काफी नहीं है मुआफी

0
143

-पुनीता सिंह-

women
महिलाओं के खिलाफ घटिया बयानबाजी के हम सभी अब काफी अभ्यस्त हो चुके हैं। ऊंचे ओहदे पर बैठे पढ़े लिखे लोग जब घटिया गाली-गलौच अपशब्द भरी भाषा का प्रयोग करते हैं तो बहुत हैरानी होती है। वो औरतों  के प्रति दोयम दर्ज़े का व्यवहार कर अपनी गिरी हुई मानसिकता का परिचय स्वयं ही समाज को देते हैं। पिछले दिनों  निर्भयाकाण्ड के बाद राष्टपति के पुत्र कहते हैं- “दिल्ली में महिलाएं पहले श्रृंगार करके डिस्को जातीं है फिर विरोध जताने इडिया गेट पहुंच जातीं हैं ” माकपा नेता अनीसुर रहमान ममता बनर्जी से पूछने की हिमाकत करतें हैं कि “,सरकार रेप पीड़िता को  मुआवज़ा देगी। -यदि आप के साथ दुष्कर्म हुआ तो आप की फीस क्या होती ?” ,श्री प्रकाश जायसवाल पूर्व कोयला मंत्री  कहते हैं – “जैसे-जैसे पत्नी बूढ़ी होती जाती है, उसका आकर्षण कम होता जाता है”। और भी ऐसे ही सैकड़ों बयान हैं जिनका जिक्र किया जाए तो कदाचित पूरी रामायण तैयार हो सकती है- बेनी प्रसाद, दिग्विजय सिंह जैसे नेता उचे पद पर बैठ कर भी अपने बड़बोले पन से अक्सर मीडिया को मसालेदार खबरें बनाने का मौका देते  रहते हैं। कुल मिलाकर इन  बयानों का जिनका अर्थ होता है कि सारी घटिया घटनाओं की जिम्मेदार महिलायें खुद हैं।
पिछले दिनों सुर्ख़ियों में रहे तृणमूल कांग्रेस के नेता तापस पाल, जिन्होंने महिलाओं को लेकर बेहद घटिया बयानबाज़ी की थी ।तृणमूल और माकपा  नेताओं के बयानों पर गौर करें तो पता चलता है कि पश्चिम  बंगाल में नेताओं की भाषा निम्नतर स्तर तक जा पहुंची है। वो भूल जाते हैं कि उनके बयान संचार माध्यम से तुरंत समाज के सामने पहुंच जाते हैं। तापस अपने विरोधी को भरी सभा में धमकाते है। कभी उन्हें चूहा तो कभी सभी हदें पार कर कहते हैं- “अर्धसुरक्षा बल भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता”। बीड़ियों में तापस पाल  इंगित  कर कहते हैं कि “यदि यहां माकपा कार्यकर्ता मौजूद है तो कान खोल कर सुन ले- यदि किसी तृणमूल कार्यकर्ता या उसके परिवार को किसी ने कुछ कहा तो इसकी कीमत जान गंवा कर चुकानी पड़ेगी। मैं  सबसे बड़ा गुंडा हूं। मैं अपने लड़कों को तुम्हारे घरों में छोड़ दूंगा जो तुम्हारी हत्या और तुम्हारी  घर की औरतों से रेप करेंगे”। बाद में बबाल मचने पर तापस ने रेप शब्द के प्रयोग से इंकार किया उन्होंने कहा वो रेड डलवाने की बात कर रहे थे
ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान के बाद जब ज्यादा हायतौबा मचाई जाती है तो अक्सर नेता दो टूक शब्दों में मुआफी मांग कर बच जाते हैं। क्या एक आम आदमी को ऐसे बयानों पर मुआफी मिल  सकती है? लड़कों से भूल हो जाती है तो हमारे देश में उन्हें बड़े आराम से मुआफी भी मिल जाती है। हमारा समाज और खुद लड़के का परिवार उसे सहज ही  मामूली फिसलन भरा कदम मान कर मुआफी दे देता है। एक लड़की की ज़िंदगी में मुआफी जैसा शब्द कदाचित  फिट ही नहीं होता है। पुरुष गलतियां करके सभ्य समाज में वापसी कर सकता है लेकिन बलात्कार की शिकार महिला बेकसूर होते हुए भी गुनहगार जैसी ज़िंदन्गी काटती है। उसका एक गलत फैसला उसे मौत की दहलीज़ तक ले आता है, ऐसे में वयान बाजों के घटिया शब्द उनके ज़ख्मों पर नमक का काम करते हैं।

मेरे विचार में कुछ भी अनाप शनाप बकबास करने के बाद मुआफी मांग लेना पर्याप्त नहीं है। उच्च शिक्षित समाज के ये लोग महिलाओं को परोक्ष रूप में गरियाते हैं और बाद में सॉरी  बोल कर अपने को सभ्य समाज का पुरुष दिखाने की कोशिश करतें हैं। ऐसे नेताओं और उच्च शिक्षित लोगों के लिए कड़े कानून का प्रावधान  होना चाहिए। ऐसी गलतियां की पुनरावृति पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। नहीं तो चालाक नेता अपनी बात को इसी तरह सरे आम महिलाओं-लड़कियों पर अश्लील वयान देते रहेंगे और मुआफी को हथियार बना, हाथ जोड़कर समाज में विनम्रता का ढंकोसला करते रहेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here