युवाओं के सहयोग के बिना राष्ट्र निर्माण सम्भव नहीं

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शिवदेव आर्य

युवा राष्ट्र का प्राण है। वही राष्ट्र की शक्ति है, गति है, स्फूर्ति है, चेतना है, ओज है, तेज है और राष्ट्र की प्रज्ञा है। युवाओं की प्रतिभा, तप, त्याग और बलिदान राष्ट्र के लिए गर्व का विषय है। युवाओं का पथ तथा संकल्प राष्ट्रीय पराक्रम और प्रताप का प्रतीक है। युवा भविष्य के कर्णधार है, जिनको आगे चलकर राष्ट्र की बागडोर संभालनी है। युवा अपनी शक्ति, सामथ्र्य तथा साहस के बल पर अपने राष्ट्र को सबसे आगे ले जाता है।

या यह कहिए युवा राष्ट्र का निर्माता होता है। वहीं वेद भी कहता है कि – ‘‘सुवीर्यस्य पतयः स्यामः’ अर्थात् – हम प्रबल शक्ति के स्वामी बनें (May we be the masters of great valour).

युवा शब्द ‘‘यु मिश्रणेऽमिश्रणे च’ धातु से निष्पन्न हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ संयोजन – वियोजन करना है अर्थात् जोड़ और तोड़ करना है।

एक तरफ भारत के लिए बहुत खुशी की बात है कि हमारे राष्ट्र की जनसंख्या का पचास प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा युवा है, जिसे हम युवा वर्ग कह सकते है। जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों से सर्वाधिक सक्रिय एवं सतर्क रहता है और रहना भी चाहिए, क्यांेकि यह उम्र ही इसी के लिए होती है। वहीं दूसरी तरफ हमारे युवक हिंसक  तथा अशिष्ट होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं हमारें युवक चैराहों पर खड़े होकर छेडछाड के प्रमुख भी बनते जा रहे हैं, माता-पिता की बातों को न मानना, गुरुओं का अनादर, सलमान तथा कैटरीना को अपना आदर्श मानना इत्यादि अनेक क्रियाकलापों को देखकर मन क्रोधाग्नि से प्रज्वलित दुःखी हो उठता है। ऐसे समय में युवाओं को सशक्त मार्गदर्शन कर उन्हें राष्ट्रनिर्माण की सेनाओ में भर्ती करा देना चाहिए। आजादी के दिनों में जो तूफान उठे थे, ठीक उसी प्रकार इन दिनों में उस समय से पचास गुना अधिक तेज एवं उत्साह होना चाहिए, क्योंकि इस समय युवाओं की संख्या पहले से बहुत अधिक है।

मेरे विचार से राष्ट्र का प्रत्येक महान् कार्य युवाओं के सहयोग के बिना अधूरा है। कारण यह है कि निर्माण हमेशा बलिदानों पर टिका होता है और जब तक निर्माण के लिए बलिदान रूपी खाद नहीं डाला जाता, तब तक विकास का अंकुर फूट ही नहीं सकता। बलिदान ही युवा पीढ़ी का शृंगार है, झांसी की रानी, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद जैसे अनेक सहस्त्रों युवाओं ने अपने जीवन का उत्सर्ग कर राष्ट्र निर्माण में अमूल्य योगदान दिया। आज इसी की आवश्यकता है। इसी भावना को वेद में भी प्रकट किया गया है कि – ‘‘वयं राष्टे जागृयाम पुरोहिताः’’ अर्थात् हम जागरुक रह कर राष्ट्र में जागृति पैदा करते रहें। ‘‘वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम’’ अर्थात् हे राष्ट्रभूमे! तुम्हारें लिए बलिदान करने वाले होवें।

युवाओं को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि जब तक युवा किसी ज्ञानवान्, चरित्रवान् एवं बुद्धिमान् व्यक्ति का परामर्श नहीं लेंगे तब तक निश्चित है कि वे अपने कार्य में सुचारू रूप से सफल नहीं हो सकते। आज  बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे राष्ट्र के अधिकांश युवा पथभ्रष्ट हो रहे हैं। वे धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रिय चरित्र के नाम पर शून्य होते जा रहे हैं। वे सुख-सम्पति, मौज-मस्ती, मजाक आदि का जीवन जीना पसंद करना चाहते हैं। साथ ही वे पश्चिमी सभ्यता की रंगीन घिनौनी चादर को ओढ़कर अपने जीवन को बिताना चाहते हैं।

जब युवा सशक्त होगा तथा राष्ट्र अपने चरमोत्कर्ष पर होगा तब हम फिर शान से कह सकते हैं कि हमारा राष्ट्र विश्वगुरु है।

यह युवाओं के लिए जागृति की वेला है। युवा जानते है कि देश को कमजोर करने वाली ताकत कौन-सी है? हमें विघटनकारी प्रवृत्तियों से सावधान रहना चाहिए। युवा शक्ति को राष्ट्रिय जीवन देने के लिए जागृत होना चाहिए। हम देश के युवा हैं, समाज के युवा हैं, हमें देश की ज्वलन्त समस्याओं के  सामाधान के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए।

आज हमारे राष्ट्र में समय के हालात कुछ ठीक नहीं हैं, चहु ओर भ्रष्टाचार, अनाचार, कालाबाजारी फैली हुयी है। हिंसा का नया अवतार साम्प्रदायिकता, जातीयता के आधार पर वोट बैंक का निर्माण हो रहा है। नक्सलवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि जैसे नये-नये वाद चल पडे हैं। सरकारें स्वयं पथभ्रष्ट होकर घोटालों के निर्माण में लगी हुयी हैं। ऐसे में हम सभी एक साथ संगठित होकर राष्ट्र में फैली हुई अनेकों कुरीतियों को इस संसार से समाप्त कर राष्ट्र को एक नई दिशा दें। यदि यह नहीं कर पाये तो कवि आपसे बार-बार पूछता रहेगा कि –

जवानों तुम्हारी जवानी कहाँ है?

तेरी वीरता वो पुरानी कहाँ है?

आओं हम सब मिलकर इस सम्पूर्ण राष्ट्र को सुधारने की जिम्मेदारी लें।

रख हौंसला वो मंजर भी आयेगा,

प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा।

कर हिम्मत और चल दे मुसाफिर,

मंजिल भी मिलेगी और मजा भी आयेगा।

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