डा. राधेश्याम द्विवेदी
नेल्सन रोलीह्लला मंडेला (Nelson Rolihlahla Mandela; 18 जुलाई 1918 – 5 दिसम्बर 2013) दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत भूतपूर्व राष्ट्रपतिथे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे रंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रहे। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 वर्ष रॉबेन द्वीप के कारागार में बिताये जहाँ उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नये दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। वे दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गये। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनके जन्म दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
जीवन परिचय:-मबासा नदी के किनारे ट्राँस्की के मवेजों गाँव में ‘नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला’ का 18 जुलाई, 1918 को जन्म हुआ था। उनके पिता ने उन्हें नाम दिया ‘रोहिल्हाला’ अर्थ पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। नेल्सन के पिता ‘गेडला हेनरी’ गाँव के प्रधान थे। उनका परिवार परम्परा से ही गाँव का प्रधान परिवार था। घर का कोई लड़का ही इस पद पर सुशोभित होता था। नेल्सन के परिवार का सम्बन्ध क्षेत्र के शाही परिवार से था। अठारहवीं शताब्दी में यह इस क्षेत्र का प्रमुख शासक परिवार रहा था, जब तक कि यूरोप ने इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर लिया। नेल्सन अपनी पिता की तीसरी पत्नी ‘नेक्यूफ़ी नोसकेनी’ की पहली सन्तान थे। कुल मिलाकर वह तेरह भाईयों में तीसरे थे। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वह परिवार की परम्परा के अनुसार शाही सलाहकार बनेंगे। नेल्सन की माँ एक मेथडिस्ट थीं। वह ‘मेथडिस्ट मिशनरी स्कूल’ के विद्यार्थी बने। इसी बीच बारह साल की उम्र में ही नेल्सन के सिर से पिता का साया उठ गया। नेल्सन ने ‘क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल’ से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की।मंडेला के तीन शादियाँ कीं जिन से उनकी छह संतानें हुई। उनके परिवार में 17 पोते-पोती थे। अक्टूबर 1944 को उन्होंने अपने मित्र व सहयोगी वॉल्टर सिसुलू की बहन इवलिन मेस से शादी की। 1961 में मंडेला पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया परन्तु उन्हें अदालत ने निर्दोष पाया। इसी मुकदमे के दौरान उनकी मुलाकात अपनी दूसरी पत्नी नोमजामो विनी मेडीकिजाला से हुई। 1998 में अपने 80वें जन्मदिन पर उन्होंने ग्रेस मेकल से विवाह किया
राजनीतिक संघर्ष:-1941 में मंडेला जोहन्सबर्ग चले गये जहाँ इनकी मुलाकात वॉल्टर सिसुलू और वॉल्टर एल्बरटाइन से हुई। उन दोनों ने राजनीतिक रूप से मंडेला को बहुत प्रभावित किया। जीवनयापन के लिये वे एक कानूनी फ़र्म में क्लर्क बन गये परन्तु धीर-धीरे उनकी सक्रियता राजनीति में बढ़ती चली गयी। रंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने के उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1944 में वे अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गये जिसने रंगभेद के विरूद्ध आन्दोलन चला रखा था। इसी वर्ष उन्होंने अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ मिल कर अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की। 1947 में वे लीग के सचिव चुने गये। 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला परन्तु उसमें उन्हें निर्दोष माना गया। 5 अगस्त 1962 को उन्हें मजदूरों को हड़ताल के लिये उकसाने और बिना अनुमति देश छोड़ने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चला और 12 जुलाई 1964 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। सज़ा के लिये उन्हें रॉबेन द्वीप की जेल में भेजा गया किन्तु सजा से भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। उन्होंने जेल में भी अश्वेत कैदियों को लामबन्द करना शुरू कर दिया था। जीवन के 27 वर्ष कारागार में बिताने के बाद अन्ततः 11 फ़रवरी 1990 को उनकी रिहाई हुई। रिहाई के बाद समझौते और शान्ति की नीति द्वारा उन्होंने एक लोकतान्त्रिक एवं बहुजातीय अफ्रीका की नींव रखी। 1994 में दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने 62 प्रतिशत मत प्राप्त किये और बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी। 10 मई 1994 को मंडेला अपने देश के सर्वप्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बने। दक्षिण अफ्रीका के नये संविधान को मई 1996 में संसद की ओर से सहमति मिली जिसके अन्तर्गत राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारों की जाँच के लिये कई संस्थाओं की स्थापना की गयी। 1997 में वे सक्रिय राजनीति से अलग हो गये और दो वर्ष पश्चात् उन्होंने 1999 में कांग्रेस-अध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया।
रंगभेद से साक्षात्कार :- विद्यार्थी जीवन में उन्हें रोज़ याद दिलाया जाता कि उनका रंग काला है और सिर्फ़ इसी वज़ह से वह यह काम नहीं कर सकते। उन्हें रोज़ इस बात का एहसास करवाया जाता कि अगर वे सीना तान कर सड़क पर चलेंगे तो इस अपराध के लिए उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे अन्याय ने उनके अन्दर असंन्तोष भर दिया। एक क्रान्तिकारी तैयार हो रहा था। उन्होंने ‘हेल्डटाउन’ से अपनी स्नातक शिक्षा पूरी की। हेल्डटाउन अश्वेतों के लिए बनाया गया एक विशेष कॉलेज था। यहीं पर उनकी मुलाक़ात ‘ऑलिवर टाम्बो’ से हुई, जो जीवन भर के लिए उनके दोस्त और सहयोगी बन जाने वाले थे। 1940 तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर टाम्बो ने कॉलेज कैम्पस में अपने राजनीतिक विचारों और कार्यकलापों के लिए प्रसिद्धि पा ली। कॉलेज प्रशासन को जब इस बात का पता लगा तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया और परिसर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ‘फोर्ट हेयर’ उनके क्रियाकलापों के मूर्त ग़वाह के रूप में आज भी खड़ा है। कॉलेज से निकाल दिए जाने के बाद वह माता-पिता के पास ट्राँस्की लौट आए।
परिवार से विद्रोह :-उन्हें क्रान्ति की राह पर देखकर परिवार परेशान था और चाहता था कि वह हमेशा के लिए घर लौट आएं। जल्दी ही एक लड़की पसन्द की गई जिससे नेल्सन को पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में बाँध दिया जाए। घर में विवाह की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थीं, दूसरी ओर नेल्सन का मन उद्वेलित था और आख़िर में उन्होंने अपने निजी जीवन को दरकिनार करने का फ़ैसला किया और घर से भागकर जोहान्सबर्ग आ गए। वह जोहान्सबर्ग की विशाल सड़कों पर यायावर की तरह भटक रहे थे। नेल्सन ने एक सोने की ख़दान में चौकीदार की नौकरी करना शुरू कर दिया। जोहान्सबर्ग की एक बस्ती अलेक्ज़ेंडरा उनका ठिकाना थी।
सहयोगी :-नेल्सन ने अपनी माँ के साथ जोहान्सबर्ग में ही रहने का इरादा किया। इसी जगह पर उनकी मुलाक़ात ‘वाल्टर सिसुलू’ और ‘वाल्टर एल्बरटाइन’ से हुई। नेल्सन के राजनीतिक जीवन को इन दो हस्तियों ने बहुत प्रभावित किया। नेल्सन ने जीवनयापन के लिए एक क़ानूनी फ़र्म में लिपिक की नौकरी कर ली, लेकिन वे लगातार अपने आपसे लड़ रहे थे। वह देख रहे थे कि उनके अपने लोगों के साथ इसलिए भेद किया जा रहा था क्योंकि प्रकृति ने उनको दूसरों से अलग रंग दिया था। इस देश में अश्वेत होना अपराध की तरह था। वे सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जाता था। रोज़ कई बार याद दिलाया जाता कि वे अश्वेत हैं और ऐसा होना किसी अपराध से कम नहीं है।
विवाह :-1944 में नेल्सन की ज़िन्दगी में ‘इवलिन मेस’ आईं और दोनों शादी के बन्धन में बँध गए। इवलिन उनके सहयोगी और मित्र वाल्टर सिसुलू की बहिन थीं। वह इन्हीं दिनों ‘अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस’ में शामिल हो गए। जल्दी ही उन्होंने टाम्बो, सिसुलू और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर ‘अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग’ का निर्माण किया। 1947 में मंडेला इस संस्था के सचिव चुन लिए गए। साथ ही उन्हें ‘ट्रांन्सवाल ए.एन.सी.’ का अधिकारी भी नियुक्त किया गया।
शिक्षा और राजनीति:-नेल्सन की विचार शैली और काम करने की क्षमता से लोग प्रभावित होने लगे। एक महान नेता धीरे-धीरे जन्म ले रहा था। इसी बीच अपने आप को क़ानून का बेहतर जानकार बनाने के लिए नेल्सन ने क़ानून की पढ़ाई शुरू कर दी, लेकिन अपनी व्यस्तता के कारण वे एल.एल.बी. की परीक्षा पास करने में असफल रहे। इस असफलता के बाद उन्होंने एक वक़ील के तौर पर काम करने के बजाय अटार्नी के तौर पर काम करने के लिए पात्रता परीक्षा पास करने का फ़ैसला किया। इसी बीच अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस को चुनावों में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के अध्यक्ष को पद से हटाकर किसी नए अध्यक्ष को लाने की माँग ज़ोर पकड़ने लगी। यूथ कांग्रेस के विचारों को अपनाकर मुख्य पार्टी को आगे बढ़ाने का विचार रखा गया। वाल्टर सिसुलू ने एक कार्ययोजना का निर्माण किया, जो ‘अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस’ के द्वारा स्वीकार कर लिया गया। 1951 में नेल्सन को ‘यूथ कांग्रेस’ का अध्यक्ष चुन लिया गया। नेल्सन ने अपने लोगों को क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए 1952 में एक क़ानूनी फ़र्म की स्थापना की।
गाँधी जी का प्रभाव:- यह वह दौर था जब पूरी दुनिया गांधी से प्रभावित हो रही थी, नेल्सन भी उनमें से एक थे। वैचारिक रूप से वह स्वयं को गांधी के नज़दीक पाते थे, और यह प्रभाव उनके द्वारा चलाए गए आन्दोलनों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। कुछ ही समय में उनकी फ़र्म देश की ‘पहली अश्वेतों’ द्वारा चलाई जा रही फ़र्म हो गई, लेकिन नेल्सन के लिए वक़ील का रोज़ग़ार और राजनीति को एक साथ लेकर चलना मुश्किल साबित हो रहा था। इसी दौरान उन्हें ट्रांन्सवाल कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती जा रही थीं।
लोकप्रियता और कांग्रेस:-सरकार को नेल्सन की बढ़ती हुई लोकप्रियता बिल्कुल पसन्द नहीं आ रही थी और उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनको वर्गभेद के आरोप में जोहान्सबर्ग के बाहर भेज दिया गया और उन पर किसी तरह की बैठक में भाग लेने पर रोक लगा दी गई। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस का भविष्य ही दाँव पर लग गया था। सरकार के दमनचक्र से बचने के लिए नेल्सन और ऑलिवर टाम्ब ने एक ‘एम’ प्लान बनाया। यहाँ पर एम से मतलब मंडेला से था। फैसला लिया गया कि कांग्रेस को टुकड़ों में तोड़कर काम किया जाए और ज़रूरत पड़े तो भूमिगत रहकर भी काम किया जाएगा। प्रतिबंध के बावजूद नेल्सन भागकर क्लिप टाउन पहुँच गए और कांग्रेस के जलसों में भाग लेने लगे। लोगों की भीड़ की आड़ में बचते हुए उन्होंने उन तमाम संगठनों के साथ काम किया, जो अश्वेतों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें आम लोगों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त बिताने का मौक़ा मिला और उनमें जनमानस को समझने की समझ विकसित हुई। धीरे-धीरे अश्वेतों के अधिकारों के लिय चलाए जा रहे आन्दोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती ही चली गई। आन्दोलन में अपनी व्यस्तता के कारण वे परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे। पत्नी एल्विन से उनकी दूरियाँ बढ़ती ही चली गईं और आख़िर में वह वक़्त भी आ गया जब हमेशा के लिए साथ निभाने और साथ चलने का वादा कर चुकीं एल्विन ने उनका साथ छोड़ दिया। नेल्सन के लिए यह एक व्यक्तिगत क्षति थी। लेकिन उन्हें कहीं बड़े लक्ष्य के लिए काम करना था।
आन्दोलन और नेल्सन :-आन्दोलन और नेल्सन जीवनसंगी बन गए। नेल्सन के नेतृत्व में आन्दोलन की तीव्रता बढ़ती ही जा रही थी। सरकार बुरी तरह से घबराई हुई थी। इसी बीच ए.एन.सी. ने स्वतंत्रता का चार्टर स्वीकार किया और इस क़दम ने सरकार का संयम तोड़ दिया। पूरे देश में गिरफ़्तारियों का दौर शुरू हो गया। ए.एन.सी. के अध्यक्ष और नेल्सन के साथ पूरे देश से रंगभेद का आन्दोलन का समर्थन करने वाले एक सौ छप्पन नेता गिरफ़्तार कर लिए गए। आन्दोलन नेतृत्व विहीन हो गया। नेल्सन और साथियों पर देश के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने और देशद्रोह करने का आरोप लगाया गया। इस अपराध की सज़ा मृत्युदण्ड थी। इन सभी नेताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया गया और 1961 में नेल्सन और 29 साथियों को निर्दोष घोषित करते हुए रिहा कर दिया गया। इसी मुक़दमे के दौरान नेल्सन की मुलाक़ात ‘नोमजामो विनी मेडीकिजाला’ से हुई, जो जल्दी ही उनकी दूसरी जीवन संगिनी बनने वाली थीं।
अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस और नेल्सन :-सरकार के द्वारा चलाया गया दमनचक्र अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस और नेल्सन का जनाधार बढ़ा रहा था। लोग संगठन से जुड़ने लगे और आन्दोलन दिन प्रतिदिन मज़बूत होता जा रहा था। रंगभेदी सरकार आन्दोलन को तोड़ने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही थी। इसी बीच कुछ ऐसे क़ानून पास किए गए, जो अश्वेतों को नाग़वार थे। नेल्सन ने इन क़ानूनों का विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया। इसी तरह के एक प्रदर्शन में दक्षिण अफ़्रीकी पुलिस ने शार्पविले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। हर एक देश के आन्दोलन का अपना एक जलियाँवाला बाग़ बन गया था। इस तरह की घटनाओं और सरकार द्वारा चलाए जा रहे क्रूर दमनचक्र ने नेल्सन का अहिंसा पर से विश्वास उठा दिया।
नये दल का गठन:- रंगभेदी सभी सीमाओं को तोड़ती जा रही थी। दक्षिण अफ़्रीका की ज़मीन अत्याचारों के रंग से सुर्ख लाल हो चुकी थी। एएनसी और दूसरे प्रमुख दल ने हथियाबन्द लड़ाई लड़ने का फ़ैसला किया। दोनों ने ही अपने लड़ाका दल विकसित करने शुरू कर दिए। नेल्सन अपनी मौलिक राह छोड़कर एक दूसरे रास्ते पर निकल पड़े, जो उनके उसूलों से मूल नहीं खाता था। एएनसी के लड़ाके दल का नाम रखा गया, “स्पीयर आफ़ दी नेशन” और नेल्सन को इस नए गुट का अध्यक्ष बना दिया गया। वे नए रास्ते पर पूरे जोश के साथ निकल पड़े। बस रास्ता नया था, मंज़िल अभी भी वही थी—अपने लोगों के लिए न्याय और सम्मान। इस क़दम ने रही—सही क़सर पूरी कर दी और रंगभेदी सरकार ने नेल्सन के दल पर प्रतिबंध लगा दिया। दमनचक्र अपने पूरे ज़ोर पर था। बौखलाई सरकार कोई भी क़सर नहीं छोड़ नहीं थी। पूरी दुनिया में इस काम के लिए सरकार की आलोचना हो रही थी। मानवाधिकार संगठन इस हैवानी कृत्य की तरफ़ पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करवा रहे थे। नेल्सन वैश्विक नेता के तौर पर उभर रहे थे। सरकार का पूरा ध्यान नेल्सन को गिरफ़्तार कर पूरे संगठन को खत्म करने में था। इस त्रासदी से बचने के लिए उन्हें चोरी से देश के बाहर भेज दिया गया, ताकि वे स्वतंत्र रहकर अपने लोगों का नेतृत्व कर सकें। देश के बाहर आते ही उन्होंने सबसे पहले अदीस अबाबा में अफ़्रीकी नेशनलिस्ट लीडर्स कान्फ़्रेंस को सम्बोधित किया और बेहतर जीवन के अपने आधारभूत अधिकार की माँग की। वहाँ से निकलकर वे अल्जीरिया चले गए और लड़ने की गुरिल्ला तकनीक का गहन प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने लंदन की राह पकड़ी जहाँ ओलिवर टाम्बो एक बार फिर उनके साथ आ मिले। लंदन में विपक्षी दलों के साथ उन्होंने मुलाक़ात की और अपनी बात को पूरी दुनिया के सामने समझाने की कोशिश की। इसके बाद वे एक बार फिर दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे। वहाँ की सरकार उनके स्वागत के लिए एकदम तैयार थी, और पहुँचते ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।
जेल और नेल्सन :- नेल्सन को पूरे पाँच साल की सज़ा सुनाई गई। आरोप लगा कि वे अवैधानिक तरीक़े से देश से बाहर गए। सरकार अभी भी उन्हें किसी क्रान्ति का नेता मानने को तैयार नहीं थी। एक आदमी ने पूरी सरकार को डरा रखा था। इसी बीच जोहानसबर्ग के लीलीसलीफ़ में सरकार ने छापा मारकर एसके मुख्यालय को तहस—नहस कर दिया। एमके के सभी बड़े नेता पकड़े गए और नेल्सन सहित सभी लोगों पर देश के ख़िलाफ़ लड़ने का आरोप तय किया गया। उनके सहित पाँच और लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई। आम जनता से दूर रखने के लिए उन्हें रोबन द्वीप पर भेज दिया गया। यह दक्षिण अफ़्रीका का कालापानी माना जाता है।
नेल्सन की जीत:-जेल जाने से पहले अदालत को अपने बयान से सम्बोधित करते हुए नेल्सन ने कहा- “अपने पूरे जीवन के दौरान मैंने अपना सबकुछ अफ़्रीकी लोगों के संघर्ष में झोंक दिया। मैं श्वेत रंगभेद के ख़िलाफ़ लड़ा हूँ, और में अश्वेत रंगभेद के ख़िलाफ़ भी लड़ा हूँ। मैंने हमेशा एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज का सपना देखा है। जहाँ सभी लोग एक साथ पूरे सम्मान, प्रेम और समान अवसर के साथ अपना जीवन यापन कर पायेंगे। यही वह आदर्श है, जो मेरे लिए जीवन की आशा बनी और मैं इसी को पाने के लिए ज़िन्दा हूँ, और अगर कहीं ज़रूरत है कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मरना है तो मैं इसके लिए भी पूरी तरह से तैयार हूँ।”
अदालत में उपस्थित हर एक आत्मा नेल्सन का ही समर्थन कर रही थी। इन शब्दों ने दक्षिण अफ़्रीकी आन्दोलन को हमेशा एक नई ऊर्जा दी। 1976 में पुलिस मंत्री जिमी क्रुगर नेल्सन के पास सरकार की तरफ़ से एक प्रस्ताप लेकर आए कि अगर वे आन्दोलन को समाप्त कर दें तो सरकार उन्हें मुक्त कर ट्राँस्की में बसने की अनुमति दे देगी। रंगभेदी सरकार पर पूरी दुनिया से दबाव बढ़ता जा रहा था। इन दबावों ने असर दिखाया और नेल्सन तथा सिसुलू को रोबन द्वीप से अफ़्रीका लाकर केपटाउन के नज़दीक पाल्समूर जेल में रखा गया। यह नेल्सन की नेता के तौर पर जीत थी। अपने प्रभाव से वे सरकार को झुकाने में सफल रहे। इसी बीच उनकी तबीयत ख़राब हुई। सरकार ने आपातकाल घोषित कर दिया। नेल्सन को तत्काल अस्पताल ले जाया गया। प्रोस्टेड ग्लेंड का आपरेशन सफल रहा। इस घटना के बाद सरकार नेल्सन के प्रति थोड़ी नरम हुई।
जेल और ख़्रराब स्वास्थ्य:- क़ानून मंत्री कोबी कोएत्जी ने उनसे आग्रह किया कि वे आज़ादी प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में हिंसा का रास्ता त्याग दें। हालाँकि नेल्सन ने एक बार फिर से साफ़ इन्कार कर दिया, लेकिन सरकार ने उन पर रियायतों की झड़ी लगा दी। उन्हें परिवार से मिलने की छूट दी गई। साथ ही वे अब एक जेल वार्डन के साथ केपटाउन में घूमने भी जा सकते थे। काफ़ी लम्बे अरसे के बाद नेल्सन ने बाहरी दुनिया की खुली हवा में साँस लेना शुरू किया था। एक प्रेमिल व्यक्ति अपनी सबसे बड़ी इच्छा डूबते हुए सूरज को देखना और साथ में बेहतरीन संगीत सुनना, पूरी करने के लिए तरस गया था। एक साक्षात्कार के दौरान नेल्सन ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में इन चीज़ों की कमी महसूस की, लेकिन लक्ष्य ज़्यादा बड़ा था। 1983 एक बार फिर से नेल्सन के लिए मौत क़रीब ले आया। जाँच में पाया गया कि उन्हें टी. बी. हो गया है। उपचार देने के लिए उन्हें बेहतर जगह की ज़रूरत थी। उन्हें पार्ल के नज़दीक विक्टर जेल में पहुँचा दिया गया। ज़िन्दगी बस निकली जा रही थी। संघर्ष पक रहा था और आख़िर में रंगभेद के दिन लदते हुए दिखाई देने लगे। 1989 में दक्षिण अफ़्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार एफ़ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता सम्भालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आज़ाद कर दिया गया जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुक़दमा दर्ज नहीं था। नेल्सन भी उनमें से एक थे। ज़िन्दगी की शाम में आज़ादी का सूर्य नेल्सन के जीवन को रोशन करने लगा। 11 फ़रवरी, 1990 को नेल्सन आख़िर में पूरी तरह से आज़ाद कर दिए गए।
आज़ादी की ओर:- अश्वेतों को उनका अधिकार दिलवाने के लिए 1991 में ‘कनवेंशन फॉर ए डेमोक्रेटिक साउथ अफ़्रीका’ या ‘कोडसा’ का गठन कर दिया गया, जो देश के संविधान में आवश्यक परिवर्तन करने वाली थी। डी क्लार्क और मंडेला ने इस काम में अपनी समान भागीदारी निभाई। अपने इस उत्कृष्ट कार्य के लिए ही उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। राजनीतिक जीवन ठीक अगले साल दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस ने सबको पछाड़ते हुए बासठ प्रतिशत मतों पर अपना क़ब्ज़ा कर लिया। 10 मई, 1994 को अश्वेतों के लिए दक्षिण अफ़्रीका की उस भूमि पर नेल्सन मंडेला ने अपनी जनता को सम्बोधित करते हुए कहा- “आख़िरकार हमने अपने राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त कर ही लिया। हम अपने आप से वादा करें कि हम अपने सभी लोगों को आज़ादी देंगे, ग़रीबों से, मुश्किलों से, तक़लीफ़ों से, लिंगभेद से और किसी भी तरह के शोषण से। और कभी भी इस ख़ूबसूरत धरती पर एक-दूसरे के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। स्वतंत्रता का लुत्फ़ उठाइए। ईश्वर अफ़्रीका पर अपनी कृपा बनाए रखे।”- नेल्सन
नेल्सन के इस सम्बोधन ने अफ़्रीका के श्वेत लोगों के मन से डर को निकाल दिया, जो देश की बहुसंख्यक जनता का प्रतिनिधित्व करती थी। जिसे युगों से उनके द्वारा प्रताड़ित और शोषित किया गया था। 1997 में नेल्सन ने सक्रिय राजनीति जीवन से किनारा कर लिया। 1999 में उन्होंने दल के अध्यक्ष पद को भी छोड़ दिया। विनी मंडेला से अलग होने के बाद अपने अस्सीवें जन्मदिन पर ग्रेस मेकल से विवाह किया। नेल्सन ने आज़ादी की लड़ाई में अपना सौ प्रतिशत दिया। एक बार उन्होंने कहा था- “मैंने एक सपना देखा है, सबके लिए शान्ति हो, काम हो, रोटी हो, पानी और नमक हो। जहाँ हम सबकी आत्मा, शरीर और मस्तिष्क को समझ सके और एक—दूसरे की ज़रूरतों को पूरा कर सकें। ऐसी दुनिया बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाक़ी है। हमें अभी चलना है, चलते रहना है।
पुरस्कार एवं सम्मान:- दक्षिण अफ्रीका के लोग मंडेला को व्यापक रूप से “राष्ट्रपिता” मानते थे। उन्हें “लोकतन्त्र के प्रथम संस्थापक” “राष्ट्रीय मुक्तिदाता और उद्धारकर्ता” के रूप में देखा जाता था। 2004 में जोहनसबर्ग में स्थित सैंडटन स्क्वायर शॉपिंग सेंटर में मंडेला की मूर्ति स्थापित की गयी और सेंटर का नाम बदलकर नेल्सन मंडेला स्क्वायर रख दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में प्रायः उन्हें मदीबा कह कर बुलाया जाता है जो बुजुर्गों के लिये एक सम्मान-सूचक शब्द है। नवम्बर 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रंगभेद विरोधी संघर्ष में उनके योगदान के सम्मान में उनके जन्मदिन (18 जुलाई) को ‘मंडेला दिवस’ घोषित किया। 67 साल तक मंडेला के इस आन्दोलन से जुड़े होने के उपलक्ष्य में लोगों से दिन के 24 घण्टों में से 67 मिनट दूसरों की मदद करने में दान देने का आग्रह किया गया। मंडेला को विश्व के विभिन्न देशों और संस्थाओं द्वारा 250 से भी अधिक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए हैं: 1993 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेडरिक विलेम डी क्लार्क के साथ संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार, प्रेसीडेंट मैडल ऑफ़ फ़्रीडम,ऑर्डर ऑफ़ लेनिन, भारत रत्न1993 में ‘नेल्सन मंडेला’ और ‘डी क्लार्क’ दोनो को संयुक्त रूप से शांती के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया। मंडेला, भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी हैं। उन्हें निशान-ए–पाकिस्तान और 23 जुलाई 2008 को गाँधी शांति पुरस्कार प्रदान किए गए हैं।
मृत्यु:- दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का 5 दिसम्बर, 2013 को निधन हो गया। वे 95 साल के थे। सितम्बर में अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उनका घर पर ही इलाज किया जा रहा था। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा ने कहा, “साथियों, हमारे प्यारे नेल्सन मंडेला हमारे लोकतांत्रिक राष्ट्र के संस्थापक राष्ट्पति हमें छोड़कर चले गए हैं। 5 दिसंबर को रात आठ बजकर पचास मिनट पर वे अपने परिवार के बीच थे और तभी हमें अलविदा कह गए। हमारे राष्ट्र ने अपना सबसे महान सपूत खो दिया है। हमने अपना पिता खो दिया है। हम जानते थे कि एक दिन ये दिन भी आना था लेकिन हमें जो क्षति हुई है वो अपूर्णनीय है।
प्रेरणादायी जीवन :-आमतौर पर छींटदार शर्ट पहनने वाले नेल्सन मंडेला मजाकिया मिजाज के बेहद हँसमुख व्यक्ति थे। मंडेला बच्चों को बहुत प्यार करते थे। 2002 में उनके पैतृक गॉव में क्रिसमस की पार्टी में 20,000 से भी ज्यादा बच्चों ने हिस्सा लिया था और तीन-चार दिन तक खूब धमाचौकङी मचाई थी। मंडेला एक वकील और मुक्केबाज भी थे। 1998 में एक कार्यक्रम में उन्होने कहा था कि, मुझे इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं हेवीवेट मुक्केबाजी का विश्व चैम्पियन खिताब नही जीत पाया। जेल के दौरान परंपरा अनुसार हर कैदी को नम्बर से जाना जाता है। मंडेला का नम्बर था 46664, ये नम्बर आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में धङक रहा है। दक्षिण अफ्रिका के बीमार पङे कपङा उद्योग में प्रांण फूंकने के लिए नए लेबल को आकार दिया गया ओर इसे 46664 apparel के नाम से नेल्सन मंडेला को समर्पित किया गया। 2002 में 46664 नामक एक संगठन बनाया गया, जिसने एड्स और एचआईवी के प्रति युवाओं में जागरुकता लाने का अभियान चलाया।
दुनिया भले ही उन्हे नेल्सन मंडेला के नाम से जानती हो किन्तु उनके पाँच और नाम भी थे। माता-पिता द्वारा रखा पहला नाम रोहिल्हाला, नेल्सन नाम प्राथमिक विद्यालय के एक अध्यापक द्वारा रखा गया था। दक्षिण अफ्रिका में उन्हे मदीबा नाम से जाना जाता है। कुछ लोग उन्हे टाटा या खुलू भी कहते थे, अफ्रिकी भाषा में जिसका अर्थ होता है क्रमशः पिता और दादा होता है। मंडेला को 16 वर्ष की उम्र में डालीभुंगा नाम से भी पुकारा जाता था। दक्षिण अफ्रिका में रंगभेद विरोधी आंदोलन के पुरोधा, महात्मा गाँधी से प्रेरणा लेने वाले देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का लम्बी बीमारी के बाद 5 दिसंबर 2013 को निधन हो गया। उनके निधन की खबर उस समय आई जब लंदन के एक हॉल में उनके जीवन पर बनी फिल्म ‘मंडेलाः लांग वॉक टू फ्रीडम’ का प्रीमियर चल रहा था। प्रीमियर समाप्त होने पर सभी को ये खबर फिल्म के निर्माता अंनत सिंह ने दी।
मंडेला अभूतपूर्व और वीर इंसान थे। वो ऐसी शख्सियत थे जिनका जन्मदिन नेल्सन मंडेला अंर्तराष्ट्रीय दिवस के रूप में उनके जीवन काल में ही मनाया जाने लगा था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि, मंडेला संयुक्त राष्ट्र के उच्च आर्दशों के प्रतीक हैं। मंडेला को ये सम्मान शांती स्थापना, रंगभेद उन्मूलन, मानवाधिकारों की रक्षा और लैंगिग समानता की स्थापना के लिए किये गये उनके सतत प्रयासों के लिए दिया गया है। आज भले ही मंडेला इस नश्वर संसार में नही हैं, लेकिन उनके त्याग और संघर्ष की महागाथा पूरी दुनिया को प्रेरणा देने के लिए जीवित है। नेल्सन मंडेला ने एक ऐसे लेकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की कल्पना की जहाँ सभी लोग शांती से मिलजुल कर रहें और सबको समान अवसर प्राप्त हो। उनका कहना था कि , “जब कोई व्यक्ति अपने देश और लोगों की सेवा को अपने कर्तव्य की तरह निभाता है तो उन्हे शांती मिलती है। मुझे लगता है कि मैने वो कोशिश की है और इसलिए मैं शांती से अंतकाल तक सो सकता हूँ।“
हम इस महान नेता को शत-शत नमन करते हैं।