नेहरू  जी बस नेहरू थे….

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अनिल अनूप 

लोकतंत्र एक व्यक्ति, एक परिवार की बपौती नहीं है। बेशक जवाहर लाल नेहरू हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे, लिहाजा आधुनिक भारत के निर्माता भी बने। स्वतंत्रता की लड़ाई उन्होंने भी लड़ी और करीब 9 साल वह जेल में भी रहे। चूंकि देश गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र हुआ था, लिहाजा हरेक शुरुआत हमें ‘शून्य’ के साथ करनी थी। बेशक नेहरू स्वतंत्रता, समता, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार थे, लिहाजा कई मायनों में वह महान थे, लेकिन वह अकेले ही लोकतंत्र नहीं थे और न ही कोई हो सकता है। आज तो उनकी प्रासंगिकता अतीत और इतिहास से जुड़ी है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का यह आरोप बेमानी है कि नेहरू की विरासत को आज कमतर आंका जा रहा है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर का भी यह बयान लोकतंत्र का अपमान है कि नेहरू की वजह से ही आज एक ‘चायवाला’ देश का प्रधानमंत्री है। यह बयान भारत के लोकतंत्र की मूल भावना के भी खिलाफ है, क्योंकि अकेले नेहरू ही इस लोकतंत्र के रचनाकार नहीं हैं। जरा बौद्धिक सलाहकार आज के कांग्रेस नेतृत्व को खुलासा कर दें कि संविधान सभा की बैठकें कितने साल तक चली थीं और उनमें नेहरू के इतर महात्मा गांधी, सरदार पटेल, भीमराव अंबेडकर सरीखे हमारे संविधान निर्माताओं की लोकतंत्र के बारे में सोच क्या थी? अंततः संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली को धारण कैसे किया गया? राष्ट्रपति प्रणाली की व्यवस्था में क्या खामियां थीं? उसके पक्षधर कौन महान नेता थे? बेशक देश के प्रत्येक बालिग मतदाता के मताधिकार को तय करने में नेहरू की भी भूमिका थी, लेकिन वह भी उनका व्यक्तिगत फैसला नहीं था। चूंकि नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने, लिहाजा एम्स, आईआईएम, आईआईटी, डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा आयोग, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भाखड़ा नंगल जैसे बांध और भारी उद्योगों की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही मिला। नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सूत्रधार की भूमिका भी निभाई। विदेशों में उनकी साख बहुत सम्मानजनक थी, लेकिन उनके हिस्से नाकामियां भी रहीं। नेहरू देश के विभाजन को रोक नहीं सके। कश्मीर समस्या नेहरू की देन है, जो आज नासूर बन चुकी है। 1962 में चीन के युद्ध में भारत की करारी, शर्मनाक हार हुई। यह आज भी अनसुलझा सवाल है कि उस युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? नेहरू अपनी सोच की मिश्रित अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दे पाए। ये इतिहास में दर्ज कुछेक उदाहरण हैं। फिर भी यह राष्ट्र नेहरू की विरासत को मानता है। नेहरूवाद के दर्शन का उल्लेख करता है। उनके स्मारक और नामकरण आज भी यथावत सुरक्षित हैं। बेशक भारत के लोकतंत्र को बनाने में वह भी एक किरदार हैं, लेकिन हमारा लोकतंत्र देश की जनता और संवैधानिक संस्थाओं की वजह से जिंदा है। नेहरू का 1964 में अवसान हो चुका था और उस दौर में देश का लोकतंत्र एक संक्रमणकाल से गुजर रहा था। नेहरू के दौर के बाद स्वतंत्र भारत का 50 और सालों का इतिहास है, जाहिर है कि प्रधानमंत्री भी हुए होंगे। उन्हें जनता के जनादेश ने चुना या महज नेहरूवादी मूल्यों के आधार पर वे चुने जाते रहे? कांग्रेस की मानसिक मजबूरी है कि वह नेहरू और गांधी नामों के परे सोच ही नहीं सकती। कांग्रेस नेता यहां तक चापलूसी कर सकते हैं कि यह ब्रह्मांड नेहरू ने बनाया, सूर्य को इंदिरा गांधी ने और चांद को राजीव गांधी ने बनाया। बेशक ये अतिशयोक्तिवादी तुलनाएं हैं, लेकिन कांग्रेस का मानस यही है। कांग्रेस की विरासत यह भी रही है कि प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया और तमाम विरोधियों को 19 महीने तक जेल में सड़ने दिया। यह लोकतंत्र की कौन-सी परिभाषा और किस्म थी? एक चुने हुए कांग्रेस अध्यक्ष को एक गिरोह ने मंच से उठाकर बाहर फेंक दिया। देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव का प्रयास किया गया। देश की प्रमुख जांच एजेंसी ‘सीबीआई’ को ‘तोता’ बनाया। यह हमारी नहीं, सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी है। इन हरकतों को भी ‘लोकतंत्र’ कहते हैं? कांग्रेस ने ही एक ऐसा गाली गिरोह तैयार किया हुआ है, जो देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री को ‘नीच’, ‘बिच्छू’, ‘चोर’, ‘एनाकोंडा’, ‘नमकहराम’ आदि विशेषण देते हैं। क्या यह भी नेहरू की लोकतांत्रिक देन है? बेशक थरूर ने बाद में सफाई दी है कि उनकी मंशा प्रधानमंत्री मोदी का अपमान करने की नहीं थी। थरूर और कांग्रेस के गाली गिरोह की मंशा यह देश बखूबी जानता है। बहरहाल मौका था पंडित नेहरू की जयंती का, तो पूरे देश ने उसे ‘बाल दिवस’ के तौर पर मनाया। प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर संदेश तो बिलकुल सुबह ही देश के सामने आ गया था। हमारे लिए सभी प्रधानमंत्री इतिहास पुरुष हैं, सभी लोकतंत्र की देन हैं, उस लोकतंत्र के लिए असंख्य लोगों ने कुर्बानियां दी थीं, लिहाजा सिर्फ नेहरू के हिस्से का योगदान  लिखना मुनासिब नही।

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