आत्माराम यादव पीव
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व्यक्ति कोई भी हो, समाज कोई भी हो, देश कोई भी हो, छोटा हो या गरीब। अमीर हो या नेता स्त्री हो या पुरुष, लड़का हो या लड़की या छोटे छोटे बच्चे, सभी अपने हाथों की उँगलियाँ का कमाल दिखाने से नहीं चूकते ओर फिर उँगलियाँ उठाकर, मटकाकर, दिखाकर जीवन के कई रंग ओर ढंग के खेल सांस थमने तक खेलते है। बच्चा पैदा होने के बाद सबसे पहले अपनी उंगली के दमपर माँ के सीने से चिपकता है ओर माँ उसे अपनी उँगलियों से ही संभालती है। जन्म के बाद कोई भी बच्चा उंगली चाटना,उंगली पकड़ना,उंगली नचाना खुद ही सीख जाता है, इसके लिए उसे माँ की जरूरत नही होती है। जब बच्चे बड़े होने लगते है तब उन्हे उंगली करना,उंगली दबाना ओर उंगली उठाना अपने आप आ जाता है। बच्चों के कौतुक तुम्हें दांतों तले उंगलिया दबाने को विवश कर देते है, वे भले तुमसे उंगली पकड़कर चलना सीख ले किन्तु उनकी बुद्धि तुमसे दो घर आगे चलती है ओर वे जल्द ही तुम्हें उंगली पर नचाने में माहिर हो जाते है तब तुम अपनी उंगली टेढ़ी करना भी चाहों तो भी उनकी पांचों उंगलिया घी में होती है। समय का तकाजा है ये ही बच्चे नेता, अभिनेता, नायक- महानायक बनते है जो उंगलिया की भाषा सीख लेते है ओर ऐसे बच्चे उंगलिया पर गिने जा सकते है। आज मैंने लिखने के लिया सहज ही अपनी उँगलियों को चुना है, मैं ही नही हर व्यक्ति लिखते-पढ़ते,खाते-पीते समय उँगलियों को ही चुनते है, ये उंगलिया पैर की नहीं हाथ की होती है जो इशारों में काम करने के लिए तत्पर होती है। पैर की उंगलिया करतब नही दिखा सकती, हाथों की उंगलिया कमाल करती रही है जो सदैव इतिहास बनाना ओर इतिहास लिखने में लगी रहती है ओर आगे भी इतिहास लिखती रहेंगी इसलिए मैंने हाथों की उँगलियों को पात्र चुना है।
बचपन से ही उंगलिया मेरे लिए जिज्ञासा पैदा करते आई है। मुझे पढ़ाने वाले एल॰के॰ तिवारी जी गज़ब के प्राणी रहे है जो एक साथ ब्लेकबोर्ड हो या कापी अपने दोनों हाथों की उंगलियों से लिखने में माहिर थे। उनकी उँगलियों को पता होता की दायें हाथ की उंगली का आखरी शब्द या वाक्य क्या होगा तभी बाएँ हाथ की उंगली उसके ठीक नीचे वाले वाक्य को लिखना शुरू करती। दोनों हाथों की उंगलिया का एक साथ दिमाग से तालमेल कर लिखने का आश्चर्य आज भी बना हुआ है,जो दुनिया में बहुत ही कम देखने को मिलता है। तब मैंने तिवारी सर की नकल करने के लिए अनेक बार अपनी उँगलियों को आदेश देकर ऊपर नीचे एक साथ दो लाइन लिखने का प्रयास किया परंतु दाये हाथ से काम करने का आदि होने से दायें हाथ की उँगलियों मुझे जिता देती लेकिन बाएँ हाथ की उंगलियों ने कभी जीतने नही दिया ओर मैंने अपनी ही उँगलियों को ऐसे किसी परीक्षा से गुजरने नही दिया। फिर उँगलियों को चुनने से पहले मैंने देखा कि रूपहले पर्दे पर कमाल करने वाला कोई भी अभिनेता हो या अभिनेत्री वे सभी अपनी-अपनी उंगलिया के सांकेतिक प्रदर्शन ओर संवेदनाओं कि सुंदरतम प्रस्तुति से सकारात्मक ओर नकारात्मक पक्ष में उंगलिया का इस्तेमाल करके मालमाल तो हुये ही साथ ही दुनियाभर में मिली सफलता से वे कालजयी हुये है। असल में इन अभिनेता ओर अभिनेत्रियों के नाक,कान, मुह, हाथ पैर से ज्यादा इनकी उँगलियों का कमाल इनकी आवाज से ज्यादा आपस में तालमेल कर इन्हे कलाकार बनाता है, बिना हाथों कि उँगलियों के ये सब अधूरे है इसलिए इनकी सारी कला का श्रेय उँगलियों को जाता है पर ये अपनी उँगलियाँ के इस एहसान से वाकिफ नहीं है।
उँगलियों को कहाँ-कहाँ पहुंचाकर लोग क्या-क्या कर सकते है यह मैंने फिल्मे से जाना। यह अलग बात है कि सामान्य जीवन में अपने हाथों कि उँगलियों को में घर की मुर्गी समझकर भूला रहा। अरे भाई मैं ही क्यों आपकी भी तो उँगलियाँ है, आप उनसे क्या-क्या कमाल करवा चुके हो,मुझसे बेहतर आप ही जानते है, अगर मैं कुछ कहने लगा तो तुम अपने कान खड़े कर लोगे ओर हो सकता है अपना सा मुह लिए अपने दांतों को निपोरने लगो। अगर तुम मुह लटकाकर खामोश नही रहे तो मेरा मुह तोड़ने की बात करोगे ओर मेरे जमे जकड़े पैर उखाड़ने लग जायोगे। ऐसा भी नही कि तुम तुम कानों में तेल डालकर बैठ जाओ या तुम्हारे कान पर जूं न रेंगे तुम अपना पेट ओर पीठ एक करके सर पर पैर रखकर भागने कि बजाय मेरे दाँत खट्टे करने जुट जायोगे। तुम अपनी उँगलियों से अपने ही सर को धुनोगे ऐसा भी नहीं, तुम उँगलियों को इकट्ठा करके घूंसा बनाकर किसी के भी कान खड़े कर सकते हो, क्योकि तुम एक आमव्यकित हो। जब कम पढ़ा लिखा आम व्यक्ति के हाथों कि उँगलियों की एक करतूत व्यक्त करने पर वह मुझे मुह दिखाने लायक नही छोड़ सकता तब विचार कीजिये अगर किसी ताकतवर व्यक्ति, राजनेता की उँगलियों के इशारों को उजागर करने पर क्या वे मेरे मुह पर ताला नहीं डाल देंगे? तब क्या मैं आपको मुह दिखाने लायक बच सकूँगा। फिल्में में उंगलिया का उपयोग विश्वकल्याण नही बल्कि अभिनेता अभिनेत्री के द्वारा फिल्मी गीत गाते समय एक दूसरे के सुंदर मुखड़े के कोमल स्पर्श से कामुक होना ओर कामुकता के तीर जनता को मारना भर है। सरेराह सार्वजनिक उँगलियों का प्रदर्शन अभिनेता ओर अभिनेत्री ही ज्यादा करते दिखते है ओर उनकी उंगलिया बेशर्मी के हदें पार कर जाती है जो किसी भी खेत में, मैदान में, पहाड़ों पर, महलों- हवेलियों या घर, कही भी गीत के साथ नटकना, मटकना झटकना में उँगलियों की पूरी ताकत झौंक देते है। वे अभिनय करते समय एक दूसरे के मुखड़े पर गालों के स्पर्श से शुरू होते है ओर फिर काली ज़ुल्फों की सैर करके ये उंगलिया, पीठ पर, पेट पर,नितंबों पर आवारा घूमने के बाद आँखों के पलकों पर जंप मारते हुये ओठों पर लेंड कर जाती है ओर गाना खत्म होते ही उँगलियों का रोल भी खत्म हो जाता है ओर ओठों का स्पर्श ओठों से करने की शुरुआत दुनिया में पहले किसने की यह मैं समझ नही सका हू ।