी समस्या जाम की है । सप्ताहान्त में बाहर के मुसाफिर आगरा में ज्यादा आ जाते है। कहीं कोई रैली का आयोजन हुआ तो भी भीड़ बढ जाती है। जब शहर में प्रतियागिता की कोई परीक्षाये होती हैं तो भी यह भीड़ देखी जा सकती हैं। इसके समाधान के लिए प्रशासन जो भी उपाय करता है वह पर्याप्त नहीं होता है। पुलिस की पेट्रोलिंग इस उद्देश्य से कभी नहीं की जाती है। टैम्पां व रिक्शे सवारियों के लिए आम जनता की सुविधाओं की अनदेखी करते रहते हैं। गांव के आने वाले लोग तो यातायात नियमों का पालन कम करते हैं। तमाम शहरी लोग भी जल्दी जाने के चक्कर में नियम तोड़ते देखे जा सकते हैं। भैसों की झुण्डें यहां सड़कों से जब निकलती है तो ये सारी व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है। स्कूलों से निकलने वाले बच्चे , पेठा इकाइयों के वाहन, लोडिंग वाहन जब भीड़ वाले इलाके में घुस जाते हैं । अनेक जगह एसी बेतरतीब दुकाने लगा दी जाती हैं कि आम आदमी का निकलना दूभर हो जाता है। शहर को स्मार्ट बनाने के लिए न सिर्फ प्रस्तावों को मांझा जा रहा है, बल्कि बजट प्रबंधन का भी ध्यान रखा जा रहा है। प्रस्ताव के तहत 2,253 करोड़ रुपये से शहर को स्मार्ट बनाने की योजना है। नगर निगम क्रिसिल कंपनी की मदद से प्रस्ताव को अंतिम रूप देने में जुटा है। इसके तहत बजट का 78 फीसदी एरिया बेस्ड डेवलेपमेंट और 22 फीसदी पेन सिटी के तहत खर्च किया जाना है। इसके लिए क्रिसिल ने ‘मेरा आगरा कार्ड’ बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इस स्मार्ट कार्ड के माध्यम से न सिर्फ शॉपिंग की जा सकेगी, बल्कि स्मारकों के प्रवेश, पार्किंग, बस, मेट्रो आदि टिकट, रेस्टोरेंट व होटलों के बिल का पेमेंट इसी कार्ड से किया जा सकेगा यह उत्तर प्रदेश को ‘होम ऑफ ताज’ है। यह भारत की आन, बान और शान है, फिर भी यहां की सड़कें खस्ताहाल हैं। केंद्रीय पूल और स्टेट पूल से सड़कों के लिए अतिरिक्त धन, पथकर निधि भी यहां की सड़कें ठीक नहीं रख पा रही है।
2. सड़कों के रखरखाव का जिम्मा ठेकेदार को:- सड़कों के रखरखाव का जिम्मा कार्यदायी संस्था और बनाने वाले ठेकेदार पर ही रहना चाहिए। यह समयावधि आमतौर पर चार से पांच साल रहे तो बेहतर रहेगा। अनेक स्थानों पर सड़क के लिए काटे जाने वाले पेड़ों के मामले में नए पेड़ लगाकर उन्हें पांच साल तक ‘बढ़ा’ करके देने की जिम्मेदारी ठेकेदार की होती है। इस व्यवस्था को नजीर के रूप में अपनाया जा सकता है। पेड़ के रखरखाव का खर्च ठेकेदार को मिलता है। यहां भी ‘एनुअल मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट’ के रूप में कुछ प्रतिशत अतिरिक्त धनराशि भी दी जा सकती है। बोदला-बिचपुरी रोड पर सड़क बनाते ही धंस गई थी। अधिकारियों ने ठेकेदार को धंसी सड़क के भराव और पैच वर्क के लिए मजबूर किया। यदि यह व्यवस्था कानूनी रूप ले ले, तो कहीं कोई ठेकेदार खराब सड़क बनाने की जुर्रत नहीं करेगा। सड़क बनाने वाली कार्यदायी एजेंसी एवं ठेकेदार का पूरा विवरण, कार्यालय एवं फोन नंबर सहित बनने वाली सड़क पर कार्य शुरू होते ही लग जाना चाहिए। कार्य में पारदर्शिता के अभाव में जब कोई जागरूक व्यक्ति या संस्था कार्य के बारे में संबंधित विभाग को शिकायत करना चाहती है, तो यह ही पता नहीं लग पाता है कि कार्यदायी संस्था कौन सी है। शिकायत की जाए तो किससे? यह भी पता नहीं चलता कि बनाने वाला ठेकेदार फर्म कौन सी है यानी शिकायत करें तो किसकी? यदि सूचना सार्वजनिक होगी तो कार्यदायी संस्था और ठेकेदार स्वत: सचेत रहते हुए कार्य करेंगे। यानि यह व्यवस्था अपने आप में एक अंकुश के रूप में होगी।
3. ड्रेनेज की व्यवस्था सुनिश्चित हो:- समय पूर्व खराब होने वाली सड़कों के ज्यादातर मामलों में डामर की सड़क पर जल भराव कारण होता है। काफी जगह तो नाली होती ही नहीं है, काफी जगह नाली होती है तो बंद पड़ी होती है। कुछ जगह जहां नाली चालू हालत में होती हैं वहां वह आवश्यकता से कहीं अधिक छोटी (कम क्षमता का प्रवाह) वाली होती है। बारिश या अन्य कारण से ज्यादा पानी आने पर ओवर फ्लो होकर पानी सड़क पर आ जाता है। ऐसे हालात में नाली का होना ज्यादा मायने नहीं रख पाता है। सड़क बनने की योजना में नाली योजना की हिस्सा रहनी चाहिए। यदि नाली नहीं है तो पहले बने, यदि है और बंद है तो खुले, यदि छोटी है तो पहले सुधार हो, तब ही सड़क का काम शुरू हो, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।
4. फुटपाथ साफ, ढाल नाली की ओर हो:- यहां की ज्यादातर सड़कों के किनारे फुटपाथ नहीं मिलता। सड़क किनारे कच्चे हिस्से को फुटपाथ मान लिया जाता है। कच्चे हिस्से में हुए गड्डे ही सड़क के नीचे पानी भरने और सड़क खराब होने की वजह बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि फुटपाथ पैदल चलने वालों को सम्मानजनक सड़क मुहैय्या कराने के अतिरिक्त सड़क के पहले सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है। फुटपाथ की ढाल नाली की तरफ हो, जिससे सड़क का पानी फुटपाथ पर होता हुआ सीधे नाली में जाए।
5. शहर में स्थाई व अस्थाई अतिक्रमण न होने पाए:- प्राय: यह देखा गया है कि हर शहर के बाजारों, गली-मौहल्लों में अतिक्रमण होते समय प्रशासनिक अमला आंखें मूंदे रहता है। कुछ सरकारी कर्मचारियों को यह आय का जरिया दिखाई देता है। अधिकारी अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाते हैं, अतिक्रमणकारी अगले ही दिन फिर अतिक्रमण कर लेते हैं। उपाय अतिक्रमण हटाना नहीं, ऐसी व्यवस्था है, जहां अतिक्रमण हो ही नहीं पाए। यह ऐसी दण्ड व्यवस्था पर निर्भर करता है, जो अनियमितता करने से रोकने का खौफ पैदा करती हो।
6. सभी विभागों में हो आपसी समन्वय:- प्राय: यह देखा गया है कि केंद्रीय और प्रादेशिक सभी विभागों में आपसी समन्वय नहीं होता है। एक विभाग सड़क बनाता है, कुछ दिन भी नहीं बीत पाते दूसरा विभाग सड़क को काट देता है। सड़क बनाने पर हुआ खर्च, उस दौरान जनता ने उठाई परेशानी सब जाया हो जाती है। ऐसा नियम बनना चाहिए कि सड़क बनने के बाद कम से कम एक वर्ष बाद तक कोई विभाग अपनी किसी भी योजना के लिए सड़क नहीं खोद पाएगा। यदि सड़क बनने से पहले सभी विभागों की निकट भविष्य की योजनाओं का आपसी समन्वय हो जाए, तो हुआ खर्च भी सकारथ होगा और जनता को बार-बार परेशान भी नहीं होना पड़ेगा।
7. सड़क की गुणवत्ता की जांच केंद्रीय एजेंसी से:- सड़क निर्माण एवं रखरखाव संघीय सरकार व्यवस्था में राज्यों की जिम्मेदारी है। राज्यों के विभिन्न विभाग अलग-अलग सड़कों के निर्माण एवं रखरखाव का जिम्मा संभालते हैं। अलग-अलग विभाग ही ठेकेदार नियुक्त कर सड़क बनवाते हैं। प्रादेशिक विभागों के काम को अन्य ऐजेंसी से गुणवत्ता चैक करानी चाहिए। स्वाभाविक है प्रादेशिक विभागों के काम को उसी प्रदेश के दूसरे विभागों से चैक कराने पर आपसी खींचतान सामने आ सकती है। अत: ज्यादा बेहतर रहेगा कि केंद्रीय स्तर पर एक मॉनीटरिंग व्यवस्था रहे जो सभी प्रदेशों के कामकाज की समीक्षा कर अपनी रिपोर्ट दे। इससे सही आंकलन में मदद मिलने की संभावना है।
8. नागरिकों का भी हो मॉनीटरिंग में योगदान:- सरकार ने मनरेगा में सोशल ऑडिट की बात लागू करके, यह स्वीकार लिया है कि सरकारी कामकाज की बेहतर मॉनीटरिंग वही है, जिसमें जनता की भागीदारी हो। चाणक्य ने कहा था कि ‘सरकार का काम शासन करना है, व्यवसाय करना नहीं’। यदि सरकार खुद कोई काम करेगी, तो जनता यह देखने की इच्छा रखती है कि उसके टैक्स के दिए पैसे का सही सदुपयोग किया गया है या नहीं। जनता के नाम पर सभी अपनी राय व्यक्त करेंगे, तो फीडबैक न होकर विवाद सामने आ जाएंगे, अत: नागरिकों की प्रतिष्ठित संस्थाओं को निर्माण एवं निर्माण के उपरांत मॉनीटरिंग के काम में जोड़ा जा सकता है। इससे जनता का प्रतिनिधित्व भी होगा, और काम में कोई दखलंदाजी भी नहीं होगी।
9. तकनीकि निर्धारण वेबसाइट पर हो:- हर राज्य की भौगोलिक, पर्यावर्णीय विशेषताओं के आधार पर तकनीकि निर्धारण अलग हो सकते हैं। यदि राज्यभर के सड़क निर्माण के तकनीकि निर्धारण का वर्गीकरण वेबसाइट पर उपलब्ध रहे। इससे कोई जागरूक व्यक्ति या संस्था सब कुछ मानकों के अनुरूप हो रहा है या नहीं पता लगा सकती है। इससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। मानक सभी की जानकारी या पहुंच में होने चाहिए।
10. बनने वाली सड़कों का डाटा सुरक्षित रहे:- जनपद में जो भी सड़कें बनें उसका डाटा भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जाए। इस डाटा में बनने वाली सड़क से संबंधित सभी जानकारी जैसे कार्यदायी एजेंसी का पूरा विवरण, ठेकेदार फर्म का पूरा विवरण, कितनी राशि से, किस अवधि में, कितनी अवधि के लिए, कहां से कहां तक की सड़क बनी, होना चाहिए। यह सारी जानकारी जनता के लिए वेबसाइट पर उपलब्ध हो, जिससे एक-दो साल बाद जब सड़क खराब हो तब दोषी व्यक्ति ढूंढने के लिए किसी जांच कमेटी की रिपोर्ट के इंतजार के बिना प्रथमदृष्ट्या दोषी मानकर जांच शुरू की जा सके।
11. ज्यादा वाहन भी सड़कों की खराबी का कारण:- आगरा में पिछले बीस सालों में वाहनों की बेतहाशा वृद्धि हुई है। उस अनुपात में सड़कों में इजाफा नगण्य है। जाहिर है जब मानकों से ज्यादा लोड पड़ेगा तो सड़कें खराब होंगी ही। खराब सड़कें दुर्घटनाओं के साथ-साथ बीमारियों को भी न्यौता दे रही हैं। ज्यादा वाहन हर जगह जाम की स्थिति पैदा किए रहते हैं। इससे वायु प्रदूषण भी हो रहा है। वाहनों में जलने वाले ईधन से वातावरण में सल्फर पैदा होती है। यह ऑक्सीजन के संपर्क में आकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। ये एक ग्रीन हाउस गैस है, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है। इससे धरती का तापमान बढ़ जाएगा।
12.सरकार पर्यटकों को फतेहपुर सीकरी तक लाने-ले जाने में असफल :- आगरा भारत की पर्यटन राजधानी है। आगरा में दुनिया में सबसे पहले तीन विश्वदाय धरोहरों को मान्यता मिली है। करीब अस्सी लाख लोग प्रति वर्ष ताजमहल देखने आते हैं। इस सबके बावजूद ताजमहल के सापेक्ष सिर्फ 12 फीसदी लोग फतेहपुर सीकरी देखने जाते हैं। विश्वदाय एवं संरक्षित धरोहरों का समूह होने के बाद भी हम अपने आगरा आने वाले पर्यटकों को फतेहपुर सीकरी तक लाने-ले जाने में असफल हैं। हमारा मानना है कि आगरा से फतेहपुर सीकरी का ट्रेन के माध्यम से बेहतर जुड़ाव न होने पर सिर्फ सड़क मार्ग से ही जाने का विकल्प मौजूद रह जाता है। सड़क मार्ग से जाने पर सड़क के गड्डे वहां जाने के लिए हतोत्साहित करते हैं। सुभाष पार्क तिराहे से पृथ्वीनाथ फाटक तक की सड़क में जहां-जहां पैचवर्क और लेपन कार्य की आवश्यकता है, वहां-वहां सड़क सुधार के लिए आवश्यक निदेश देकर प्राथमिकता के आधार पर सड़क सुधार कराएं।
13.महात्मा गांधी मार्ग का चैड़ीकरण हो:-आगरा की लाइफ लाइन के रूप में विख्यात महात्मा गांधी मार्ग सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है। यदि फुटपाथ को सड़क किनारे कर फुटपाथ के क्षेत्र को सड़क में मिला दिया जाए तो थोड़ी ही सही सड़क चैड़ी हो सकती है। इससे आगरा को बेहतर गति मिलेगी। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी मार्ग का चैड़ीकरण 1975-77 के दौरान हुआ था। तबसे आज तक लाखों वाहन आगरा की सड़कों पर आ चुके हैं। लेकिन सड़क की चैड़ाई जस की तस है।कि आगरा की महात्मा गांधी मार्ग को चैड़ा करने के लिए संबंधित विभागों को कार्ययोजना बनाकर कार्यांवित करने के लिए निदेश दें। यदि ऐसा आपके कार्यकाल में हुआ तो निश्चय ही आपका नाम आगरा के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
14.कांक्रीट की सड़क बेहतर :- कोलतार वाली सड़कों के लिए पानी काफी नुकसान पहुंचाता है। आगरा में काफी जगह सड़क खराब होने का कारण नाली न होना या नाली चोक होना रहता है। अत: ऐसे शहर में जहां नाली की व्यवस्था उपयुक्त न हो, वहां कांक्रीट की सड़क बनाना बेहतर है। कई सड़कों के खराब होने का कारण सड़क निर्माण के समय आंके गए ट्रैफिक से बहुत ज्यादा होना है। जैसे आवास विकास कॉलोनी की सड़कें हैवी ट्रैफिक के लिए नहीं बनीं थी। जब ज्यादा लोड पड़ेगा तो सड़के खराब होंगी ही। सड़कों की बदहाली के लिए जनता खुद भी जिम्मेदार कम नहीं है। ज्यादातर जगह जनता ने नालियां बंद कर रखी हैं। इससे पानी सड़क को बर्बाद करता है। ट्रांसपोर्ट नगर में नालियां न होने से नरक देखा जा सकता है। प्रशासन कड़ाई से नालियां चालू कराए। सीवर आदि की खुदाई के बाद ढंग से मिट्टी नहीं दबाई गई। इससे सड़क धंस रही है। कमलानगर इसका उदाहरण है।
15.हाईवे व ओवर व्रिज के अधूरे काम शीघ्र पूरे हों :- यह देखा गया है कि आगरा में रिंग रोड तथा हाईवे सहित अनेक मार्गो पर राज्य तथा केन्द्र सरकार द्वारा काम पिछले कई वर्षों से चल रहे हैं। आये दिनो यहां भयंकर जाम से जूझना पड़ता है। इनकी कोई कारगर मानीटरी देखने को नहीं मिलती है। जनता को बहुत असुविधा होती है। इसे युद्ध स्तर पर कार्य कराकर आम जनता के लिए खोल दिया जाना चाहिए। अधिकारियों का निरन्तर दौरा होते रहना चाहिए। राजनीतिक प्रभाव वाले ठेकोदारों से काम वापस लेकर अच्छे तथा अनुभवी संस्थाओं से कराया जाना चाहिए।
इस प्रकार यदि उपरोक्त कुछ महत्वपूर्ण विन्दुओं पर थोड़ा सकात्मक रुख अपनाया जाय तो वह दिन दूर नहीं कि आगरा एक स्मार्ट सिटी बन सकेगा। आगरा में पथकर का एक बहुत बड़ा आय होता है परन्तु यह धन पथ के सुधार में ना लगाकर कुछ विभागों की मिली भगत से अन्य सुख सुविधाओं के संसाधनों में लगाया जाता हैं। भारत तथा उत्तर प्रदेश में विना पथकर वाले शहरों की सड़के आगरा से अच्छी हालत में संरक्षित की जाती हैं। आगरा में भी पथकर भ्रष्टाचार का एक जरिया मात्र रह गया है। इसे तत्काल समाप्त करना चाहिए और केन्द्रीय तथा राज्य के अन्य मदों से पथों को संरक्षित कराया जाना चाहिए।

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