—विनय कुमार विनायक
कल मासूम बच्चों के कत्ल पर बहुत शोर हुआ था
कल गरीब कन्या के बलात्कार पर डिबेट घनघोर हुआ
कल किसी गुंडे माफिया की मौत पर शोर चहुंओर हुआ!
मगर इन शोर में बहुत अधिक अंतर होता है
गरीब मासूम बच्चों के कत्ल के खिलाफ सियासतदानों ने
न आँसू बहाए न पीड़ितों के आँसू पोंछे न मोमबत्ती जलाई
गरीब बलात्कार पीड़िता के लिए बातें आई गई हो गई!
मगर माफिया की मौत पर उन्होंने भावभीनी श्रद्धांजलि दी
कारण यह कि मारे गए गरीब बच्चों का वोट बैंक नहीं होता
बलात्कार पीड़िता गरीब की कोई जाति नहीं सहानुभूति नहीं
किन्तु गुंडे औ माफिया के पास थोक में एकमुश्त वोट होता!
बेमौत मारे गए बच्चों का पिता आम दिहाड़ी कामगार था
गरीब की बेटियों को इंसाफ दिलाने में किसी की रुचि नहीं
ऐसे इंसानों से वोट के सौदागर को कोई सरोकार नहीं होता
या कामकाज की वजह से आम लोग वोट भी नहीं दे पाता!
मारे गए बच्चों की माँ का वोट गिनती में सिर्फ एक ही था
मारे गए बच्चों की जाति बिरादरी भी संख्याबल में धनी नहीं
इसलिए मारे गए बच्चे को सियासी श्रद्धांजलि नहीं दी गई!
मारे गए बच्चों की मौत का शोर तीन दिन बाद थम गया
माफिया की मौत का शोर चुनाव भर रहेगा हर साल उभरेगा
मगर ये सियासी फितूर अब समझ में आने लगा है हुजूर
कि तुम्हारा मकसद है हैवान लोगों का एकमुश्त वोट पाना
पर समय बदल गया तुम्हें आम इंसानों का वोट पड़ेगा खोना!
अब जातिवाद की डफली नहीं बजेगी मानवता की बात चलेगी
गुंडे आतंकी के हिमायती लोग हो सकते नहीं इंसानों की जाति
तुम नकार दिए जाओगे फरेबी तुम्हारी राजनीति है आत्मघाती!
—विनय कुमार विनायक