नेताजी सुभाष चंद्र बोस और कांग्रेस का संस्कार

यह अच्छी बात है कि देश के क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को केंद्र सरकार ने ‘राष्ट्रीय पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया है । वास्तव में हमारी आजादी हमारे वीरों के पराक्रम ,शौर्य और साहस के कारण आई थी। माना कि ‘चरखे वालों’ का भी उसमें कुछ योगदान था, परंतु इतिहास के साथ ज्यादती करते हुए ‘चर्खे वालों’ ने जिस प्रकार सारे स्वाधीनता संग्राम को अपने नाम कर लिया, उससे हमें बहुत अधिक हानि उठानी पड़ी है।
इस अवसर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंच पर चाहे जो नौटंकी की हो परंतु देश के लोगों को नेताजी का सम्मान होते देखकर असीम प्रसन्नता की अनुभूति हुई। क्योंकि सारा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपने राष्ट्रीय पराक्रम का प्रतीक मानता है और इसी रूप में उनका सम्मान करता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस पहले ऐसे कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने 1921 में ही भारत के पूर्ण स्वाधीनता का संकल्प प्रस्ताव पास कराने का प्रयास कांग्रेस अधिवेशन में किया था । उन्हें यह सफलता 1929 में जाकर मिली थी। जब लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वाधीनता का संकल्प प्रस्ताव पारित किया था । उससे पहले कांग्रेस डोमिनियन स्टेटस की बात करती रही थी। जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कतई रास नहीं आ रही थी ।
। इसके बाद स्वाधीनता प्राप्ति के दस्तावेज में भी डोमिनियन शब्द का प्रयोग कांग्रेस की कमजोर नीति ,नियत और सोच का परिणाम था। अन्यथा भारत के स्वाधीनता अधिनियम में डोमिनियन शब्द के प्रयोग की भला क्या तुक थी ?
1929 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वाधीनता संकल्प प्रस्ताव पारित तो करा दिया परंतु यहीं से गांधीजी उनसे घृणा करने लगे थे। गांधीजी को कभी भी यह बात रास नहीं आती थी कि कोई व्यक्ति उनसे बड़ा व्यक्तित्व बनकर कांग्रेस में आए या छाए। यही कारण रहा कि 1938 में जब कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्षता की बागडोर सौंपी तो गांधीजी उनसे अप्रसन्न हुए ।
4 अप्रैल 1939 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने अगली बार अध्यक्ष बनने की बात को लेकर अपनी पत्नी एमिली शेंकल को पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि इस बार गांधीजी किसी मुस्लिम को कांग्रेस अध्यक्ष बनाना चाहते हैं । यद्यपि अभी तक मेरी उनसे बातचीत नहीं हुई है । जब 1939 की जनवरी में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव आया तो गांधी जी ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सामने मैदान में उतारने की बात कही ,लेकिन आजाद ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। तब पट्टाभिसितारामैया से बिना पूछे ही उनकी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी गई । चुनाव हुआ तो उसमें 1580 वोट लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस पट्टाभिसीतारामैया को हराने में सफल हुए। उस समय पट्टाभिसीतारमैया को 1377 मत प्राप्त हुए।
इस पर गांधी जी ने नेताजी सुभाष चंद्र से बोलचाल बंद कर दी थी। उन्हें पट्टाभिसीतारमैया की हार अपनी व्यक्तिगत हार अनुभव हुई थी। जिसे उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर लिया और सार्वजनिक रूप से इस बात की घोषणा भी कर दी कि पट्टाभीसीतारामैया की हार और उनकी व्यक्तिगत हार है । इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी से त्यागपत्र दे दिया । उनकी देखा देखी सरदार पटेल और कई अन्य सदस्यों ने भी कांग्रेस वर्किंग कमेटी से त्यागपत्र दे दिया। जिससे नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सरकार संगठन चलाना बहुत कठिन हो गया। केवल नेहरू जी नाम मात्र के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रह गए थे ।
सरदार पटेल भी नहीं चाहते थे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस की अध्यक्षता करें । क्योंकि उनके बड़े भाई विट्ठल भाई ने अपने जीवन काल में एक वसीयत के माध्यम से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपनी संपत्ति का बड़ा भाग देश कार्यों के लिए दे दिया था। जिस पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल के बीच मुकदमेबाजी हुई। मुंबई कोर्ट ने अंत में सरदार पटेल को विजयी घोषित किया, परंतु तब तक दोनों के बीच घृणा का भाव पैदा हो गया था । सरदार पटेल उसी व्यक्तिगत रंजिश के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में देखना पसंद नहीं करते थे।
कांग्रेसी नेताओं के इस प्रकार के व्यवहार को देखकर दु:खी नेता जी ने 29 अप्रैल को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना कांग्रेस में रहते हुए की। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने उनका त्यागपत्र तुरंत स्वीकार किया और 3 मई को उन्हें पार्टी से 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। यह सारा कार्य गांधी जी की सहमति और संकेत पर ही संपन्न हुआ था।
इस पूरे घटनाक्रम से हमें एक ही शिक्षा मिलती है कि कांग्रेस में एक परिवार या एक व्यक्ति के विरुद्ध जाने वालों की स्थिति क्या होती है ? आज सोनिया के विरुद्ध जो लोग बोल रहे हैं या राहुल गांधी को जो लोग अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करना नहीं चाहते उनके प्रति भी कांग्रेस के भीतर वैसा ही माहौल है जैसा कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे लोगों को झेलना पड़ा था । कांग्रेस अपने इसी पुराने संस्कार का परिचय देते हुए आज भी नेताजी की राह पर चलने वाले लोगों को पसंद नहीं करती है। इसने क्रांतिकारियों का तो अपमान किया ही है साथ ही एक परिवार की परिक्रमा से बाहर जाने वालों को भी यह पसंद नहीं करती । निश्चित रूप से संस्कार बहुत दूर तक और देर तक व्यक्ति या संस्था का पीछा करता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

Previous articleदादाजी
Next articleकाल चिंतन के चितेरे : राजेंद्र अवस्थी
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,447 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress