राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और सिमी में कोई फर्क नहीं : राहुल गांधी

भोपाल। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आज राष्ष्ट्रीय स्वसेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ खुला मोर्चा खोलते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) में कोई फर्क नहीं है। दोनों ही कट्टरपंथी विचारधारा मानने वाले हैं। इन संगठनों से जुडे लोगों के लिए भारतीय युवा कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है।

उधर राहुल के इस बयान के बाद संघ ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि राहुल को प्रतिबंघित संगठन और राष्ट्रवादी संगठन में फर्क पता नहीं है। संघ प्रवक्ता राममाधव ने राहुल के बयान पर कहा कि राहुल को इटली और कोलम्बिया से पहले भारत को समझना चाहिए। संघ पर कट्टरपंथ के आरोप के जवाब में राम माधव ने कहा कि राहुल को शायद पता नहीं कि भारत में कट्टरपंथ को सबसे ज्यादा बढ़ावा देने वाला दल कांग्रेस ही है। राहुल इतिहास को पढ़ लें तो उन्हें पता चल जाएगा। बहरहाल, हम न तो राहुल और न ही उनके बयानों को महत्व देते हैं।

युवा कांग्रेस के चुनावों के मद्देनजर मध्यप्रदेश के तीन दिवसीय दौरे के अंतिम दिन यहां पत्रकारों से चर्चा में गांधी ने कहा कि कट्टरपंथी विचारधारा के कारण ही वह संघ और सिमी दोनों संगठनों को एक जैसा मानते हैं और इसलिए इस प्रकार की विचारधारा से जुडे लोगों के लिए कांग्रेस से जुडे संगठन में कोई जगह नहीं है। युवा नेता ने कहा कि और वह अपने इस बयान में किसी प्रकार का विवाद नहीं देखते हैं।

राजस्‍थान पत्रिका से साभार

102 COMMENTS

  1. राहुल : मम्मी तेरी इटली की : पापा तेरा भारत का : = जूझे क्या पता हिन्दुस्थान क्या चीज हे : इसलिए फूट डालो साशन करो : बाली नीतियों का परित्याग करो : पुरखे बहुत पैसा जोड़कर चले गए हे : इसलिए किसी की तुलना न कर : चुनाब नजदीक आ रहे इसलिए पहले से भूमिका बनाई जा रही हे : कांग्रेस पार्टी किस तरह से अपनी रोटी सकेगी : सिर्फ देश को लूटकर बिदेसो में पहुचाया जा रहा हे : देश के साथ कोई हमदर्दी नहीं : लोग महगाई से परेशानन हे : इस तरह के फलसफे छोड़ कर लोगो को भीड़ बाना चाहता हे

  2. इस अंग्रेज की ओलाद ने देश को लूटने के सिवा कुछ और नहीं किया है . इनका makshad देश का ईसाईकरण करना . इनकी पुराणी निति फूट डालो और राज करो की है. इन्होने देश को बर्बाद करके रख दिया है. इस अंग्रेज को देश के मान सम्मान का क्या पता .

  3. इस फिरंगी की बात पर आप लोग उतना ही ध्यान दे, जितना जरूरी है |जिस देश में और जिस माँ से इसने जनम लिया उन गरीबो के पास था ही क्या | राजीव गांधी लन्दन में पढते समय ज्यादा पैसे खर्च कर रहे थे | उसी समय उनकी मुलाक़ात दूकान मे काम करने वाली मिसनरी अन्तोनिया मैनो(सोनिया गांधी ) से हुई | राजीव गांधी को कुछ पैसा उधार देकर , शादी करके और अब यहाँ भारत को नोच नोच कर खा रहे है ऐ लोग |इन लोगो के साथ फिरंगी मानसिकता वाले भारतीय लोग भी भारत को दीमक की तरह चाट रहे है |फिरंगियों ने जिन भारतीयों की सहायता से भारत को गुलाम बनाया था उन देशद्रोही भारतीयों की औलादे अब भी अंतोनियो मैनो (सोनिया गांधी ) और समूह के साथ मिलकर भारत को बर्बाद कर रहे है |जिस देश का प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति अपने देश से ज्यादा दूसरो के प्रति वफादार हो उस देश मे भ्रष्टाचार ही होगा | ऐ लोग ४०० लाख करोड़ से भी ज्यादा डकार चुके है भारतवासियों का पैसा |ज्यादा जानकारी के लिए सुब्रमण्यम स्वामी की वेबसाईट , भारत स्वाभीमान ट्रस्ट साईट पर बहुत कुछ जानकारी है |भारत को छोड़ो फिरंगी |

  4. देश का दुर्भाग्य है की राहुल गाँधी जेसे स्तरहीन लोगो को कांग्रेस के अनुभवी ,ओर भारत को जानने वाले वरिष्ठ भी नमन कर रहें है ,. प्रधान मंत्री तक बनाने की बात कर रहें है देश भक्त ओर देशद्रोही में फर्क नहीं समझते जो उसे पी ऍम के सपने दिख रहें है क्योकि वह किसी खास खानदान का बेटा है

  5. बेटा राहुल अगर मम्मी की गोद के आगे भी दुनिया हैं वहा से उतरो और ये ऊल जुलूल बचपना बंद करो

  6. according to public pole he is not as popular as he can be a gram panchayat’s sarpanch but he is a member of parliament now because he belongs to a family of mostly ruled on India by dividing India on religion and caste
    India have majority of rural population and in this area there are no education for them and his family cheated all of them and ruled on “divide and rule” but now all rural area are developing and growing the level of education So now is not so easy to deceive Indian public

  7. Various diplomatic cables from the U.S. Embassy in India show an evolving U.S. view of Rahul Gandhi. In late 2007, U.S. diplomats described him, “widely viewed as an empty suit and will have to prove wrong those who dismiss him as a lightweight. To do so he will have to demonstrate determination, depth, savvy and stamina. He will need to get his hands dirty in the untidy and ruthless business that is Indian politics.” Other cables say that Gandhi was politically inexperienced, made repeated mistakes, and refer to criticisms of him by “political analysts and journalists”. His relations with the U.S. improved over time. In November 2009, after a meeting with the U.S. ambassador, he as described as “an elusive contact in the past” but now “clearly interested in reaching out to the [U.S. government]”. A cable from February 2010 describes him as “increasingly sure-footed”.[6]:wikipedia

  8. Tanveer जाफरी जी—-मैं आपकी टिप्पणी पर टिप्पणी कर रहा हूँ।
    (१)
    कुदरत का कानून संतुलन ही है। दुर्जन और सज्जन आपस में, सम्पर्क में आने पर, संतुलन बनाने की प्रक्रिया लंबे अरसे तक चला करती है। (२)
    और अगर दुर्जन, संतुलन हासिल करने के वास्ते, सज्जन ना बन पाया, तो सज्जन कुछ मात्रा में दुर्जन बन जाएगा। ऐसी प्रक्रिया भी हमेशा पूरी नहीं हो सकती।
    (३)
    कभी कभी, पाकीस्तान में ४७ के बाद हुआ, वैसे कमज़ोर पार्टी के सारे सदस्यों को बाहर का या जहन्नुम का रास्ता दिखाया जाता है। और एक ही पार्टीका संतुलन बनाने की कोशिश होती है।
    (४) प्रश्न==> भारत—हिन्दू =?
    (क) जनतंत्र पर खतरा (ख) सहिष्णुता का अभाव (ग ) भाईचारे पर संकट।
    यह तीनों परिणाम हिन्दू अगर मायनोरिटि बन गया तो सभीको भुगतने पडेंगे।

    • आपकी टिप्पणी,हमारी टिप्पणी से संबध नहीं है, इस प्रकार की तमाम थेओरी पेश की जा सकती है,परन्तु बहेस रचनात्मक होनी चाहिए,केवल पूर्वाग्रही नहीं. मैं फिर कहता हूँ की… इसमें कोई शक की गुंजाईश ही नहीं की हिदू धर्म दुनिया का सबसे सहिष्नुशील धर्म है.इस सम्बन्ध में यदि कोई पुस्तक या समीक्षा न भी लिखी जाये तो भी यह बात शाश्वत सत्य है. परन्तु माफ़ कीजियेगा की यह वही सहिष्नुशील हिंदुत्वा है जो उदारवादी है.वही सहिष्नुशील भी है, मगर इस सहिष्नुशीलता का क्रेडिट देश व दुनिया के उदारवादी विचारधारा रखने वाले हिन्दू समाज को ही लेने दें तो ज्यादा बेहतर है.अतिवादी लोग तो अपनी ‘अतिवादी विशेषता’ की अपनी सोच व कारगुजारियों से धर्म को बदनाम ही करते हैं.सिम्मी या दुसरे अतिवादी या आतंकवादी संगठानों की ही तरह..माफ़ कीजियेगा मेरे जीवन में मेरे ९९% मित्र हिन्दू ही रहे हैं ओर आज भी हैं.हिंदुत्वा के बारे में वो भी अच्छी तरह जानते हैं.ओर वो वही सहिष्नुशील हिन्दू हैं जिनकी आप बात कर रहे हैं.’
      कृपया केवल इसी सन्दर्भ में टिप्पणी करें

  9. 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।.

  10. राष्ट्रिय स्वमसेवक संघ पर टिप्पणी या सिमी से तुलना के पूर्व इस प्रकार की सोच रखने वाले सभी लोगों से निवेदन है की कृपया आप सभी समझ लीजिये की दुनिया में हिन्दू या हिन्दुइज्म के बारे में क्या सोच है ,इस सन्दर्भ में एक पुस्तक समीक्षा “दुनिया में सबसे ज्यादा सहनशील धर्मपंथ हिंदुत्व “लेख ज़रूर पढ़िए

    • इसमें कोई शक की गुंजाईश ही नहीं की हिदू धर्म दुनिया का सबसे सहिष्नुशील धर्म है.इस सम्बन्ध में यदि कोई पुस्तक या समीक्षा न भी लिखी जाये तो भी यह बात शाश्वत सत्य है. परन्तु माफ़ कीजियेगा की यह वही सहिष्नुशील हिंदुत्वा है जो उदारवादी है.वही सहिष्नुशील भी है, मगर इस सहिष्नुशीलता का क्रेडिट देश व दुनिया के उदारवादी विचारधारा रखने वाले हिन्दू समाज को ही लेने दें तो ज्यादा बेहतर है.अतिवादी लोग तो अपनी ‘अतिवादी विशेषता’ की अपनी सोच व कारगुजारियों से धर्म को बदनाम ही करते हैं.सिम्मी या दुसरे अतिवादी या आतंकवादी संगठानों की ही तरह..माफ़ कीजियेगा मेरे जीवन में मेरे ९९% मित्र हिन्दू ही रहे हैं ओर आज भी हैं.हिंदुत्वा के बारे में वो भी अच्छी तरह जानते हैं.ओर वो वही सहिष्नुशील हिन्दू हैं जिनकी आप बात कर रहे हैं.

  11. सनसनीखेज वक्तव्य है| होम पेज पर स्थाई रूप से विद्यमान रहे तो अच्छा ही है| लोग भड़कें गे तो प्रवक्ता.कॉम पर अधिक देर ठेहरे रहेंगे| “कालों का राज है भाई” इसी का प्रमाण है|

  12. एक हिन्दु के रुप मे मुझे संघ से हर हमेशा यह शिकायत रही है की वह हिन्दु संगठन के रुप मे प्रचारित होता है, लेकिन वस्तुतः वह हिन्दु संगठन है नही. संघ भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है. राष्ट्र हितो मे संघ हिन्दु हितो की तिलांजली देता आया है. लेकिन यह राहुल जैसे सामंत है जो संघ पर हिन्दु संगठन होने का बिल्ला चिपका देते है.

  13. JAI CONGRESS DEVI, JAI RAJMATA KI, JAI HO YUVRAJ JI KI & JAI HO MAMA QAVARTOKICHI KI, JAI ITLY VALE NANKO KO & JAI HO RAHUL+PRIYANKA FORUM KE CHAMCHO KI, JAI HO ROBERT VADERA DAMAD JI KI(JINKE AIRPORT PAR BHI CHECKING NAHI HOTI, ? KI VO RAJMATA KE DAMAD HAI)

    SABSE BADI JAI HO CONGRESS KI KATHPUTLI, DHARITRASHTRA JI KI………………………………….JINHE APNI SEAT KE ALAVA AUR KUCH NAHI DIKHTA !

    CONGRESS KA KOI BAN GAYA “MAHATMA”, KOI BANA “CHACHA”, BANVAGAI PAKISTAN, BANGLADESH , AUR AB DEKHNA HAMARE YUVRAJ ? KAMAL KAREGE, APNE BADO SAI JYADA KAM KAREGAI, APP JANTA BATAI YAI KASHMIR, ARUNACHAL MAI ?????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????? KAR RAHE HAI ???????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????? ” CHINTA MAT KARO BHARAT KI JANTA, YUVRAJ APP KA WEIGHT HI KAM KAREGAI, JITNA CHOTA HOTA JAIGA DESH, UTNA HI WEIGHT KAM HOGA “??????????????????????????????????/////

    JAI MAMA SHREE “QAVATROKICHI KI” !

  14. राहुल जी, APP ने और APP साईं पहले जैसे ही SABNE नै तो भारत KA सतानाश KAR दिया, koi बन गे महात्मा, KOI बन Gaye चाचा IS देश का, NASH कर diya इस देश का, जो कसार बसी HAI वो अप्प पूरी कर दी, कर ही रहे है ! अप्प CROSS के sikke तो चला SAKTE HO , पर SHAHID भगत SINGH के नामे के किन RESERVE बैंक ऑफ़ INDIA MAI धक्के खा रहे है ! राहुल जी , अप्प के लिए EK अनमोल सुजाव है युवराज जी ! युवराज जी, आप्प PRIME मिनिस्टर की सीट PER बैठने साईं पहले ही राजमाता & APNE अम्बेस्स्दर को KAH कर क़वातारोची के नामे के किन & नोट्स चलवा दी , प्लेअसे MR युवराज ! कसाव को छोड़ दी, और ये ORDER देवे की अगर कही पर भी नेशनल फ्लाग लहराना है तो पाकिस्तान साईं इजाजत लेने होगी ! युवराज जी, आप्प जल्दी सीट संभल LAI, ताकि जो कसार आप्प के बड़े छोड़ गई है वो जल्दी पूरी हो जय !

    जय मामा क़वार्तोकिची की !

    REGARDS……..
    अजय अग्गार्वल
    इत्लिंकेर्स@gmail.com

  15. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधीके अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) में कोई फर्क नहीं है। दोनों ही कट्टरपंथी विचारधारा मानने वाले हैं। इन संगठनों से जुडे लोगों के लिए भारतीय युवा कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है
    राहुल विन्ची को कट्टर राष्ट्रवादी और कट्टर राष्ट्र द्रोही एक लगते हैं। बंदूक अपराधी के पास भी है सिपाही के पास भी, विडंबना कि विन्ची को दोनों एक लगते हैं। इस प्रकार यह कहकर कि मैं अपराधी का सम्मान नहीं कर सकता, चाहता है सिपाही को अपमानित करने के अधिकार का उपयोग करूँगा। ऐसे कुतर्क से देश का भावी प्रधान मंत्री तो क्या देश का नागरिक कहाने का अधिकारी भी नहीं है।
    ये छोकरा भारतीय युवा(बुर्जुवा) कांग्रेस का नेता है; हा हा हा …

  16. राहुल ने ठीक ही कहा है। सिमी का काम हिन्दुओ मे मुसलमानो के लिए घृणा फैलाना है। वैसे ही संघ मुसलमानो मे हिन्दुओ के प्रति घृणा फैलाने का काम करता है। ताकत वाकत है नही सिर्फ घृणा फैलाते है। इसका सीधा लाभ चर्च को मिल रहा है।

  17. कांग्रेस द्वारा राहुल गाँधी का यह वक्तव्य अश्वमेघ यज्ञ का एक घोडा है| यदि श्री राम नाम से घोडा समस्त भारत में दोडे तो कोई अचंभा नहीं| लोग उस घोड़े को दाना पानी देते श्री राम का मंगल गान करेंगे| तिरेसठ वर्षीय घोड़े, जिसने लीद के अतिरिक्त देश को कुछ नही दिया, पर सवार युवराज भारत को जीतने चले हैं तो उसे रोकना बहुत आवश्यक है|

  18. राजीव गांधी की हत्या संभवतः चर्च के षडयंत्र के तहत हुई थी। पिता राजीव के अन्दर हिन्दु संस्कार विद्यमान थे। पिता जिवित रहते तो वे राहुल को हिन्दु संस्कार अवश्य देते। लेकिन राजिव की हत्या के बाद राहुल तथा प्रियंका को सारे संस्कार अपनी ईसाई माता से मिले। प्रियंका का विवाह भी एक ईसाई युवक से कराया गया। अब हमे समझना होगा कि चर्च का मानस क्या चाहता है। जो चर्च चाहेगा वही राहुल करेगा। वही कांग्रेस भी करेगी जो चर्च चाहता है।

  19. The Rashtriya Syamsevak Sangh blamed Mahatma Gandhi for the country’s partition, attacked the media for its ‘anti-Hindu’ bias and asserted all Sikhs were Hindus.

    At a function organised in Amritsar to honour its volunteers who saved ‘Hindus from Muslim goons’, RSS Chief Mohan bhagwat urged Hindus to organise themselves and said the ‘unnatural partition’ of the country must end.
    “While Gandhi succeeded in creating and leading a people’s movement, he committed two mistakes; supporting the Khilafat movement and making Pandit Jawaharlal Nehru the prime minister. The end result was that two enemies, Pakistan and Bangladesh, were created forever,” he said.
    The RSS chief said, “Everyone makes mistakes, but when a big leader makes one, they lead to serious consequences.
    “While Nehru described partition as a fantastic nonsense, Gandhi said it would be allowed only over his dead body,” Bhagwat added in his hour-long address.
    He, however, termed Gandhi’s assailant Nathuram Godse as ‘sarphira’
    Earlier in the day, activists of the Dal Khalsa and Shiromani Akali Dal(Amritsar) led by Member of Parliament Simranjit Singh Mann staged protests against the RSS programme saying it sought to revive old wounds.

  20. श्री ओमप्रकाश शुक्ल जी’
    आपने मेरी ओर से उठाये गये सवालों के उत्तर तो नहीं दिये, लेकिन आपने नया सवाल उठाया है। आप लिखते हैं कि-

    “अपने यह तो गिना दिया कि कब कितने प्रतिशत विभिन्न जातियो के प्रशासनिक सेवा में थे लेकिन इसका आकड़ा देखने कि फुर्सत नहीं कि कितने अज भी भिखारी की जिन्दगी जी रहे है…”

    आदरणीय श्री शुल्ल जी आप मेरा- गरीब सवर्ण छात्रों को मिले संरक्षण-आलेख निम्न लिंक पर
    1 https://www.janokti.com/discussion-suggestions-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6/%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AC-%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3-%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2/
    2 विपन्न-सवर्ण-बच्चों का संरक्षण!
    https://www.pressnote.in/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3!_78984.html
    ३- विपन्न-सवर्ण-बच्चों का संरक्षण!
    https://himalayauk.org/2010/05/22/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82/
    पढेंगे तो आपको आपके सवाल का उत्तर मिल जायेगा।
    शुभकामनाओं सहित।

  21. ……………..are bhai jab tumhari mummi ko R.S.S.ke bare me kuch ata-pata nahi to tum bhi unhi ki tarah in vishyo per khamosh kyo nahi rahte itane bade desh ka pradhan mantri hona kya vidio game khelna hai.lagata hai isake dimag me digvijay singh ne gober bhar diya hai isi liye bagar soche samjhe jo chahe bakta rahta hai.bete R.S.S.me tumhare pure khandan khar pahle yah to ye admi bataye ki iska khandan firoj gandhi ka hai ya indira gandhi ka ise pata hai ki iske nam me gandhi kyo hai mahatma gandhi ki vajah se ya firoj gandhi ki.pahle ise ye batana chiye kya janana chahie fir simmi ya R.S.S. ki tulana karna chahie vase mai nahi kah raha hu mathai ne bahut pahle likh diya hai ki neharu khandan me ek purush aur ek mahil;a ke vicharo ko nahi manta.jab ek aise sangthan ki jiski alochana hi rashtravadi hone ki hai aur uski tulana ek aise sangthan se kaise ki ja sakati hai jo rashtr virodhi karyo ke liye iske hi sarkar dwara pratibandhit hai.bhai log mil ker kisi tarah iski shadi karave nahi to iska dimag vikrit ho jayega ya yah bhi ho sakta hai ki shadi ke layk hi na ho nahi to isase choti bahanki shadi salo pahle ho gayi aur chote bhai varun gandhi ki bhi hone ja rahi hai aur iske bare me koi charcha hi nahi to kya matlab lagaya jay?yahi na ki ye us layak hi nahi hai.khar ek jindagi kharab karne se badhiya hai ki apne ko bhulaye hue hai.lekin bhai mere utpatag bakne ke liye to iski nanihal hai hi waha kyo nahi ja ker behudi bate karta hai.isaki to dilli vishw vidyalay ke chatro ne hi topi uchal di kitani mehanat se tinaka tinaka jod ker media ke suojany se nuojawano ka neta ban raha tha aur univercity ke chunaw me buri gati bana diya unhi nuojawano ne shayad isi se khar khaye hai khisiyani billi khambha noch rahi hai.jao beta jab tumhare bap teen chuothai bahumat ke bad agli sarkar nahi bana paye to abhi to ek se ek hai mulayam singh ki tarah jo jhutha 272 seeto ki dawa karne wali iski mammi ko tyagi aur sanyasini bana diya to tumhari kya hasiyat pahle bahumat le ker aao fir khyab dekho mahgayi,sonia gandhi aur sadi ke sabse imandar manmohan singh ke nak ke neeche rashtra mandal khelo me jam ker bhrashtachar hua andhe aur anpadh bhi jan raha tha ki yaha kis tarah lut machi hai lekin in logo ke chashme ka number badal gaya tha jo dikhai nahi diya ya fir apne khandani swis bank khate me jama ho raha tha.akhir kyo khamosh rahe ye log manmohan singh ki khamoshi ki vajah sjhayad yahi hai ki unhe malum tha ki sahi jagah hissa jama ho raha hai.khelane do khiladio ko akhir isi bahane balence badh raha hai nahi to itane dino ki berojgari se jise rashtriy gathbandhasn ne nawaja tha uski barakhi bhi is chunaw me ho gayi ab abadh rup se khela ja sakta hai.hamlogo ka ek sangthan hai jisme yah tay hua hai ki ager yah bhodu pradhan mantri bana to ham log samuhik rup se is desh ka antim karmkand nipta dege kyoki fir yah desh jinda nahi mana jayega yah bhi ho sakta hai jaisda sunder lal patwa kahte hai ki digvijay ke dimag ka postmartam hona chahie wahi janbujh ker istarah ki bate iske muh se bakwate ho ki is parchun ki dukan hi kurk ho jay aur jo congreesi itane dino se inaki giraft se ajad ho sake.nahi to ekse badfh ker ek anubhawi netao ke hote hue is ardhvilayti …ko sabse kabil batana pad raha hai. karunanidhi aur mamta ko manane me itane din lage fir inke pradhan mantri in waiting banane ko kya kahege mugeri lal ke hasin sapne.dekho beta tumhari kismat me matr sapna hi likha hai nahi to kya ise digvijay jaisa chatur sujan salahkar kyo milata.beta kuch din shakha me aao fir dekho ki yah rasgtrvirodhio ka sangthan hai ya simmi jaise gaddaro ka.vase kismat bahut achi mili hai nahi ager dusare khandan me purvanchal me hua hota to waha ke ladke hi nahi bsde bhi bata dete ki rajneet kaise hoti hai.

  22. पुरुषोत्तम जी लगता है आप मेरी टिप्पडी से नाराज हो गए मै तो सिर्फ यह कह रहा था कि हेर मर्ज के लिए ब्राम्हण वाद को कोसने से कुछ हासिल होने वाला नहीं आखिर इसी गरीबी में पल केर डॉ.कलम कहा पहुच गए खुद डॉ. अम्बेडकर अपने समय के पूरी दुमिया में सबसे बुध्धिमान कैसे हुए उनको आरक्चन तो नहीं मिला और न ही बहुत सम्प्पन थे कि तीन विश्व विद्यालय में दर्शन शास्त्र, कानून और समजश्स्त्र ,अर्थ शास्त्र इत्यादि कि डिग्री हासिल कि भारत का संविधान जिसे तीन बार बनाने कि कोसिस मोतीलाल नेहरु वगरह ने की लेकिन सफलता नहीं मिली और डॉ.अम्बेडकर ने एक ही प्रयास में बना केर दिखा दिया.वे न तो ब्राहमद थे और न ही किसी आरकचन की बदुओलत पढ़े थे अपने यह तो गिना दिया कि कब कितने प्रतिशत विभिन्न जातियो के प्रशासनिक सेवा में थे लेकिन इसका आकड़ा देखने कि फुर्सत नहीं कि कितने अज भी भिखारी की जिन्दगी जी रहे है ओ.बी.क.का आकड़ा तो दिया लेकिन यह भी बताना चाहिए था कि कितने यादव,कुर्मी के अतिरिक्त अन्य ओ.बी.सी.जातियो को इसका लाभ मिला आज जो पहले से पा चुके लोगो के हिस्से ही आ रहा है.क्या किसी और देश में चुनावी राजनीत के लिए या किसी लिए आरक्चन दिया गया है.आप को पाकिस्तान का उदाहरद देना चाहुगा वहा जितने भी मुस्लमान भारत से गए आज उनके ही बच्चे सबसे शिक्चित है क्यों?खली इस लिए ली उनलोगों ने अपने बच्चो पैर ध्यान दिया इसलिए आज वह के अन्य मुसलमानों में इर्ष्या के कार्ड बने हुए है.आप तो विद्वयों आदमी है बहुत पढ़े लिखे आपको मेरे जैसा मुर्ख क्या बता सकता है लेकिन फिर भी इतना जनता हु कि पहले हिंदुस्तान में भी ब्राहमद लिखते नहीं थे उन्हें भी पंडिताई में अच्छी खासी कमी होती थी लेकिन जबसे उर्दू में राजकाज होने laga तो उनलोगों को shikcha का mahtyw samajh में aya और अपने बच्चो को padhana likhana prarmbh kiya इसी लिए वे aage nikal गए और pichade खली बच्चे pada karte रहे कि जितने hath hoge utani amdani hogi.ख़ाली vote bank के लिए कैसे इस vyvstha का samarthan kiya ja सकता है.आप लोगो को isbat पैर vichar karna chahie कि उन्हें padhane likhane की vyavstha muft में और sahi vatavarad में milani चाहिए ha rajneetik log giroh बना केर kursi का khel khele use एक tathast adami bardast karega dhanyvad फिर koi bhul hui हो तो kum padha likha man केर chama kariega.

  23. आदरणीय मीणा जी के विचार से मई पूरी तरह से अस्सेहमत नाही हू. भारत मई सदियों से जातिगत भेदभाव रहा है और इस भेदभाव की विश्व मई कही कोई सानी नाही मिलती. केवल किसी व्यक्ति के किसी एक परिवार या कुल मई पैदा हो जाने को लेकर उस व्यक्ति को जीवन भर के लियए सिर्फ और सिर्फ भेदभाव का सामना करना पडी यह ना सिर्फ अमानवीय है बल्कि दुनिया का सबसे घ्घंय्तम आप्राह भी है. जाने अनजाने जैसे भी भारत मई जाती गत वाव्यस्था का निरण हुआ हो परुन्तु आज के भारत मई जाती ही भारत का सबसे बड़ा सच है.

    मई चम्बल से आता हु और वह मैंने जिस प्रकार का जाती गत भेदभाव देखा हिया यह सोच कर भी विकशित समाज मई लोगो के रोगटे खड़े हो जायेंगे. यह सच है की अनन्य देशो मई भी भेदभाव या रंग भेद रहा है जो साम्राज्यवादी विचारधारा के उपज थी, पर भारत मई जो कुछ जाती ने नाम पर हो रहा है उसका इतिहास तो कम से कम २००० साल पुराना हा

    भारत के शहरी इलाको मई रहने वाले ८८% गरीब SC/ST/OBC से है और ग्रामीण इलाको मई ९२% गरीब SC/ST/OBC से है!! यह कैसे संभव है आजदी के ६२ साल बाद भी अगर यह इस्थिति है तो काही कुछ गलत तो हो ही रहा है. हिन्दू धर्म मई जाती गत भेदभाव और बरहमनवाद का बोलबाल एकक साथ ही बढ़ा है, हिन्दू धर्म मई भोत साड़ी कुरीतिय और कर्मकांड ब्रह्मणवाद की वजह से ही भद्दे. और याही कारन रहा की हिन्दू धर्म कमज़ोर होंने लगा था….आर्य समज, ब्रह्समाज जैसे movement yaadi साही समय शुरू नाही होत्ते तो शायद हिन्दू धर्म ही ख़तम होने की कगार पर पहुच जाता.

    पर मीना जी जब RSS जैसे संघठन पर जातिवादी होंने का आरोप लगता है तो बहोत दुःख पहुचता है. संघ तो हमेशा से ही जातिवाद के विरुद्ध लड़ा है , मई संघ से पेचले १७ वर्षो से जुदा हू संघ की शाखा मई कभी जातिगत भेदभाव नाही देखा.

    Meena ji ki samta ki paribhasha bhi bahot hi sankirna hai woh jansnkya ke anupaat mai aarakshan maang rahhe hai agar issi aanupaat se aarakshan diyya gaya to phir iss desh ka bantadhaar hone mai derr naahi lagegi. aarkshan ekk bahot hi accha madhyam hai par Meena ji to isse janam sidd aadhikaar banane mai lagge hai isse jaatigat bhedbhaav aur ayada badd jayega kam naahi hogga

  24. यधपि सम्पादक जी की टिप्पणि के पशचात मुझे बहुत ज्यादा नही कहना है पर इत्ना सा कहुंगा जो लोग अपने सामर्थ्य से आगे नही बढ सकते है वो ही व्यर्थ का विलाप करते है………………………

  25. माननीय संपादक महोदय

    सादर नमस्कार

    यह ध्यान में आ रहा है कि कुछ लोग हमेशा से ही बहस की दिशा को मोडना चाहते हैं । बहस किसी विषय पर भी हो, वह घूमा फिरा कर उसी विषय पर ले जा रहे हैं । उदाहरण के लिए राहुल गांधी के बयान को ही लीजिये । विषय कुछ और है और कुछ लोग बिना कारण के (या कोई छुपा कारण होगा तो मुझे पता नहीं) उसी दिशा में चर्चा को भटकाने का प्रयास करते रहते हैं । यह कोई पहली बार हुआ है, ऐसा नहीं है । आपको शायद याद होगा कि राष्ट्रमंडल खेल व सेक्स के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। मूल मुद्दे को छोड कर बहस को किसी दूसरी दिशा में ले जाया गया था ।
    मेरा आपसे अनुरोध है कि अगर कोई पाठक एक निश्चित विषय पर चर्चा करना चाहता है तो उस विषय पर भी चर्चा कराया जाए इसमें कोई आपत्ति नहीं है । लेकिन किसी भी विषय को खिंच कर किसी के साथ जोडने की कोशिश ठीक नहीं है । इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए । इससे बहस दूसरे दिशा में चला जाता है और इसका लाभ नहीं मिलता । इसलिए टिप्पणी करने वालों से अनुरोध किया जाए कि मूल विषय पर ही टिप्पणी करें ताकि बहस ठीक ढंग से हो सके ।

    सधन्यवाद
    समन्वय

  26. आदरणीय श्री मीणा जी, क्या विषय को देखते हुए आपके विचारो पर टिप्पणी करने का कोई औचित्य है. आपके जैसा विद्वान लेखक जब विषय से भटकता है तो दुःख होता है.
    टिप्पणी के लिए क्षमा.

  27. श्री अभिषेक पुरोहित जी, (वैसे तो आपके विचारों के अनुसार तो आप श्री एवं जी सम्बोधन के पात्र नहीं हैं, लेकिन मैं अपने संस्कारों को नहीं भुला सकता।)

    विद्वता क्या है?

    यदि आपको पढना-लिखना या किसी आलेख या टिप्पणी पर अपने विचार व्यक्त करना नहीं आता तो उसके लिये मौन भी एक तरीका है, लेकिन आपको किसी पर झूठे और अपमानकारी आरोप लगाने का कोई हक नहीं है। आप जिस कल्पना लोक में जी रहे हैं, वहाँ से जमीन पर उतरकर हकीकत को देखें।

    पिछले वर्ष एक कॉलेज के बच्चों ने हमारे संगठन-“भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)”-को लिखित शिकायत की, कि उनके कॉलेज का प्रशासन बनिया-ब्राह्मणों द्वारा अपने शिकंजे में लिया हुआ है, जिसके चलते गैर-बनिया-ब्राह्मणों के बच्चों के अंक कम दिये जा रहे हैं। जिसके चलते वे मैरिट में पिछड रहे हैं।

    हमने शिकायत की सच्चाई जानने के लिये सूचना अधिकार के तहत आँकडे जुटाये और एक कक्षा के टॉप 25 छात्रों द्वारा प्राप्त आँकडों के अनुसार बनायी गयी मैरिट यहाँ प्रस्तुत है। जानने का प्रयास करें कि कौन पढने में कितना माहिर है?

    छात्र की जाति आन्ततिक अंक, प्रायोगिक अंक लिखित परिक्षा के अंक कुल अंक
    १. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ५२/६० ९२/१००
    २. बनिया २०/२० १९/२० ५२/६० ९१/१००
    ३. बनिया २०/२० २०/२० ५१/६० ९१/१००
    ४. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ५०/६० ९०/१००
    ५. ब्राह्मण २०/२० २०/२० ४८/६० ८८/१००
    ६. ब्राह्मण २०/२० १९/२० ४७/६० ८६/१००
    ७. बनिया १९/२० २०/२० ४७/६० ८६/१००
    ८. ओबीसी१५/२० १४/२० ५७/६० ८६/१००
    ९. एससी १४/२० १४/२० ५८/६० ८६/१००
    ९. एसटी १३/२० १४/२० ५९/६० ८६/१००
    ९. एससी १४/२० १३/२० ५८/६० ८५/१००
    १०. बनिया१९/२० १९/२० ४६/६० ८४/१००
    ११. ओबीसी१३/२० १३/२० ५७/६० ८३/१००
    १२. ब्राह्मण२०/२० १९/२० ४४/६० ८३/१००
    १४. बनिया१९/२० १९/२० ४५/६० ८३/१००
    १५. बनिया २०/२० १९/२० ४४/६० ८५/१००
    १६. ओबीसी१३/२० १३/२० ५७/६० ८३/१००
    १७. एसटी१५/२० १५/२० ५२/६० ८२/१००
    १८. एससी १५/२० १५/२० ५२/६० ८२/१००
    १९. ओबीसी१५/२० १५/२० ५१/६० ८१/१००
    २०. एसटी १२/२० १०/२० ५८/६० ८०/१००

    नोट : हमने जो सूचना प्राप्त की है, उसमें छात्रों के सरनेम के अनुसार यह भी ज्ञात हुआ है कि ब्राह्मण एवं बनिया के अलावा सवर्ण राजपूतों, कायस्थों, मुसलमानों, आदि के अंक बहुत ही कम दिये गये हैं।

    श्री पुरोहित जी ये हैं आपकी पढाई की सच्चाई के आँकडे। यही बात प्रशासनिक सेवाओं के साक्षात्कार में दौहराई जाती रही है। यदि भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और राज्य प्रशासनिक सेवाओं के साक्षात्कार एवं लिखित परीक्षा के अंकों का विवरण प्राप्त करके उनका तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया जाये तो इस देश के सामाजिक सौहार्द में आग लग सकती है। लेकिन अब अधिक समय तक यह सब चलने वाला नहीं है।

    हमने उक्त जानकारी से कॉलेज संचालक को अवगत करवाया, तत्काल कार्यवाही की गयी और अब उस कॉलेज में एक भी ब्राह्मण या बनिया लेक्चरर नहीं है। जिसका परिणाम ये है कि इस बार के परीक्षा परिणाम में कक्षा के प्रथम 15 छात्रों में एक भी ब्राहण-बनिया छात्र नहीं है।

    अन्त में, मैं इस बात को स्पष्ट कर दूँ कि मुझे ब्राहण या बनिया से कोई तकलीफ नहीं है, तकलीफ है तो रुग्ण एवं विभेदकारी मानसिकता से, जिसका उपचार है, इस देश की सभी जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुसार संसद, विधानसभा एवं सभी सरकारी सेवाओं और सभी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण। आरक्षण के अन्दर सभी जातियों की महिलाओं की पचास प्रतिशत आरक्षण भी बहुत जरूरी है।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, सम्पादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक)। फोन ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)

  28. मुझे नही लगता है इससे ज्यादा स्पष्ट कोयी ओर लिख सकता है जितना स्पष्ट मीना जी ने लिखा,इसको पढ कर एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है कि ये सहाब कोयी तर्क सुनना ही नही चाहते,इनके पेट मे बहुत दर्द है कि आखिर कैसे बामण-बनिये बिना आरक्षण के इतना आगे बढ सकते है ये इनकी व्यक्तिगत ईर्ष्या के आलावा ओर कुछ नही है.इक बामण जिसके घर में भले ही खाने को ना हो लेकिन वो अपने बच्चें को स्कुल जरुर भेजता है,परिवार का वातावरण इस प्रकार का बनाया जाता है जो पुर्णत: पढायी के अनुकुल रहे,इसी प्रकार चाजे पैसा हो या ना हो सभी बनियों की कोशिश यही रहती है कि उनके बच्चें पढे ज्यादा से ज्यादा पढे,अब मीना जी के चाहने से वो पढना बंद तो नही कर सकते ना?????मीना जी का न्याय कहता है कि बामणॊं को पढना नही चाहिये ओर बनियो को व्यापार नही करना चाहिये तथा राजपुतो को फ़ौज मे नही जाना चाहिये,हम एसे किसी न्याय को नही स्वीकार करते है जो ईर्ष्या पर आधारीत हो ओर समाज को आगे ले जाने के स्थान पर पीछे धकेलने वाला हो.
    इक एसी-एस्टी की तुलना मे सामन्य वर्ग के प्रतियोगी को बहुत ज्यादा प्रतियोगीता करनी पडती है फ़िर उसमे वो लोग भी शामील होते है जो कुछ समय पहले तक सामान्य वर्ग से थे या जिनका जीवन स्तर हमेशा से उअन्के बराबर था,फ़िर सरकार ने प्राशाश्निक सेवाओ के लिये अवसर भी सिमित कर रखे है,उसके बाद भी इतने चुन कर आते है उन लोगो की प्रतिभा का लोहा मानने के स्थान पर ये सहाब कहते है कि जिसकी जित्ने संख्या उतना ही प्र्तिनिधित्व,वाह क्य मस्त अंधेर्गर्धी है??खुलेआम धोस्पट्टी???
    सत्यय्ता तो ये है कि एसे बुधिजिवियो के फ़ैलाये भ्रम जाल के कारण ही आज आरक्षित व अनारक्षित प्रतियोगियो के बिछ नम्बरों का बहुत ज्यादा अंतर है,जिसे बिना परिष्र्म किये ये पाटना चाहते है,लकीर को बडा करने के स्थान पर लकीर मिटाना चाहते है,लिकिन खुद बीमार पडने पर अपने को किसी सामान्य वर्ग से आये डाक्टर को देखाते है,घर या मकान भी उन्ही से बनवाते है,वकिल भी वो ही होगा,मलायी खाने में सबसे आगे पर देश को देने मे कुछ नही,सिवाय आरक्षण आरक्षण………….जो सुरसा के मुख की तरह कभी खत्म नही होता है…………………….

  29. श्री ओमप्रकाश शुक्ल जी’
    मुझमें इस बात की समझ है कि क्या सही है और क्या गलत. आपको निवेदन कर दूँ कि इस देश को ब्राहमणवादी व्यवस्था ने किस प्रकार से दीमक की तरह चट कर लिया है. इसे समझाना है तो तटस्थ नजरिया जरूरी है. आप नीचे लिखे तथ्यों को पढ़ें :

    -१९४७ तक भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के ८० प्रतिशत से अधिक पदों पर मुसलमान, कायस्थ और राजपूत कौमों के लोग पदस्थ थे। जिनमें क्रमश : करीब ३५ प्रतिशत पदों पर मुसलमान, ३० प्रतिशत पदों पर कायस्थ और १५ प्रतिशत पदों पर राजपूत पदस्थ हुआ करते थे। आज इन तीनों कौमों के कुल मिलाकर ०५ प्रतिशत लोग भी भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में नहीं हैं। क्यों? क्या आजादी के बाद इन तीनों कौमों की माताओं ने मूर्ख बच्चे पैदा करना शुरू कर दिये हैं।

    -मेरे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार २००४-०५ तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पद थे। जिनमें से-

    -२२.५ प्रतिशत (८१०) पद अजा एवं अजजा के लिये आरक्षित होते हुए भी, अजा एवं अजजा के मात्र २१३ (५.९१ प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे। इन दोनों वर्गों की आबादी, देश की कुल आबादी का २५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके मुताबिक इनकी भागदीदारी बनती है : ९०० पदों पर।

    -२७ प्रतिशत (९७२) पद अन्य पिछडा वर्ग के लिये आरक्षित होते हुए भी, अन्य पिछडा वर्ग के मात्र १८६ (५.१७ प्रतिशत) लोग ही चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ४५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनकी भागीदारी बनती है : १६२० पदों पर।

    -बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पदों में से २४०० पदों पर केवल ब्राह्मण जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ३.५ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल १२६ पदों पर बनता है। जिसमें से भी हिन्दूवादी अपनी स्त्रियों को भी समान नहीं मानते और उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन से अधिक नहीं मानते इस प्रकार ब्राह्मनों की पुरुष आबादी १.७५ प्रतिशत ही रह जाती है, जो २४०० पदों पर काबिज है, जबकि उन्हें केवल ६३ पदों पर होना चाहिये।

    -बिना किसी आरक्षण के भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल ३६०० पदों में से ७०० पदों पर केवल वैश्य जाति के लोग चयनित किये गये थे। जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का ७ प्रतिशत मानी जाती है। जिसके अनुसार इनका अधिकार केवल २५२ पदों पर ही बनता है।

    नोट : आप सभी पाठक समझ गये होंगे कि जाति के आधार पर जनगणना नहीं करवाने के पीछे कौन लोग हैं और उनके इरादे क्या हैं? यदि जाति के अनुसार जनगणना होती है तो उपरोक्त सभी जातियों की वर्तमान अधिकृत जनसंख्या के आँकडे सामने आ जायेंगे।

    -गोधरा काण्ड की प्रतिक्रिया में गुजरात के हुए या कराये गये कत्लेआम (जिन्हें दंगे कहा जाता है) में मरने वाले हिन्दुओ में ९९ प्रतिशत से अधिक गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य थे। जिन हिन्दुओं पर मुकदमें चल रहे हैं या चल चुके हैं, उनमें भी अधिकतर गैर-ब्राह्मण और गैर-वैश्य ही थे।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक)। फोन ०१४१-२२२२२२५ (सायं ७ से ८ बजे)

    • Meena ji, if you have some authentic data supporting your claims about percentage of different castes, please publish it on your website. In my opinion, we should not blame someone just because he was born in a particular castes. We are in 21 century and we should look forward instead of looking continuously into the darkness of the past.

  30. राहुल गाँधी की RSS पर टिपण्णी उसकी घृणित सोच और विषभरा परिवेश की उपज है. राहुल गाँधी जैसे लोग कट्टरपंथी और अपराधिक राजनीती के प्रतीक है. राहुल गाँधी न केवल असभ्य है अपितु भारतीय परम्पराओं से नासमझ है या फिर उपहास उड़ाना चाहता है. दिग्विजय सिंह जैसे चाटुकारों से घिरा राहुल वास्तव में स्वयं की कोई सोच नहीं रखता. बल्कि ये कहें की इसका कोई दिमाग नहीं तो बढ़िया रहेगा.
    संघ की तुलना सिमी जैसे संगठन से करना राहुल और उसके स्क्रिप्ट रायटर की दिमागी दिवालियेपन को दिखाता है. उसकी इन घटिया हरकतों के बारे में ज्यादा कुछ न लिखा जाये उसी में भलाई है. देश की जनता को ऐसे सांप को पहचानना चाहिए.

  31. पुरुषोतम जी आपको न तो आर.एस.एस. को जानते है और नहीं अम्बेडकर को सही तरीके से पढ़ा है.पहली बात तो यह है की अम्बेडकर आराक्चाद चाहते ही नहीं थे क्योकि उनका सोचना था की इस बसखी से किसी दलित का भला नहीं होने वाला बहुत मुश्किल से सिर्फ १० सालो के लिए ये प्राविधान किया गया था लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस इसे लगातार बढाती रही की दलितों का वोते मिलता रहे और जानबूझ केर इन्हें शिक्चा से वंचित रखा गया अन्यथा इस वोते बैंक के बताने का खतरा था और पिचादो का आक्चाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लोगु अपनी सर्कार बचने के लिए किया था अब इसमें संविधान बेचारा कहा आ गया संविधान में तो आपातकाल का भी प्रावधान है और इसी को इंदिरा गाँधी लागु की जब अदालत ने उनसका चुनाव अवध धोसित किया .तो संविधान में तो समाजवाद भी है कहा है? इसतरह की बेवकूफी की बात करना सिर्फ बोध्धिक विलासिता है रहा सवाल पुरुषोत्तम जी को तो हम तो उन्हें जानते नहीं लेकिन बौधिक रूप से दिवालिया तो नहीं लेकिन राहुल के सपनो में लीं जरुर दिखाते है.तभी उन्हें आर.एस.एस.की यद् आई जब उनके पथ्प्रदासक ने सिम्मी से तुलना केर दी अरे बुधिहीनो तुमलोगों को कुछ करना धरना तो है नहीं ९८% की चिंता में दुबले हुए जा रहे है यह आकड़ा भी शायद उसी राहुल का दिया होगा.एक उत्तर प्रदेश की घटना का हवाला देना चाहुगा डॉ.अम्बेडकर के जन्म दिवस पैर अम्बेद्केर्नगर से रहू गाँधी ने कांग्रेस की रथ यात्रा का शुभारम्भ किया और अपने भाषद में डॉ.अम्बेडकर को कांग्र्स्सी भी घोषित किया तथा उनके कार्यो की तारीफ भी की लेकिन उसी मुओके पैर एक स्मारिका का विमोचन भी किया लेकिन उसमे कही अम्बेडकर का जिक्र भी नहीं था अब ऐसे बुद्धिहीन आदमी कहे या लड़का की बातो को नोतिसे लेना और बहस करना सबसे बड़ी बेवकूफी है.इसे तो शाहरुख़ खान जिसका यह दोस्त है के स्टार की राजनीत करनी चाहिए और इनकी माता जी अमिताभ बच्चन से भिड़ी ही हुई है कि इंडिया gate पैर abhisek बच्चन का poster भी नहीं रहने deti. जब कि wah aayojan के brand ambesder भी है.ager राहुल इस khandan के नहीं hote तो puronchal के ladake bata dege कि kya gujarti bechare पैर.

  32. आदरणीय पुरुषोतम जी,
    पहले तो आपकओ बधायी की आप मेरे टीप्पण से प्रसन्न हुवे,चाहे गलत ही सही पर मैं आपकी प्रसन्नता को दुर नही करना चाहुंगा.
    मुझे एसा लगता है कि आप “हिन्दु” और “ब्राहाम्ण” शब्द को समानार्थी मानते है,तभी तो आपको मेरी एस” पता नही कौन सी समानता चाहते है……….इतने साल संघ में जाते हुवे ना मुझ से किसी ने जाती पुछि ना मेने किसी से……………….जाती का भाव है वो जाती है हिन्दु जाती”” टिप्पणी मे हिन्दु की जगह ब्राहाम्ण दिखायी दिया,वैसे ये आपके लिये लिखी ही नही गयी है ये तो यहा अपना समय खराब कर रहे सब स्वयंसेवको को यह बताने के लिये लिखी गयी है कि आपको संघ के बारे मे कोयी भ्रम नही है बल्कि आप तो सर्व ग्याता है और संघ के प्रत्येक कर्म और विचारों को जानते है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ “ब्राहम्ण्वाद” सिखाते है,एसा आपको पता है जो इससे इतर बतायेगा वो “ब्राहम्ण्वादी” है.

    दुसरी बात प्रत्येक भारतीय को संविधान का पालन करना चाहिये ये उसका धर्म है,एस बात मे कोयी किन्तु परन्तु नही है,लेकिन एसा लगता है आप उस कानुन को हथियार बना कर अपने से भिन्न विचार के लोगों को धोंस दिखा कर जबर्द्स्ती विचारों को थोपना चाहते है,जैसा कि मेने पहले लिखा आपके पास कोयी तर्क नही है,केवल ओर केवल अपनी अग्यात व्यक्तिगत ईष्या के कारण ब्राहम्ण जाती को निरन्तर कटु टिप्पणि कर रहे है,जब कोयी पुछता है तो तुरंत उस पर पता कौन कौन से आरोप जड देते है,ये आपके कोन से तर्क पध्दती को दर्शाता है ये आप ही जाने,लेकिन इतना पक्का है ये अपनी संस्क्रिति का अंग तो नही ही है………….

    जिसे आप सामाजिक न्याय मानते है और जिस स्वरुप मे उसे रखते है ्वो मेरी व्यक्तिगत राय मे ना केवल बकवास है बल्कि गम्भिर रुप से देश में समानता के लिये खतरनाक है.इसमे कोयी शक नही की मनुष्य मात्र समान है और किसी प्रकार का छुआछुत या उच्च-नीच का भाव पुर्ण रुप से हिन्दु विरोधी है,गुरू और माता-पिता को छोडकर किसी के पास कोयी विषशाधिकार जन्म से या कर्म से मानना बकवास है,ये अस्पॄस्यता ना केवल सामाजिक विकॄती है बल्कि वेदान्त के उस महान ग्यान के भी प्रतिकुल है जिसका प्रतिपादन वेद और स्मर्तिया करती है,”जो कहती है “ईश्वर सर्व भुतानां हॄदयतिष्टति ”
    लेकिन आरक्षण के नाम पर जो राजनितिक खेल इस देश में चल रहा है वो बहुत गम्भिर क्षति कर रहा है ये आपकि संकुचित बुद्धि नहीं देख सकती है,आपको यह लगता है कि डा.अम्बेडकर ने अलग राष्ट्र के लिये काम किया था तो आप बहुत ही गलत सोचते है और बाबा सहाब का पुरा जीवन चरित्र पढने के बाद में अभि कह सकता हुँ आप उस महान आत्मा को दुखी” कर रहे है जो जीवन की अन्तीम साँस तक “समानता-बन्धुत्व-स्वतंत्र्ता” के लिये संघर्षरत रहा,जिसका एक मात्र ही सपना था कि धर्म के नाम पर होने वाले सामजिक हत्याचार को बन्द कर यह महान राष्ट्र पुन: समर्थ बनें।

    गणित के आकडों का खेल छोडिये यकिन मानिये मेरी गणित बहुत अच्छी है ९८% लोगों का नेता बनने की कोशिश मत कीजिये।किसी भी प्रकार का आरक्षण मेरे व्यक्तिगत मत से मनुष्य के स्वयं समर्थ बनने की अदम्य इच्छा और क्षमता को बुरी तरीके से प्रभावित करता है और मनुष्य की उन्नत्ति को रोकता है और उसे परजिवि बनाता है।
    मैं आपकी बात से पुरी तरिके से सहम्त हुँ कि हर व्यक्ति-समाज-जाती के साथ समान व्यवहार करना न्याय के सिधान्त के विपरित है,जैसे एक माँ खाना बनाते समाय अपने सभी बच्चों की रुची-खाने की क्षमता,स्वास्थ्य आदी बातों को ध्यान में रख कर खाना बना कर परोसती है और इस प्रकार परोसती है कि सभी बच्चें संतुष्ट रहे और ना केवल संतुष्ट रहे बल्कि सभी वॄद्धि करें,अगर आप अपने इस तथाकथित “सामाजिक न्याय” को उस माँ के समान मान कर व्यवहार करते तो कौन बच्चा है जो अपने ही भाई के मुँह से निवाला छीनेगा??लेकिन आपका न्याय एसा नही है ये तो एसा है कि कम खाने का साम्रथ्य रखने वाले को जबर्दस्ती के ठुस-ठुस कर खिलाना और ज्यादा सामर्थ्य रखने वाले को भुखा रखना,और यकिन मानिये ज्यादा खाने वाला हमेशा अतॄप्त और असंतुष्ट रहेगा और कम खाने वाला भी,दोनो दुखी रहेंगे और माँ भी.

    आपको अपने आप पर भारत के सभी लोगों पर ओर सभी वर्ग की स्र्तियों के सामर्थ्य पर विस्वास नही है लिकिन मुझे अवस्व्य है,जो किसी आरक्षण की बैसाखी के बिना उन्नत्ति कर सकते है और कर रहे है मेरा दॄड मत है कि पारिवारिक पृष्टभुमी,सामजिक वातवरण एक हद तक मनुष्य को प्रभावित अवश्य करता है लेकिन केवल वह ही सब कुछ नही होता,मनुष्य के अन्तर्मन का सामर्थ्य उसे हर परिस्थिती में आगे बढने को कहता है,इन दोनों के अदभुत सामंज्स्य से किसी मनुष्य का स्वभाव व जीवन बनता है अगर हम भारत मे एसा माहोल बनाने में कामयाब हो जाये जो प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव को उतरोतर स्म्यक दिशा मे वॄद्धि करते हुवे उसके लौकिक-पार्लौकिक दोनो जिवन को समर्ध बानये तब ही हम वास्तव मे स्व्तंत्र कहलायेंगे,वरना रोग की जड को ना पकड कर केवल घातक ईलाज करते रहे तो यह ईलाज ही जान ले लेगा और आरक्षण एसा ही एक ईलाज है.

    वैसे आपने मुझे बहुत निराश किया,मैं सोच रहा था १४ अक्टुम्बर के विषेश महत्व को देखते हुवे आप उस पर कोयी लेख या टिप्पणि देंगे पर आप अपने व्यक्तिगत अंह को ही तुष्ट करने में व्यस्त है,चलो कोयी बात नही मैं ही बताउंगा १४ अक्टुम्बर के महत्व को बाद में.

  33. आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी सदैव की भांति बीच में छलांग लगाकर अपने आशीष से आप्लावित करने के लिए धन्यवाद. आदरणीय जो संवाद मेरे और डॉ. मधुसूदन जी के बीच चल रहा, उसमें मैंने ब्राहमणों को एक भी अपशब्द नहीं कहा है. मैंने ब्राह्मणवाद की खिलाफत की है, जिसके आप भी समर्थक है. जो आपकी उक्त टिप्पणी से प्रमाणित होता है, जिसमें आपने लिखा है कि-

    “पता नही कौन सी समानता चाहते है……….इतने साल संघ में जाते हुवे ना मुझ से किसी ने जाती पुछि ना मेने किसी से……………….जाती का भाव है वो जाती है हिन्दु जाती”

    आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी, आज आपकी टिप्पणी में वो तल्खी नहीं है, जो हमेशा हुआ करती है. लगता है कि मेरी पिछली टिप्पणी का अभी तक असर है, जिसका प्रमाण आपका ये कथन है :-

    “आप सब को मीणा जी की मजबुरी समझनी चाहिये,अगर वो संघ को गालिया नही देंगे,ब्राहम्ण्वाद का अरोप लगा कर जब चाहे जिसे चाहे अप्मानित नही करेंगे और तर्क और तथ्य मे गलत सिध होने पर केस करने की धमकिया नही देंगे तो दुकान कैसे चलेगी?”

    आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी देश की संस्कृति और राष्ट्रवाद की रक्षा करने वालों को देश के कानून के पालन की याद दिलाना धमकी लगता है तो मेरा इसमें क्या दोष है. रही बात विद्वता की तो मैंने इस पर अभी तक तो कोई दावा नहीं किया है. मैं आग्रह, अनुरोध और विनती के साथ बात करता हूँ.

    आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी आपसे भी कि अनुरोध है कि आप संविधान सम्मत देश के ९८ % लोगों कि मांग का समर्थन करें. जिससे यह देश मजबूत हो और सभी हिन्दू सम्मान से जी सकें. मैं नहीं समझता कि इसमें आप जैसों को कोई आपत्ती होनी चाहिए? एक बार मेरी बात को फिर से पढ़ें :-

    “जब तक असमान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जायेगा, तक किसी भी मानव समाज में सामाजिक न्याय की व्यवस्था लागू करना असम्भव है।”

    आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी उपरोक्त मांग में आपको क्या आपत्ती है? मैं स्पष्ट कर दूँ कि उक्त मांग का अर्थ है, (आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे) देश में भारत के संविधान के अनुसार सभी के साथ समान रूप से न्याय हो। जिसे लागू करने के लिये संविधान में सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। हालांकि संविधान लागू होने से पूर्व ही इसे पहली ही सीढी पर मोहन दास कर्मचन्द गाँधी ने कुन्द करके सैपरेट इलेक्ट्रोल का हक छीन लिया और उसके बदले पूना पैक्ट के तहत प्रदान किये गये आरक्षण का संघ विरोधी है। ऐसे में इस देश में सामाजिक न्याय कैसे सम्भव है?

    अत: आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी मेरा एवं मेरी जैसी सोच के विचारकों का मानना है कि दलित, आदिवासी, पिछडे एवं सभी वर्गों की स्त्रियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सरकारी सेवाओं तथा सभी शिक्षण संस्थाओं में प्रत्येक स्तर आरक्षण प्रदान करने के संवैधानिक मूल अधिकार का संघ द्वारा विरोध करना 98 प्रतिशत हिन्दुओं के हितों पर खुलेआम कुठाराघात करना है।

    आदरणीय अभिषेक पुरोहित जी यदि संघ विरोधी नहीं है तो इस मांग के लिए संघ संघर्ष करे, क्योंकि मन्दिर निर्माण, समान नागरिक संहिता और कश्मीर मुद्दा इस मुद्दे के समक्ष तुच्छ हैं। इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता हिन्दू समाज की एकता एवं शक्ति संगठन के लिये सबसे पहली जरूरत होनी चाहिये।

    आशा है कि आपके आशीष वचन मिलते रहेंगे!

  34. आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी,
    सादर नमस्कार।

    सर्वप्रथम तो आपका ससम्मान धन्यवाद अदा करता हूँ कि आपने मेरी ओर से उठाये गये सवालों पर समय निकालकर अपना एवं संघ का पक्ष प्रस्तुत किया। आपका उत्तर देना एवं उत्तर देने का तरीका आपको विशिष्ट मानवों की श्रेणी में खडा करता है।

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, मैं संघ की समाज को विकलांग बनाये रखने की भेदभावपूर्ण नीति पर आपके विचार जानने की प्रतीक्षा में था कि आप क्या कहते हैं। क्या सोचते हैं?

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, प्रथम तो महिलाओं के साथ संघ में भेदभाव है। इस बात को आपने परोक्ष रूप से स्वीकार कर ही लिया है। अर्थात महिलाएँ संघ की नजर में अभी भी पुरुषों के साथ कार्य करने के लिये योग्य नहीं हैं। इसलिये उनके लिये अलग से प्रखण्ड खोल रखा है। मेरी राय में यह विभेद इस देश की महिलाओं को स्वीकार नहीं है। संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता है।

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, द्वितीय मैंने आपसे निवेदन किया था कि-

    “जब तक असमान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जायेगा, तक किसी भी मानव समाज में सामाजिक न्याय की व्यवस्था लागू करना असम्भव है।”

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, इस पर आपने कोई स्पष्ट मन्तव्य प्रकट नहीं किया। जो सारी चर्चा का आधार है!

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, मैं यहाँ पर विनम्रतापूर्वक दौहरा दूँ कि इसका अर्थ है, (आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे) देश में भारत के संविधान के अनुसार सभी के साथ समान रूप से न्याय हो। जिसे लागू करने के लिये संविधान में सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्वीकार किया गया है। हालांकि संविधान लागू होने से पूर्व ही इसे पहली ही सीढी पर मोहन दास कर्मचन्द गाँधी ने कुन्द करके सैपरेट इलेक्ट्रोल का हक छीन लिया और उसके बदले पूना पैक्ट के तहत प्रदान किये गये आरक्षण का संघ विरोधी है। ऐसे में इस देश में सामाजिक न्याय कैसे सम्भव है?

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, अत: मेरा एवं मेरी जैसी सोच के विचारकों का मानना है कि दलित, आदिवासी, पिछडे एवं सभी वर्गों की स्त्रियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सरकारी सेवाओं तथा सभी शिक्षण संस्थाओं में प्रत्येक स्तर आरक्षण प्रदान करने के संवैधानिक मूल अधिकार का संघ द्वारा विरोध करना 98 प्रतिशत हिन्दुओं के हितों पर खुलेआम कुठाराघात करना है।

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, मैंने पूर्व में भी लिखा है कि यदि संघ इस अमानवीय एवं विभेदकारी विचार को छोड कर सभी वर्गों को अपना-अपना अधिकार देने/दिलाने को तैयार है, तो इस देश की एवं इस देश के हिन्दुओं की तकदीर बदल सकती है। मन्दिर निर्माण, समान नागरिक संहिता और कश्मीर मुद्दा इस मुद्दे के समक्ष तुच्छ हैं। इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता हिन्दू समाज की एकता एवं शक्ति संगठन के लिये सबसे पहली जरूरत होनी चाहिये।

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, अन्य बातों पर तो चर्चा हो सकती है, लेकिन यह मुद्दा ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं करने तक संघ या हिन्दुवादी सरकार की भारत में स्थापना लगभग असम्भव है। साथ ही ऐसा नहीं होने तक संघ की राष्ट्रवादी सोच को एवं हजारों/लाखों कथित सेवा प्रकल्पों के कार्यों को हम नाटक से अधिक नहीं मान सकते!

    आदरणीय श्री डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, जिन लोगों के कथित उत्थान के लिये संघ कथित कार्य कर रहा है, उनके हकों को छीनकर उनके जख्मों पर मरहम लगाने का नाटक करना, कैसी सेवा और कैसी राष्ट्रीयता कम से कम यह मेरी समझ से तो परे है?

    आशा है कि आपका स्नेह बना रहेगा।

    सधन्यवाद।

    शुभकामनओं सहित
    आपका
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  35. टिप्पणी चार:
    मीणाजी कहते हैं==>(४क) “आदरणीय श्री मधुसूदन जी, आप जैसे कुछ लोग न जाने किस कारण से संघ में हैं और कुछ ऐसे उदाहरणों को बार-बार गिनाते रहते हैं, जिनका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है।”
    म. उवाच का उत्तर:==>वास्तवमें “क्रियावान स हि पंडितः ” कहा गया है। और मैं इसे ही वास्तविक निकष मानता हूं।सत्य का ही बार बार, उद्‍ घोष किया जाता है। भगवद गीता ही बार बार पढी जाती है, क्यों कि उसमें सच्चायी है। रामायण का पारायण इसी कारण बार बार किया जाता है।वास्तविकतासे ज़मीनी हकीकत ही (केवल नारे बाजी नहीं) देशको उन्नति की दिशामें तिल भरभी ले जाती है, तो यह इच्छनीय है।अंग्रेज़ी कहावत; “ऍन औंस ऑफ वर्क इज़ बेट्टर दॅन अ पौंड ऑफ वर्डस्‌”

    (४ख)मीणाजी कहते हैं==> “आदरणीय श्री मधुसूदन जी, संसारभर के लोकतान्त्रिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इस बात को स्वीकृति दी गयी है कि-
    “जब तक असमान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जायेगा, तक किसी भी मानव समाज में सामाजिक न्याय की व्यवस्था लागू करना असम्भव है।”
    मीणाजी कहते हैं:==>संघ इस सिद्धान्त का विरोधी है, जिसका अर्थ है कि संघ देश की 98 प्रतिशत हिन्दू आबादी का विरोध। ऐसे अमानवीय सोच के संचालक संघ द्वारा किये जाने वाले तथाकथित विधायी या सकारात्मक कार्य नाटकीयता से अधिक कुछ भी नहीं कहे जा सकते। ऐसे में संघ में कट्टरता के साथ-साथ नस्लीय एवं जातीय उच्चता की भेदभावपूर्ण कुटिल सोच को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता। यह वाक्य कुछ संदिग्ध प्रतीत होता है। और आप स्वतः ही कहते हैं, कि संघ इसका विरोधी है। और अपने आप ही निर्णय दे देते हैं कि यह अमानवीय है। और फिर संघके सकारात्मक कार्यको “नाटकीय” विशेषण लगा देते हैं। मेरी दृष्टिमें आप जैसे विद्वानको यह कैसे जंचता है? क्या, हजारो (देढ लाख) प्रकल्प नाटकीय है? एकल विद्यालय के चलाए गए ३४३३४ विद्यालय नाटकीय है?

    मीणाजी, नाटकीय तो, वे हैं जो केवल ढपोल शंख की भांति केवल नारा देते हैं। काम कुछ नहीं केवल वाद विवाद वह भी हार-जीत के लिए, सच्चायी ढूंढने के लिए नहीं।
    फिर संघ एक विशाल काय,संस्था है।ऐसी संस्था को तीव्र गति होती है, प्रचंड शक्ति होती है। इसके साथ संघ बडी संस्था होनेसे, हर घटक को स्थानीय परिवेष में अपना निर्णय लेना पडता है। इसमें समान दिखनेवाली स्थिति में अलग निर्णय कभी कभी (फिर भी मौलिक हेतुसे विपरित तो नहीं) हो सकता है। अन्य बिंदुओंके उत्तर पहले ही दे दिए गए हैं।

  36. टिप्पणी परिच्छेद तीन:
    मीणाजी कहते हैं।==>
    (३) “क्या आरएसएस अर्थात् संघ कट्टरता एवं असमानता को बढावा देता है या नहीं? निश्चय ही मेरा मत है कि संघ कट्टरपंथियों का गढ है। जिसकी पुष्टि प्रवक्ता पर उपलब्ध आलेखों और टिप्पणीकारों के विचारों से ही की जा सकती है। जहाँ तक संघ की जमीनी हकीकत की बात है तो संघ कम से कम दलित, आदिवासी, पिछडों और स्त्रियों का शुभचिन्तक नहीं है, न ही आगे कोई उम्मीद है। जिसका प्रमाण है कि आज तक किसी ब्राह्मण महिला तक संघ प्रमुख नहीं बनाया गया!”
    ==
    म. उवाच का उत्तर:==> संघ राष्ट्रीयता के दृष्टिकोणसे सोचता है। वह यदि कट्टर है, तो राष्ट्रीय दृष्टिकोणसे। भारतके लिए यह एक बडा वरदान है। जब तक दुनियामें अलग अलग राष्ट्र होंगे, तब तक यह दृष्टिकोण आवश्यक है।मैं अपने आपको हिंदू ही मानता हूं, हिंदूके अंतर्गत मानवता भी आती है। भारतमें हिंदुत्व, प्रधान रूपसे, राष्ट्रीयता का परिचायक है।भारतसे बाहर हिंदुत्व समन्वयकारिता और मानवता का पर्याय माना जाए।
    सामान्यतः हिंदुकी राष्ट्रीयता कर्तव्य भाव से(अधिकार भावसे नहीं) प्रेरित है। इसी कारण संघका स्वयंसेवक कट्टरतासे सेवामें लगा हुआ है। यह नितान्त अच्छी ही बात है।इतरोंकी राष्ट्रीयता, विशेषतः (कुछ अपवाद निश्चित है) अधिकारोंसे प्रेरित है।
    संघ जैसी समानता (जहां जात पांत पूछी भी नहीं जाती।)मैंने कहीं और देखी नहीं है।
    प्रवक्तापर, टिप्पणियां और लेख तो आप के भी, ज. चतुर्वेदी जी के भी, और भी अन्योंके भी, होते हैं।आपकी इतनी दीर्घ टिप्पणी का प्रवक्ता पर होना, भी आपका विधान गलत प्रमाणित करता है।
    संघ का आदिवासी/वनवासी/पीछडे क्षेत्रका काम आप एकल विद्यालय की वेब साईट से देखकर, और पर्याप्त विद्यालयों को भेंट करके भी देख सकते हैं। फिर भी संघ को पढकर समझना यह आमका निबंध पढकर आमका स्वाद जानने जैसा ही है।
    कुछ धर्मांतरित “एन आर आय” इसाईयोंको भारतकी बुराई अमरिकामेंभी करते हुए पाया है। कुछ भारतीय इस्लाम धर्मियोंको भी पाकीस्तानके न्यूयोर्क स्थित दूतावास के चक्कर लगाते, सालो पहले, देखा था। इतना सब होने पर भी भारतका हिंदु विशाल मानसिकता रखता है। मोहनजी भी परधर्मियोंको स्वीकार करने के लिए तैय्यार है।
    जैसे कोई; ज्ञानयोगी, कर्मयोगी, भक्तियोगी, इत्यादि हुआ करते हैं, संघमें ऐसे सारे प्रकारके स्वयंसेवक हैं। हर स्वयंसेवक मेरी दृष्टिमें एक ऐसी अवस्था, स्थिति या phase से गुज़रता है, जब वह ध्येयके साथ, ओत प्रोत होता है।(यह किसीको कट्तरता लग सकती है)। भाग्यवान है स्वयम्सेवक, कि संघके नेतृत्वनें इसका अनुचित लाभ उठाकर उसे विना कारण मरवा नहीं दिया। ऐसे, संघके कारण भारतमाता भी भाग्यशालीनी है।
    महिलाओंके लिए “राष्ट्र सेविका समिति” नामक संस्था है। वहां महिलाएं नेतृत्व करती हैं।

  37. पहले तो आप नाम सही लिखना प्रारंभ करें….राऊल विंसी…किसी का गलत नाम लिखना बुरी बात होती है….दूसरे एक विदेशी माता की संतान…जिसके सारे रिश्ते नाते विदेशी है…प्रेमिका विदेशी है…विदेशी धरती पर पढा है…यहां सिर्फ बिजनिस पर्पज(राजनीति …भी तो बिजनेस है) से है…वो आदमी राष्ट्रवाद और आतंकवाद मैं कैसे फर्क करेगा भाई…..वेसे भी राऊल विंसी घोर सैक्यूलर किसम के आदमी है तो
    उनको भारत माता की जय बोलने वालों और पाकिस्तान समर्थकों मैं अंतर वैसे भी नहीं आता

  38. परिच्छेद दो का उत्तर:
    मीणाजी: =>(२) आदरणीय श्री मधुसूदन जी, राहुल गाँधी क्या कहते हैं, यह मेरे लिये न तो कोई नयी बात है और न हीं बडी बात है, क्योंकि बहुतों की ओर से यही बातें पूर्व में अनेक बार कही जा चुकी हैं।जहाँ तक आपके विचारानुसार विधायी कार्य करने के कारण या किसी बडे रोजनेता या विदेशी हस्ती द्वारा किसी भी संगठन को पवित्रता का प्रमाण-पत्र देने के सिद्धान्त की बात है तो यह कोई सर्वमान्य ऐसा पैमाना नहीं है, जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती है? यदि हम इसे पैमाना मानेंगे तो फिर ईसाई मिशनरीज के बारे में दोयम सोच नहीं अपनाई जा सकती, क्योंकि उनके अनुसार वे भी सेवा ही करते हैं।
    मधुसूदन उवाच का उत्तर:(२) पर लेख तो उन्हींके भाषण पर है,(आपकी मान्यता पर नहीं है। क्षमस्व।)– जिससे उस विषयकी की टिप्पणी उचित ठहरती है।
    (२क) कार्य विधायक, निःस्वार्थ हो,पर विदेशी ताकतों के हितमें, और धर्मांतरणसे प्रेरित नहीं होना चाहिए। अनुभव: => धर्मांतरणसे, २-३ पीढि में, राष्ट्रके प्रति निष्ठाएं बदलती हुयी पायी गयी है। अमरिकामें भारत विरोधी कार्यवाहियां करते हुए ऐसे कुछ (सारे शायद नहीं) धर्मांतरित N R I पाए गए हैं। इसके कारण मेरी मान्यता और भी दृढ हुयी है।कुछ लोगोंको, सालों पहले पाकीस्तान एम्बसि में जाते हुए भी देखा है।

  39. परिच्छेद एक टिप्पणी:
    आदरणीय डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ जी।
    समयाभावसे बाध्य हूं।और, आपने तो एक लघु निबंधात्मक “निरंकुश” प्रश्नावली प्रस्तुत कर दी, एक छात्रके समक्ष। मैं, सभी उत्तर मेरी सीमित जानकारी, मान्यता और क्षमता के आधारपर देनेका प्रयत्न करूंगा। समयाभवके कारण एक एक परिच्छेद लेते हुए, प्रयत्न करूंगा, जिससे कुछ सुविधा रहेगी, पर कुछ दिन लगेंगे, अब छुट्टीभी समाप्त हो चुकी है।
    बिनती है, कि, आप मुझे, बार बार “आदरणीय” संबोधन ना करें। मैं, सकुचायासा अनुभव करता हूं, न उसकी आवश्यकता है।

    ==> डॉ. पुरुषोत्तम मीणा (पु. मी.)कहते हैं :(१) मुझे इस बात में कोई रुचि नहीं है कि सिमी कोई विधायी कार्य करती है या नहीं, लेकिन इस बात में अवश्य ही रुचि है कि इस देश के माहौल को कौन खराब कर रहा है? और यह सभी जानते हैं कि सिमी भी इस देश के माहौल को खराब कर रही है। लेकिन आदरणीय श्री मधुसूदन जी, आपको मानना पडेगा कि इस्लाम से जुडे होने के कारण सिमी को बदनाम करना आसान है, जिसके चलते उस पर भारत में प्रतिबन्ध भी लग चुका है। इसलिये सिमी के कार्य गलत एवं गैर कानूनी हैं, इस बात को सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है। (१) जब शीर्षक ही =”राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और सिमी में कोई फर्क नहीं”= है, तो दोनोकी तुलना करते हुए फर्क दिखा देना, तर्क सम्मत, उचित, और आवश्यक प्रतीत होता है, मुझे। सभी जानते होंगे, इस सभीमें राहुल आता है, या नहीं? क्या ऐसे अज्ञानी के हाथमें देशकी बागडौर दी जा सकती है?

    • AJUDIA MAY ram mandir ka fesla hinduo k huk may aane bh pure desh may shanti rewhne k karan rahul je bokhla gahe hay unke baat ka bura maat manna.

  40. आदरणीय श्री मधुसूदन जी,
    नमस्कार।

    मुझे इस बात में कोई रुचि नहीं है कि सिमी कोई विधायी कार्य करती है या नहीं, लेकिन इस बात में अवश्य ही रुचि है कि इस देश के माहौल को कौन खराब कर रहा है? और यह सभी जानते हैं कि सिमी भी इस देश के माहौल को खराब कर रही है। लेकिन आदरणीय श्री मधुसूदन जी, आपको मानना पडेगा कि इस्लाम से जुडे होने के कारण सिमी को बदनाम करना आसान है, जिसके चलते उस पर भारत में प्रतिबन्ध भी लग चुका है। इसलिये सिमी के कार्य गलत एवं गैर कानूनी हैं, इस बात को सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, राहुल गाँधी क्या कहते हैं, यह मेरे लिये न तो कोई नयी बात है और न हीं बडी बात है, क्योंकि बहुतों की ओर से यही बातें पूर्व में अनेक बार कही जा चुकी हैं। जहाँ तक आपके विचारानुसार विधायी कार्य करने के कारण या किसी बडे रोजनेता या विदेशी हस्ती द्वारा किसी भी संगठन को पवित्रता का प्रमाण-पत्र देने के सिद्धान्त की बात है तो यह कोई सर्वमान्य ऐसा पैमाना नहीं है, जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती है? यदि हम इसे पैमाना मानेंगे तो फिर ईसाई मिशनरीज के बारे में दोयम सोच नहीं अपनाई जा सकती, क्योंकि उनके अनुसार वे भी सेवा ही करते हैं।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, मेरे लिये मुद्दा सिर्फ इतना सा है कि क्या आरएसएस अर्थात् संघ कट्टरता एवं असमानता को बढावा देता है या नहीं? निश्चय ही मेरा मत है कि संघ कट्टरपंथियों का गढ है। जिसकी पुष्टि प्रवक्ता पर उपलब्ध आलेखों और टिप्पणीकारों के विचारों से ही की जा सकती है। जहाँ तक संघ की जमीनी हकीकत की बात है तो संघ कम से कम दलित, आदिवासी, पिछडों और स्त्रियों का शुभचिन्तक नहीं है, न ही आगे कोई उम्मीद है। जिसका प्रमाण है कि आज तक किसी ब्राह्मण महिला तक संघ प्रमुख नहीं बनाया गया!

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, आप जैसे कुछ लोग न जाने किस कारण से संघ में हैं और कुछ ऐसे उदाहरणों को बार-बार गिनाते रहते हैं, जिनका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, संसारभर के लोकतान्त्रिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इस बात को स्वीकृति दी गयी है कि-

    “”””””””जब तक असमान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा समान लोगों के साथ असमान व्यवहार किया जायेगा, तक किसी भी मानव समाज में सामाजिक न्याय की व्यवस्था लागू करना असम्भव है।”””””””

    संघ इस सिद्धान्त का विरोधी है, जिसका अर्थ है कि संघ देश की 98 प्रतिशत हिन्दू आबादी का विरोध। ऐसे अमानवीय सोच के संचालक संघ द्वारा किये जाने वाले तथाकथित विधायी या सकारात्मक कार्य नाटकीयता से अधिक कुछ भी नहीं कहे जा सकते। ऐसे में संघ में कट्टरता के साथ-साथ नस्लीय एवं जातीय उच्चता की भेदभावपूर्ण कुटिल सोच को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, हाल के दिनों में तो संघ पर आतंकी कार्यवाहियों में शामिल होने के पुख्ता आरोप ही नहीं लगे, बल्कि कुछ लोग पकडे भी गये हैं और आतंकी घटनाओं में पकडे गये लोगों को संघ के लोगों द्वारा हिन्दू धर्म के शिरोमणी एवं रक्षकों की उपमायें दी जा रही हैं, जिनकी आप सहित किसी भी संघी द्वारा भर्त्सना तक नहीं की गयी है, बल्कि अधिकतर द्वारा उनका समर्थन किया जा रहा है। ऐसे में संघ को कट्टरपंथी कहना या सिमी के समकक्ष कहना कोई कोई कल्पना या राजनीति मात्र नहीं है। इसके पीछे जो कारण हैं, उसके लिये बाहर के लोग नहीं, बल्कि मूलत: संघ के लोग ही जिम्मेदार हैं।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, हिन्दू होने के नाते, जब कोई हिन्दुत्व पर चोट करता है तो हमें भी दु:ख होता है, लेकिन सच्चाई यह है कि मैं अपने आपको पहले इंसान मानता हूँ, फिर भारतीय और बाद में आदिवासी और अन्त में हिन्दू। एक सच्चाई और वो यह कि संघ के कारनामों के कारण कई बार अपने आपको हिन्दू कहने और मानने में ग्लानि का अनुभव होता है।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी, एक ऐसा संगठन जो 98 प्रतिशत हिन्दुओं के हितों के विरुद्ध संचालित भेदभावपूर्ण ब्राह्मणवादी व्यवस्था का न मात्र समर्थन करता है, बल्कि हजारों वर्ष से संचालित इस ब्राह्मणवादी अमानवीय व्यवस्था से बहुसंख्यक भारतीयों को मुक्ति प्रदान करने के लिये आजाद भारत देश के स्वनिर्मित संविधान द्वारा प्रतिपादित सामाजिक न्याय की अवधारणा का संघ एवं संघी खुलेआम विरोध भी करते हैं। उसको पवित्रता की संज्ञा नहीं दी जा सकती! जिससे भी संघ की अपनों के प्रति (निम्न वर्गीय हिन्दुओं और महिलाओं के प्रति) भी कट्टरता, वैमनस्यता, क्रूरता एवं नाटकीयता साफ तौर पर प्रमाणित होती है।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी सच्चाई यह है कि निम्न जातियों/वर्गों के कुछ लोगों को राजनैतिक पदों पर बिठाकर, उनका निर्जीव औजारों की भांति लोगों को बेवकूफ बनाने के लिये मनचाहा उपयोग करते हुए हिन्दुत्व के नाम पर संघ फिर से इस देश में ब्राह्मणवादी क्रूर व्यवस्था कायम करना चाहता है। जबकि सभी जानते हैं कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने इस देश के 98 प्रतिशत हिन्दुओं को सिवा अन्धकार के और कुछ नहीं दिया है। ऐसे संघ को सिमी की भांति ही प्रतिबन्धित भी कर दिया जाये तो यह न मात्र इस देश और मानवता के हित में है, बल्कि स्वयं हिन्दुओं के भी हित में होगा।

    आदरणीय श्री मधुसूदन जी बेशक आपके अनेक मित्रों को मेरी बातें बुरी लगेंगी, लेकिन यदाकदा सच्चाई को दूसरों की नजरों से भी देखने का प्रयास करें और मेरे आलेख-“”””हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार?””””-में सुझाये समाधानों पर बिना किसी पूर्वाग्रह के विचार करें? यह देश सभ्य हिन्दू मानवों का हो सकता है।

    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

    • श्री पुoरुषोत्तम मीना Ji
      नमस्कार
      Either you are genuinely unaware of the greatness of Sangh or is too aware of its greatness but have a political agenda to defame it. If you are in the second category then both of us know not to waste time on each other. However if you are genuinely unaware of the purity of Sangh then I advise you to persoanlly go to sangh shakha in your town for 2 weeks and experience the purity of Sangh first hand. I am sure you will change your opinion.

    • माननीय निरंकुश जी, ईसाई मिशनरीज के द्वारा जो कार्य हो रहा है उस पर किसी को कोइ आपत्ति नही है, आपत्ति तो उसके मूल्य रूप मे धर्मान्तरण है, जो इसको सेवा से लेन देन मे बदल देता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कोइ साहुकार अपने पास उपलब्ध धन का प्रयोग कर किसी को मदद के बदले मे अनुचित मांग रखे।

      निरंकुश जी संघ से मैं कई वर्षों से जुडा हूँ, ब्राहमण नही हूँ, न ही शराब पी कर उत्पात मचाने वाला क्षत्रिय, फिर भी मुझसे कोइ दुराव नही हुआ, अपितु मैं अपने साथ कुछ मुस्लिम मित्रों को भी जोडा, और मैं आज तक भी नही जानता कि जब मैने संघ के कार्यक्रमों मे भाग लिया तब जब मैं सेवा मे होता हूँ तो मैं किस बंधु को रोटी या सब्जी दे रहा हू, या जब मैं भोजन कर रहा होता हूँ तो मुझे भोजन देने वाला कौन है। न तो जाति के आधार पर कोइ टिप्पणी सुनी न ही कोइ दूसरा कृत्य। रही बात संघ प्रमुख महिला को बनाने की बात तो संघ मात्र पुरुषों की संस्था है और स्त्रियों के लिए राष्ट्र सेविका समिति है अतः संघ की प्रमुख कोई महिला नही हुई।

      मुझे लगता है कि आपका वास्ता जरूर ही किसी ऐसे संघ के कार्यकर्ता से पडा होगा जो कि इसके आदर्शों के विपरीत आचरण करता होगा (इतने बडे संघटन मे गलत लोगो का कोइ प्रवेश नही हो सकता हम नही कहते) और आपने उसके द्वारा किए गये आचरण को संघ का आचरण मान लिया, पर मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वास्तव मे संघ ऐसा नही है।

      संघ को कट्टर पंथी कहना निश्चित तौर पर राजनीतिक दृष्टि से लाभप्रद है चुंकि मुस्लिम वोट गोलबंद हो कर मिलते रहे हैं (पर अयोध्या मामले पर मुलायम की भर्त्सना के पश्चात मैं अब सोचता हूँ यह ज्यादा दिन नही चलेगा)।

      आपका आलेख पढा, “हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार” सच कहूँ तो उस मे से कई बिन्दुओं पर संघ के प्रचारकों द्वारा हम सब के साथ वार्ता हो चुकी है, पर राजनीतिक हालात और सामाजिक सुधारों के प्रति सामान्यतः विरोध की भावना, संघ को इसमे अपेक्षित सफलता नही प्रदान कर रहा है। उस लेख को पढने के पश्चात आपसे संपर्क की कोशिश भी की पर असफल रहा, यदि संभव हो तो robeendar@gmail.com पर मुझे जरूर mail करें। क्योंकि मैं भी नही चाहता कि हमारे समाज मे कोई बुराईबच रहे, संभव है कि मैं आपके साथ मिल कर कुछ और सार्थक कर सकूं, और निश्चित तौर पर हिन्दु धर्म को निखारने मे संघ का समर्थन जरूर मिलेगा।

      • आप सब को मीणा जी की मजबुरी समझनी चाहिये,अगर वो संघ को गालिया नही देंगे,ब्राहम्ण्वाद का अरोप लगा कर जब चाहे जिसे चाहे अप्मानित नही करेंगे और तर्क और तथ्य मे गलत सिध होने पर केस करने की धमकिया नही देंगे तो दुकान कैसे चलेगी???पॄथक “अस्तित्व” का अहसास कैसे होगा???भय़ि संघ वाले तो बहुत बडे कलाकार है जो घोषित रुप से १.५ लाख के आस पास प्रक्ल्प वन्वासि और वंचित लोगो के लिये चलाते है असली सेवादार तो मिशनरिज है……………………..सारी की सारी कमजोरिया और बुरायिया हिन्दु धर्म मे ही है और संघ और बामण लोग ही उसके कारण है और मीणा जी धर्म पुरुष जो पुरे समाज को पुरि जाती को गालिया बक बक कर सुधार देंगे,ब्राहम्ण महिलाओं के के मात्र सच्चे हितेषि,पुरुषों कि संस्था संघ में ब्राह्म्ण महिला को प्रमुख बनाने के लिये संघ्रष कर रहे है,गोया भार्तिय पुरुष किर्केट टिम में महिला कैपेट्न बनाना………………जय हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पता नही कौन सी समानता चाहते है……….इतने साल संघ में जाते हुवे ना मुझ से किसी ने जाती पुछि ना मेने किसी से……………….जाती का भाव है वो जाती है हिन्दु जाती………………संघ को शायद हम लोगो से ज्यादा जानते हो,महान और एक मात्र विध्वान जो ठहरे……………………

  41. (१) संघ एक विधायक, रचनात्मक, सकारात्मक संस्था है। जिसकी सैंकडो शाखाएं भारत से बाहर भी फैली है।==(दक्षिण अमरिकामें भी और उत्तरी अमरिकामें भी, कुछ जानकारी के आधारपर कह रहा हूं।)==U K में मार्गारेट थॅचर, जो वहांकी प्राइमिनिस्टर थी, वर्षप्रतिपदा उत्सवपर शाखापर आयी थी, और हिंदूओंको अपनी सहिष्णु नैतिक संस्कृति, अन्य युवाओं मे फैलाने के लिए कहा। क्यों? जानते हो? क्यों कि हिंदु समन्वयकारी है, हिंदू युवा अनुशासित है, जिसे कहा गया, कि अन्योंको भी यही पाठ सिखाओ।
    (२) काम तो बहुत है। साथ में संघ विकासोन्मुख, उत्क्रांतिशील संगठन है। समय समय पर उसके इतिहासको जानने से यह पता चलता है। एक समय की मराठी की प्रार्थना क्रमशः हिंदी और अंतमें संस्कृत में परिणत हुयी।संघका प्रक्षेप बढता ही जाएगा।
    (३) आज मोहनजीने संघके द्वार मुस्लिमोंके लिए भी खोल दिए हैं। मुज़्ज़फर हुसेन, हमीद दलवाई,अज़ीज़ हुसैन इत्यादि लघुमति के सदस्यभी राष्ट्रीय स्रोतमें जुड रहे हैं। (उन्हें विरोध उन्हीके धर्मबंधुओंकी ओरसे होता है, संघसे नहीं।)
    (४) रचनात्मक काम समाजमें फैलकर करना होता है। पटरी का जोड तोडने के लिए कुछ व्यक्ति पर्याप्त होते हैं।विस्फोट करने भी अधिक नहीं लगते।
    (५) सिम्मीने अपवाद रूपसे कोई रचनात्मक काम शायद किया हो, पर मुझे विशेष ज्ञात नहीं। कोई स्मरण कराए, -तो कृपा होगी।
    (६) देढ लाखसे अधिक रचनात्मक, प्रकल्प चलाने वाला, (जिसकी प्रेरणासे ३४४३३ एकल विद्यालय चलते हैं) ऐसा संघ,
    (७) जिस संघ स्वयंसेवकों ने, पाकीस्तानसे हिंदुओंको सुरक्षित लाने में प्राणोंकी आहुति दे दी थी, जिस व्यथा पू. गुरूजी को अंत तक रहा करती थी, उस संघकी तुलना किसी अहरी गहरी देशद्रोही सिम्मी से करने में वोट बॅन्क को सुनिश्चित करने के सिवा और कोई भी हेतु मुझे दिखाई नहीं देता।
    उगता सूरज पूजकर दुनिया धन्यता माने।
    यहां जीवन लगे हैं, एक सच्चा सूरज उगाने।

  42. RASHTRIYA SWAYAM SEVAK SANGH DUNIYA KA SABSE BADA MAANVIYA SANGTHAN APNI NEETIYON OUR MAANYANTAON KE KAARAN HAI,IS SANGATHAN KE BAARE ME KOI BHI OCHI TIPPANI AGYANTA OUR NASAMJHI KE SATH HI APRIPAKWATA KA BHI PARICHAYAK HAI ,SANGH KE BAARE ME KUCH KAHNE SE PAHLE SANGH KE BHEETAR AAKER DEKHNA HOGA KI YE KIS PRAKAAR SE SANSKARIK MAANYATAON KE AADHAR PAER APNE SWAYAMSEVKON KO TAIYAAR KARTA HAI .RAHUL JI KO IS PRKAAR KISI PRATIBANDHIT SANGATHAN SE SANGH KI TULNA SHOBHA NAHI DETI.

  43. अधोगामी एक सूत्रीय राहुल- विमर्श की कीर्ती पताका देखकर किसी शायर की एक लाइन -बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ?बधाई श्रीमान भावी प्रधानमंत्री जी ….आप वाकई हठी की चाल से चलते हुए आगे पीछे भी नहीं देखते की भोंकने वाले भी आपके ही सगोत्रीय ही हैं …आपका एक भाई क्या नाम …वरुण …वो भी नहीं जानता की ये भोंकने वाले कभी उसे मिल जाएँ तो चरणों में लोट अगना नहीं भूलते ….राहुल भाई …आपने कमाल कर दिया ..इधर rss के …राष्ट्रवाद का नकाब नोंच लिया …..उधर कट्टर सिम्मी का घिनोना चेहरा उघड दिया …साम्प्रदायिकता पर हमल करने वाला ही इस देश का नेता बन सकता है ….हालांकि अपर्हारी कारणों से ..मैं-आपकी पार्टी का आलोचक हूँ …

    • सांप्रदायिकता पर हमला करने वाला इस देश का नेता बने न बने, पर मानवता पर हमला करने वाला सच्चा वामपंथी बन सकता है। उदाहरण – तिएन-अमन-चौक, सिंगूर, नंदीग्राम, शेनजिंग प्रांत, दांतेवाडा ये तो कुछ नमूने भर हैं।

      • kamaal hai …ek trf to aap log kahte firte hain ki congress khatm ho gai …pata chala ki congress satta men baithi hai …udar aap lo kahtae hain vaampanth khatam ho gaya…lekin vo to bangaal ,keral tripura men abhi bhi hai …jahaan tk naxasawadiyon or theyen on man chouk jaisi ghatneyen hain ye to vaise hi hain jaise ki sangh pariwar ke —shivsena …manse …bajrangi …or vhp …ab rss bhi kis kis ka khyal rakhe isi trh ka haal vaampanth ka hai .halaki main vaam panthi nahin hun…vaampanth ke baare main jo padha hai dekha suna hai usase himmat nahin hoti .vaampanthi hone के लिए apna sb kuchh desh ko or sarvhara ko dena padata hai ..abhi mujhmen इतनी कूबत nahin …main vaampanth or pragatisheel विचारों ka samman karata hun .kyonki we vaigyanik or tathyparak hote hain .hamesha sbhi dharam -jaat -mazhab ko samaan roop se dekhte hain vaampanthi kutsit ghruna nahin failate .

        • कमाल है रूस मे गायब हुआ वाम पंथ नही दिखा तिवारी जी को!!! और चीनी मॉडल वामपंथ का जिसमे सभी विदेशी पूंजीपति आ कर चीनी सर्वहारा वर्ग का दोहन कर रहे हैं, लगता है तिवारी जी की दूर की नजर कमजोर पड गई है, कोइ बात नही इस चुनाव मे बंगाल मे वामपंथ का हश्र देख लीजीएगा।

          और तिवारी जी दूसरों को समष्टि और व्यष्टि के बारे मे तो बढिया ज्ञान दे लेते हैं पर खुद की बात आती है तो व्याकरण भूल जाते हैं और घटनओं कि तुलना दलों से करने लगते हैं (rss, vhp, तो तियेन अमन चौक जैसे हैं) बहुत खूब तिवारी जी।

          रही बात वामपंथी बन कर अपना सब कुछ देश को देने की बात तो इतना ही बता दूँ कि हरकिशन सिंह सुरजीत के बेटे की शादी का खर्च ५ करोड आया था (सब कुछ सर्वहारा वर्ग को देने के बाद अगर इतना मिलता तो मैं आज ही वामपंथी बनने के लिए तैयार हूँ।) चन्दन बसु (ज्योति बसु के सुपुत्र) कोलकाता के ही नही अपितु बंगाल के सबसे बडे उद्योगपति हैं। यह तो दो मिसालें हैं, कभी मौका लगे तो सीताराम येचुरी से पूछना कि जो चश्मा वो पहनते हैं उसका फ्रेम कितने का आता है, और जानोगे कि उस दाम मे एक परिवार १० दिन खाना खा सकता है। तो इस प्रकार का त्याग तो भारत मे बहुत दिखता है, उदाहरणों की कमी नही है, उसमे से एक त्याग केरल मे वहां के CM और पार्टी अध्यक्ष के बीच मे दरार बना हुआ है। काश ऐसा त्याग करने का मौका पूरे देश को मिले मेरी ऐसी प्रार्थना है।

          वामपंथ विचारों के प्रवर्तक सभी को एक समान देखने के तो बहुत से उदाहरण हैं, जैसे शहबानो केस मे उनके द्वारा भावनाओं का सम्मान करते हुए न्यायालय के आदेश को पलटने का समर्थन, धार्मिक आधार पर पाकिस्तान बनने का समर्थन, धार्मिक आधार पर हज सब्सिडी का समर्थन, यह सब तो नमूने भर हैं।

    • तिवारी जी,नमस्कार,
      अपने राहुल गाँधी की बहुत तारीफ की लेकिन एक बात तो है की कुत्ते भोकते रहते है औत हाथी अपने चल में रहती है तो यहाँ हाथी संघ है जिसे विदश के लोग भी मानते है.

  44. राहुल jee aap se बस ऐसे ही बिचारौ की उम्मीद कीजा सकती है क्योंकि अच्छे बिचार तो अच्छे लोगौ ke दिमाग mai ही आ sakate है

  45. हमारे यहाँ एक कहावत प्रचलित है कि **पूत के लक्षण पालने में ही दिख आते है.**
    निसंदेह राहुल गाँधी की राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत संघटन *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ * की तुलना आतंकवादी संघटन सिमी से करना उनकी ओछी मानसिकता व कार्य शैली का परिचायक है. देश की युवा पीढ़ी को उनके बहकावे न आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ जैसे राष्ट्रवादी विचारधारा वाले संघटनों से जुड़ना चाहिए.

  46. “ज्योति जला निज प्राणकी”
    एक पुस्तक मैंने पढी, जो बहुतही जानकारी पूर्ण है, वह है, “ज्योति जला निज प्राणकी”–माणिक चन्द्र वाजपेयी एवं श्रीधर पराडकर लिखित।
    पढा है, मई-जून १९४७ के सिंध-पंजाब इत्यादि स्थानोंके, O T C अर्थात, संघ शिक्षा वर्ग, निर्धारित समयसे पूर्व ही समाप्त कर दिए गए थे। देशके विभाजनका समाचार जो मिला था।
    प.पू. गुरूजीने सिंध-पंजाब के शिक्षार्थियोंको कहा था, —-
    “कि सारे पंजाब-सिंधके, हिंदुओंको सुरक्षित भारत लाने का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा जा रहा है। और सारे हिंदु भारतकी ओर रवाना करने के बादही,वे भारत आएं।”
    गुरूजी इस काममें, शहीद हुए ५०० से ज्यादा स्वयंसेवकों को कभी भुला नहीं पाए थे। कहां सीमी, और कहां R S S? कहां राजा भोज और कहां गंगवा? समझे राहुलवा ?
    जबान की चरपट पंजरी चलाना तो बॉलीवुड वालोंको आप से और भी अच्छा आता है। कुछ करके दिखाने के लिए मिडीया को बंद लिफाफा देने के बदले, कुछ संगठन खडा करके दिखा दो, तो माने।संघ तो बिना सिंहासन, बिना कुरसी प्रभाव रखता है।

  47. प्रिय राहुल गांधी जी
    नमस्कार

    आपने भोपाल में अल्पसंख्यक युवाओं के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तुलना स्थापित देश द्रोही संगठन सिमी से की है। यह आपका विचार हो सकता है, क्योंकि आप उसी कांग्रेसी बीज से हैं, जिसने वोट को हासिल करने के लिए कई बार देश की अस्मिता के साथ धोखा और संघ पर प्रहार किया है। आपका यह ब्यान वोट को ध्यान में रखकर ही दिया गया है। इस बयान में जो आपकी वोट नीति छिपी है, इससे भारत का मन आहत हुआ है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर कोई भी गलत टिप्पणी मतलब साफ है, भारत की सनातन उदात्ता संस्कृति की आप को तनिक भी बुनियादी समझ नहीं है। सरदार बल्लभ भाई पटेल के उस वाक्य कि किसी पर आक्षेप लगाने के पहले उसके सभी आयामों पर गौर करना चाहिए, जिस संगठन को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पटेल जैसी विभूतियों ने उसकी कार्यपद्वति के कारण सराहा हो, उस संगठन पर सवालिया निशान खड़ा करना साफ है आपको यहां की भू सांस्कृतिक अवधारणा का ज्ञान नहीं है। संघ को जानने के लिए संघ के समीप आना होगा, या उससे संबंधित पुस्तकों का अध्ययन करना होगा। यदि आप इस पुस्तक को खरीदने में असमर्थ हैं तो भारतीय जनता पार्टी की ओर से आपको ये पुस्तके भेजी जा रही हैं। कृपया इसे पढ़ने के बाद ही संघ के बारे में कुछ कहें।
    आशुतोष झा
    लखनऊ से प्रकाशित
    कमल ज्योति के संपादक

    • आशुतोष झा, संपादक, कमल ज्‍योति-आप उन पुस्तकों की सूचि दे पाए,तो मुझे और अन्य जिज्ञासुओं को भी उपयुक्त हो सकती है।
      एक पुस्तक मैंने पढी, जो बहुतही जानकारी पूर्ण है, वह है, “ज्योति जला निज प्राणकी”–माणिक चन्द्र वाजपेयी एवं श्रीधर पराडकर लिखित।
      पढा है, मई-जून १९४७ के सिंध-पंजाब इत्यादि स्थानोंके, O T C अर्थात, संघ शिक्षा वर्ग, निर्धारित समयसे पूर्व ही समाप्त कर दिए गए थे। देशके विभाजनका समाचार जो मिला था।
      प.पू. गुरूजीने सिंध-पंजाब के शिक्षार्थियोंको कहा था, कि सारे हिंदुओंको सुरक्षित भारत लाने का उत्तरदायित्व उन्हें सौंपा जा रहा है। और सारे हिंदु भारतकी ओर रवाना करने के बादही,वे भारत आएं।
      गुरूजी इस काममें, शहीद हुए ५०० से ज्यादा स्वयंसेवकों को कभी भुला नहीं पाए थे। कहां सीमी, और कहां R S S? कहां राजा भोज और कहां गंगवा? समझे राहुलवा ? जबान की चरपट पंजरी चलाना तो बॉलीवुड वालोंको आपसे और भी अच्छा आता है। कुछ करके दिखाने के लिए मिडीया को बंद लिफाफा देने के बदले, कुछ संगठन खडा करके दिखा दो, तो माने।संघ तो बिना सिंहासन, बिना कुरसी प्रभाव रखता है।

  48. इस देश मैं कोई भी कुछ भी बयान दे देता है राहुल जैसे अल्पग्य लोगों को संघ का महत्व कभी समझ नहीं आ सकता|

    राहुल को अयोध्या मुद्दा सुलझता दिखने से जलन हो रही है क्योंकि उनका उल्लू सीधा इसी तरह की बयानों से होना है|

    राहुल ने भी घटिया राजनीती शुरू कर दी है| ये भी इस देश को कुछ नहीं दे पायेगा सिर्फ वर्ग संघर्ष के…

  49. संघके तो ५०० से भी अधिक स्वयंसेवक अपने प्राण खोकर ही, १९४७ के विभाजनके समय पाकीस्तानसे भारत सुरक्षित ले आए थे। पाकीस्तानके मुखपत्र “डॉन” के १४-१५ अगस्त १९४७के, संपादकीय लेख में कहा गया था, कि आर एस एस यदि १९२५ के बदले, १९३५ में स्थापित होता, तो जो क्षेत्र पाकीस्तानको मिला है, उससे दूगुना क्षेत्र पाकीस्तानको मिलता। और यदि आर एस एस १९१५ में ही स्थापित होता, तो पाकीस्तान शायद ना बनता। राहुल बाबा शायद नहीं जानते।
    आर एस एस और सीमी ====कोई तर्क शुद्ध बात करें।

  50. सत्ता की मलाई चाटनेवाले और विदेशी रंग में रंगे रहनेवाले राहुल गांधी क्‍या जाने संघ को। संघ के उच्‍चशिक्षित प्रचारक धूप-बारिश-कड़क ठंड की परवाह किए बगैर सतत् हिंदू समाज के उत्‍थान में अपना जीवन खपा देते हैं जबकि ये कांग्रेसी वोटों की लालच में देशहित को भी दांव पर लगा देते हैं। शर्म करो राहुल गांधी। दम है तो जम्‍मू-कश्‍मीर के अलगाववादियों को ललकार कर दिखाओ।

  51. राहुल की बात का गुस्सा नहीं मानना चाहिए क्योंकि जब उम्र पचपन की हो तो आदमी बचपन सी बाते करने ही लगता है। हमारे कांग्रेसी महासचिव की आयु काफी हो चुकी शायद शादी ना होने की वजह से वे कुंठाग्रस्त है और उनकी कुंठा अब इस जहर के रूप में भारत के सामने आ रही है। मेरी सोनिया आंटी से प्रार्थना है कि वे बाबा की शादी जल्द करवा दे ताकि वे फिर कोई ऐसी हरकत न करे।

  52. rahul ji ka vayaan ek khandit sach hai .poora nahin .unhone jo kaha usmen vaastvikta hai kintu unhone janboojhkar desh ki bhrusht naukarshahi ko kyon nazar andaj kiya jo jonko ki trh desh ka lahu choos rahi hai .rss ki vichardhara se kise khatra hai ? simi se kise khatra hai ?ye to kaanoon se oupar ke shakti kendr hain .jo kaanoon ke andar hai sarkar dwara palit poshit hai us bhrusht vyvashta ki jimmedari kis ki hai ?desh ki sarkaar ki .sarkaar ki shakti kiske haath men hai ?aadarneey sonia ji ke .or rahul ji aapke haath men .desh ko khatra to jinse hai we aapke haath ke khilone maatr hain .jai hind..

  53. दुःख होता हे इस तरह की बयानबाजी सुनकर और वोह भी इतनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद. कभी तो ऐसा लगता हे की राहुल जी देश की राजनीती से ऊपर उटकर कुछ करने के लिए आगे आ रहे हे लेकिन इस तरह के बयान दे कर वोह अपने आपको सिर्फ एक राजनीती पार्टी का लीडर ही बता रहे के और चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हे की मे भी औरो की तरह ही हूँ. बस मैने चेहरे पर चेहरे चड़ा रखा हे.
    वोह आज – कश्मीर के हिन्दुओ की दुर्दशा पर बात क्यों नहीं करते.
    वोह कभी – बंगलादेश से आये घुस्पेतियो की बात क्यों नहीं करते.
    वोह कभी – मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश की बात क्यों नहीं करते.
    वोह कभी बदती हुई महंगाई व बदते inflation rate की बात क्यों नहीं करते.
    यह सब तो हमारे देश के अंग है फिर इन ज्वलंत विषयों पर यह कैसी ख़ामोशी ?
    और अल्पसंख्यको का सम्मेलन ( ऐसा सम्मेलन की आज के परिद्रश्य मे जरुरत ही क्या है, यह सम्मेलन कोई समुदाय करती तो समझ भी आता है लेकिन कोई पार्टी का लीडर करे तो समझ के परे है ) मे सिर्फ मुसलमानों से पूछते हे की बताइए कोई ५ मुसलमान कद्दावर नेता का नाम? क्या और अल्प्संक्यको से नहीं पूछ सकते थे . इन्हे सिर्फ मुसलमान ही दिखते हे. आखिर क्यों? शायद उनकी संख्या वोट बैंक का काम करती हे और देश के बाकी अल्पसंख्यक लोग तो इनकी गिनती मे ही नहीं आते. अफ़सोस की अब हमको जातियों के आधार पर देखा जाने लगा है पहले हम भारत देश मे रहने वाले भारतीय कहलाय जाते थे. शायद येही सेकुलरिस्म की असली परिभाषा आज के परिद्रश्य मे बनती जा रही है.
    अगर पूछना ही था तो यह पूछते की बताइये देश के ५ सबसे साफ़ सुथरी छवि वाले आज के भारतीय नेता का नाम बताये जो लोगो को जोड़ कर चलने की ताक़त रखते हो, जिन पर लोगो को विश्वास हो जो उनके एक आवाज पर घर से बहार निकल पडे. जिस तरह कभी देश की आजादी से पहले हुआ करता था. शायद इसका जवाब वोह कभी नहीं दे पायेंगे.
    मे यहाँ किसी पार्टी का प्रतिनिधि नहीं हूँ लेकिन देश के प्रथम युवा प्रधानमंत्री की उच्चा शिक्षा प्राप्त संतान से ऐसी आशा नहीं की वोह ऐसी बयानबाजी करे जिसकी देश को कतई जरुरत नहीं. किसी भी तरह की बयानबाजी करने से पहले अपने परिवार के इतिहास व परिजनों द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों को जान ले. आज वोह जिस तरह की अब बात करने लगे है उससे लगता है की अब उन्हे सिर्फ अपनी पार्टी को सत्ता मे लाने का काम रह गया है. बाकी सब दिखावा ही बचा है. जो वाकई चिंता का विषय है.

  54. rahul gandhi ne nihayt hi bachkana bayaan diya hai. unhe SIMI aur R.S.S. me antar pata hona chahiye. ek rastrabhakt to doosra deshdrohi

    –DEVENDRA G. HOLKAR, INDORE

  55. आरएसएस और सिमी के बीच क्या तुलना है ये तो राहुल ही जाने लेकिन उनके अतिवादियों के खिलाफ दिए गए विचार बड़े आश्चर्यजनक है क्योंकि जब वो माओवादियों के साथ मंच साझा करते है और उनसे देश की मुख्यधारा और कांग्रेस में शामिल होने की अपील करते है तो उनके ये विचार कहाँ चले जाते है ये बिक़े हुए पत्रकार उनसे ये सवाल न पूछकर संघ और सिमी की तुलना करने बैठ जाते है

  56. pahle socha tha ki sirfire aur pepar-banchu ki bat par tippani karke kyu apana vakt barbad karu…par desh hit sarvopari mante hue likh raha hu…..kya hamare itane bure din aagaye hai ki talue chatuo ke so called yuvraj(rawl sania maino gandhi) se hame sikhna padega….jiska graduation b dhang se pura nahi hua…vo ab desh ke yuvao ko gyan batega…jago yuvao aur ise bata do ki tum kya ho….judna hai to kisi sachche rashtravadi sangathan se judo…congress se to katai nahi….vaise suna hai AIMS me aankho ka ilaj achchha hota hai…samaz gaye naa

  57. राहुल गाँधी ने बेहद गेर जिम्मेदाराना, बेहूदा और विष भरा बयान दिया है. काश इन्हें पूरा इतिहास पता होता. खैर पता होगा तो भी परिवार परंपरा को तो निभाना है. वाह रे कान्ग्रेसिओं के भावी प्रधानमंत्री!……

  58. धर्म निरपेक्षता के नाम पर राहुल गाँधी ने संघ पर जो टिपण्णी की है वो निश्चित ही उनके आधूरे ज्ञान और बचपने की निशानी है /उन्हें आतंक और आन्दोलन में फर्क करने की तमीज सीखनी चाहिए / खैर राम जी उनको सद्बुध्ही दे

  59. राहुल 41 वर्ष के हो गये है लेकिन बच्चे जैसी हरकत कर रहे है, तुष्टिकरन की राजनीति हावी हो चुकी है और अयोध्या निर्णय विपरीत आने से इनकी बुद्धि जवाब दे गयी है. राहुल की कान्ग्रेस मे संघ की सोच वाले बुद्धिजीवी जा ही नही सकते, उनके पास युवा के नाम पर गुन्डो एवम लुच्चो का स्वागत होगा ताकि नेहरु वन्श चलता रहे.

  60. ‘‘सत्य पर असत्य का आवरण चाहे जिस कुशलता एवं चालाकी से चढ़ाया जाय वह बहुत दिन तक जनमानस को गुमराह नहीं कर सकता,’’ यह सिद्धान्त-वाक्य आज कांग्रेस के महासचिव और नेहरू-गांधी खानदान के चश्मों-चिराम राहुल बाबा के गर्हित मंसूबों के परिप्रेक्ष्य में साकार हो उठा है।सत्तारूढ़ कांग्रेस के ये नेता विदेशियों के संकेत पर आज एक ऐसी राह पर चल पड़े हैं कि मानों वह सब कुछ, जो राष्ट्रहित में है, मिटा देने के लिए कृत संकल्प हैं। इसी राष्ट्रघाती षड्यंत्र का एक भाग है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रव्यापी, देशभक्तिपूर्ण, सांस्कृतिक पुनरूत्थान में रत महान् हिन्दू संगठन को बदनाम करके उसे मिटा देने की दूषित योजना। इसलिए कि यह राष्ट्रीय संगठन एवं उसकी षक्ति उनके मंसूबे पूरे होने में बाधास्वरूप खड़ी है। हिन्दुओं का ऊँचा मनोबल द्रोहियों में दहशत पैदा करता है। एक बात तो निर्विवाद रूप से स्पष्ट है कि सत्ता का लोभ या दबाव के बीच पड़ा व्यक्ति किस सीमा तक नीचे गिर सकता है और कहां तक झूठ बोलकर सत्य पर पर्दा डालने की कोशिश करता है। राहुल गांधी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है।

  61. आप और हम यह सोचे की राहुल गांधी ने यह विचार अनजाने में व्यक्त किये हैं तो यह हमारी मूर्खता होगी, उनकी स्क्रिप्ट बनाने वालो ने बड़ी नापतोल के बाद यह लिखा है, आप देखिये इसमें कुछ सच्चे राष्ट्रवादियों को छोड़ दिया जाए तो अल्पसंख्यक(?) समाज का तुष्टिकरण ही किया है, इस बयान के लपेटे में तथाकथित बुध्धीजिवीयों को भी बरगलाने की कोशिश भी की है, और निश्चित रूप से कुछ लोग इस बयान की तारीफ़ भी करेंगे, अब इसका एक ही जवाब बचता है जब कभी भी कोई से भी चुनाव हों हिन्दुओ को एक मत होकर एक ही पार्टी को मतदान करना चाहिए अपने मित्रों को रिश्तेदारों को मिलने जुलने वालों को ऐसी पार्टी को मत देना चाहिए जो केवल अल्पसंख्यकों के हित के नाम पर अपना उल्लू ना साध रही हो.

  62. असलियत सामने आ ही गयी. विदेशी रक्त की विदेशी दृष्टी में देश की सेनाओं व नागरिकों पर गोलियां दागने वालों और सेना की सहायता करने वाले संगठनों में अंतर करने की समझ का अभाव होना स्वाभाविक है. अनेकों को याद होगा कि इनकी माताश्री भी पहले ऐसी बेतुकी बातें कर के हास्य का पात्र बनती रही हैं, अब बड़ा सीमित और तोल कर बोलने लगी हैं.
    – भारत की ज़मीनी सच्चाईयों की समझ इस परिवार में कभी भी नहीं रही. इन्हों ने सदा भारत को अंग्रेजों द्वारा प्राप्त दृष्टी से देखा है, जिसके अनुसार भारतीय संस्कृति में सबकुछ हीन व त्याज्य है. अतः —–
    – भारतीय संस्कृति के लिए समर्पित सगठनों के प्रती द्वेष व शत्रु भाव रखना इस परिवार की पांच पीढी पुरानी परम्परा है. यही इस परिवार की वास्तविकता है, कोई इसे समझे या न समझे.
    – फिलहाल तो ये लोग मामले को संभाल कर लीपा-पोती कर लेंगे और लोगों को सदा के सामान बेवकूफ भी बना लेंगे पर याद रखने की बात यह है कि ” भारत-भारतीयता “के विरोध व उससे घृणा करने की इनकी सोच पांच पीढी में नहीं बदली तो अब क्या बदलेगी. चतुराई से उस पर पर्दा दाल कर हमारी जड़ें सदा के सामान खोखली करते रहेंगे.
    – सोनिया माईनो जी ( सोनिया गांधी जी का पूर्व नाम ) की कृपा से इस परिवार के सभी सदस्यों का बप्तिस्मा होने और माननीय पोप की कृपा प्राप्त होजाने के बाद तो अब हालत ‘करेला और नीम चढ़ा’ की होगई है. हिंद-हिन्दू विरोध अब पराकाष्ठा पर होने के आसार देख सको तो देखलो.

  63. आखिर कांग्रेस के युवराज ने भी अपनी राजनीति की दुकान को चलाये रखने के लिए उसी राह को चुना जिस पर उनका पूरा खानदान आज तक चलता रहा है, सच ही कहा गया है कि आक के पौधे पर आम नहीं लगते! कांग्रेस के भावी कर्णधार ने शायद न तो भारत का कभी इतिहास पढ़ा है और न ही कभी उन्हे उनके मीडिया प्रबंधकों (जिनका लिखा भाषण स्क्रिप्ट वे पढ़ते है,) ने ठीक प्रकार से बताया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है और भारत को भारत बनाए रखने में इसकी भूमिका क्या है! युवराजजी, देश की सेवा मात्र बयानबाजी से नहीं होती। संघ ने भारत और हिन्दु समाज के लिए जो किया है, आपके खानदान और पार्टी ने तो उसका ठीक उल्टा ही किया है ना। तो फिर आप किस मुंह से संघ को आंतककारी संगठन करार दे रहे है। जिस समय संघ की सहायता से जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ उस समय तो किसी भी कांग्रेसी को संघ आतंकी नहीं लगा! भारत-चीन युद्ध के समय संघ के स्वयंसेवकों ने जब जान का बाजी लगाई तो भी संघ आतंकी नहीं था, भारत-पाक युद्ध, कारगिल युद्ध के समय भी किसी ने संघ को आतंकी कहने का दुःसाहस नहीं किया। अब आपके सामने परेशानी यह है कि संघ का प्रभाव सभी क्षेत्रों में निरंतर बढ़ रहा है जो आपको गवारा नहीं है क्योंकि अगर संघ का प्रभाव और व्यापक होता है तो आपका और आपकी पार्टी दोनो का ग्राफ गिरता है। जिस पार्टी के झण्डाबरदारों ने जम्मू- कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा बिना किसी खास प्रतिरोध के पाक-चीन को सौंप दिया हो, तिब्बत चीन को परोस दिया हो, पूर्वोत्तर के राज्यों में एक तरफा धर्मान्तरण को मान्यता देते हुए बाईबिल के अनुसार शासन संचालित करने की बात कही हो, पंजाब को उग्रवाद की आग में झोंक दिया हो, तीन करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशियों को भारत की छाती पर मूंग दलने के लिए घर जवाई की भांति रखा हो, विदेशों के इशारे पर जो राजनीति करते और स्विस बैंकों में धन जमा कराते रहे हो उस पार्टी के युवराज को तो संघ पर आरोप लगाने से पूर्व सौ बार सोचना चाहिए। लेकिन ठीक ही कहा गया है कि विनाशकाले विपरित बुद्धि। आखिर रावण, कंस, जरासंध, कालयवन आदि ने भी तो युवराज जैसा ही तो किया था।

  64. अयोध्या निर्णय के बाद जिन-जिन का मानसिक सन्तुलन खोया है अथवा जो-जो लोग कुण्ठाग्रस्त और सन्निपात की अवस्था में हैं, उनमें एक नाम और जुड़ गया है राहुल गाँधी का…।

    राहुल गाँधी को माफ़ करें, ऐसी मानसिक अवस्था में मानव बड़बड़ाने लगता है, राहुल ने वही किया है… अयोध्या निर्णय के कारण बहुत लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या बोल रहे हैं, क्या कर रहे हैं… 🙂

  65. मैं आप सभी से एक बात साझा करना चाहता हूँ जो की इस बात को सिद्ध करेगी की कांग्रेस की सोच हमेशा से ऐसी ही रही है |

    मैं एक कंप्यूटर इंजिनियर हूँ और मैंने एक कंपनी में नौकरी की थी |वहां पहले दिन सभी से १ फॉर्म भरवाया गया था इसके अंतिम परीश में एक प्रश्न था की क्या आप कभी किसी अतिवादी संगठन से जुड़े हैं ?उदहारण के रूप में तीन शब्द लिखे थे “RSS , Bajrangdal , SIMI”
    उस कंपनी का प्रबंद भी कांग्रेस की विचारधारा वाला है अतः सिद्ध होता है की कांग्रेस हमेशा से इसी सोच की रही है |

    उस कंपनी का नाम है “smart chip Ltd ” यह नॉएडा सेक्टर ६३ के डी २१६ में स्थित है
    इसका वेब पता है
    https://www.smartchiponline.com/

  66. प्रथम तो पंकज भाई ने राहुल गांधी को मूंह तोड़ उत्तर दे ही दिया है, अब और कहने को क्या बचा है.? किन्तु राहुल गाँधी ने कहा कि संघ की विचारधारा वाले लोगों के लिए युवा कांग्रेस में कोई स्थान नहीं है. तो मै राहुल को यही कहना चाहूँगा कि रख ले तेरी युवा कांग्रेस तेरी जेब में. हमें ऐसे किसी संगठन का हिस्सा नहीं बनना जो देश द्रोही हो. हमारा संघ तेरी युवा कांग्रेस से कहीं बेहतर है.

  67. अब राहुलजी फ़ंस गये, बिना विचारे बोल। प्रधान-मंत्री क्या बनें, खुल गई पूरी पोल। खुल गई उनकी पोल, देश ना धर्म समझते। सिमी और संघ को एक समान समझते। कह साधक धज्जियां उङेगी गांव और गली। बिना विचारे बोल फ़ंस गये अब राहुलजी ।

  68. राहुल गांधी ऐसी घटिया टिप्‍पणी करेंगे, ये साबित करता है कि वो प्रधानमंत्री बनने के लायक नही हैं.

  69. आरएसएस को राहुल के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है

  70. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के इतिहास ज्ञान पर तरस ही खाया जा सकता है। उन्‍हें मालूम होना चाहिए कि उनके पिताजी के नाना व देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने चीन से युध्द के पश्चात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अहम् भूमिका को देखते हुए संघ को 1963 में गणतंत्र दिवस पर आयोजित परेड में संचलन हेतु न्‍योता दिया था। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ एक महान राष्‍ट्रवादी संगठन है जबकि सिमी एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन है। इन दोनों संगठनों की तुलना करके श्री राहुल गांधी ने राष्‍ट्रीय अपराध किया है।

  71. राहुल गाँधी लगता है पागल हो गए हैं | या बेवकूफी छोड़ नही पा रहे हैं | इस सम्पूर्ण बिदेशी व्यक्ति ने आर एस एस को आतंकवादी संगठन सिमी के समान बताया है | अब इस सम्पूर्ण रूप से विदेशी हो चुके व्यक्ति से कौन पूछे कि जब तुम्हरे बाप दादाओं ने इस देश कि आजादी पर हस्ताक्षर किया था तो ब्रिटेन कि महारानी को ही इस देश कि महारानी स्वीकार किया था जिसका खंडन न तो बाद में बने भारतीय संविधान ने किया और न ही कांग्रेस ने | राजनीति विरासत में पाने वाले तथाकथित युवराज चार्ल्स राहुल गाँधी जिन्हें इस देश कि संस्कृति का पता ही नही (शायद पता हो, क्योंकि जहाँ लड़किओं और महिलाओं को देखते है सुरक्षा घेरा तोड़कर उनसे मिलने लगते है ) जिन्होंने कभी आर एस एस के लोगों मुलाकात ही नही कि, कभी आर एस एस को जानने का प्रयास ही नही किया, ऐसे परम गाँधीवादी तथाकथित युवराज चार्ल्स राहुल गाँधी आर एस एस को सिमी जैसे संगठन के समान मानते हैं | एक इस व्यक्ति के नाम से गाँधी हटा दिया जाये तो ..इसे अपनी खुद कि पहचान के लाले पड़ जायेंगे ….और ये आर एस एस जैसे राष्ट्रवादी संगठन को आतंकवादी संगठन बताता है |
    अरे अगर यह आतंकवादी संगठन है तो इसपर वैन क्यों नही लगाते, तुम्हारी ही सरकार है | लोगों को वेवकूफ बनने वाले ऐसे राजनेता सामाजिक बहिस्कार के लायक है ….और इसका सामाजिक बहिस्कार होना चाहिए |
    रत्नेश त्रिपाठी

  72. काँग्रेस और लश्करे तोयबा में कोई फर्क नहीं. राहुल और कसाब में कोई फर्क नहीं. राजीव और प्रभाकरन में कोई फर्क नहीं. इंदिरा और भिंडरावाले में कोई फर्क नहीं. नेहरु और जिन्ना में कोई फर्क नहीं.
    नोट: यह प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी है. अगर राहुल अपने बयान से मुकरते हैं तो इस टिप्पणी का भी कोई अर्थ नहीं है. लेकिन अगर वह कायम रहते हैं तो यह टिप्पणी भी सही है. वास्तव में संघ और सिमी की तुलना वैसा ही है जैसी उपरोक्त टिप्पणी.

    • नाजीयों एवं कंग्रेस मे कोई फर्क नही – एक यहुदियों का समूल विनाश करना चाहती था दूसरा सिखों का

    • धन्यवाद पंकज जी. बिलकुल सही जवाब दिया है. आपसे पूर्ण सहमत है.

      • श्रीमान राहुल जी, धतूरा और भॉग की तरह स्‍वामी अग्निवेश और दिग्‍िविजय सिेह के आप गुरू हो सकते हैाकिन्‍तु राष्‍टहीन, चरिृहीन और संस्‍कार हीन व्‍यक्ति के बारे में मुझे कुछ भी टिप्‍पणी करनें में भीर शर्म महसूस हो रही हैा राहुल जी आप उसी तरह अच्‍झे लगते हो जैसे मुर्दाघाट पर किसी मरी हुई महिला को खुब अक्ष्च्‍छी तरह सजाकर रख दिया जाय मित्‍र तुम्‍हारा बाप जिन्‍दगी भर इटली के प्‍लेट में चुस्‍की ली तेरे दादा और परदादा ने भी दर दर की प्‍लेटों में चुस्‍की लेते अपनंे प्राण त्‍याग दिये तूभी हे तो उसी बोतल का जिन्‍न तुमसे एक राष्‍ट की इससे ज्‍यादा क्‍या अपेक्षा हो सकती हैा कहावत भी सही है बोया पेड् बबूल का , आम कहॉ ते खाय ा आपके लिए वाराणसी से एक पेपर प्रकाशित होता है उसका लगातार दिन में दो बार सेवन कर अवलोकन करो वह vandemataramvaranasi.blogspot.com पर उपलब्‍ध हैादिन में पॉच बार वन्‍देमातरम का उदद्यध्घोष करों आपका सब रोग दूर हो जायेगा अन्‍त में मै अपने विचार प्रकट करने वाले भाइयों से कहना चाहता हूॅ कि यह बेचारा अपने से कुछ नही बोलता है वेटिकन सिटी से पोप ने इसके लिए प्रशिक्षित कमेन्‍टेटर भेजा है जब एन्‍ओनियो मारियो र्ऊ सोनिया गॉधी मुहर लगती हैं तो पी चिदम्‍बरम, ि‍दिब्विजय सिंह, स्‍वामी अग्निवेश और राहुल गॉधी जैसे लोग बोलने लगते हैा

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