सारे फैसले नहीं होते सिक्के उछाल कर…

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मनोज कुमार

मध्यप्रदेश में सियासत का चेहरा बदल गया है. नवागत मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऊपर कॉलीन बिछे और नीचे की खुरदुरी जमीन को देख और समझ रहे हैं. कुछ फैसले उन्होंने सुना दिए हैं तो कुछ को लेकर मंथन कर रहे हैं. कोई एक पखावाड़े में उन्होंने जो फैसला लिया है, उसमें हड़बड़ाहट नहीं बल्कि सुनियोजित दिखता है. समूचे प्रदेश की जनता के हक और हित में वे फैसला लेने के लिए आतुर दिख रहे हैं. यह भी कम विरोधाभाषी नहीं है कि कल तक जिन फैसलों को लेकर विरोधी आक्रामक हुए जा रहे थे, आज वही फैसले उन्हें जनहित के दिख रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा मुद्दा लाडली बहना योजना का है. पूर्ववर्ती सरकार अपने नजरिये से लाडली बहना योजना का श्रीगणेश किया था और चाहे-अनचाहे विधानसभा चुनाव 2023 में इसका लाभ भी मिला लेकिन एक सच यह भी है कि लाडली बहना योजना को चलाने में जितना बजट चाहिए, वह मध्यप्रदेश के राजकोष में दिखता नहीं है. लाडली बहना योजना को ना केवल जारी रखने बल्कि आने वाले दिनों में 1250 रुपये के स्थान पर 3,000 तक दिए जाने की पैरवी करते हुए कांगे्रस मोहन सरकार के प्रति आक्रामक हो गई है. भाजपा का एक धड़ा भी लाडली बहना योजना को जारी रखने का पक्षधर है. हालांकि फौरीतौर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने लोगों को आश्वस्त किया है कि लाडली बहना योजना सहित किसी भी योजना को बंद नहीं किया जाएगा. यह आश्वस्ति थोड़े समय के लिए हो सकती है लेकिन दूर तक चलना फिलहाल कर्ज के बोझ तले दबे राज्य में संभव नहीं दिखता है.

मोहन सरकार कोई फैसला सिक्के उछाल कर करने के मूड में नहीं दिखती है. कुछेक फैसले आने वाले समय में ऐसे भी होते दिखेंगे जो कुछ लोगों को उचित ना लगे लेकिन प्रदेश की आर्थिक सेहत को ठीक करने के लिए कुछ कड़ुवे फैसले को स्वीकार करना पड़ेगा. मोहन सरकार के बारे में यह बात इसलिए भी कही जा सकती है कि वे एमबीए हैं और उन्हें आर्थिक प्रबंधन का ज्ञान है. निश्चित रूप से उन्होंने जो पढ़ा है, अब उसके अनुरूप मध्यप्रदेश गढऩे का अवसर आ गया है. कुप्रबंधन से सुशासन की नवीन परिभाषा गढऩे के लिए भविष्य की आवश्यकता, रिर्सोसेस और उसके समायोजित बंटवारे पर ध्यान देना होगा. उच्च शिक्षा मंत्री के अनुभव के दौरान उन्होंने शिक्षा के मानक गढऩे के लिए जो फैसले किए थे, उसका परिणाम देखने को मिल रहा है. वे स्वयं अपने एक पुराने इंटरव्यूय में कहते हैं कि उन्होंने 25 वर्ष आगे का खाका खींच लिया है. मुख्यमंत्री निर्वाचित होते ही डॉ. मोहन यादव ने 51 पीएम एक्सीलेंस कॉलेज का ऐलान किया है. ये कॉलेज राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मानक के अनुरूप होंगे जहां शिक्षा के साथ स्वरोजगार की प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी. इस तरह मोहन सरकार के एजेंडा में शिक्षा के साथ आत्मनिर्भर युवा समाज के निर्माण को सर्वव्यापी बनाने का संदेश मिलता है. 

सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए बीआटीएस को नए सिरे से बनाने का ऐलान लोगों के आवागमन की सुविधा सुनिश्चित करना है. राजधानी भोपाल में बेढप यातायात के कारण ना केवल हर दिन यातायात जाम लगने की शिकायत बनी रहती है तो अनेक बार दुर्घटनाओं का कारण भी यही वजह बनती है. राजधानी का यातायात सुव्यवस्थित होगा तो बाहर से आने वाले लोगों को सुविधा होगी और इसका विभिन्न सेक्टर पर प्रभावी असर देखने को मिलेगा. अभी हालत यह है कि बसें कहीं भी रूक जाती हैं और कहीं से चल पड़ती हैं. इसी के मानक में इंदौर की व्यवस्था भोपाल को मुंह चिढ़ाती हैं. आने वाले समय में मेट्रेा चलना शुरू हो जाएगा तो सडक़ आवागमन को दुरूस्त करना जरूरी होगा. एक समय था जब बुलडोजर मंत्री के रूप में विख्यात हुए बाबूलाल गौर ने समूचे प्रदेश में अतिक्रमण के खिलाफ हल्ला बोल दिया था. आज जो चौड़ी सडक़ें दिख रही है, उसकी बुनियाद गौर साहब ने रखी थी लेकिन बीते तीन दशकों में आबादी के साथ गाडिय़ों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है तब नए सिरे से प्लानिंग की जरूरत है. मोहन सरकार ने इस दिशा में पहल कर सुनिश्वित कर दिया है कि वे जरूरी सुविधाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं.

वर्तमान समय में कई तरह के प्रदूषण की समस्या से समाज जूझ रहा है जिसमें एक बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण है. मोहन सरकार ने फरमान जारी कर दिया है कि एक निश्चित समय में निर्धारित आवाज में लाउडीस्पीकर से डीजे तक बजाया जा सकेगा. यह फैसला यूं तो दिखने में छोटा है लेकिन एलान के एक सप्ताह में ही इसका असर दिखने लगा है. खासतौर पर बच्चे और बूढ़ों को राहत मिली है. आमतौर पर देखा जा रहा था कि डीजे का वाल्यूम इतना अधिक होता था कि पक्के मकानों के दीवार भी कांप उठते थे. इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए और साथ में सहयोग भी. इसी तरह मांस-मटन की सार्वजनिक विक्रय पर रोक भी बड़ा फैसला है. नॉनवेज खाने वालों से लेकर नहीं खाने वाले ऐसे खुलेआम बिक्री से परेशान दिखते हैं क्योंकि खुले में बिकने से कई किस्म की बीमारी का खतरा देखने को मिलता है.

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की कार्यशैली को देखकर इस बात का अहसास होता है कि वे जमीनी तौर पर योजनाओं को लागू कर लोगों को लाभ देने के मूड में हैं. केवल लोकप्रियता के नाते राजकोष पर भार नहीं आने देना चाहते हैं लेकिन जहां जरूरत है, वहां बिना देरी किए फैसला करते हैं. इंदौर की हुकूमचंद कपड़ा मिल के मजदूरों के हक का पाई-पाई चूकाने के लिए उन्होंने तत्परता दिखाकर अपनी संवेदनशीलता से समाज का परिचय कराया. प्रदेश को अपराधमुक्त करने के लिए भी वे कडक़ तेवर अपनाए हुए हैं. अभी तो मोहन सरकार ने कार्य शुरू किया है. जल्द ही जब वे सरपट और तेजी से फैसले लेंगे तो मध्यप्रदेश की सूरत बदलती दिखेगी. डॉ. मोहन यादव के पास दृष्टि है और मध्यप्रदेश को दिशा देने की समझ और साहस भी. 

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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